दीपक सिंगला और डॉ. रोज़ी सिंगला

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प्रकृति के प्रति उत्साह की कहानी

यह एक ऐसे जोड़े की कहानी है जो पंजाब का दिल कहे जाने वाले शहर पटियाला में रहते थे और एक-दूसरे के सपनों को हवा देते थे। इंजीनियर दीपक सिंगला पेशे से एक सिविल इंजीनियर हैं और शोध-उन्मुख है इसके साथ ही अच्छी बात यह है कि उनकी पत्नी, डॉ. रोज़ी सिंगला एक खाद्य वैज्ञानिक हैं। दोनों ने फलों और सब्जियों के कचरे पर काफी रिसर्च किया और ऑर्गेनिक तरल खाद का आविष्कार किया, जो हमारे समाज के लिए वरदान है।
एक पर्यावरणविद् और एक सिविल इंजीनियर होने के नाते, उन्होंने हमेशा एक ऐसा उत्पाद बनाने के बारे में सोचा जो हमारे समाज की कई समस्याओं को हल कर सके और स्वच्छ भारत अभियान ने इसे हरी झंडी दे दी। यह उत्पाद फल और सब्जी के कचरे से तैयार किया जाता है, जो कचरे को कम करने में मदद करता है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है, जो पंजाब और भारत में दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है।
 दीपक और उनकी पत्नी रोज़ी ने 2016 में अच्छी किस्म के हर्बल, जैविक और पौष्टिक-औषधीय उत्पादों को the brand Ogron: Organic Plant Growth Nutrient Solution के तहत जारी किया ।
उनका मानना है कि जैविक पदार्थों के इस्तेमाल से रासायनिक आयात कम होगा और हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह रसायनों और कीटनाशकों के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को हल करेगा। जैविक उत्पादों का प्रयोग होने पर वायु, जल और मिटटी प्रदूषण की रोकथाम भी की जा सकेगी।
प्रोफेसर दीपक ने किसानों को एक प्राकृतिक उत्पाद देकर उनकी समस्याओं को हल करने की कोशिश की, जो उनकी भूमि के उर्वरता स्तर को बढ़ा सकता है। कीटनाशकों के अवशेषों को कम कर सकता है, और इसके निरंतर उपयोग से तीन से चार वर्षों में इसे जैविक भूमि में परिवर्तित कर सकता है। यह सभी प्रकार के पौधों और फसलों के विकास को बढ़ावा देता है। यह एक प्राकृतिक जैविक खाद है और जैव उपचार में भी मदद करता है।
यह उत्पाद तरल रूप में है, इसलिए पौधे द्वारा ग्रहण करना आसान है। उन दोनों ने एक समान दृष्टि और कुछ मूल्यों को आधार बना रखा था जो एक-दूसरे के व्यावसायिक जुनून को बढ़ावा देने में उनका सबसे शक्तिशाली उपकरण बन गया। उनका उद्देश्य यह था की वो ऐसे ब्रांड को जारी करे जिसका प्राथमिक कार्य मानकीकृत जड़ी-बूटियों और जैविक कचरे का प्रयोग करके उनको सबसे अच्छे उर्वरकों की श्रेणी में शामिल किया जा सके।
उनकी प्रेरक शक्ति कैंसर, लैक्टोज असहिष्णुता और गेहूं की एलर्जी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को कम करना था जिनका लोगों द्वारा आमतौर पर सामना किया जा रहा है, जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अधिक से अधिक उपयोग के कारण दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। साथ ही, उन्होंने जैविक उत्पादों का विकास किया जो पर्यावरण के अनुकूल और प्रकृति के अनुरूप हैं, इस प्रकार आने वाली पीढ़ियों के लिए भूमि, पानी और हवा का संरक्षण किया जा सकता हैं।
इससे उन्हें कचरे का उपयोग करने के साथ-साथ पौधों के विकास और किचन गार्डन के लिए रसायनों का उपयोग करने के जगह एक स्वस्थ विकल्प के साथ समाज की सेवा करने में मदद मिली।
अब तक, इस जोड़ी ने 30 टन कचरे को सफलतापूर्वक कम किया है। आस-पास के क्षेत्रों और नर्सरी के जैविक किसानों से लगभग उन्हें 15000/- प्रति माह से अधिक की बिक्री दे रहे हैं और जागरूकता के साथ बिक्री में और भी वृद्धि हो रही हैं ।
साल 2021 में डॉ. रोज़ी सिंगला ने सोचा, क्यों ना अच्छे खाने की आदत  से समाज की सेवा की जाए? एक स्वस्थ आहार समग्र दवा का एक रूप है जो आपके शरीर और दिमाग के बीच संतुलन को बढ़ावा देने पर केंद्रित होता है। फिर वह 15 साल के मूल्यवान अनुभव और ढेर सारे शोध और कड़ी मेहनत के साथ रोज़ी फूड्स की परिकल्पना की।
एक फूड टेक्नोलॉजिस्ट होने के नाते और खाद्य पदार्थों के रसायन के बारे में अत्यधिक ज्ञान होने के कारण, वह हमेशा लोगों को सही आहार सन्तुलन के साथ उनके स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का इलाज करने में मदद करने के लिए उत्सुक रहती थीं। उसने खाद्य प्रौद्योगिकी पर काफी शोध किया है, और उनके पति एक पर्यावरणविद् होने के नाते हमेशा उनका समर्थन करते थे। हालाँकि नौकरी के साथ प्रबंधन करना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन उनके पति ने उनका समर्थन किया और उन्हें मिल्लेट्स आधारित खाद्य उत्पाद शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उसने दो फर्मों के लिए परामर्श किया और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए भी आहार की योजना बनाई।
उत्पादों की सूचि:
  • चनाओट्स
  • रागी पिन्नी:
  • चिया प्रोटीन लड्डू
  • न्यूट्रा बेरी डिलाइट (आंवला चटनी)
  • मैंगो बूस्ट (आम पन्ना)
  • नाशपाती चटका
  • सोया क्रंच
  • हनी चॉको नट बॉल्स
  • रागी चकली
  • बाजरे के लड्डू
  • प्राकृतिक पौधा प्रोटीन पाउडर
  • मिल्लेट्स दिलकश
सरकार द्वारा जारी विभिन्न योजनाओं जैसे आत्मानिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और कई अन्य ने रोजी फूड्स को बढ़ावा देने के लिए मुख्य रूप में काम किया है।
इस विचार का मुख्य काम पंजाब के लोगों और भारतीयों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करना है। हलाकि  डॉ. रोज़ी का दृढ़ विश्वास है कि एक आहार में कई बीमारियों को ठीक करने की शक्ति होती है। इसलिए वो हमेशा ऐसा कहती है की “Thy Medicine, Thy Food.”
डॉ रोज़ी इन मुद्दों को अधिक विस्तार से संबोधित करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने ऐसे खाद्य पदार्थों को निर्माण किया जो उनके उदेश्य को पूरा करें
  • बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं में भी कुपोषण,
  • समाज की सेवा के लिए एक स्वस्थ विकल्प के रूप में परित्यक्त अनाज (मिल्लेट्स) का उपयोग करना।
  • लोगों के विशिष्ट समूहों, जैसे मधुमेह रोगियों और हृदय रोगियों के लिए चिकित्सीय प्रभाव वाले खाद्य पदार्थ तैयार करना।
  • बाजरे के उपयोग से पर्यावरण संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए, जैसे मिट्टी में पानी का स्तर और कीटनाशक की आवश्यकता।
डॉ रोज़ी ने सफलतापूर्वक एक पंजीकृत कार्यालय सह स्टोर ग्रीन कॉम्प्लेक्स मार्केट, भादसों रोड, पटियाला में में खोला है। ग्राहकों की सहूलियत और  के लिए वे अपने उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री शुरू करेंगे।

इंजीनियर दीपक सिंगला की तरफ से किसानों के लिए सन्देश

लम्बे समय तक चलने वाली बीमारियाँ अधिक प्रचलित हो रही हैं। मुख्य कारणों में से एक रासायनिक खेती है, जिसने फसल की पैदावार में कई गुना वृद्धि की है, लेकिन इस प्रक्रिया में हमारे सभी खाद्य उत्पादों को जहरीला बना दिया है। हालाँकि, वर्तमान में रासायनिक खेती के लिए कोई तत्काल प्रतिस्थापन नहीं है जो किसानों को जबरदस्त फसल की पैदावार प्राप्त करने और दुनिया की खाद्य जरूरतों को पूरा करने की अनुमति देगा। भारत की आबादी 1.27 अरब है। लेकिन एक और मुद्दा जो हम सभी को प्रभावित करता है वह है चिकित्स्य रगों में तेजी से वृद्धि। हमें इस मामले को बेहद गंभीरता से लेना चाहिए। सबसे अच्छा विकल्प जैविक खेती हो सकती है। यह सबसे सस्ती तकनीक है क्योंकि जैविक खाद के उत्पादन के लिए सबसे कम संसाधनों और श्रम की आवश्यकता होती है।

