चमकौर सिंह

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खेती में सफलता: खेती और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में चमकौर सिंह का सफर

पंजाब के एक छोटे से गाँव ‘इना बाजा’ में रहने वाले चमकौर सिंह जिनका कृषि के क्षेत्र में बहुत नाम है। खेती में समर्पित होने वाले चमकौर सिंह जी ने एक छोटे स्तर से शुरुआत की और आज उनका बहुत नाम हैं। वह विभिन्न प्रकार की फसलें उगाते हैं और पचास व्यक्तियों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं।

चमकौर जी का सफर 1991 में शुरू हुआ, जब उन्होंने खेती की दुनिया में अपना पहला कदम रखा। अपने मित्र के भरपूर खेतों से प्रेरित होकर, उन्होंने खेती में आने वाली समसयाओं को हल करने के बारे में सीखा। जिसके चलते उन्होंने किसी यूनिवर्सिटी से जानकारी प्राप्त की, जिसने उन्हें कृषि उद्यम को शुरू करने के लिए आवश्यक चीजों के बारे में बताया।

चमकौर सिंह जी ने 2 कनाल जमीन में आलू की खेती से शुरुआत की। इस प्रयास में मिली सफलता ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे उन्होंने अपने व्यवसाय को दो एकड़ जमीन तक बढ़ाया। समय के साथ, उन्होंने टमाटर, कपास, धान, गेहूं, शिमला मिर्च और फूलगोभी जैसी अलग-अलग फसलें उगाई। उनका व्यवसाय तेज़ी से ऊपर उठता गया जो आज पचास एकड़ जमीन में फैला हुआ है।

चमकौर सिंह जी 25 एकड़ जमीन पर टमाटर की ही खेती करते हैं। अपनी फसल की बढ़िया उपज को देखते हुए क्रेमिका (Cremica) कंपनी के साथ सांझेदारी की। हर दिन, ताज़े टमाटरों से लदे दो ट्रक उनके खेत से निकलते हैं ताकि क्रेमिका (Cremica) के ग्राहकों की मांगों को पूरा किया जा सके । टमाटर की खेती में अपनी माहिरता बढ़ाने के लिए, चमकौर सिंह जी ने हिसार में बलविंदर सिंह भालिमंसा जी से टमाटर बीज के चयन और प्रबंधन के बारे में ट्रेनिंग ली।

चमकौर जी की कड़ी मेहनत और लगन किसी से भी छुपी नहीं रही। 2008 में, उन्हें कृषि में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फसल में रोगों और उसके प्रबंधन में उनकी माहिरता ने उन्हें निजी कंपनियों के लिए एक भरोसेयोग्य स्रोत बना दिया है, जो अक्सर अपने नए कृषि उत्पादों के प्रदर्शन के लिए उनके खेतों को चुनते हैं। अपनी उपलब्धियों के बावजूद, चमकौर जी मंच पर कम ही बोलते हैं, पर वहां उनका काम बोलता है।

अपनी उपलब्धियों के अलावा, चमकौर बागवानी विभाग से विभिन्न सब्सिडी का लाभ ले रहे हैं। इन सब्सिडी ने क्रेट, स्प्रे पंप, पावर मीटर और यहां तक कि एक छोटा एयर कंडीशनर जैसे आवश्यक उपकरण की प्राप्ति के लिए सुविधा प्रदान की है। चमकौर जी मानते है कि समस्याएं जीवन का एक हिस्सा हैं, और उनके आगे झुकने की बजाय, हमें चुनौतियों को सामना करना चाहिए और मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए।

चमकौर सिंह जी द्वारा किये गए कामों में से एक महत्वपूर्ण काम कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी है। 1994 में उन्होंने टमाटर की खेती करनी शुरू की और अपनी उपज को बेचने का फैसला किया। उनकी उपज का आधा हिस्सा एक स्थानीय कारखाने (फैक्ट्री) को बेच दिया गया, जिससे एक स्थिर आमदन सुनिश्चित हुई, जबकि बाकि उपज बाजार में बिकने लगी। समय के साथ, उन्होंने पंजाब एग्रो और क्रेमिका के साथ सांझेदारी की, जो बेहद फायदेमंद साबित हुई।

