सरबीरइंदर सिंह सिद्धू

पूरी कहानी पढ़ें

पंजाब -मालवा क्षेत्र के किसान ने कृषि को मशीनीकरण तकनीक से जोड़ा, क्या आपने कभी इसे आज़माया है…

44 वर्षीय सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को लागू किया जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है और प्रकृति के साथ मिलकर काम करने का यह विचार उनके दिमाग में तब आया जब वे बहुत दूर विदेश में थे।

खेतीबाड़ी, जैसे कि हम जानते हैं कि यह एक पुरानी पद्धति है जिसे हमारे पूर्वजों और उनके पूर्वजों ने भोजन उत्पादित करने और जीवन जीने के लिए अपनाया। लेकिन मांगों में वृद्धि और परिवर्तन के साथ, आज कृषि का एक लंबा इतिहास बन चुका है। हां, आधुनिक कृषि पद्धतियों के कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं लेकिन अब न केवल कृषि समुदाय बल्कि शहर के बहुत से लोग स्थाई कृषि पद्धतियों के लिए पहल कर रहे हैं।

सरबीरइंदर सिंह सिद्धू उन व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने विदेश में रहते हुए महसूस किया कि उन्होंने अपनी धरती के लिए कुछ भी नहीं किया जिसने उन्हें उनके बचपन में सबकुछ प्रदान किया। यद्यपि वे विदेश में बहुत सफल जीवन जी रहे थे, नई खेती तकनीकों, मशीनरी के बारे में सीख रहे थे और समाज की सेवा कर रहे थे, लेकिन फिर भी वे निराश महसूस करते थे और तब उन्होंने विदेश छोड़ने का फैसला किया और अपनी मातृभूमि पंजाब (भारत) वापिस आ गए।

“पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं उच्च शिक्षा के लिए कैनेडा चला गया और बाद में वहीं पर बस गया, लेकिन 5-6 वर्षों के बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे वहां पर वापिस जाने की जरूरत है जहां से मैं हूं।”

विदेशी कृषि पद्धतियों से पहले से ही अवगत सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने खेती के अपने तरीके को मशीनीकृत करने का फैसला किया और उन्होंने व्यापारिक खेती और कृषि तकनीक को इक्ट्ठे जोड़ा। इसके अलावा, उन्होंने गेहूं और धान की बजाय किन्नू की खेती शुरू करने का फैसला किया।

“गेहूं और धान पंजाब की रवायती फसले हैं जिन्हें ज़मीन में केवल 4-5 महीने श्रम की आवश्यकता होती है। गेहूं और धान के चक्र में फंसने की बजाय, किसानों को बागबानी फसलों और अन्य कृषि संबंधित गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए जो साल भर की जा सकती हैं।”

श्री सिंह ने एक मशीन तैयार की जिसे बगीचे में ट्रैक्टर के साथ जोड़ा जा सकता है और यह मशीन किन्नू को 6 अलग-अलग आकारों में ग्रेड कर सकती है। मशीन में 9 सफाई करने वाले ब्रश और 4 सुखाने वाले ब्रश शामिल हैं। मशीन के मशीनीकरण ने इस स्तर तक श्रम की लागत को लगभग शून्य कर दिया है।

“मेरे द्वारा डिज़ाइन की गई मशीन एक घंटे में लगभग 1-1 ½ टन किन्नू ग्रेड कर सकती है और इस मशीन की लागत 10 लीटर डीज़ल प्रतिदिन है।”

श्री सिंह के मुताबिक- शुरूआत में जो मुख्य बाधा थी वह थी किन्नुओं के मंडीकरण के दौरान, किन्नुओं का रख रखाव, तुड़ाई में लगने वाली श्रम लागत जिसमें बहुत समय जाता था और जो बिल्कुल भी आर्थिक नहीं थी। श्री सिंह द्वारा विकसित की ग्रेडिंग मशीन के द्वारा, तुड़ाई और ग्रेडिंग की समस्या आधी हल हो गई थी।

छ: अलग अलग आकारों में किन्नुओं की ग्रेडिंग करने का यह मशीनीकृत तरीके ने बाजार में श्री सिंह की फसल के लिए एक मूल्यवान जगह बनाई, क्योंकि इससे उन्हें अधिक प्राथमिकता और निवेश पर प्रतिफल मिलता है। किन्नुओं की ग्रेडिंग के लिए इस मशीनीकृत तरीके का उपयोग करना “सिद्धू मॉडल फार्म” के लिए एक मूल्यवान जोड़ है और पिछले 2 वर्षों से श्री सिंह द्वारा उत्पादित फल सिट्रस शो में राज्य स्तर पर पहला और दूसरा पुरस्कार प्राप्त किए हैं।