डॉक्टर रोज़ी सिंगला द्वारा किसानों के लिए सन्देश

2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मिल्लेट्स ईयर होने के आलोक में मिल्लेट्स और मिल्लेट्स आधारित उत्पादों के लिए मूल्य श्रृंखला, विशेष रूप से खाने के लिए झटपट तैयार होने वाली श्रेणी को बढ़ावा देने और मजबूत करने की आवश्यकता है। मिल्लेट्स महत्वपूर्ण पोषण और स्वास्थ्य लाभों के साथ जलवायु-स्मार्ट फसलों के रूप में प्रसिद्ध हो रहे हैं। पारिस्थितिक संतुलन और आबादी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए, मिल्लेट्स की खेती को अधिक व्यापक रूप से अभ्यास करने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है। हमारा राज्य वर्तमान में चावल के उत्पादन द्वारा लाए गए जल स्तर में तेज गिरावट के कारण गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। चावल की तुलना में मिल्लेट्स द्वारा टनों के हिसाब से अनाज पैदा करने के लिए बहुत कम पानी का उपयोग करता है।
मिल्लेट्स हमारे लिए , ग्रह के लिए और  किसान के लिए भी अच्छा है।

संगीता तोमर

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जैविक गुड़ बेच कर बहन-भाई को जोड़ी ने चखा सफलता का स्वाद

बेशक आपने भाई-बहनों को लड़ते हुए देखा है लेकिन क्या आपने उन्हें एक साथ बिजनेस चलाने के लिए एक साथ काम करते देखा है?
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश की संगीता तोमर जी और भूपिंदर सिंह जी भाई-बहन बिजनेस पार्टनर्स का एक आदर्श उदाहरण हैं, जिन्होंने एक साथ बिजनेस शुरू किया और अपने दृढ़ संकल्प और जुनून के साथ सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचे। संगीता जी और भूपिंदर जी का जन्म और पालन पोषण मुजफ्फरनगर में हुआ, संगीता जिनका विवाह नजदीकी गांव में हुआ था वहअपने नए परिवार के साथ अच्छी तरह से सेटल हैं। उत्तर प्रदेश राज्य की आगे वाली बेल्ट सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले गन्ने के लिए जाने जाती है, हालांकि यह फसल अन्य राज्यों में भी उगाई जाती है लेकिन गन्ना गुणवत्ता और स्वाद में अलग होता है। दोनों ने अपनी 9.5 एकड़ जमीन पर गन्ना उगाने के बारे में सोचा और 2019 में उन्होंने ‘किसान एग्रो-प्रोडक्ट्स’ नाम से गन्ना उत्पादों की प्रोसेसिंग शुरू किया।

उत्पादों की सूची

  • गुड़
  • शक़्कर
  • देसी चीनी
  • जामुन का सिरका
जैविक फलों से बने गुड़ से विभिन्न स्वादों वाले कुल 12 उत्पाद तैयार किए जाते हैं। वे फ्लेवर्ड चॉकलेट, आम, सौंफ, इलायची, अदरक, मिक्स, अजवाइन, सूखे मेवे और मूंगफली का गुड़ में शामिल करने से परहेज करते हैं।
भूपिंदर सिंह जी ने इस क्षेत्र में कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली था लेकिन उनके पूर्वज पंजाब में गन्ने की खेती करते थे। वह इस अभ्यास के साथ-साथ आज के उपभोक्ताओं की आवश्यकता को भी समझते थे जो अपने भोजन के बाद मीठे में चीनी खाना पसंद करते हैं। उन्होंने गुड़ को छोटे-छोटे टुकड़ों में बनाने के बारे में सोचा। उन्होंने गुड़ को बर्फी के रूप में बनाने के बारे में सोचा जहां 1 टुकड़े का वजन लगभग 22gm है, जोकि भोजन या दूध के साथ एक बार में खाना आसान था, जैविक था और चीनी से कहीं बढ़िया था।
“अच्छी गुणवत्ता और स्वादिष्ट गुड़ पैदा करने की तकनीक हमारे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है” भूपिंदर सिंह
संगीता जी मार्केटिंग का काम देखते हैं और प्लांट में शरीरक रूप से मौजूद न होने पर भी नियमित निरीक्षण करते हैं। स्टील-इनफ्यूज्ड मशीनरी का उपयोग प्रोसेसिंग के लिए किया जाता है जिसे किसी भी प्रदूषण से बचाने के लिए अच्छी तरह से कवर किया जाता है। क्योंकि सभी उत्पाद मशीन द्वारा बनाए जाते हैं, इसलिए स्वाद में कोई बदलाव नहीं होता है। भूपिंदर जी, संगीता जी और उनकी टीम दिल्ली के 106 सरकारी स्टोर और 37 निजी स्टोर में अपने उत्पाद पहुंचाती है।
प्रतिदिन उपयोग किए जाने वाले गन्ने की मात्रा 125 क्विंटल है और इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्हें अपने गाँव के अन्य किसानों से इस फसल को खरीदने की आवश्यकता है। गुड़ का उत्पादन आमतौर पर सितंबर से मई तक होता है लेकिन जब उपज मौसमी कारकों से प्रभावित होती है तो यह सितंबर से अप्रैल तक ही होती है।

प्रारंभिक जीवन

भूपिंदर सिंह जी 2009 में भारतीय सेना से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के रूप में सेवानिवृत्त हुए और फिर खाद्य उद्योग में अनुभव हासिल करने के लिए एक फाइव स्टार होटल में काम किया। 2019 में, उन्होंने अपने गाँव में सीखी गई पारंपरिक प्रथाओं से कुछ बड़ा करने का फैसला किया। उन्होंने अपने उत्पादन पलांट और अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए रोजगार भी पैदा किया और अन्य किसानों से गन्ना खरीदकर किसानों को आय का एक स्रोत भी प्रदान किया।
संगीता तोमर, जिन्होंने अंग्रेजी मेजर में मास्टर डिग्री पूरी की है, एक स्वतंत्र महिला हैं। उनके सभी बच्चे विदेश में बसे हुए हैं लेकिन वह अपने गांव में रह कर खेती करना चाहते हैं।

चुनौतियां

एक अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद की पहचान एक ऐसे उपभोक्ता द्वारा की जा सकती है जो जैविक उत्पाद और डुप्लिकेट उत्पाद के बीच का अंतर जानता हो। उनके गांव में ऐसे किसान हैं जो जुलाई में भी चीनी और केमिकल से गुड़ बना रहे हैं. यह किसान अपना उत्पाद कम कीमत पर बेचते हैं जो खरीदार को रासायनिक रूप से बने गुड़ की ओर आकर्षित करता है।

प्राप्तियां

  • लखनऊ में गुड़ महोत्सव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।
  • मुजफ्फरनगर के गुड़ महोत्सव में सम्मानित किया गया।

किसानों के लिए संदेश

वह चाहते हैं कि लोग खेती की ओर वापिस आएं। आज के दौर में नौकरी के लिए आवेदनकर्ता अधिक हैं लेकिन नौकरी कम। इसलिए बेरोजगार होने के बजाय अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का समय आ गया है। इसके अलावा, कृषि में विभिन्न क्षेत्र हैं जिन्हें कोई भी अपनी रुचि के अनुसार चुन सकता है।

योजनाएं

भूपिंदर सिंह जी बिचौलियों के बिना अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं को बेचना चाहते हैं, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और उपभोक्ता भी कम कीमत पर जैविक उत्पाद खरीद सकेंगे।

बलजिंदर सिंह

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एक मधुमक्खी पालक की कहानी जो अपने शौक के जरिए सलफता हासिल कर चुका है

दिशा कहीं से भी मिल जाए, चाहे समय कोई भी हो, चाहे दिन हो या रात, वह समय सुनहरा होता है।

यह बात हर क्षेत्र में लागू है, क्योंकि आज के समय में यदि किसी ने कोई मुकाम हासिल करना हो, तो ज्ञान और मार्गदर्शन की जरुरत होती है। आज एक ऐसे ही किसान के बारे में बात करेंगे जिन्होंने इस बात को सच साबित किया है।

कहा जाता है कि इंसान और पानी का चलते रहना बहुत जरुरी होता है, क्योंकि इनके एक जगह खड़े रहने से इनकी महत्ता कम हो जाती है। इसी सोच के साथ श्री कतसर साहिब जिला के रहने वाले बलजिंदर सिंह जी को कुछ नया करने की इच्छा रहती थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अलग अलग मेले और प्रदर्शनियों में जाना शुरू किया। इन प्रदर्शनियों में उनकी मुलाकात श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी के साथ हुई जिनकी सफलता ने बलजिंदर सिंह जी को बहुत प्रभावित किया।

श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी जोकि खुद एक प्रगतिशील किसान है, उन्हें देखकर विचार आया, यदि एक महिला होकर इतना कुछ कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं- बलजिंदर सिंह