अपने अनुभव से चमकौर सिंह जी ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की खूबियों के बारे में जाना। इस तरह की व्यवस्थाओं में प्रस्तावित निश्चित दरें, अनिश्चित बाजार कीमतों से जुड़े जोखिमों को कम करती हैं, जिससे किसानों को स्थिरता और सुरक्षा मिलती है। इसके अलावा, कंपनियों के साथ सहयोग करना तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है जो किसानों की समझ को बढ़ाता है और उनके विकास में सहयोग करता है। चमकौर सिंह जी का कहना है कि प्रत्येक किसान को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करनी चाहिए और साथी किसानों की मदद के लिए स्वयं को एक उदहारण के रूप में पेश करना चाहिए। वह ट्रेनिंग और नर्सरी सुविधाएं प्रदान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन इस बात पर महत्त्व देते हैं कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत ज़रूरी है।

चमकौर सिंह की उपलब्धियां खेती तक ही सीमित नहीं हैं, उन्होंने G2 और G3 लेवल के आलू के उत्पादन और बिक्री पर भी (व्यापार) काम कर रहे हैं।

किसानों के लिए संदेश

यदि आप उद्यमी, मेहनती किसान हैं और मदद चाहते हैं तो चमकौर सिंह जी से संपर्क करें, वे न केवल इसके बारे में बताते हैं बल्कि ट्रेनिंग और नर्सरी सेवाएं भी प्रदान करवाते हैं। अपने कौशल को बढ़ाने, स्रोत तक पहुंच करने और एक समृद्ध भविष्य की खेती करने के लिए मौके का लाभ उठाएं।

बबलू शर्मा

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2 कनाल से किया था शुरू और आज 2 एकड़ में फैल चूका है इस नौजवान प्रगतिशील किसान का पनीरी बेचने का काम

मुश्किलें किस काम में नहीं आती, कोई भी काम ऐसा नहीं होगा जो बिना मुश्किलों के पूरा हो सके।इसलिए हर इंसान को मुश्किलों से भरी नाव पर सवार होना चाहिए और किनारे तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करे, जिस दिन नाव किनारे लग जाए समझो इंसान कामयाब हो गया है।

मुक्तसर जिले के गांव खुन्नन कलां के एक युवा किसान बबलू शर्मा ने भी इसी जुनून के साथ एक पेशा अपनाया, जिसके बारे में वे थोड़ा-बहुत जानते थे और थोड़ा-सा ज्ञान उनके लिए एक अनुभव बन गया और आखिर में कामयाब हो कर दिखाया, उन्होंने हार नहीं मानी, बस अपने काम में लगे रहे और आजकल हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानता है।

साल 2012 की बात है जब बबलू शर्मा के पास कोई नौकरी नहीं थी और वह किसी के पास जाकर कुछ न कुछ सीखा करते थे, लेकिन यह कब तक चलने वाला था। एक न एक दिन अपने पैरों पर खड़ा होना ही था। एक दिन वह बैठे हुए थे तो अपने पिता जी के साथ बात करने लगे कि पिता जी ऐसा कौन-सा काम हो सकता है जोकि खेती का हो और दूसरा आमदन भी हो। पिता जी को तो खेती में पहले से ही अनुभव था क्योंकि वह पहले से ही खेती करते आ रहे हैं और अब भी कर रहे हैं । अपने आसपास के किसानों को देखते हुए बबलू ने अपने पिता जी के साथ सलाह करके सब्जियों की पनीरी का काम शुरू करने के बारे में सोचा।

काम तो शुरू हो गया लेकिन पैसा लगाने के बाद भी फेल होने का डर था- बबलू शर्मा

पिता पवन कुमार जी ने कहा, बिना कुछ सोचे काम शुरू कर, जब बबलू शर्मा ने सब्जी की पनीरी का काम पहली बार शुरू किया तो उनका कम से कम 35,000 रुपये तक का खर्चा आ गया था जिसमें उन्होंने प्याज, मिर्च, टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन आदि की पनीरी से जो 2 कनाल में शुरू की थी, पर जानकारी कम होने के कारण बब्लू के सामने समस्या आ खड़ी हुई, पर जैसे-जैसे पता चलता रहा, वह काम करते रहे हैं और इसमें बब्लू के पिता जी ने भी उनका पूरा साथ दिया।

जब समय अनुसार पनीरी तैयार हुई तो उसके बाद मुश्किल थी कि इसे कहाँ पर बेचना है और कौन इसे खरीदेगा। चाहे पनीरी को संभाल कर रख सकते हैं पर थोड़े समय के लिए ही, यह बात की चिंता होने लगी।

शाम को जब बबलू घर आया तो उसके दिमाग में एक ही बात आती थी कि कैसे क्या कर सकते हैं। उन्होंने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए बहुत रिसर्च की और उस समय इंटरनेट इतना नहीं था, फिर बहुत सोचने के बाद उनके मन में आया कि क्यों न गांवों में जाकर खुद ही बेचा जाए।

