प्रियंका गुप्ता

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एक होनहार बेटी जो अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए मेहनत कर रही है

आज-कल के ज़माने में जहाँ बच्चे माता-पिता को बोझ समझते हैं, वहां दूसरी तरफ प्रियंका गुप्ता अपने पिता के देखे हुए सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है।

एम.बी.ए. फाइनांस की पढ़ाई पूरी कर चुकी प्रियंका का बचपन पंजाब के नंगल में बीता। प्रियंका के पिता बदरीदास बंसल बिजली विभाग, भाखड़ा डैम में नियुक्त थे जो कि नौकरी के साथ-साथ अपने खेती के शौंक को भी पूरा कर रहे थे। उनके पास घर के पीछे थोड़ी सी ज़मीन थी, जिस पर वह सब्जियों की खेती करते थे। 12 साल नंगल में रहने के बाद प्रियंका के पिता का तबादला पटियाला में हो गया और उनका पूरा परिवार पटियाला में आकर रहने लगा। यहाँ इनके पास बहुत ज़मीन खाली थी जिस पर वह खेती करने लग गए। इसके साथ ही उन्होंने अपना घर बनाने के लिए संगरूर में अपना प्लाट खरीद लिया।

बदरीदास जी बिजली विभाग में से चीफ इंजीनियर रिटायर हुए। इसके साथ ही उनके परिवार को पता लगा कि प्रियंका के माता जी (वीना बंसल) कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं और इस बीमारी से लड़ते-लड़ते वह दुनिया को अलविदा कह गए।

वीना बंसल जी के देहांत के बाद बदरीदास जी ने इस सदमे से उभरने के लिए अपना पूरा ध्यान खेती पर केंद्रित किया। उन्होंने संगरूर में जो ज़मीन घर बनाने के लिए खरीदी थी उसके आस-पास कोई घर नहीं और बाजार भी काफी दूर था तो उनके पिता ने उस जगह की सफाई करवाकर वहां पर सब्जियों की खेती करनी शुरू की। 10 साल तक उनके पिता जी ने सब्जियों की खेती में काफी तजुर्बा हासिल किया। रिश्तेदार भी उनसे ही सब्जियां लेकर जाते हैं। पर अब बदरीदास जी ने खेती को अपने व्यवसाय के तौरपर अपनाने के मन बना लिया।

पर बदरीदास जी की सेहत ज़्यादा ठीक नहीं रहती थी तो प्रियंका ने अपने पिता की मदद करने का मन बना लिया और इस तरह प्रियंका का खेती में रुझान और बढ़ गया।

वह पहले पंजाब एग्रो के साथ काम करते थे पर पिता की सेहत खराब होने के कारण उनका काम थोड़ा कम हो गया। इस बात का प्रियंका को दुख है क्योंकि पंजाब एग्रो के साथ मिलकर उनका काम बढ़िया चल रहा था और सामान भी बिक जाता था। इसके बाद संगरूर में 4-5 किसानों से मिलकर एक दुकान खोली पर कुछ कमियों के कारण उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी।

अब उनका 4 एकड़ का फार्म संगरूर में है पर फार्म की ज़मीन ठेके पर ली होने के कारण वह अभी तक फार्म का रजिस्ट्रेशन नहीं करवा सके क्योंकि जिनकी ज़मीन है, वह इसके लिए तैयार नहीं है।

पहले-पहले उन्हें मार्केटिंग में समस्या आई पर उनकी पढ़ाई के कारण इसका समाधान भी हो गया। अब वह अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय खेती को देने लगे। वह पूरी तरह जैविक खेती करते हैं।

ट्रेनिंग:

प्रियंका ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना से बिस्कुट और स्कवैश बनाने की ट्रेनिंग के साथ-साथ मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग भी ली, जिससे उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।

प्रियंका के पति कुलदीप गुप्ता जो एक आर्किटेक्ट हैं, के बहुत से दोस्त और पहचान वाले प्रियंका द्वारा तैयार किये उत्पाद ही खरीदते हैं।