श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी एक प्रगतिशील किसान है, जिन्होंने अपने बनाए सेल्फ हेल्प ग्रुप के साथ अपनी अलग पहचान बना रखी है, जिससे वह अपने उत्पाद जैसे कि चटनी, अचार आदि का मंडीकरण भी करते हैं। उन्हें बहुत से पुरस्कार भी मिल चुके हैं, जोकि ओर महिलाओं के लिए एक उदाहरण है।

बलजिंदर सिंह जी श्रीमती गुरदेव कौर देयोल जी के काम से उत्साहित हो कर मधु मक्खी पालन का व्यवसाय अपनाने का मन बनाया। उनके साथ मिलकर मधु मक्खी पालन की प्राथमिक ट्रेनिंग ली।

मैं और श्रीमती गुरदेव कौर देयोल ही मिलकर KVK बठिंडा में समय समय पर ट्रेनिंग प्राप्त करवाते रहते हैं और सरदारनी गुरदेव कौर देयोल के साथ अलग अलग फार्म पर जाते रहे- बलजिंदर सिंह

बलजिंदर जी ने एक से डेढ़ साल तक ट्रेनिंग करने के बाद गुरदेव कौर देयोल जी के पास से 15 बक्से खरीद कर साल 2000 में मधु मक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया। मधु मक्खियों की नस्ल से उन्होंने इटालियन नस्ल की मक्खियों के साथ शुरू किया, जोकि PAU की तरफ से सिफारिश की गई थी। इन बक्सों को उन्होंने गंगानगर के इलाके में रखा। बिना किसी सरकारी और गैर सरकारी सहायता से उन्होंने 15 बक्से से अपना काम शुरू किया।

मुझे इस व्यवसाय में कोई अधिक समस्या नहीं आई, पर दुःख इस बात का होता है कि कंपनियां शहद में मिलावट करके बेचती है और अपने मुनाफे के लिए लोगों की सेहत के साथ खेल रही है- बलजिंदर सिंह।

उनका काम बड़े स्तर पर फैल चुका है, कि वह अपना शहद सिर्फ भारत में नहीं बल्कि बाहरी देश जैसे अमेरिका, कनाडा, आदि में भी बेच रहे हैं। उन्होंने कंपनियों के साथ लिंक बनाए हुए हैं और शहद सीधा कंपनी को बेचते हैं।

वर्तमान में उनके पास 2500 के आस पास बक्से हैं। वह अपने बक्से केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि पंजाब के बाहर जैसे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, श्रीनगर आदि शहरों में लगाते हैं। इस काम में उनके साथ 20 ओर मजदूर जुड़े हैं और उनके साथ उनके सहयोगी कुलविंदर सिंह गांव बुर्ज कलां से हैं, जोकि हर समय उनका साथ देते हैं।

बलजिंदर सिंह जी ने अपना शहद ग्राहक की जरुरत अनुसार जैसे 100 ग्राम, 250 ग्राम, 500 ग्राम, और 1 किलो की पैकिंग को घर-घर में पहुंचाना शुरू किया। उन्हें मधु मक्खी पालन के व्यवसाय में बहुत से पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

बलजिंदर सिंह जी की तरफ से अलग अलग तरह का शहद तैयार किया जाता है-

  • सरसों का शहद
  • नीम का शहद
  • टाहली का शहद
  • सफेदे का शहद
  • बेरी का शहद
  • कीकर का शहद आदि।

भविष्य की योजना

वह मधु मक्खी पालन के व्यवसाय को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें 5000 तक बक्से लगाना चाहते हैं।

संदेश

जो नए किसान मधु मक्खी पालन में आना चाहते हैं, सबसे पहले उन्हें अच्छी तरह से ट्रेनिंग प्राप्त करनी चाहिए। उसके बाद मेहनत करें ये न हो कि उत्साहित होकर पैसे लगा लें पर ज्ञान की कमी होने के कारण बाद में नुक्सान सहना पड़े। सबसे पहले अच्छी तरह से ट्रेनिंग लेने के बाद ही किसी व्यवसाय को करें। क्योंकि इस तरह का व्यवसाय अपनी देखरेख में ही किया जा सकता है।

करनबीर सिंह

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अन्नदाता फूड्स के नाम से किसान हट चलाने वाला प्रगतिशील किसान

आज के समय में हर कोई दूसरों के बारे में नहीं बल्कि अपने फायदे के बारे में सोचता है पर कुछ इंसान ऐसे होते हैं जिन्हें भगवान ने लोगों की सहायता करने के लिए भेजा होता है, वह दूसरे का भला सोचता भी है और इस तरह के इंसान बहुत ही कम देखने को मिलते हैं।

इस बात को सही साबित करने वाले करनबीर सिंह जो गांव साफूवाला, जिला मोगा के रहने वाले हैं जिन्होंने MSC फ़ूड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की हुई है और प्राइवेट कंपनी में काम करते थे और नौकरी छोड़ कर खेत और फ़ूड प्रोसेसिंग करने के बारे में सोचा और उसमें सफल होकर दिखाया।

साल 2014 की बात है जब करनबीर एक कंपनी में काम करते थे और जिस कंपनी में काम करते थे वहां क्या देखते हैं कि किस तरह किसानों से कम कीमत पर वस्तु लेकर अधिक कीमतों पर बेचा जा रहा है और जिसके बारे में किसानों को जानकारी नहीं थी। बहुत समय वह इस तरह ही चलता रहा पर उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी क्योंकि जो ऊगा रहे थे वह कमा नहीं रहे थे और जो कमा रहे थे वह पहले से ही बड़े लोग थे।

यह सब देखकर करनबीर को बहुत दुःख हुआ और करनबीर ने आखिर में नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और खुद आकर घर खेती और प्रोसेसिंग करने लगा। करनबीर के परिवार वाले शुरू से ही फसली विभिन्ता को अपनाते हुए खेती करते थे और इसके इलावा करनबीर के लिए फायदेमंद बात यह थी कि करनबीर के पिता सरदार गुरप्रीत सिंह गिल जोकि KVK मोगा और PAU लुधियाना के साथ पिछले कई सालों से जुड़े हुए हैं, जो किसानों को फसलों से संबंधित सलाह देते रहते थे।

फिर करनबीर ने अपने पिता के नक्शे कदम पर चलकर खेती माहिरों द्वारा बताएं गए तरीके के साथ खेती करनी शुरू की और कई तरह की फसलों की खेती करनी शुरू कर दी। फिर करनबीर के दिमाग में ख्याल आया कि जब फसल पककर तैयार होगी तो इसकी मार्केटिंग किस तरह की जाए।

फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न पहले छोटे स्तर पर मार्केटिंग की जाए, उसके बाद जब करनबीर गांव से बाहर जाते तो अपने साथ प्रोसेसिंग की अपनी वस्तुएं साथ ले जाते जहां छोटे-छोटे समूह के लोग दिखाई देते उन्हें फिर वह अपने उत्पादों के बारे में बताता और उत्पाद बेचता। उनके दोस्त नवजोत सिंह और शिव प्रीत ने इस काम में उनका पूरा साथ दे रहे हैं ।

फिर उन्होंने इसकी मार्केटिंग बड़े स्तर पर करने के बारे में सोचा और 2016 में “फ्रेंड्स ट्रेडिंग” नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई और ट्रेडिंग का काम शुरू कर दिया, जहां पर वह अपनी फसल तो मार्किट ले जाते, साथ ही ओर किसानों की फसल भी ले जानी शुरू कर दी, जोकि खेती माहिरों की सलाह से उगाई गई थी। इस तरीके के साथ उगाई गई फसल की पैदावार अधिक और बढ़िया होने के करने इसकी मांग बढ़ी जिससे करनबीर और किसानों को बहुत मुनाफा हुआ। जिसके साथ वह बहुत खुश हुए।

इस दौरान ही उनकी मुलाकात खेती व्यापार विषय के माहिर प्रोफेसर रमनदीप सिंह जी के साथ हुई जोकि हर एक किसान की बहुत सहायता करते हैं और उन्हें मार्केटिंग करने के तरीके के बारे में जागरूक करवाते रहते हैं और इसे दिमाग में रखते हुए फिर मार्केटिंग करने के तरीके को बदलने के बारे में सोचा।

फिर दिमाग में आया कि पैदा की फसल की प्राथमिक स्तर पर प्रोसेसिंग करके अगर मार्केटिंग की जाए तो क्या पता इससे बढ़िया लाभ मिल सकता है। फिर उन्होंने शुरू में जिस फसल की प्रोसेसिंग हो सकती थी प्रोसेसिंग करके उन्हें बेचने का काम शुरू कर दिया, जिसकी शुरुआत उन्होंने किसान मेले से की और उनको लोगों की अच्छी प्रतिकिर्या मिली।

इसे आगे चलाने के लिए करनबीर सिंह जी ने एक किसान हट खोलने के बारे में सोचा जहां पर उनकी फसलों की प्रोसेसिंग और किसानों की फसलों की प्रोसेसिंग का सामान रख कर बेचा जा सके, जिसका मुनाफा सीधा किसान के खाते में ही जाए न कि बिचौलिए के हाथ और जिसके साथ उसकी मार्केटिंग बनी रहेगी और दूसरा लोगों को साफ-सफाई और बढ़िया वस्तुएं मिलती रहेगी।