पिता ने यह कहते हुए सहमति व्यक्त की, “बेटा, जैसा तुम्हें ठीक लगे वैसा करो।” उसके बाद बबलू अपने गांव के पास के गांवों में ऑटो, छोटे हाथियों जैसे छोटे वाहनों में पनीरी बेचना शुरू किया। कभी गुरद्वारे द्वारा तो कभी किसी ओर तरह से पनीरी के बारे में लोगों को बताना, 3 से 4 साल लगातार ऐसा करने से पनीरी की मार्केटिंग भी होने लगी, जिससे लोगों को भी पता चलने लगा और मुनाफा भी होने लगा, पर बब्लू जी खुश नहीं थे, कि इस तरह से कब तक करेंगे, कोई ऐसा तरीका हो जिससे लोग खुद उनके पैसा पनीरी लेने के लिए आये और वह भी नर्सरी में बैठ कर ही पनीरी को बेचें।

इस बार जब बबलू पहले की तरह पनीरी बेचने गया तो कहीं से किसी ने उसे शर्मा नर्सरी के नाम से बुलाया, जिसे सुनकर बबलू बहुत खुश हुआ और जब पनीरी बेचकर वापस आया तो उसके मन में यही बात थी। उन्होंने इसके बारे में ध्यान से सोचा, फिर बबलू ने अपने पिता जी से सलाह ली और शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने का विचार किया। शर्मा नर्सरी के नाम से कार्ड बनाने के लिए दे दिए, उस पर हर एक जानकारी जैसे गांव का नाम, फ़ोन नंबर और जिस भी सब्जी की पनीरी उनके द्वारा लगाई जाती है, के बारे में कार्ड पर लिखवाया गया।

जब वह पनीरी बेचने के लिए गए तो वह बनवाये कार्ड वह अपने साथ ले गए। जब वह पनीरी किसे ग्राहक को बेच रहे थे तो साथ-साथ कार्ड भी देने शुरू कर दिए और इस तरह बनवाये कार्ड कई जगह पर बांटे गए।

जब वह घर वापस आए तो वह इंतजार कर रहे थे कोई कार्ड को देखकर फोन करेगा।कई दिन ऐसे ही बीत गए लेकिन वह दिन आया जब सफलता ने फोन पर दस्तक दी। जब उसने फोन उठाया तो एक किसान उससे पनीरी मांग रहा था, जिससे वह बहुत खुश हुए और धीरे-धीरे ऐसे ही उनकी मार्केटिंग होनी शुरू हो गई। फिर उन्होंने गांव-गांव जाकर पनीरी बेचनी बंद कर दिया और उनके कार्ड जब गांव से बाहर श्री मुक्तसर में किसी को मिले तो वहां भी लोगों ने पनीरी मंगवानी शुरू कर दी जिसे वह बस या गाडी द्वारा पहुंचा देते हैं। इस तरह उन्हें फ़ोन पर ही पनीरी के लिए आर्डर आने लगे फिर और उनके पास एक मिनट के लिए भी समय नहीं मिलता और आखिर उन्हें 2018 में सफलता हासिल हुई ।

जब वह पूरी तरह से सफल हो गए और काम करते करते अनुभव हो गया तो उन्होंने धीरे-धीरे करते 2 कनाल से शुरू किए काम को 2020 तक 2 एकड़ में और नर्सरी को बड़े स्तर पर तैयार कर लिया, जिसमें उन्होंने बाद में कद्दू, तोरी, करेला, खीरा, पेठा, जुगनी पेठा आदि की भी पनीरी लगा दी और पनीरी में क्वालिटी में भी सुधार लाये और देसी तरीके के साथ पनीरी पर काम करना शुरू कर दिया।

जिससे उनकी मार्केटिंग का प्रचार हुआ और आज उन्हें मार्केटिंग के लिए कहीं नहीं जाना पड़ता, फ़ोन पर आर्डर आते हैं और साथ के गांव वाले खुद आकर ले जाते हैं। जिससे उन्हें बैठे बैठे बहुत मुनाफा हो रहा है। इस कामयाबी के लिए वह अपने पिता पवन कुमार जी का धन्यवाद करते हैं।

भविष्य की योजना

वह नर्सरी में तुपका सिंचाई प्रणाली और सोलर सिस्टम के साथ काम करना चाहते हैं।

संदेश

काम हमेशा मेहनत और लगन के साथ करना चाहिए यदि आप में जज्बा है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं जो आपने पाने के लिए सोचा है।