“लोगों का सोचना है कि आर्गेनिक उत्पाद की कीमत ज़्यादा होती है पर कीमत का कोई ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता। कीटनाशकों से तैयार किये गए उत्पाद खाकर सेहत खराब करने से अच्छा है कि आर्गेनिक उत्पादों का प्रयोग किया जाये, क्योंकि सेहत से बढ़कर कुछ नहीं”- प्रियंका गुप्ता
प्रियंका द्वारा तैयार किये कुछ उत्पाद:
  • बिस्कुट (बिना अमोनिया)
  • अचार
  • वड़ियाँ
  • काले छोले
  • साबुत मसर
  • हल्दी
  • अलसी के बीज
  • सोंफ
  • कलोंजी
  • सरसों
  • लहसुन
  • प्याज़
  • आलू
  • मूंगी
  • ज्वार
  • बाजरा
  • तिल
  • मक्की देसी
  • सभी सब्जियां
पेड़
  • ब्रह्मी
  • स्टीविया
  • हरड़
  • आम
  • मोरिंगा
  • अमरुद
  • करैनबेरी
  • पुदीना
  • तुलसी
  • नींबू
  • खस
  • शहतूत
  • आंवला
  • अशोका

यह सब उत्पाद बनाने के अलावा प्रियंका मधुमक्खी पालन और पोल्ट्री का काम भी करते हैं, जिसमें उनके पति भी उनका साथ देते हैं।

“हम मोनो क्रॉपिंग नहीं करते, अकेले धान और गेहूं की बिजाई नहीं करते, हम अलग-अलग फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, मक्की इत्यादि की बिजाई भी करते हैं।” – प्रियंका गुप्ता
उपलब्धियां:
  • प्रियंका 2 बार वोमेन ऑफ़ इंडिया ऑर्गेनिक फेस्टिवल में हिस्सा ले चुकी है।
  • छोटे बच्चों को बिस्कुट बनाने की ट्रेनिंग दी।
  • जालंधर रेडियो स्टेशन AIR में भी हिस्सा ले चुके हैं।
भविष्य की योजना:

भविष्य में यदि कोई उनसे सामान लेकर बेचना चाहता है तो वह सामान ले सकते हैं ताकि प्रियंका अपना पूरा ध्यान क्वालिटी बढ़ाने में केंद्रित कर सकें और अपने पिता का सपना पूरा कर सकें।

किसानों को संदेश
“मेहनत तो हर काम में करनी पड़ती है। मेहनत के बाद तैयार खड़ी हुई फसल को देखकर और ग्राहकों द्वारा तारीफ सुनकर जो संतुष्टि मिलती है , उसकी शब्दों में व्याख्या नहीं की जा सकती।”

कुलविंदर सिंह नागरा

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अच्छे वर्तमान और भविष्य की उम्मीद से कुलविंदर सिंह नागरा मुड़े कुदरती खेती के तरीकों की ओर

उम्मीद एकमात्र सकारात्मक भावना है जो किसी व्यक्ति को भविष्य के बारे में सोचने की ताकत देती है, भले ही इसके बारे में सुनिश्चित न हो। और हम जानते हैं कि जब हम बेहतर भविष्य के बारे में सोचते है तो कुछ नकारात्मक परिणामों को जानने के बावजूद भी हमारे कार्य स्वचालित रूप से जल्दी हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ जिंला संगरूर के गांव नागरा के एक प्रगतिशील किसान कुलविंदर सिंह नागरा के साथ हुआ जिनकी उम्मीद ने उन्हें कुदरती खेती की तरफ बढ़ाया।

“जैविक खेती में करने से पहले, मुझे पता था कि मुझे लगातार दो साल तक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इस स्थिति से अवगत होने के बाद भी मैंने कुदरती ढंगों को अपनाने का फैसला किया। क्योंकि मेरे लिए मेरा परिवार और आसपास का वातावरण पैसे कमाने से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, मैं अपने परिवार और खुद के लिए कमा रहा हूं, क्या होगा यदि इतने पैसे कमाने के बाद भी मैं अपने परिवार को स्वस्थ रखने में योग्य नहीं… तब सब कुछ व्यर्थ है।”