फिर 2019 में करनबीर ने अन्नदाता फूड्स नाम से ब्रांड रजिस्टर्ड करवा कर मोगा शहर में अपनी किसान हट खोली और प्रोसेसिंग किया हुआ सामान रख दिया। जैसे-जैसे लोगों को पता चलता गया, वैसे ही लोग सामान लेने आते रहे।

जिस में बाकि किसान द्वारा प्रोसेसिंग किया सामान जैसे शहद, दाल, GSC 7 कनोला सरसों का तेल, चने आदि बहुत वस्तुएं रख कर बेचते हैं।

बहुत कम समय में मार्केटिंग में प्रसार हुआ और लोग उन्हें अन्नदाता फूड्स के नाम से जानने लगे। इस तरह 2019 में वह सफल हुए जिसमें उनकी सफलता का मुख्य श्रेय GSC 7 कनोला सरसों का तेल को जाता है क्योंकि तेल की मांग इतनी अधिक है कि मांग को पूरा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि यह तेल बाकि तेल से अलग है क्योंकि इस तेल में बहुत मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते है और जिससे उन्हें मुनाफा तो होता पर उनके साथ ओर किसानों को भी हो रहा है।

मेरा मानना है कि यदि हम किसान और ग्राहक में से बिचौलीए को निकाल दें तो हर इंसान बढ़िया और साफ-सफाई की वस्तुएं खा सकता है दूसरा किसान को अपनी फसल का सही मूल्य भी मिल जाएगा- करनबीर सिंह

भविष्य की योजना

वह चाहते हैं कि किसानों का समूह बनाकर वही फसलें उगाएं जिसकी खपत राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत मांग है।

संदेश

यदि कोई किसान खेती करता है तो उन्हें चाहिए कि खेती माहिरों द्वारा दिए गए दिशा निर्देश पर चल कर ही रेह स्प्रे का प्रयोग करें, जितनी फसल के विकास के लिए जरुरत है।

पवनदीप सिंह अरोड़ा

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विदेश जाने के सपने को छोड़ कर विरासती व्यवसाय में सफलता हासिल करने वाला मधु-मक्खी पालक

पंजाब में आज कल युवा पीढ़ी विदेशों में जाकर बसने की चाहवान है, क्योंकि उन्हें लगता है कि विदेशों में उनका भविष्य ज़्यादा सुरक्षित हो सकता है। पर यदि हम अपने देश में रहकर अपना कारोबार यही पर ही बेहतर तरीके से करे तो हम अपने देश में ही अपना भविष्य सुरक्षित बना सकते हैं।

ऐसा ही एक नौजवान है पवनदीप सिंह अरोड़ा। एम.ए की पढ़ाई करने वाले पवनदीप भी पहले विदेश में जाकर बसने की इच्छा रखते थे, क्योंकि बाकि नौजवानों की तरह उन्हें भी लगता है कि विदेशों में काम करने के अधिक अवसर हैं।

पवन के चाचा जी स्पेन में रहते थे, इसलिए दसवीं की पढ़ाई करने के बाद ही पवन का रुझान वहां जाने की तरफ था। पर उनका बाहर का काम नहीं बना और उन्होंने साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। बाहर का काम ना बनता देख पवन ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद अपनी बहन के साथ मिलकर एक कोचिंग सेंटर खोला। 2 साल के बाद बहन का विवाह होने के बाद उन्होंने कोचिंग सेंटर बंद कर दिया।

पवन के पिता जी मधु मक्खी पालन का काम 1990 से करते हैं। पढ़े-लिखे होने के कारण पवन चाहते हैं कि या तो वह विदेश में जाकर रहने लग जाएं या फिर किसी अच्छी नौकरी पर लग जाएं, क्योंकि वह यह मधुमक्खी पालन का काम नहीं करना चाहते थे। पर इस दौरान उनके पिता शमशेर सिंह जी की सेहत खराब रहने लग गई। उस समय शमशेर सिंह जी मध्य प्रदेश में मधु मक्खी फार्म पर थे। डॉक्टर ने उन्हें आराम करने की सलाह दी, जिसके कारण पवन को स्वयं मध्य प्रदेश जाकर काम संभालना पड़ा। उस समय पवन को शहद निकालने के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं थी, पर मध्य प्रदश में 4 महीने फार्म पर रहने के बाद उन्हें इसके बारे में जानकारी हासिल हुई। इस काम में उन्हें बहुत लाभ हुआ। धीरे-धीरे पवन जी की दिलचस्पी कारोबार में बढ़ने लगी और उन्होंने मधुमक्खी पालन को अपने व्यवसाय के तौरपर अपनाने का फैसला किया और अपना पूरा ध्यान इस व्यवसाय पर केंद्रित कर लिया। इसके बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, अमृसतर से 7 दिनों की मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग भी ली। शहद निकालने का तरीका सीखने के बाद पवन ने अब शहद की मार्केटिंग की तरफ ध्यान देना शुरू किया। उन्होंने देखा कि शहद बेचने वाले व्यापारी उनसे 70-80 रूपये किलो शहद खरीदकर 300 रूपये किलो के हिसाब से बेचते हैं।

“व्यापारी हमारे से सस्ते मूल्य पर शहद खरीदकर महंगे मूल्य पर बेचते हैं। मैंने सोचा कि अब मैं शहद बेचने के लिए व्यापारियों पर निर्भर नहीं रहूंगा। इस उद्देश्य के लिए मैंने खुद शहद बेचने का फैसला किया”- पवनदीप सिंह अरोड़ा

पवनदीप के पास पहले 500 बक्से मधु-मक्खी के थे, पर शहद की मार्केटिंग की तरफ ध्यान देने के खातिर उन्होंने बक्सों की संख्या 500 से कम करके 200 कर दी और काम करने वाले 3 मज़दूरों को पैकिंग के काम पर लगा दिया। स्वयं शहद की पैकिंग करके बेचने से उन्हें काफी लाभ हुआ। किसान मेलों पर भी वह खुद शहद बेचने जाते हैं, जहाँ पर उन्हें लोगों की तरफ से अच्छा रिजल्ट मिला।

युवा होने के कारण पवन सोशल मीडिया के महत्व को बाखूबी समझते हैं। इसलिए उन्होंने शहद बेचने के लिए वेबसाइट बनाई, ऑनलाइन प्रोमोशन भी की और वह इसमें भी सफल हुए।

आजकल मार्केटिंग के बारे में समझ कम होने के कारण मधु मक्खी पालक यह काम छोड़ जाते हैं। यदि अपना ध्यान मार्केटिंग की तरफ केंद्रित कर शहद का व्यापार किया जाये तो इस काम में भी बहुत लाभ कमाया जा सकता है।

  • पवनदीप जी की तरफ तैयार किये जाते शहद की किस्में:
  • सरसों का शहद
  • सफेदे का शहद
  • अकाशिया हनी
  • शीशम का शहद
  • लीची का शहद
  • मल्टीफ़्लोरा शहद
  • खेर का शहद
  • जामुन का शहद
  • बेरी का शहद
  • अजवाइन का शहद

जहाँ-जहाँ शहद प्राप्ति हो सकती है, पवनदीप जी, अलग-अलग जगह पर जैसे कि नहरों के किनारों पर मधु मक्खियों के बक्से लगाकर, वहां से शहद निकालते हैं और फिर माइग्रेट करके शहद की पैकिंग करके शहद बेचते हैं। वह ए ग्रेड शहद तैयार करते हैं, जो कि पूरी तरह जम जाता है, जो कि असली शहद की पहचान है। जिन लोगों की आँखों की रौशनी कम थी, पवन द्वारा तैयार किये शहद का इस्तेमाल करके उनकी आँखों की रौशनी भी बढ़ गई।

हम शहद निकालने के लिए अलग-अलग जगहों, जैसे – जम्मू-कश्मीर, सिरसा, मुरादाबाद, राजस्थान, रेवाड़ी आदी की तरफ जाते हैं। शहद के साथ-साथ बी-वेक्स, बी-पोलन, बी-प्रोपोलिस भी निकलती है, जो बहुत बढ़िया मूल्य पर बिकती है – पवनदीप सिंह अरोड़ा

शहद के साथ-साथ अब पवन जी हल्दी की प्रोसेसिंग भी करते हैं। वह किसानों से कच्ची हल्दी लेकर उसकी प्रोसेसिंग करते हैं और शहद के साथ-साथ हल्दी भी बेचते हैं। इस काम में पवन जी के पिता (शमशेर सिंह अरोड़ा), माता (नीलम कुमारी), पत्नी (रितिका सैनी) उनकी सहायता करते हैं। इस काम के लिए उनके पास गॉंव की अन्य लड़कियॉं आती हैं, जो पैकिंग के काम में उनकी मदद करती हैं।

भविष्य की योजना

मधु-मक्खी पालन के कारोबार में सफलता प्राप्त करने के बाद पवन जी इस कारोबार को ओर बढ़े स्तर पर लेकर जाकर अन्य उत्पादों की मार्केटिंग करना चाहते हैं।