बलविंदर सिंह संधु

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एक किसान की कहानी जिसने खेतीबाड़ी के पुरानी ढंगों को छोड़कर कुदरती तरीकों को अपनाया

आज, किसान ही सिर्फ वे व्यक्ति हैं जो अन्य किसानों को खेतीबाड़ी के जैविक ढंगों की तरफ प्रेरित कर सकते हैं और बलविंदर सिंह उन किसानों में से एक हैं जिन्होंने प्रगतिशील किसान से प्रेरित होकर पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हाल ही के वर्षों में जैविक खेती को अपनाया।

खैर, जैविक की तरफ मुड़ना उन किसानों के लिए आसान नहीं होता जो रवायती ढंग से खेती करते हैं और अच्छी उपज प्राप्त करते हैं। लेकिन बलविंदर सिंह संधु ने अपनी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से इस बाधा को पार किया।

इससे पहले, 1982 से 1983 में, वे कपास, सरसों और ग्वार फसलों की खेती करते थे लेकिन 1997 से उन्होंने कपास की फसल पर बॉलवार्म कीट के हमले का सामना किया जिस कारण उन्हें आगे चल कर बार बार बड़ी हानि का सामना करना पड़ा। इसलिए उसके बाद उन्होंने धान की खेती शुरू करने का फैसला किया लेकिन फिर भी वे पहले जितना मुनाफा नहीं कमा पाये। जैविक खेती की तरफ उन्होंने अपना पहला कदम 2011 में उठाया। जब उन्होंने मनमोहन सिंह के जैविक सब्जी फार्म का दौरा किया।

इस दौरे के बाद, बलविंदर सिंह का नज़रिया काफी विस्तृत हुआ और उन्होंने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने मिर्च से शुरूआत की। पहली गल्तियों को सुधारने के लिए वे कपास के अच्छी किस्म के बीजों को खरीदने के लिए गुजरात तक गए और वहां उन्होंने बीजरहित खीरे, स्ट्रॉबेरी और तरबूज की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। लगातार 3 वर्षों से वे अपनी भूमि पर कीटनाशकों के प्रयोग को कम कर रहे हैं।

उस वर्ष, मिर्च की फसल की उपज बहुत अच्छी हुई अैर उन्होंने 2 एकड़ से 500000 रूपये का लाभ कमाया। बलविंदर सिंह ने अपने फार्म की जगह का भी लाभ उठाया। उनका फार्म रोड पर था इसलिए उन्होंने सड़क के किनारे एक छोटी सी दुकान खोल ली जहां पर उन्होंने सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने मिर्च की प्रोसेसिंग करके मिर्च पाउडर बनाना भी शुरू कर दिया।

“जब मैंने मिर्च पाउडर की प्रोसेसिंग शुरू की तो बहुत से लोग शिकायत करते थे कि आपका मिर्च पाउडर का रंग लाल नहीं है। तब मैंने उन्हें समझाया कि मिर्च पाउडर कभी भी लाल रंग का नहीं होता। आमतौर पर बाजार से खरीदे जाने वाले पाउडर में अशुद्धता और रंग की मिलावट होती है।”

2013 में, बलविंदर सिंह ने खीरे, टमाटर, कद्दू और शिमला मिर्च जैसी सब्जियों की खेती शुरू कर दी।

“ज्यादा फसलों को ज्यादा क्षेत्र की आवश्यकता होती है इसलिए खेती के क्षेत्र को बढ़ाने के लिए मैंने अपने चचेरे और सगे भाइयों से ठेके पर 40 एकड़ ज़मीन ली। शुरूआत में सब्जियों का मंडीकरण करना एक बड़ी समस्या थी लेकिन समय के साथ इस समस्या का भी हल हो गया।”

वर्तमान में, बलविंदर सिंह 8-9 एकड़ में सब्जियों की और एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की और बाकी की ज़मीन पर धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं। इसके अलावा उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्होंने सभी आधुनिक कृषि उपकरणों और पर्यावरणीय अनुकूल तकनीकों जैसे ट्रैक्टर, बैड प्लांटर, रोटावेटर, कल्टीवेटर, लेवलर, सीडर, तुपका सिंचाई, मलचिंग, कीटनाशकों के स्थान पर घर पर तैयार जैविक खाद और खट्टी लस्सी  स्प्रे को अपनाया है।