सिर्फ यही दृष्टिकोण नहीं था जिसे श्री सिंह अपना रहे थे, बल्कि ड्रिप सिंचाई, फसल अपशिष्ट प्रबंधन, हरी खाद, बायोगैस प्लांट, वर्मी कंपोस्टिंग, सब्जियों, अनाज, फल और गेहूं का जैविक उत्पादन के माध्यम से वे कृषि के रवायती ढंगों के हानिकारक प्रभावों को कम कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र में सरबीरइंदर सिंह सिद्धू के योगदान ने उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त करवाये हैं जिनमें से ये दो मुख्य हैं।
• पंजाब के अबोहर में राज्य स्तरीय सिट्रस शो जीता
• अभिनव खेती के लिए पूसा दिल्ली पुरस्कार प्राप्त हुआ
कृषि के साथ श्री सिंह सिर्फ अपने शौंक की वजह से अन्य पशु पालन और कृषि संबंधित गतिविधियों के भी माहिर हैं। उन्होंने डेयरी पशु, पोल्टरी पक्षी, कुत्ते, बकरी और मारवाड़ी घोड़े पाले हुए हैं। उन्होंने आधे एकड़ में मछली तालाब और जंगलात बनाया हुआ है जिसमें 7000 नीलगिरी के वृक्ष और 25 बांस की झाड़ियां हैं।
कृषि क्षेत्र में अपने 12 वर्ष के अनुभव के साथ, श्री सिंह ने कुछ महत्तवपूर्ण मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और इन मुद्दों के माध्यम से वे समाज को संदेश देना चाहते हैं जो पंजाब में प्रमुख चिंता के विषय हैं:

सब्सिडी और कृषि योजनाएं
किसान मानते हैं कि सरकार सब्सिडी देकर और विभिन्न कृषि योजनाएं बनाकर हमारी मदद कर रही है, लेकिन यह सच नहीं है, यह किसानों को विकलांग बनाने और भूमि हथियाने का एक तरीका है। किसानों को अपने अच्छे और बूरे को समझना होगा क्योंकि कृषि इतना व्यापक क्षेत्र है कि यदि इसे दृढ़ संकल्प से किया जाए तो यह किसी को भी अमीर बना सकती है।

आजकल के युवा पीढ़ी की सोच
आजकल युवा पीढ़ी विदेश जाने या शहर में बसने के लिए तैयार है, उन्हें परवाह नहीं है कि उन्हें वहां किस प्रकार का काम करना है, उनके लिए खेती एक गंदा व्यवसाय है। शिक्षा और रोजगार में सरकार के पैसे निवेश करने का क्या फायदा जब अंतत: प्रतिभा पलायन हो जाती है। आजकल की नौजवान पीढ़ी इस बात से अनजान है कि खेतीबाड़ी का क्षेत्र इतना समृद्ध और विविध है कि विदेश में जीवन व्यतीत करने के जो फायदे, लाभ और खुशी है उससे कहीं ज्यादा यहां रहकर भी वे हासिल कर सकते हैं।

कृषि क्षेत्र में मंडीकरण – आज, किसानों को बिचौलियों को खेती- मंडीकरण प्रणाली से हटाकर स्वंय विक्रेता बनना पड़ेगा और यही एक तरीका है जिससे किसान अपना खोया हुआ स्थान समाज में दोबारा हासिल कर सकता है। किसानों को आधुनिक पर्यावरण अनुकूल पद्धतियां अपनानी पड़ेंगी जो कि उन्हें स्थायी कृषि के परिणाम की तरफ ले जायेंगी।

सभी को यह याद रखना चाहिए कि-
“ज़िंदगी में एक बार सबको डॉक्टर, वकील, पुलिस अधिकारी और एक उपदेशक की जरूरत पड़ती है पर किसान की जरूरत एक दिन में तीन बार पड़ती है।”

देविंदर सिंह

पूरी कहानी पढ़ें

कैसे एक किसान ने विविध खेती को अपनी सफलता का मार्ग बनाया और इसके माध्यम से दूसरों को प्रेरित किया

नकोदर (जिला जालंधर) के एक सफल किसान देविंदर सिंह ने अपनी खेती टीम से विचार विनमय किया कि कैसे वे विविध खेती की तरफ प्रेरित हुए और खेती के क्षेत्र में अच्छे लाभ प्राप्त करने के लिए, उन्होंने कौन से नए आविष्कार किए।

देविंदर सिंह इस सोच के दृढ़ विश्वासी हैं- कि सिर्फ स्वंय द्वारा किया गया काम महत्तवपूर्ण है और आज जो कुछ भी उन्होंने हासिल किया है वह अपनी कड़ी मेहनत और खेती के क्षेत्र में अधिक काम करने की तीव्र इच्छा से प्राप्त किया है। खेती की पृष्ठभूमि से आने के कारण उन्होंने अपनी 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती शुरू की और उच्च शिक्षा के लिए नहीं गए। उन्होंने एक साधारण किसान की तरह सब्जियों की खेती शुरू की। उनके पास पहले से ही अपनी 1.8 हैक्टेयर भूमि थी, लेकिन उन्होंने 1 हैक्टेयर भूमि किराये पर ली। जो मुनाफा वे खेती से कमा रहे थे, वह उनके परिवार की वर्तमान की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी था लेकिन अपने परिवर के बेहतर भविष्य के बारे में सोचने के लिए पर्याप्त नहीं था।