किसानों के लिए संदेश
“मधु-मक्खी के कारोबार में शहद बेचने के लिए किसी व्यापारी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। मधु-मक्खी के रखवालों को खुद शहद निकालकर, खुद पैकिंग करके मार्केटिंग करनी चाहिए है, तभी इस काम में मुनाफा कमाया जा सकता है।”

मुकेश देवी

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मीठी सफलता की गूंज — मिलिए एक ऐसी महिला से जो शहद के व्यवसाय से 70 लाख की वार्षिक आय के साथ मधुमक्खीपालन की दुनिया में आगे बढ़ रही है

“ऐसा माना जाता है कि भविष्य उन लोगों से संबंधित होता है जो अपने सपने की सुंदरता पर विश्वास करते हैं।”

हरियाणा के जिला झज्जर में एक छोटा सा गांव है मिल्कपुर, जो कि अभी तक अच्छे तरीके से मुख्य सड़क से जुड़ा हुआ नहीं है और यहां सीधी बस सेवा की कोई सुविधा नहीं है। किसी व्यक्ति के लिए ऐसी जगह पर रहने के दौरान किसी भी खेती संबंधित गतिविधि या व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोचना भी असंभव सा लगता है। लेकिन मधुमक्खीपालन के क्षेत्र में मुकेश देवी के सफल प्रयासों ने साबित कर दिया है कि यदि आपके पास कुछ भी करने का जुनून है तो कुछ भी असंभव नहीं है। मधुमक्खियों के दर्दनाक जहरीले डंक से पीड़ित होने के बाद भी मुकेश देवी और उनके पति ने कभी भी रूकने का नहीं सोचा और उन्होंने उत्तरी भारत में सर्वश्रेष्ठ शहद उत्पादन करने का अपना जुनून जारी रखा।

वर्ष 1999 में, मुकेश देवी के पति — जगपाल फोगाट ने अपने रिश्तेदारों से प्रेरित होकर मधुमक्खीपालन की शुरूआत की, जो मधुमक्खीपालन कर रहे थे। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान की गई ट्रेनिंग की सहायता से मुकेश देवी भी 2001 में अपने पति के उद्यम में शामिल हो गईं। जिस काम को उन्होंने कुछ मधुमक्खियों के साथ शुरू किया, धीरे धीरे वह काम समय के साथ बढ़ने लगा और अब वह दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली के क्षेत्रों में भी विस्तृत हो गया है।

स्वास्थ्य लाभ और शहद के लिए बढ़ती बाज़ार की मांग को देखते हुए, अब मुकेश देवी ने अपने ही ब्रांड- नेचर फ्रेश के तहत शहद बेचना शुरू कर दिया है। वर्तमान में, उनके पास शहद के संग्रह के लिए मधुमक्खियों के 2000 बक्से हैं।

मुकेश देवी ने ना केवल अपने परिवार की स्थिति को वित्तीय रूप से स्थिर बनाया बल्कि उन्होंने 30 से अधिक लोगों को रोज़गार भी प्रदान किया है। अपने नियोजित कार्यबल की सहायता से 5 अलग अलग राज्यों में मधुमक्खियों के बक्से भेजकर मुकेश देवी और उनके पति वार्षिक 600 से 700 क्विंटल शहद इक्ट्ठा करते हैं, और शहद से, इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्वाद का साधारण शहद है बल्कि उनके पास 7 से अधिक विभिन्न फ्लेवर में शहद है जो तुलसी, अजवायन, धनिया, शीशम, सफेदा, इलायची, नीम, सरसों और अरहर के पौधों से एकत्र किए जाते हैं। तुलसी का शहद उनकी विस्तृत बाज़ार मूल्यों के साथ सबसे अच्छे शहद में से एक है।

जब शहद इक्ट्ठा करने की बात आती है तब यह पति पत्नी का जोड़ा विभिन्न राज्यों के समय और मौसम पर विशेष ध्यान देते हैं और उनके अनुसार उन्होंने अपने मधुमक्खियों के बक्सों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया है। जैविक शहद के लिए बक्सों को विभिन्न राज्यों में जंगलों में भेजा जाता है,विभिन्न स्थानों से शहद इक्ट्ठा करने के कुछ समय काल नीचे दिए गए हैं—

  • तुलसी शहद के लिए — बक्सों को मध्यप्रदेश के जंगलों में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • अजवायन शहद के लिए — बक्सों को राजस्थान के जंगलों में दिसंबर से जनवरी में भेजा जाता है।
  • अजवायन के लिए — बक्सों को जम्मू कश्मीर और पंजाब में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • और फरवरी से अप्रैल में बक्सों को हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया जाता है।

इसके अलावा, इस जोड़ी की आय शहद उत्पादन और इसकी बिक्री तक ही सीमित नहीं है बल्कि वे कॉम्ब हनी, हनी आंवला मुरब्बा, हनी कैरट मुरब्बा, बी पॉलन, बी वैक्स, प्रोपोलिस और बी वीनॉम भी बेचते हैं जो बाज़ार में अच्छे दामों में बिक जाते हैं।

वर्तमान में, मुकेश देवी और उनके पति सिर्फ मधुमक्खीपालन से ही लगभग 70 लाख वार्षिक आय कमा रहे हैं।

मुकेश देवी और जगपाल फोगाट के प्रयासों को कई संगठनों और अधिकारिकों द्वारा सराहा गया है उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं—

  • 2016 में IARI,नई दिल्ली,राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेले में मधुमक्खीपालन और विभिन्न तरह के शहद उत्पादन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • मुकेश देवी और जगपाल फोगाट को सूरजकुंड, फरीदाबाद में एग्री लीडरशिप पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह द्वारा अच्छे शहद उत्पादन के लिए सम्मानित किया गया।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्री, परषोत्तम खोदाभाई रूपला द्वारा सम्मानित किया गया।
  • उनकी उपलब्धियों को प्रगतिशील किसान अधीता और अभिनव किसान नामक पत्रिका में अन्य 39 प्रगतिशील किसानों के साथ प्रकाशित किया गया।

मुकेश देवी एक प्रगतिशील मधुमक्खी पालनकर्ता हैं और उनकी पहल ने अन्य महिला उद्यमियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। कि यदि आपके प्रयास सही दिशा में हैं यहां तक कि मधुमक्खीपालन के व्यवसाय में भी तो आप करोड़पति बन सकते हैं।

भविष्य की योजनाएं

मुकेश देवी और उनके पति ने अपने गांव में ज़मीन खरीदी है जहां पर वे बाज़ार की मांग के अनुसार अपने उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, किसानों को बेहतर वित्तीय स्थिरता के लिए रवायती खेती के साथ संबंधित कृषि गतिविधियों को आगे बढ़ाना चाहिए।

रवि शर्मा

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कैसे एक दर्जी बना मधुमक्खी पालक और शहद का व्यापारी

मक्खी पालन एक उभरता हुआ व्यवसाय है जो सिर्फ कृषि समाज के लोगों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि भविष्य के लाभ के कारण अलग अलग क्षेत्र के लोगों को भी आकर्षित करता है। एक ऐसे ही व्यक्ति हैं- रवि शर्मा, जो कि मक्खीपालन का विस्तार करके अपने गांव को एक औषधीय पॉवरहाउस स्त्रोत बना रहे हैं।

1978 से 1992 तक रवि शर्मा, जिला मोहाली के एक छोटे से गांव गुडाना में दर्जी का काम करते थे और अपने अधीन काम कर रहे 10 लोगों को भी गाइड करते थे। गांव की एक छोटी सी दुकान में उनका दर्जी का काम तब तक अच्छा चल रहा था जब तक वे राजपुरा, पटियाला नहीं गए और डॉ. वालिया (एग्री इंस्पैक्टर) से नहीं मिले।

डॉ. वालिया ने रवि शर्मा के लिए मक्खी पालन की तरफ एक मार्गदर्शक के तौर पर काम किया। ये वही व्यक्ति थे जिन्होंने रवि शर्मा को मक्खीपालन की तरफ प्रेरित किया और उन्हें यह व्यवसाय आसानी से अपनाने में मदद की।

शुरूआत में श्री शर्मा ने 5 मधुमक्खी बॉक्स पर 50 प्रतिशत सब्सिडी प्राप्त की और स्वंय 5700 रूपये निवेश किए। जिनसे वे 1 ½ क्विंटल शहद प्राप्त करते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं। पहली कमाई ने रवि शर्मा को अपना काम 100 मधुमक्खी बक्सों के साथ विस्तारित करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह उनका काम मक्खीपालन में परिवर्तित हुआ और उन्होंने 1994 में दर्जी का काम पूरी तरह छोड़ दिया।

1997 में रेवाड़ी, हरियाणा में एक खेतीबाड़ी प्रोग्राम के दौरे ने मधुमक्खी पालन की तरफ श्री शर्मा के मोह को और बढ़ाया और फिर उन्होंने मधुमक्खियों के बक्सों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया। अब उनके फार्म पर मधुमक्खियों के विभिन्न 350-400 बक्से हैं।