पिछले चार वर्षों से वे 2 एकड़ भूमि पर पूरी तरह से जैविक खेती कर रहे हैं और शेष भूमि पर कीटनाशक और फंगसनाशी का प्रयोग कम कर रहे हैं। बलविंदर सिंह की कड़ी मेहनत ने कई लोगों को प्रभावित किया, यहां तक कि उनके क्षेत्र के डी. सी. (DC) ने भी उनके फार्म का दौरा किया। विभिन्न प्रिंट मीडिया में उनके काम के बारे में कई लेख प्रकाशित किए गए हैं और जिस गति से वे प्रगति कर रहे ऐसा प्रतीत होता है कि भविष्य में भी उनकी अलग ही पहचान साबित होगी ।

संदेश
“अब किसानों को लाभ कमाने के लिए अपने उत्पादन बेचने के लिए तराजू को अपने हाथों में लेना होगा, क्योंकि यदि वे अपनी फसल बेचने के लिए बिचौलियों या डीलरों पर निर्भर रहेंगे तो वे प्रगति नहीं कर पायेंगे और बार बार ठगों से धोखा खाएंगे। बिचौलिये उन सभी लाभों को दूर कर देते हैं जिन पर किसान का अधिकार होता है।”

विपिन यादव

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एक किसान और एक कंप्यूटर इंजीनियर विपिन यादव की कहानी, जिसने क्रांति लाने के लिए पारंपरिक खेती के तरीके को छोड़कर हाइड्रोपोनिक खेती को चुना

आज का युग ऐसा युग है जहां किसानों के पास उपजाऊ भूमि या ज़मीन ही नहीं है, फिर भी वे खेती कर सकते हैं और इसलिए भारतीय किसानों को अपनी पहल को वापिस लागू करना पड़ेगा और पारंपरिक खेती को छोड़ना पड़ेगा।

टैक्नोलोजी खेतीबाड़ी को आधुनिक स्तर पर ले आई है। ताकि कीट या बीमारी जैसी रूकावटें फसलों की पैदावार पर असर ना कर सके और यह खेतीबाड़ी क्षेत्र में सकारात्मक विकास है। किसान को तरक्की से दूर रखने वाली एक ही चीज़ है और वह है उनका डर – टैक्नोलोजी में निवेश डूब जाने का डर और यदि इस काम में कामयाबी ना मिले और बड़े नुकसान का डर।

पर इस 20 वर्ष के किसान ने खेतीबाड़ी के क्षेत्र में तरक्की की, समय की मांग को समझा और अब पारंपरिक खेती से अलग कुछ और कर रहे हैं।

“हाइड्रोपोनिक्स विधि खेतीबाड़ी की अच्छी विधि है क्योंकि इसमें कोई भी बीमारी पौधों को प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि इस विधि में मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा, हम पॉलीहाउस में पौधे तैयार करते हैं, इसलिए कोई वातावरण की बीमारी भी पौधों को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर सकती। मैं खेती की इस विधि से खुश हूं और मैं चाहता हूं कि दूसरे किसान भी हाइड्रोपोनिक तकनीक अपनाएं।”विपिन यादव

कंप्यूटर साइंस में अपनी इंजीनियरिंग डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी औरवेतन से असंतुष्टी के कारण विपिन ने खेती शुरू करने का फैसला किया, पर निश्चित तौर पर अपने पिता की तरह नहीं, जो परंपरागत खेती तरीकों से खेती कर रहे थे।

एक जिम्मेवार और जागरूक नौजवान की तरह, उन्होंने गुरूग्राम से ऑनलाइन ट्रेनिंग ली। शुरूआती ऑनलाइन योग्यता टेस्ट पास करने के बाद वे गुरूग्राम के मुख्य सिखलाई केंद्र में गए।

20 उम्मीदवारों में से सिर्फ 16 ही हाइड्रोपोनिक्स की प्रैक्टीकल सिखलाई हासिल करने के लिए पास हुए और विपिन यादव भी उनमें से एक थे। उन्होंने अपने हुनर को और सुधारने के लिए के.वी.के. शिकोहपुर से भी सुरक्षित खेती की सिखलाई ली।

“2015 में, मैंने अपने पिता को मिट्टी रहित खेती की नई तकनीक के बारे में बताया, जबकि खेती के लिए मिट्टी ही एकमात्र आधार थी। विपिन यादव

सिखलाई के दौरान उन्होंने जो सीखा उसे लागू करने के लिए उन्होंने 5000 से 7000 रूपये के निवेश से सिर्फ दो मुख्य किस्मों के छोटे पौधों वाली केवल 50 ट्रे से शुरूआत की।