खेती की पृष्ठभूमि से आने पर कुलविंदर सिंह नागरा ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने का का फैसला किया। 1997 में, अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार की पुरानी तकनीकों को अपनाकर धान और गेहूं की खेती करनी शुरू की। 2000 तक, उन्होंने 10 एकड़ भूमि में गेहूं और धान की खेती जारी रखी और एक एकड़ में मटर, प्याज, लहसुन और लौकी जैसी कुछ सब्ज़ियां उगायी । लेकिन वह गेहूं और धान से संतुष्ट नहीं थे। इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने सब्जी की खेती के क्षेत्र को एक एकड़ से 7 एकड़ तक और किन्नू और अमरूद को 1½ एकड़ में उगाना शुरू किया।

“किन्नू कम सफल था लेकिन अमरूद ने अच्छा मुनाफा दिया और मैं इसे भविष्य में भी जारी रखूगा।”

बागवानी में सफलता के अनुभव ने कुलविंदर सिंह नागरा के आत्मविश्वास को बढ़ाया और तेजी से उन्होंने अपनी कृषि गतिविधियों को, और अधिक लाभ कमाने के लिए विस्तारित किया। उन्होंने सब्जी की खेती से लेकर नर्सरी की तैयारी तक सब कुछ करना शुरू कर दिया। 2008-2009 में उन्होंने शाहबाद मारकंडा , सिरसा और पंजाब के बाहर विभिन्न किसान मेलों में मिर्च, प्याज, हलवा कद्दू, करेला, लौकी, टमाटर और बेल की नर्सरी बेचना शुरू कर दिया।

2009 में उन्होंने अपनी खेती तकनीकों को जैविक में बदलने का विचार किया, इसलिए उन्होंने कुदरती खेती की ट्रेनिंग पिंगलवाड़ा से ली, जहां पर किसानों को ज़ीरो बजट पर कुदरती खेती की मूल बातें सिखाई गईं। एक सुरक्षित और स्थिर शुरुआत को ध्यान में रखते हुए कुलविंदर सिंह नागरा ने 5 एकड़ के साथ कुदरती खेती शुरू की।

वह इस तथ्य से अच्छी तरह से अवगत थे कि कीटनाशक और रासायनिक उपचार भूमि को जैविक में परिवर्तित करने में काफी समय लग सकता है और वह शुरुआत में कोई लाभ नहीं कमाएंगे। लेकिन उन्होंने कभी भी शुरुआत करने से कदम पीछे नहीं उठाया, उन्होंने अपने खेती कौशल को बढ़ाने का फैसला किया और उन्होंने फूड प्रोसेसिंग, मिर्च और खीरे के हाइब्रिड बीज उत्पादन, सब्जियों की नैट हाउस में खेती और ग्रीन हाउस प्रबंधन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ट्रेनिंग ली । लगभग दो वर्षों के बाद, उन्होंने न्यूनतम लाभ प्राप्त करना शुरू किया।

“मंडीकरण मुख्य समस्या थी जिस का मैंने सबसे ज्यादा सामना किया था चूंकि मैं नौसिखिया था इसलिए मंडीकरण तकनीकों को समझने में कुछ समय लगा। 2012 में, मैंने सही मंडीकरण तकनीकों को अपनाया और फिर सब्जियों को बेचना मेरे लिए आसान हो गया।”

कुलविंदर सिंह नागरा ने प्रकृति के लिए एक और कदम उठाया वह था पराली जलाना बंद करना। आज पराली को जलाना प्रमुख समस्याओ में से एक है जिस का पंजाब सामना कर रहा है और यह विश्व स्तर का प्रमुख मुद्दा भी है। पंजाब और हरियाणा में किसान धन बचाने के लिए पराली जला रहे है, पर कुलविंदर सिंह नागरा ने पराली जलाने की बजाय इस की मल्चिंग और खाद बनाने के लिए इस्लेमाल किया।