1990-91 में वे पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के संपर्क में आये और खेती की कुछ नई तकनीकों के बारे में सीखा, जो खेती का क्षेत्र बढ़ाए बिना खेती के क्षेत्र में अच्छा लाभ कमाने के लिए मदद कर सकती हैं और इसमें कोई उच्च तकनीकी मशीनरी या रसायन शामिल ना होने के कारण ने उन्हें अपने फार्म में उन नई तकनीकों को लागू करने के लिए प्रेरित किया।

अपने क्षेत्र का विस्तार करने के लिए उन्होंने KVK- नूर महल, जालंधर से मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली और मक्खी पालन का काम शुरू किया। इस उपक्रम से उन्होंने अच्छा लाभ कमाया और इसे जारी रखा। खेती की नई तकनीकों जैसे बैड फार्मिंग और टन्नल फार्मिंग को लागू करके उन्होंने विविध खेती शुरू की।

खैर, पंजाब में कई लोग विविध खेती कर रहे हैं, लेकिन वे सिर्फ कुछ ही फसलों तक सीमित हैं। देविंदर सिंह ने अपनी सोच को तेज घोड़े की तरह दौड़ाया और बंद गोभी और प्याज का अंतर फसली करके प्रयोग किया। विविध खेती की इस पहल ने बहुत अच्छी उपज दी और उन्होंने उस मौसम में 375 क्विंटल बंद गोभ की कटाई और 125 क्विंटल प्याज की पुटाई की। कई खेतीबाड़ी माहिरों ने अपनी रिसर्च में उनके खेती के तरीकों से मदद ली है। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने प्याज, टमाटर, धनिये को एक साथ उगाकर अंतर फसली किया और उसके बाद उन्होंने प्याज, खीरा, शिमला मिर्च का भी अंतर फसली किया और बंद गोभी, गेंदा को भी एक साथ उगाया।

विविध खेती के लिए उनके द्वारा किए गए फसलों का अंतर फसली एक महान सफलता थी और उन्होंने इन अंतरफसली पैट्रन से काफी लाभ कमाया। उन्होंने अपने पपीता-बैंगन और बंद गोभी-प्याज के अंतर फसली पैट्रन के लिए, जैन एडवाइज़र स्टेट अवार्ड भी प्राप्त किया।

शिक्षा उनके और खेती की नई आधुनिक तकनीकों के बीच कभी बाधा नहीं बनी। उनका जिज्ञासु दिमाग हमेशा सीखना चाहता था और अपने दिमाग की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने हमेशा उचित ज्ञान हासिल किया। उन्होंने सब्जियों की खेती की मूल बातें जानने के लिए, मलेर कोटला के कई प्रगतिशील किसानों का दौरा किया और उन्होने हर प्रकार की मीटिंग और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय या बागबानी विभाग द्वारा आयोजित कैंप में भी भाग लिया।

देविंदर सिंह के खेती के तरीके इतने अच्छे और उत्पादक थे कि उन्हें टन्नल फार्मिंग के लिए 2010 में PAU द्वारा सुरजीत सिंह ढिल्लों अवार्ड मिला। वे PAU किसान क्लब और एग्रीकल्चर टैक्नोलोजी प्रबंध एजेंसी – ATMA गवर्निंग बॉडी (जालंधर) के मैंबर भी बने।

कृषि के क्षेत्र में सफलता के लिए शुरूआत से ही एक अलग या रचनात्मक विचारधारा को जीवित रखना बहुत जरूरी है, देविंदर सिंह ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने अपने खेत में पानी के अच्छे प्रबंधन के लिए तुपका सिंचाई और फुव्वारा सिंचाई को लागू किया। उन्होंने धान की खेती के लिए Tensiometer का भी प्रयोग करना शुरू किया और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए जंतर का प्रयोग भी किया।

हाल ही में, उन्होंने खीरे और तरबूज की विविध खेती शुरू की है और उम्मीद है कि इससे काफी लाभ मिलेगा। कई किसान उनसे सीखने के लिए उनके फार्म का दौरा करते हैं और देविंदर सिंह खुले दिल से अपनी तकनीकों को उनसे शेयर करते हैं। वे विविध खेती के साथ और अधिक प्रयोग करना चाहते हैं और अन्य किसानों तक अपनी तकनीकों को फैलाना चाहते हैं ताकि वे भी इससे लाभ लें सकें।

भविष्य की योजना:
भविष्य के लिए उनके दिमाग में बहुत सारे विचार हैं और बहुत जल्द वे इन्हें लागू भी करेंगे।

किसानों को संदेश
हमारी धरती सोना है और इसमें से सोना उगाने के लिए हमें कड़ी मेहनत और तीव्र बुद्धि से काम करने की आवश्यकता है। हमें अपनी स्वंय के स्वर्ण फसल के लिए अच्छी खेती तकनीकों की जरूरत है।