2000 में, श्री रवि ने 15 गायों के साथ डेयरी फार्मिंग करने की कोशिश भी की, लेकिन यह मक्खीपालन से अधिक सफल नहीं था। मज़दूरों की समस्या होने के कारण उन्होंने इसे बंद कर दिया। अब उनके पास घरेलु उद्देश्य के लिए केवल 4 एच. एफ. नसल की गाय हैं और एक मुर्रा नसल की भैंस हैं और कई बार वे उनका दूध मार्किट में भी बेच देते हैं। इसी बीच मक्खी पालन का काम बहुत अच्छे से चल रहा था।

लेकिन मक्खीपालन की सफलता की यात्रा इतनी आसान नहीं थी। 2007-08 में उनकी मौन कॉलोनी में एक कीट के हमले के कारण सारे बक्से नष्ट हो गए और सिर्फ 35 बक्से ही रह गए। इस घटना से रवि शर्मा का मक्खी पालन का व्यवसाय पूरी तरह से नष्ट हो गया।

लेकिन इस समय ने उन्हें और ज्यादा मजबूत और अधिक शक्तिशाली बना दिया और थोड़े समय में ही उन्होंने मधुमक्खी फार्म को सफलतापूर्वक स्थापित कर लिया। उनकी सफलता देखकर कई अन्य लोग उनसे मक्खीपालन व्यवसाय के लिए सलाह लेने आये। उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को 20-30 मधुमक्खी के बक्से बांटे और इस तरह से उन्होंने एक औषधीय स्त्रोत बनाया।

“एक समय ऐसा भी आया जब मधुमक्खी के बक्सों की गिणती 4000 तक पहुंच गई और वे लोग जिनके पास इनकी मलकीयत थी उन्होंने भी मक्खी पालन के उद्यम में मेरी सफलता को देखते हुए मक्खीपालन शुरू कर दिया।”

आज रवि मधुमक्खी फार्म में, फार्म के काम के लिए दो श्रमिक हैं। मार्किटिंग भी ठीक है क्योंकि रवि शर्मा ने एक व्यक्ति के साथ समझौता किया हुआ है जो उनसे सारा शहद खरीदता है और कई बार रवि शर्मा आनंदपुर साहिब के नज़दीक एक सड़क के किनारे दुकान पर 4-5 क्विंटल शहद बेचते हैं जहां से वे अच्छी आमदन कमा लेते हैं।

मक्खीपालन रवि शर्मा के लिए आय का एकमात्र स्त्रोत है जिसके माध्यम से वे अपने परिवार के 6 सदस्यों जिनमें पत्नी, माता, दो बेटियां और एक बेटा है, का खर्चा पानी उठा रहे हैं।

“मक्खी पालन व्यवसाय के शुरूआत से ही मेरी पत्नी श्रीमती ज्ञान देवी, मक्खीपालन उद्यम की शुरूआत से ही मेरा आधार स्तम्भ रही। उनके बिना मैं अपनी ज़िंदगी के इस स्तर तक नहीं पहुंच पाता।”

वर्तमान में, रवि मधुमक्खी फार्म में शहद और बी वैक्स दो मुख्य उत्पाद है।

भविष्य की योजनाएं:
अभी तक मैंने अपने गांव और कुछ रिश्तेदारों में मक्खीपालन के काम का विस्तार किया है लेकिन भविष्य में, मैं इससे बड़े क्षेत्र में मक्खीपालन का विस्तार करना चाहता हूं।

संदेश
“एक व्यक्ति अगर अपने काम को दृड़ इरादे से करे और इन तीन शब्दों “ईमानदारी, ज्ञान, ध्यान” को अपने प्रयासों में शामिल करे तो जो वह चाहता है उसे प्राप्त कर सकता है।”

श्री रवि शर्मा के प्रयासों के कारण आज गुडाना गांव शहद उत्पादन का एक स्त्रोत बन चुका है और मक्खीपालन को और अधिक प्रभावकारी व्यवसाय बनाने के लिए वे अपने काम का विस्तार करते रहेंगे।

हरबीर सिंह पंडेर

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कैसे एक पिता ने मक्खी पालन में निवेश करके भविष्य में अपने पुत्र को ज्यादा मुनाफा कमाने में मदद की

पंडेर परिवार के युवा पीढ़ी हरबीर सिंह पंडेर ने ना सिर्फ अपने पिता के मक्खीपालन के व्यापार को आगे बढ़ाया, बल्कि अपने विचारों और प्रयासों से इसे लाभदायक उद्यम भी बनाया।

हरबीर सिंह, कुहली खुर्द, लुधियाना के निवासी हैं। जिनके पास सिविल में इंजीनियर की डिग्री होते हुए भी, उन्होंने अपने पिता के व्यवसाय को आगे बढ़ाने का फैसला किया और अपने नए विचारों से उसे आगे बढ़ाया।

जब पंडेर परिवार ने मक्खी पालन शुरू किया….
गुरमेल सिंह पंडेर – हरबीर सिंह के पिता ने तकरीबन 35 वर्ष पहले बिना किसी ट्रेनिंग के मक्खी पालन का व्यापार शुरू किया था। 80 के दशक में जब किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि मक्खी पालन भी एक लाभदायक स्त्रोत हो सकता है, गुरमेल सिंह का भविष्यवादी दिमाग एक अलग दिशा में चला गया। उस समय उसने मधु मक्खियों के दो बक्सों के साथ मक्खी पालन शुरू किया और आज उसके पुत्र ने उसके काम को मधु मक्खी के 700 बक्सों के साथ एक उत्कृष्ट प्रयास में बदल दिया।

हालांकि, हरबीर के पिता मधुमक्खी पालन के काम से अच्छा मुनाफा कमा रहे थे लेकिन यह मार्किटिंग के दृष्टिकोण से कम था। जिसके कारण वे उचित मार्किट को कवर नहीं कर पा रहे थे। इसलिए हरबीर सिंह ने सोचा कि वे अपनी योजना और सोच के साथ इस स्थानीय व्यापार को आगे बढ़ाएंगे। हरबीर ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद ही अपने पिता के व्यापार को संभाल लिया। अपनी पिता के व्यापार का चयन करना हरबीर के लिए मजबूरी नहीं था यह उनका काम को जारी रखने का जुनून था जिसे उन्होंने अपने पूरे बचपन में अपने पिता को करते देखा था।

अपने पिता के काम को संभालते ही हरबीर ने अपने पिता के व्यापार को ‘रॉयल हनी’ ब्रांड का नाम दिया। हरबीर अच्छी तरह से जानते थे कि व्यापार को बड़े स्तर पर बढ़ावा देने के लिए ब्रांडिंग बहुत महत्तवपूर्ण है। इसलिए उन्होंने अपने व्यवसाय को ब्रांड नाम के तहत पंजीकृत करवाया। अपने काम को अधिक व्यवसायी बनाने के लिए हरबीर विशेष रूप से मक्खी पालन की ट्रेनिंग के लिए 2011 में पी ए यू गए।

वर्ष 2013 में उन्होंने अपने उत्पादों को AGMARK के तहत भी पंजीकृत किया और आज वे पैकेजिंग से लेकर मार्किटिंग का काम सब कुछ स्वंय करते हैं। वे मुख्य तौर पर दो उत्पादों शहद और बी वैक्स पर ध्यान देते हैं।

हरबीर के पास उनके फार्म पर मुख्यत: इटेलियन मक्खियां हैं और शहद की उच्च गुणवत्ता बनाए रखने के लिए वे मौसम से मौसम, पंजाब के आस पास के राज्यों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। उन्होंने इस काम के लिए 7 श्रमिकों को रोज़गार दिया है। मुख्यत: वे अपने बक्सों को चितौड़गढ़ (कैरम के बीजों के खेत में), कोटा (सरसों के खेत में), हिमाचल प्रदेश (विभिन्न फूलों), मलोट (सूरजमुखी के खेत) और राजस्थान (बाजरा और तुआर के खेत) में क्षेत्र किराये पर लेकर छोड़ देते हैं। शहद को हाथों से निकालने की प्रक्रिया द्वारा वे शहद निकालते हैं और फिर अपने उत्पादों की पेकेजिंग और मार्किटिंग करते हैं।

मक्खी पालन के अलावा हरबीर और उसका परिवार खेती और डेयरी फार्मिंग भी करता है। उनके पास 7 एकड़ भूमि है जिस पर वे घर के लिए धान और गेहूं उगाते हैं और उनके पास 15 भैंसे हैं जिनका दूध वे गांव में बेचते हैं और इसमें से कुछ अपने लिए भी रखते हैं।

वर्तमान में हरबीर अपने पारिवारिक व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं और अपने अतिरिक्त समय में वे मक्खी पालन के व्यवसाय के बारे में अन्य लोगों को गाइड भी करते हैं। हरबीर भविष्य में अपने व्यापार को और बढ़ाना चाहते हैं और मार्किटिंग के लिए पूरी तरह से आत्म निर्भर होना चाहते हैं।