“मैंने हार्डनिंग यूनिट के लिए 800 वर्ग फुट क्षेत्र निर्धारित किया और 1000 वर्ग फुट पौधे तैयार करने के लिए गुरूग्राम में किराये पर जगह ली और इसमें पॉलीहाउस भी बनाया। – विपिन यादव

हाइड्रोपोनिक्स की 50 ट्रे के प्रयोग से उन्हें बड़ी सफलता मिली, जिसने बड़े स्तर पर इस विधि को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हाइड्रोपोनिक खेती शुरू करने के लिए उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों की सहायता से अगला बड़ा निवेश 25000 रूपये का किया।

“इस समय मैं ऑर्डर के मुताबिक 250000 या अधिक पौधे तैयार कर सकता हूं।”

गर्म मौसमी स्थितियों के कारण अप्रैल से मध्य जुलाई तक हाइड्रोपोनिक खेती नहीं की जाती, पर इसमें होने वाला मुनाफा इस अंतराल की पूर्ती के लिए काफी है। विपिन यादव अपने हाइड्रोपोनिक फार्म में हर तरह की फसलें उगाते हैं – अनाज, तेल बीज फसलें, सब्जियां और फूल। खेती को आसान बनाने के लिए स्प्रिंकलर और फोगर जैसी मशीनरी प्रयोग की जाती है। इनके फूलों की क्वालिटी अच्छी है और इनकी पैदावार भी काफी है, जिस कारण ये राष्ट्रपति सेक्ट्रीएट को भी भेजे गए हैं।

मिट्टी रहित खेती के लिए, वे 3:1:1 के अनुपात में तीन चीज़ों का प्रयोग करते हैं कोकोपिट, परलाइट और वर्मीक्लाइट। 35-40 दिनों में पौधे तैयार हो जाते हैं और फिर इन्हें 1 हफ्ते के लिए हार्डनिंग यूनिट में रखा जाता है। NPK, जिंक, मैगनीशियम और कैलशियम जैसे तत्व पौधों को पानी के ज़रिये दिए जाते हैं। हाइड्रोपोनिक्स में कीटनाशक दवाइयों का कोई प्रयोग नहीं क्योंकि खेती के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता, जो आसानी से घर में तैयार की जा सकती है।

भविष्य की योजना:
मेरी भविष्य की योजना है कि कैकटस, चिकित्सक और सजावटी पौधों की और किस्में, हाइड्रोपोनिक फार्म में बेहतर आय के लिए उगायी जायें।

विपिन यादव एक उदाहरण है कि कैसे भारत के नौजवान आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके खेतीबाड़ी के भविष्य को बचा रहे हैं।

संदेश

“खेतीबाड़ी के क्षेत्र में कुछ भी नया शुरू करने से पहले, किसानों को अपने हुनर को बढ़ाने के लिए के.वी.के. से सिखलाई लेनी चाहिए और अपने आप को शिक्षित बनाना चाहिए।”

देश को बेहतर आर्थिक विकास के लिए खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मेहनत करने वाले और नौजवानों एवं रचनात्मक दिमाग की जरूरत है और यदि हम विपिन यादव जैसे नौजवानों को मिलना जारी रखते हैं तो यह भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

खुशदीप सिंह बैंस

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कैसे एक 26 वर्षीय नौजवान लड़के ने सब्जी की खेती करके अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी को हासिल किया

भारत के पास दूसरी सबसे बड़ी कृषि भूमि है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव बहुत बड़ा है। लेकिन फिर भी आज अगर हम युवाओं से उनकी भविष्य की योजना के बारे में पूछेंगे तो बहुत कम युवा होंगे जो खेतीबाड़ी या एग्रीबिज़नेस कहेंगे।

हरनामपुरा, लुधियाना के 26 वर्षीय युवा- खुशदीप सिंह बैंस, जिसने दो विभिन्न कंपनियों में दो वर्ष काम करने के बाद खेती करने का फैसला किया और आज वह 28 एकड़ की भूमि पर सिर्फ सब्जियों की खेती कर रहा है।

खैर, खुशदीप ने क्यों अपनी अच्छी कमाई वाली और आरामदायक जॉब छोड़ दी और खेतीबाड़ी शुरू की। यह एग्रीकल्चर की तरफ खुशदीप की दिलचस्पी थी।