कुलविंदर सिंह नागरा खेती के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए हैप्पी सीडर, किसान, बैड्ड, हल, रीपर और रोटावेटर जैसे आधुनिक और नवीनतम पर्यावरण-अनुकूल उपकरणों को पहल देते हैं।

वर्तमान में, वे 3 एकड़ पर गेहूं, 2 एकड़ पर चारे वाली फसलें, सब्जियां (मिर्च, शिमला मिर्च, खीरा, पेठा, तरबूज, लौकी, प्याज, बैंगन और लहसुन) 6 एकड़ पर और और फल जैसे आड़ू, आंवला और 1 एकड़ पर किन्नू की खेती करते हैं। वह अपने खेत पर पानी का सही उपयोग करने के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं।

वे अपनी कृषि गतिविधियों का समर्थन करने के लिए डेयरी फार्मिंग भी कर रहे है। उनके पास उनके बाड़े में 12 पशू हैं, जिनमें मुर्रा भैंस, नीली रावी और साहीवाल शामिल है। इनका दूध उत्पादन प्रति दिन 90 से 100 किलो है, जिससे वह बाजार में 70-75 किलोग्राम दूध बेचते हैं और शेष घर पर इस्तेमाल करते हैं । अब, मंडीकरण एक बड़ी समस्या नहीं है, वे संगरूर, सुनाम और समाना मंडी में सभी जैविक सब्जियां बेचते हैं। व्यापारी फल खरीदने के लिए उनके फार्म पर आते हैं और इस प्रकार वे अपने फसल उत्पादों की अच्छी कीमत कमा रहे हैं।

वे अपनी सभी उपलब्धियों का श्रेय पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी और अपने परिवार को देते हैं। आज, वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरों को अपनी कुदरती सब्जियों की खेती के कौशल के साथ प्रेरित करते है और उन्हें इस पर गर्व है। सब्जियों की कुदरती खेती के क्षेत्र में उनके काम के लिए, उन्हें कई पुरस्कार और प्रशंसा मिली, और उनमें से कुछ है…

• 19 फरवरी 2015 को सूरतगढ़ (राजस्थान) में भारत के माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रगतिशील किसान का कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त किया।

• संगरूर के डिप्टी कमिश्नर श्री कुमार राहुल द्वारा ब्लॉक लेवल अवॉर्ड प्राप्त किया।

• पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना से पुरस्कार प्राप्त किया।

• कृषि निदेशक, पंजाब से पुरस्कार प्राप्त किया।

• सर्वोत्तम सब्जी की किस्म की खेती में कई बार पहला और दूसरा स्थान हासिल किया।

खैर, ये पुरस्कार उनकी उपलब्धियों को उल्लेख करने के लिए कुछ ही हैं। कृषि समाज में उन्हें मुख्य रूप से उनके काम के लिए जाना जाता है।

कृषि के क्षेत्र में किसानों को मार्गदर्शन करने के लिए अक्सर उनके फार्म हाउस पर वे के वी के और पी ए यू के माहिरों को आमंत्रित करते हैं कि वे फार्म पर आये और कृषि संबंधित उपयोगी जानकारी सांझा करें, साथ ही साथ किसानों के बीच में वार्तालाप भी करवाते हैं ताकि किसान एक दूसरे से सीख सकें। उन्होंने वर्मीकंपोस्ट प्लांट भी स्थापित किया है वे अंतर फसली और लो टन्नल तकनीक अपनाते हैं, मधुमक्खीपालन करते हैं। कुछ क्षेत्रों में गेहूं की बिजाई बैड पर करते हैं। नो टिल ड्रिल हैपी सीडर का इस्तेमाल करके गेहूं की खेती करते हैं, धान की रोपाई से पहले ज़मीन को लेज़र लेवलर से समतल करते हैं, मशीनीकृत रोपाई करते हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन और एकीकृत निमाटोड प्रबंधन करते हैं।

कृषि तकनीकों को अपनाने का प्रभाव:

विभिन्न कृषि तकनीकों को लागू करने के बाद, उनके गेहूं उत्पादन ने देश भर में उच्चतम गेहूं उत्पादन का रिकॉर्ड बनाया जो कुदरती खेती के तरीकों से 2014 में प्रति हेक्टेयर 6456 किलोग्राम था और इस उपलब्धि के लिए उन्हें कृषि कर्मण अवार्ड से सम्मानित किया गया। उनके आस पास रहने वाले किसानों के लिए वे प्रेरक हैं और वातावरण अनुकूलन तकनीकों को अपनाने के लिए किसान अक्सर उनकी सलाह लेते है।

भविष्य की योजना:
भविष्य में, कुलविंदर सिंह नागरा सब्जियों को विदेशों निर्यात करने की बना रहे हैं।
संदेश
“जो किसान अपने कर्ज और जिम्मेदारियों के बोझ से राहत पाने के लिए आत्मघाती पथ लेने का विकल्प चुनते हैं उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहिए। भगवान ने हमारे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई अवसर और क्षमताओं को दिया है और हमें इस अवसर को कभी भी छोड़ना चाहिए।”

जगदीप सिंह

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जानें कैसे इस किसान की व्यावहारिक पहल ने पंजाब को पराली जलाने के लिए ना कहने में मदद की

पराली जलाना और कीटनाशकों का प्रयोग करना पुरानी पद्धतियां हैं जिनका पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव आज हम देख रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के कारण भारत के उत्तरी भागों को वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कई वर्षों में वायु की गुणवत्ता खराब हो गई है और यह कई गंभीर श्वास और त्वचा की समस्याओं को जन्म दे रही है।

हालांकि सरकार ने पराली जलाने की समस्या को रोकने के लिए कई प्रमुख कदम उठाए हैं फिर भी वे किसानों को पराली जलाने से रोक नहीं पा रहे। किसानों में ज्ञान और जागरूकता की कमी के कारण पंजाब में पराली जलाना एक बड़ा मुद्दा बन रहा है। लेकिन एक ऐसे किसान जगदीप सिंह ने ना केवल अपने क्षेत्र में पराली जलाने से किसानों को रोका बल्कि उन्हें जैविक खेती की तरफ प्रोत्साहित किया।

जगदीप सिंह पंजाब के संगरूर जिले के एक उभरते हुए किसान हैं। अपनी मातृभूमि और मिट्टी के प्रति उनका स्नेह बचपन में ही बढ़ गया था। मिट्टी प्रेमी के रूप में उनकी यात्रा उनके बचपन से ही शुरू हुई। जन्म के तुरंत बाद उनके चाचा ने उन्हें गोद लिया जिनका व्यवसाय खेतीबाड़ी था। उनके चाचा उन्हें शुरू से ही फार्म पर ले जाते थे और इसी तरह खेती की दिशा में जगदीप की रूचि बढ़ गई।

बढ़ती उम्र के साथ उनका दिमाग भी विकासशील रहा और पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्राथमिकता खेती को ही दी। अपनी 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और खेती में अपने पिता मुख्तियार सिंह की मदद करनी शुरू की। खेती के प्रति उनकी जिज्ञासा दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी, इसलिए अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए उन्होंने 1989 से 1990 के बीच उन्होंने पी ए यू का दौरा किया। पी ए यू का दौरा करने के बाद जगदीप सिंह को पता चला कि उनकी खेती की मिट्टी का बुनियादी स्तर बहुत अधिक है जो कई मिट्टी और फसलों के मुद्दे को जन्म दे रहा है और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए दो ही उपाय थे या तो रूड़ी की खाद का प्रयोग करना या खेतों में हरी खाद का प्रयोग करना।

इस समस्या का निपटारा करने के लिए जगदीप एक अच्छे समाधान के साथ आये क्योंकि रूड़ी की खाद में निवेश करना उनके लिए महंगा था। 1990 से 1991 के बीच उन्होंने पी ए यू के समर्थन से happy seeder का प्रयोग करना शुरू किया। happy seeder के प्रयोग से वे खेत में से धान की पराली को बिना निकाले मिट्टी में बीजों को रोपित करने के योग्य हुए। उन्होंने अपने खेत में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए धान की पराली को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया। धीरे-धीरे जगदीप ने अपनी इस पहल में 37 किसानों को इकट्ठा किया और उन्हें happy seeder प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया और पराली जलाने से परहेज करने को कहा। उन्होंने इस अभियान को पूरे संगरूर में चलाया जिसके तहत उन्होंने 350 एकड़ से अधिक ज़मीन को कवर किया।