किसानों को संदेश

आजकल के दिनों में किसानों को सिर्फ खेती पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें खेती के साथ साथ अन्य एग्रीबिज़नेस को भी अपनाना चाहिए ताकि अगर एक विकल्प फेल हो जाए तो आखिर में आपके पास दूसरा विकल्प हो। मक्खीपालन एक बहुत ही लाभदायक व्यापार है और किसानों को इसके लाभों के बारे में जानने का प्रयास करना चाहिए।

नरपिंदर सिंह धालीवाल

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एक इंसान की कहानी जो मधु मक्खी पालन के व्यवसाय की सफलता में मीठा स्वाद हासिल कर रहा है

भारत में मधु मक्खी पालन बहुत पहले से किया जा रहा है और आज़ादी के बाद इसे अलग-अलग ग्रामीण विकास प्रोग्रामों के द्वारा प्रफुल्लित किया जा रहा है, पर जब मधु मक्खी पालन को एक अगले स्तर पर उत्पादों के व्यापार की तरफ ले जाने की बात करें, तो आज भी ज्यादातर लोग इस तरह की जानकारी से रहित हैं। पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने इस व्यापार में अच्छी आमदन और सफलता हासिल की है। ऐसे एक किसान नरपिंदर सिंह धालीवाल जो पिछले 20 वर्षों से मधु मक्खी पालन में अच्छा मुनाफा ले रहे हैं।

यह कहा जाता है कि हमारा विकास आसान समय में नहीं, बल्कि उस समय होता है जब हम चुनौतियों का सामना करते हैं। नरपिंदर सिंह धालीवाल भी उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने बहुत सारी असफलताओं का सामना और सख्त मेहनत करके यह कामयाबी हासिल की। आज वे धालीवाल हनी बी फार्म के मालिक हैं। जो कि उनके ही मूल स्थान गांव चूहड़चक जिला मोगा (पंजाब) में स्थापित है और आज उनके पास लगभग मधु मक्खियों के 1000 बक्से हैं। मक्खी पालन शुरू करने से पहले नरपिंदर सिंह जी की हालत एक बेरोज़गार जैसी ही थी और वे 1500 रूपये तनख्वाह पर काम करते थे, जिसमें जरूरतों को पूरा करना मुश्किल था। उनकी पढ़ाई कम होना भी एक समस्या थी। इसलिए उन्होंने अपने पिता का व्यवसाय अपनाने का फैसला किया और मक्खी पालन में मदद करने लगे। उनके पिता रिटायर्ड फौजी थे और उन्होंने 1997 में 5 बक्सों से मक्खी पालन का काम शुरू किया था। सबसे पहले उन्होंने ही मक्खी पालन को व्यापारिक स्तर पर शुरू किया। स. नरपिंदर सिंह जी ने कारोबार स्थापित करने के लिए खुद सब कुछ किया और इसमें बहुत सारी मुश्किलों का सामना भी किया। पैसे और साधनों की कमी के कारण उन्हें बहुत बार असफलताएं झेलनी पड़ी, पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मक्खी पालन के कारोबार को सही दिशा में ले जाने के लिए उन्होंने बागबानी विभाग, पी ए यू से 5 दिनों की ट्रेनिंग ली। उन्होंने बैंक से कर्ज़ा लिया और कुछ दोस्तों से भी मदद ली और आखिर परिवार और कुछ मजदूरों के पूरे सहयोग से अपने गांव में ही बी फार्म स्थापित कर लिया।

उन्होंने यह कारोबार 5 बक्सों से शुरू किया था और आज उनके पास लगभग 1000 बक्से हैं। वे शहद की अच्छी पैदावार के लिए इन बक्सों को एक जगह से दूसरी जगह भेजते रहते हैं। उनके फार्म में मुख्य तौर पर पश्चिमी मक्खियां हैं, यूरोपियन और इटालियन। वे मक्खियों को किसी भी तरह की बनावटी या अधिक खुराक नहीं देते, बल्कि कुदरती खुराक को पहल देते हैं। इसके इलावा वे कीटों की रोकथाम के लिए भी किसी तरह की कीटनाशक या रासायनिक स्प्रे का प्रयोग नहीं करते और इनकी रोकथाम और बचाव के लिए कुदरती तरीकों का प्रयोग करते हैं, क्योंकि वे सब कुछ कुदरती तरीके से करने में यकीन रखते हैं।

वैरो माईट और हॉरनैट का हमला एक मुख्य समस्या है, जिनका सामना उन्हें हमेशा करता पड़ता है और इनकी रोकथाम के लिए वे कुदरती तरीकों का प्रयोग करते हैं। कुदरती ढंगों को अपनाने के बावजूद भी वे वार्षिक आमदन ले रहे हैं। बहुत लोग मक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं, पर उनका ग्राहकों के साथ सीधे तौर पर संपर्क करना और उत्पादों का मंडीकरण खुद करना ही उन्हें मक्खी पालक साबित करता है। वे शहद तैयार करने से लेकर पैक करने और उसकी ब्रांडिंग करने तक का सारा काम 6 मजदूरों की मदद से करते हैं और किसी भी काम के लिए वे किसी पर भी निर्भर नहीं हैं। इस समय वे सरकार से अपने मधु मक्खी फार्म के लिए सब्सिडी भी ले रहे हैं।

शुरू में बहुत लोग उनके काम और शहद की आलोचना करते हैं, पर वेकभी भी निराश नहीं हुए और मक्खी पालन का पेशा जारी रखा। मक्खी पालन के अलावा वे जैविक खेती, डेयरी फार्मिंग, फलों की खेती, मुर्गी पालन और पारंपरिक खेती भी करते हैं, पर इन सब की पैदावार से वे मुख्य तौर पर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करते हैं।

नरपिंदर सिंह जी ने शहद की शुद्धता की जांच करने और अलग अलग रंगो के शहद के बारे में अपने विचार दिये:
उनके अनुसार शहद की क्वालिटी की जांच इसके रंग या तरलता से नहीं की जा सकती, क्योंकि अलग अलग पौधों के अलग अलग फूलों से प्राप्त शहद के गुण अलग अलग होते हैं। सरसों के फूलों से प्राप्त शहद सब से उत्तम किस्म का और गाढ़ा होता है। गाढ़े शहद को फरोज़न शहद भी कहा जाता है, जो मुख्य तौर पर सरसों के फूलों से प्राप्त होता है। यह सेहत के लिए भी बहुत लाभदायक होता है। इसलिए इसकी अंतरराष्ट्रीय मार्किट में भी भारी मांग है। शहद की शुद्धता की सही जांच लैबोटरी में मौजूद माहिरों या खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा करवायी जा सकती है। इसलिए यदि किसी इंसान को शहद की क्वालिटी पर कोई शक हो तो वे किसी के कुछ कहे पर यकीन करने की बजाय माहिरों से जांच करवा लें या फिर किसी प्रमाणित व्यक्ति से ही खरीदें।

नरपिंदर सिंह जी स्वंय मक्खी पालन करते हैं और लीची, सरसों और अलग-अलग फूलों से शहद तैयार करते हैं और सरसों से ज्यादातर शहद यूरोप में भेजते हैं। वे पी.ए.यू में प्रोग्रैसिव बी कीपर एसोसीएशन के भी मैंबर हैं। शहद पैदा करने के अलावा, वे शहद और हल्दी से बने कुछ उत्पाद जैसे कि बी पोलन कैप्सूल, हल्दी कैप्सूल और रोयल जैली आदि को मार्किट में लेकर आने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बी पोलन कैप्सूल के लिए पी ए यू से खास तौर पर आधुनिक ट्रेनिंग हासिल की है।

बी पोलन में महत्तवपूर्ण तत्व होते हैं, जो मानव शरीर के लिए जरूरी होते हैं और रोयल जैली भी सेहत के लिए बहुत लाभदायक है। इन दोनों उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय मार्किट में भारी मांग है और जल्दी ही इसकी मांग भारत में भी बढ़ेगी। इस समय उनका मुख्य उद्देश्यबी पोलन कैप्सूल और हल्दी कैप्सूल का मंडीकरन करना और लोगों को इनके सेहत संबंधी फायदों और प्रयोग से जागरूक करवाना है।

उन्होंने अपने काम के लिए अलग अलग किसान मेलों में बहुत सारे सम्मान और पुरस्कार हासिल किये। उन्होंने परागपुर में जट्ट एक्सपो अवार्ड जीता। उन्हें 2014 में खेतीबाड़ी विभाग की तरफ से और 2016 में विश्व शहद दिवस पर सम्मानित किया गया।