खुशदीप सिंह बैंस उस परिवार की पृष्ठभूमि से आते हैं जहां उनके पिता सुखविंदर सिंह मुख्यत: रियल एसटेट का काम करते थे और घर के लिए छोटे स्तर पर गेहूं और धान की खेती करते थे। खुशदीप के पिता हमेशा चाहते थे कि उनका पुत्र एक आरामदायक जॉब करे, जहां उसे काम करने के लिए एक कुर्सी और मेज दी जाए। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उनका पुत्र धूप और मिट्टी में काम करेगा। लेकिन जब खुशदीप ने अपनी जॉब छोड़ी और खेतीबाड़ी शुरू की उस समय उनके पिता उनके फैसले के बिल्कुल विरूद्ध थे  क्योंकि उनके विचार से खेतीबाड़ी एक ऐसा व्यवसाय है जहां बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती है और यह वह काम नहीं है जो पढ़े लिखे और साक्षर लोगों को करना चाहिए।

लेकिन किसी भी नकारात्मक सोच को बदलने के लिए आपको सिर्फ एक शक्तिशाली सकारात्मक परिणाम की आवश्यकता होती है और यह वह परिणाम था जिसे खुशदीप अपने साथ लेकर आये।

यह कैसे शुरू हुआ…

जब खुशदीप ईस्टमैन में काम कर रहे थे उस समय वे नए पौधे तैयार करते थे और यही वह समय था जब वे खेती की तरफ आकर्षित हुए। 1 वर्ष और 8 महीने काम करने के बाद उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) के साथ काम करना शुरू किया। लेकिन वहां भी उन्होंने 2-3 महीने काम किया। वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और वे कुछ और करना चाहते थे। इसलिए ईस्टमैन और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) कंपनी में 2 वर्ष काम करने के बाद खुशदीप ने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया।

उन्होंने आधे – आधे एकड़ में कद्दू, तोरी और भिंडी की रोपाई की। वे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे और अपनी कल्पना से अधिक फसल की तुड़ाई करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने खेती के क्षेत्र को बढ़ाया और सब्जियों की अन्य किस्में उगायी। उन्होंने हर तरह की सब्जी उगानी शुरू की। चाहे वह मौसमी हो और चाहे बे मौसमी। उन्होंने मटर और मक्की की फसल के लिए Pagro Foods Ltd. से कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किया और उससे काफी लाभ प्राप्त किया। उसके बाद 2016 में उन्होंने धान, फलियां, आलू, प्याज, लहसुन, मटर, शिमला मिर्च, फूल गोभी, मूंग की फलियां और बासमती को बारी-बारी से उसी खेत में उगाया।

खेतीबाड़ी के साथ खुशदीप ने बीज और लहसुन और कई अन्य फसलों के नए पौधे तैयार करने शुरू किए और इस सहायक काम से उन्होंने काफी लाभ प्राप्त किया। पिछले तीन वर्षों से वे बीज की तैयारी को पी ए यू लुधियाना किसान मेले में दिखा रहे हैं और हर बार उन्हें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

आज खुशदीप के पिता और माता दोनों को अपने पुत्र की उपलब्धियों पर गर्व है। खुशदीप अपने काम से बहुत खुश है और दूसरे किसानों को इसकी तरफ प्रेरित भी करते हैं। वर्तमान में वे सब्जियों की खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं और भविष्य में वे अपनी नर्सरी और फूड प्रोसेसिंग का व्यापार शुरू करना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों को अपने मंडीकरण के लिए किसी तीसरे इंसान पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें अपना काम स्वंय करना चाहिए। एक और बात जिसका किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें किसी एक के पीछे नहीं जाना चाहिए। उन्हें वो काम करना चाहिए जो वे करना चाहते हैं।
किसानों को विविधता वाली खेती के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें एक से ज्यादा फसलों को उगाना चाहिए क्योंकि यदि एक फसल नष्ट हो जाये तो आखिर में उनके पास सहारे के लिए दूसरी फसल तो हो। हर बार एक या दो माहिरों से सलाह लेनी चाहिए और उसके बाद ही अपना नया उद्यम शुरू करना चाहिए।

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”

कृष्ण दत्त शर्मा

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जानें कैसे जैविक खेती ने कृष्ण दत्त शर्मा को कृषि के क्षेत्र में सफल बनाने में मदद की

जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जो लोगों को अपने जीवन के खोये हुए उद्देश्य का एहसास करवाती हैं और इसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं। यही चीज़ चिखड़ गांव, (शिमला) के साधारण किसान कृष्ण दत्त शर्मा, के साथ हुई और उन्हें जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया।