2014 में मैंने IARI (Indian Agricultural Research Institute) से पुरस्कार प्राप्त किया और उसके बाद मैनें अपने गांव में ‘Shaheed Baba Sidh Sweh Shaita Group’ नाम का ग्रुप बनाया। इस ग्रुप के तहत हम किसानों को हवा प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए, पराली ना जलाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इन दिनों वे 40 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से 32 एकड़ भूमि उन्होंने किराये पर दी है और 4 एकड़ की भूमि पर वे जैविक खेती कर रहे हैं और बाकी की भूमि पर वे बहुत कम मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उनका मुख्य मंतव जैविक की तरफ जाना है। वर्तमान में वे अपने पिता, माता, पत्नी और दो बेटों के साथ कनोई गांव में रह रहे हैं।

जगदीप सिंह के व्यक्तित्व के बारे में सबसे आकर्षक चीज़ यह है कि वे बहुत व्यावहारिक हैं और हमेशा खेतीबाड़ी के बारे में नई चीज़ें सीखने के लिए इच्छुक रहते हैं। वे पशु पालन में भी बहुत दिलचस्पी रखते हैं और घर के उद्देश्य के लिए उनके पास 8 भैंसे हैं। वे भैंस के दूध का प्रयोग सिर्फ घर के लिए करते हैं और कई बार इसे अपने पड़ोसियों या गांव वालों को भी बेचते हैं खेतीबाड़ी और दूध की बिक्री से वह अपने परिवार के खर्चों को काफी अच्छे से संभाल रहे हैं और भविष्य में वे अच्छे मुनाफे के लिए अपनी उत्पादकता की मार्किटिंग शुरू करना चाहते हैं।

संदेश
दूसरे किसानों के लिए जगदीप सिंह का संदेश यह है कि उन्हें अपने बच्चों को खेती के बारे में सिखाना चाहिए और उनके मन में खेती के बारे में नकारात्मक विचार ना डालें अन्यथा वे अपने जड़ों के बारे में भूल जाएंगे।

लवप्रीत सिंह

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कैसे इस B.Tech ग्रेजुएट युवा की बढ़ती हुई दिलचस्पी ने उसे कृषि को अपना फुल टाइम रोज़गार चुनने के लिए प्रेरित किया

मिलिए लवप्रीत सिंह से, एक युवा जिसके हाथ में B.Tech. की डिग्री के बावजूद उसने डेस्क जॉब और आरामदायक शहरी जीवन जीने की बजाय गांव में रहकर कृषि से समृद्धि हासिल करने को चुना।

संगरूर के जिला हैडक्वार्टर से 20 किलोमीटर की दूरी पर भवानीगढ़ तहसील में स्थित गांव कपियाल जहां लवप्रीत सिंह अपने पिता, दादा जी, माता और बहन के साथ रहते हैं।

2008-09 में लवप्रीत ने कृषि क्षेत्र में अपनी बढ़ती दिलचस्पी के कारण केवल 1 एकड़ की भूमि पर गेहूं की जैविक खेती शुरू कर दी थी, बाकी की भूमि अन्य किसानों को दे दी थी। क्योंकि लवप्रीत के परिवार के लिए खेतीबाड़ी आय का प्राथमिक स्त्रोत कभी नहीं था। इसके अलावा लवप्रीत के पिता जी, संत पाल सिंह दुबई में बसे हुए थे और उनके पास परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अच्छी नौकरी और आय दोनों ही थी।