नरपिंदर सिंह धालीवाल जी द्वारा दिया गया संदेश
आज के समय में यदि किसान खेतीबाड़ी के क्षेत्र में विभिन्नता लाने के लिए तैयार है, तो भविष्य में उसकी सफलता की संभावना बहुत बढ़ जाती है। मैंने अपने फार्म में विभिन्नता लायी और आज उससे मुनाफा ले रहा हूं। मैं किसान भाइयों को यही संदेश देना चाहता हूं कि यदि आप खेतीबाड़ी में सफल होना चाहते हैं तो विभिन्नता लेकर आनी पड़ेगी। मधु मक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे किसान लंबे समय से नज़रअंदाज कर रहे हैं। यह क्षेत्र बहुत लाभदायक है और इंसान इसमें बहुत सफलता हासिल कर सकते हैं। आज कल तो सरकार भी किसानों को मक्खी पालन शुरू करने वाले व्यक्ति को 5-10 बक्सों पर सब्सिडी देती है।

परमजीत कौर

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कैसे एक उद्यमी सिख महिला ने अपनी हठ के एक सफल उद्योगपति बनने के लिए मील पत्थर रखा – माई भागो सैल्फ हैल्प ग्रुप

पुराने समय से ही समाज में पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं ने अपना बहुत योगदान दिया है, पर अक्सर ही महिलाओं के योगदान को अन- देखा कर दिया जाता है। भारत में ऐसी बहुत महिलाएं हैं, जिन्होंने पुराने समय में अपने देश, समाज और लोगों पर राज किया, उन्हें सिखाया और उनकी सेवा की। उन्होंने संस्थाओं का प्रबंधन किया, समाज का नेतृत्व किया और शत्रुओं के विरूद्ध विद्रोह किया। यह सभी उपलब्धियां प्रशंसायोग हैं। ये सभी शूरवीर महिलाएं पुराने और आज के समय में भी उन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं। एक ऐसी महिला परमजीत कौर, जो महान सिख शूरवीर महिला माई भागो से प्रेरित हैं और एक उभरती हुई उद्यमकर्त्ता हैं।

परमजीत कौर जी ताकत और विश्वास वाली महिला हैं जिन्होंने अपने गांव लोहारा (लुधियाना) में माई भागो ग्रुप स्थापित करने के लिए पहला कदम उठाया। उन्होंने यह ग्रुप 2008 में शुरू किया था और आज भी वे अपना सबसे अधिक समय इस कारोबार को बढ़ाने और उत्पादों को सुधारने में लगाती हैं। खैर, इसमें कोई शक नहीं कि एक महिला होते हुए इस पुरूष जगत में अपना कारोबार स्थापित करना आसान नहीं होता है।

यह परमजीत कौर जी की इच्छा शक्ति और पारिवारिक सहयोग ही था जिस कारण उन्हें यह ग्रुप बनाने में बहुत सहायता मिली। जैसे कि हर काम की शुरूआत के लिए एक अच्छे मार्गदर्शक की जरूरत होती है, इसी तरह स्वंय ग्रुप तैयार करने के लिए परमजीत कौर जी के उत्साह के पीछे समाज सेविका सुमन बंसल जी का बहुत बड़ा योगदान है, जिन्होंने परमजीत कौर जी की पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना में घरेलू भोजन उत्पाद की एक महीने की मुफ्त ट्रेनिंग में बहुत मदद की। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आज उनके ग्रुप में 16 मैंबर हैं और वे प्रत्येक व्यक्ति को निजी तौर पर समझाती हैं।

माई भागो ग्रुप द्वारा सात तरह के स्कवैश (शरबत), इत्र, जल जीरा, फिनाइल, बॉडी मॉइश्चराइज़िंग बाम, सब्जी तड़का, शहद, हर्बल शैंपू और आम की चटनी आदि। परमजीत कौर जी स्वंय बाज़ार से जाकर सभी उत्पादों का कच्चा माल खरीद कर लाती हैं। माई भागो ग्रुप द्वारा बनाये गये सभी उत्पाद हाथों से तैयार किए जाते हैं और फलों का जूस निकालने, पैकिंग और सील लगाने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है।

• सभी स्कवैश (शरबत) फलों से कुदरती ढंग द्वारा तैयार किए जाते हैं और इनका स्वाद वास्तविक फलों के जैसा ही होता है।

• इत्र विभिन्न विभिन्न तरह के गुलाबों से तैयार किए जाते हैं, जिनमें गुलाबों की कुदरती खुशबू महसूस की जा सकती है।

• जल जीरा पाउडर ताजगी का स्वाद देता है।

• शुद्ध शहद कुदरती प्रक्रिया से निकाला जाता है।

• हर्बल शैंपू में किसी भी तरह के रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता।

• इनके कुछ ही उत्पाद ऊपर बताए गए हैं, पर भविष्य में ये अन्य भी बहुत सारे कुदरती और हर्बल उत्पाद लेकर आ रहे हैं।

परमजीत कौर जी केवल 10 वीं पास हैं, पर उनकी प्राप्तियां और कुछ हासिल करने के पक्के इरादों से ही कॉपरेटिव सोसाइटी की 55वीं समारोह पर उन्होंने कैप्टन कंवलजीत सिंह से पुरस्कार और 50000 की नकद राशि हासिल की। पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना से प्रशंसायोग काम के लिए पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके इलावा वे समारोह, प्रदर्शनियों और किसानों, सैल्फ हैल्प ग्रुप और उद्यमकर्त्ता की वैल्फेयर कमेटियों में हिस्सा लेते हैं। वे और उनके पति कॉपरेटिव सोसाइटी के सैक्टरी हैं और वे जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए फैसले भी लेते हैं। वे किसान क्लब के भी मैंबर हैं और वे महीनेवार मीटिंगों और किसान मेलों में भी नियमित तौर पर पहुंचते हैं, ताकि खेतीबाड़ी के क्षेत्र से संबंधित नई चीज़ें और तकनीकों की जानकारी हासिल कर सकें।

इतने काम और अपने कारोबार में व्यस्त होने के बावजूद भी परमजीत कौर जी अपने बच्चों और पारिवारिक जिम्मेवारियों के प्रति लापरवाही नहीं दिखाते। वे अपने बच्चों की पढ़ाई के प्रति पूरा ध्यान देते हैं और उनकी उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज भेजना चाहते हैं, ताकि वे अपनी आने वाली ज़िंदगी को ओर अच्छा बना सकें। इस समय उनका बेटा इलैक्ट्रीकल में डिप्लोमा कर रहा है और उनकी बेटी बी ए कर चुकी है और अब एम ए कर रही है। उनके बच्चे भविष्य में उनके कारोबार में योगदान देने के लिए दिलचस्पी रखते हैं और उन्हें जब भी अपनी पढ़ाई और कॉलेज से समय मिलता है, तो वे उनकी मदद के लिए समारोह और प्रदर्शनियों में भी जाते हैं।

इस व्यस्त दुनिया के इलावा, उनके कुछ शौंक हैं, जिनके लिए वे बहुत उत्सुक रहते हैं। उनका शौंक घरेलू बगीची तैयार करना और बच्चों को धार्मिक संगीत सिखाना है। चाहे वे जितने मर्ज़ी काम में व्यस्त हों, पर वे अपने व्यस्त कारोबार में अपने शौंक के लिए समय निकाल ही लेते हैं। उन्हें घरेलू बगीची का बहुत शौंक है और उनके घर छोटी सी घरेलू बगीची भी है, जहां उन्होंने मौसमी सब्जियां (भिंडी, सफेद बैंगन, करेले, मिर्च) आदि और हर्बल पौधे (घीकवार, तुलसी, सेज, अजवायन, पुदीना आदि) उगाये हैं। उनमें बच्चों को धार्मिक संगीत, संगीतक साज़ और गुरू ग्रंथ साहिब पढ़ने के तरीके सिखाने का बहुत जुनून है। शाम के समय नज़दीक के इलाकों से बच्चे बड़े जोश से हारमोनियम, सितार और तबला बजाना सीखने के लिए उनके पास आते हैं। वे बच्चों को ये सब कुछ मुफ्त में सिखाते हैं।

परमजीत कौर जी अपने गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। वे हमेशा स्वंय से कुछ करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि स्वंय कुछ करने से महिलाओं में विश्वास आता है और वे आत्म निर्भर बनती हैं। यहां तक कि उन्होंने अपनी बेटी को भी कुछ करने से नहीं रोका, ताकि वह भविष्य में आत्म निर्भर बन सके। आज कल वे अपने ग्रुप की प्रमोशन अलग अलग तरह के प्लेटफॉर्म पर कर रहे हैं और इसे ओर बड़े स्तर पर ले जाने की योजना बना रहे हैं।


परमजीत कौर की तरफ से सन्देश

“परमजीत कौर जी अपने गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। वे हमेशा स्वंय से कुछ करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि स्वंय कुछ करने से महिलाओं में विश्वास आता है और वे आत्म निर्भर बनती हैं। यहां तक कि उन्होंने अपनी बेटी को भी कुछ करने से नहीं रोका, ताकि वह भविष्य में आत्म निर्भर बन सके। आज कल वे अपने ग्रुप की प्रमोशन अलग अलग तरह के प्लेटफॉर्म पर कर रहे हैं और इसे ओर बड़े स्तर पर ले जाने की योजना बना रहे हैं।”