जैविक खेती में कृष्ण दत्त शर्मा की उपलब्धियों ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया है कि आज उनका नाम कृषि के क्षेत्र में महत्तवपूर्ण लोगों की सूची में गिना जाता है।

यह सब शुरू हुआ जब कृष्ण दत्त शर्मा को कृषि विभाग की तरफ से हैदराबाद (11 नवंबर, 2002) का दौरा करने का मौका मिला। इस दौरे के दौरान उन्होंने जैविक खेती के बारे में काफी कुछ सीखा। वे जैविक खेती के बारे में और अधिक जानने के लिए उत्सुक थे और इसे अपनाना भी चाहते थे।

मोरारका फाउंडेशन (2004 में) के संपर्क में आने के बाद उनका जुनून और विचार अमल में आया। उस समय तक वे कृषि क्षेत्र में रसायनों के बढ़ते उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में अच्छी तरह से जान चुके थे और इससे वे बहुत परेशान और चिंतित थे। जैसे कि वे जानते थे कि आने वाले भविष्य में उन्हें खाद और कीटनाशकों के परिणाम का सामना करना पड़ेगा इसलिए उन्होंने जैविक खेती को पूरी तरह से अपनाने का फैसला किया।

उनके पास कुल 20 बीघा ज़मीन है, जिसमें से 5 बीघा सिंचित क्षेत्र हैं और 15 बीघा बारानी क्षेत्र हैं। शुरूआत में उन्होंने बागबानी विभाग से सेब का एक मुख्य पौधा खरीदा और उस पौधे से उन्होंने अपने पूरे बाग में सेब के 400 पौधे लगाए। उन्होंने नाशपाती के 20 वृक्ष, चैरी के 20 वृक्ष, आड़ू के 10 वृक्ष और अनार के 15 वृक्ष भी उगाए। फलों के साथ साथ उन्होंने सब्जियां जैसे फूल गोभी, मटर, फलियां, शिमला मिर्च और ब्रोकली भी उगायी।

आमतौर पर कीटनाशकों और रसायनों से उगायी जाने वाले ब्रोकली की फसल आसानी से खराब हो जाती है, लेकिन कृष्ण दत्त शर्मा द्वारा जैविक तरीके से उगाई गई ब्रोकली का जीवन काफी ज्यादा है। इस कारण किसान अब ब्रोकली को जैविक तरीके से उगाते हैं और उसे बिक्री के लिए दिल्ली की मंडी में ले जाते हैं। इसके अलावा जैविक तरीके से उगाई गई ब्रोकली की बिक्री 100-150 रूपये प्रति किलो के हिसाब से होती है और इसी को अगर किसानों की आय में जोड़ दिया जाये तो उनकी आय 500000 तक पहुंच जाती है, और इस छ अंकों की आमदनी में आधा हिस्सा ब्रोकली की बिक्री से आता है।

जैविक खेती की तरफ अन्य किसानों को प्रेरित करने के लिए कृष्ण दत्त शर्मा ने अपने नेतृत्व में अपने गांव में एक ग्रुप बनाया है। उनकी इस पहल ने कई किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया है।

जैविक खेती के क्षेत्र में कृष्ण दत्त शर्मा की उपलब्धियां काफी बड़ी हैं और यहां तक कि हिमाचल सरकार ने उन्हें जून 2013 में, “Organic Fair and Food Festival” में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित भी किया है। लेकिन अपनी नम्रता के कारण वे अपनी सफलता का सारा श्रेय मोरारका फाउंडेशन और कृषि विभाग को देते हैं।

वे अपने खेत और बगीचे में गाय (3), बैल (1) और बछड़े (2) के गोबर का उपयोग करते हैं और वे अच्छी उपज के लिए वर्मी कंपोस्ट भी खुद तैयार करते हैं। उन्होंने अपने खेत में 30 x 8 x 10 के बैड तैयार किए हैं जहां पर वे प्रति वर्ष 250 केंचुओं की वर्मी कंपोस्ट तैयार करते हैं। कीटनाशकों के स्थान पर वे हर्बल स्प्रे, एपर्चर वॉश, जीवामृत और NSDL का उपयोग करते हैं। इस तरह रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर कुदरती कीटनाशकों ने प्रयोग से उनकी ज़मीन की स्थितियों में सुधार हुआ और उनके खर्चे भी कम हुए।

संदेश:
बेहतर भविष्य और अच्छी आय के लिए वे अन्य किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।