जैसे ही समय बीतता गया, लवप्रीत की दिलचस्पी और बढ़ी और उनकी मातृभूमि ने उन्हें वापिस बुला लिया। जल्दी ही अपनी डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने खेती की तरफ बड़ा कदम उठाने के बारे में सोचा। उन्होंने पंजाब एग्रो (Punjab Agro) द्वारा अपनी भूमि की मिट्टी की जांच करवायी और किसानों से अपनी सारी ज़मीन वापिस ली।

अगली फसल जिसकी लवप्रीत ने अपनी भूमि पर जैविक रूप से खेती की वह थी हल्दी और साथ में उन्होंने खुद ही इसकी प्रोसेसिंग भी शुरू की। एक एकड़ पर हल्दी और 4 एकड़ पर गेहूं-धान। लेकिन लवप्रीत के परिवार द्वारा पूरी तरह से जैविक खेती को अपनाना स्वीकार्य नहीं था। 2010 में जब उनके पिता दुबई से लौट आए तो वे जैविक खेती के खिलाफ थे क्योंकि उनके विचार में जैविक उपज की कम उत्पादकता थी लेकिन कई आलोचनाओं और बुरे शब्दों में लवप्रीत के दृढ़ संकल्प को हिलाने की शक्ति नहीं थी।

अपनी आय को बढ़ाने के लिए लवप्रीत ने गेहूं की बजाये बड़े स्तर पर हल्दी की खेती करने का फैसला किया। हल्दी की प्रोसेसिंग में उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया क्योंकि उनके पास इसका कोई ज्ञान और अनुभव नहीं था। लेकिन अपने प्रयासों और माहिर की सलाह के साथ वे कई मुश्किलों को हल करने के काबिल हुए। उन्होंने उत्पादकता और फसल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए गाय और भैंस के गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया।

परिणाम देखने के बाद उनके पिता ने भी उन्हें खेती में मदद करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्होंने पंजाब एग्रो से भी हल्दी पाउडर को जैविक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संपर्क किया और इस वर्ष के अंत तक उन्हें यह प्राप्त हो जाएगा। वर्तमान में वे सक्रिय रूप से हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग में शामिल हैं। जब भी उन्हें समय मिलता है, वे PAU का दौरा करते हैं और यूनीवर्सिटी के माहिरों द्वारा सुझाई गई पुस्तकों को पढ़ते हैं ताकि उनकी खेती में सकारात्मक परिणाम आये। पंजाब एग्रो उन्हें आवश्यक जानकारी देकर भी उनकी मदद करता है और उन्हें अन्य प्रगतिशील किसानों के साथ भी मिलाता है जो जैविक खेती में सक्रिय रूप से शामिल हैं। हल्दी के अलावा वे गेहूं, धान, तिपतिया घास (दूब), मक्की, बाजरा की खेती भी करते हैं लेकिन छोटे स्तर पर।

भविष्य की योजनाएं:
वे भविष्य में हल्दी की खेती और प्रोसेसिंग के काम का विस्तार करना चाहते हैं और जैविक खेती कर रहे किसानों का एक ग्रुप बनाना चाहते हैं। ग्रुप के प्रयोग के लिए सामान्य मशीनें खरीदना चाहते हैं और जैविक खेती करने वाले किसानों का समर्थन करना चाहते हैं।

संदेश

एक संदेश जो मैं किसानों को देना चाहता हूं वह है पर्यावरण को बचाने के लिए जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है। सभी को जैविक खेती करनी चाहिए और जैविक खाना चाहिए, इस प्रकार प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।

मनि कलेर

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कैसे फूलों की बिखर रही खुशबू ने पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र को स्थापित किया

फूलों की खेती में निवेश एक बढ़िया तरक्की का विकल्प है जिसमें किसान अधिक रूचि ले रहे हैं। कई सफल पुष्पहारिक हैं जो ग्लैडियोलस, गुलाब, गेंदे और कई अन्य फूलों की सुगंध बिखेर रहे हैं और पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र का निर्माण कर रहे हैं। एक पुष्पवादी जो फूलों और सब्जियों के व्यापार से अधिक लाभ कमा रहे हैं, वे हैं – मनि कलेर

अन्य ज़मींदारों की तरह, कलेर परिवार अपनी ज़मीन अन्य किसानों को किराये पर देने के लिए उपयोग करता था और एक छोटे से ज़मीन के टुकड़े पर वे घरेलु प्रयोजन के लिए गेहूं और धान का उत्पादन करते थे। लेकिन जब मनि कलेर ने अपनी शिक्षा पूरी की तो उन्होंने बागबानी के व्यवसाय में कदम रखने का फैसला किया। मनि ने भूमि का आधा हिस्सा (20 एकड़) वापिस ले लिया जो उन्होंने किराये पर दिया था और उस पर खेती करनी शुरू की।

कुछ समय बाद, एक रिश्तेदार की सहायता से, मनि को RTS Flower व्यापार के बारे में पता चला जो कि गुरविंदर सिंह सोही द्वारा सफलतापूर्वक चलाया जाता है। इसलिए RTS Flower के मालिक से प्रेरित होने के बाद मनि ने अंतत: अपना फूलों का उद्यम शुरू कर दिया और पेटुनिया, बारबिना ओर मेस्टेसियम आदि जैसे पांच से छ: प्रकार के फूलों को उगाना शुरू किया।

शुरूआत में उन्होंने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में भी कोशिश की लेकिन कॉन्ट्रेक्टड कंपनी के साथ एक कड़वे अनुभव के बाद उन्होंने उनसे अलग होने का फैसला किया।

फूलों की खेती के दूसरे वर्ष में उन्होंने गुरविंदर सिंह सोही से 1 लाख रूपये के बीज खरीदे। उन्होंने 2 कनाल में ग्लेडियोलस की खेती शुरू की और आज 2 वर्ष बाद उन्होंने 5 एकड़ में फार्म का विस्तार किया है।

वर्तमान में वे 20 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से वे 4 एकड़ का प्रयोग सब्जियों की लो टन्नल फार्मिंग के लिए कर रहे हैं जिसमें वे करेला, कद्दू, बैंगन, खीरा, खरबूजा, लहसुन (1/2 एकड़) और प्याज (1/2 एकड़) उगाते हैं। घरेलु उद्देश्य के लिए वे धान और गेहूं उगाते हैं। कुछ समय से उन्होंने प्याज के बीज तैयार करना भी शुरू किया है।

कड़ी मेहनत और विविध खेती तकनीक के कारण उनकी आय में वृद्धि हुई है। अब तक उन्होंने सरकार से कोई सब्सिडी नहीं ली। वे संपूर्ण मार्किटिंग का अपने दम पर प्रबंधन करते हैं और फूलों को दिल्ली और कुरूक्षेत्र की मार्किट में बेचते हैं। हालांकि वे सब्जियों और फूलों की खेती के व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें फूलों की खेती में कुछ समस्याएं आती हैं लेकिन वे अपनी उम्मीद को कभी नहीं खोने देते और हमेशा मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ अपना काम जारी रखते हैं।

मनि के परिवार ने हमेशा उनका समर्थन किया और कृषि क्षेत्र में जो वे करना चाहते हैं उसे करने से कभी नहीं रोका। वर्तमान में वे अपने पिता मदन सिंह और बड़े भाई राजू कलेर के साथ अपने गांव संगरूर जिले के राय धरियाना गांव में रह रहे हैं। दूध के प्रयोजन के लिए उन्होंने 7 गायें और 2 मुर्रा भैंसे रखी हैं। वे पशुओं की देखभाल और फीड के साथ कभी समझौता नहीं करते। वे जैविक रूप से उगाए धान, गेहूं और चारे की फसलों से स्वंय फीड तैयार करते हैं। अतिरिक्त समय में वे गन्ने के रस से गुड़ बनाते हैं और गांव वालों को बेचते हैं।

भविष्य की योजना:

भविष्य में वे अपने, फूलों की खेती के उद्यम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश

आजकल के किसान धान और गेहूं के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। उन्हें सोचना शुरू करना चाहिए और इस चक्र से बाहर निकलकर काम करना चाहिए यदि वे अच्छा कमाना चाहते हैं।

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”