अब्दुल रहमान

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एक मेहनती व्यक्ति को कोई नहीं रोक सकता- अब्दुल रहमान

जहां चाह, वहां राह, वैसे ही अगर ज़िंदगी में कुछ करने का सोच लिया तो उसे पूरा करके ही चैन की सांस लें। कृषि के क्षेत्र में कुछ इंसान ऐसे होते है, जो पारंपरिक खेती को छोड़कर कुछ ऐसा करते हैं जोकि बाकि लोगों के लिए मिसाल बनकर सामने आते हैं।

वर्ष 2009 में, राजस्थान सरकार ने गुजरात में स्थित एक कंपनी के साथ समझौता किया जिसका नाम अतुल लिमिटेड है और राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में खजूर की खेती पर काम करना शुरू कर दिया, जिसके परिणाम भी सफल रहे। इसके बाद सरकार ने किसानों को खेती की नई तकनीकों को अपनाने और उत्पाद की बाजार में मांग के बारे में प्रोत्साहित करना शुरू किया। फिर सरकार द्वारा खजूर के पौधे जोधपुर के किसानों को 90 प्रतिशत की सब्सिडी पर दिए गए, जिसमें एक पौधे की कीमत ₹2500 से घटाकर ₹225 कर दी गई।

अतुल कंपनी की टीम जोधपुर के हर एक क्षेत्र का निरीक्षण करती थी और किसानों को खजूर की खेती के बारे में बताती थी। जिसमें आने वाले वर्षों में खजूर की खेती करने का क्या फायदा होगा, उसके बारे में किसानों को जागरूक करती थी। एक दिन वह जब निरीक्षण करने गए थे तो उनकी मुलाकात श्री अब्दुल रहमान से हुई जो राजस्थान के जैसलमेर के एक गाँव तवारीवाला के रहने वाले है। जो कि वर्ष 1995 से पारंपरिक खेती करते आ रहे है जिसमें वे अरंडी, सरसों, प्याज और गेहूं उगाते थे लेकिन पूरी तरह से नई तकनीकों को अपनाना इतना आसान काम नहीं होता।

अब्दुल रहमान पहले तो झिझक रहे थे लेकिन अतुल टीम ने उन्हें भरोसा दिया कि वह उनका पूरा साथ देंगे। उसके बाद उन्हें 3 हेक्टेयर भूमि में खेती के लिए 465 पौधे दिए गए, जो खजूर की उगाई जाने वाली खुनैज़ी किस्म के थे। इस किस्म की खजूरें सबसे अच्छी गुणवत्ता के साथ स्वाद में भी लाजवाब होती है। इसकी पहली कटाई 5 साल बाद की जाती है। अब्दुल ने इसकी खेती 100 प्रतिशत जैविक तरीके से की और जब खजूर थोड़ी पकने लगी तो उस स्तिथि में ही खजूरों को बेचा। खजूर के पौधों की शाखाएं से बहुत मुनाफा होता है क्योंकि एक शाखा भी 800-900 रूपये में बिकती है। जबकि एक पौधे में कम से कम 10 शाखाएं होती हैं। अब्दुल रहमान शाखाओं को बेचकर प्रति वर्ष 8-9 लाख रुपए कमा लेते हैं। साल 2016 में सरकार ने खजूर की खेती की नई तकनीकें सीखने के लिए उनको इज़रायल भेज दिया। शुरुआती दिनों में, उन्हें काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा क्योंकि खरीदने वाले कम थे और उस समय लोगों को खजूरों के फायदों के बारे में पता भी नहीं था। उन्हें निकट के जिले पोखरण जाना पड़ता था जो कि 125 किलोमीटर दूर था। इसके अलावा, पानी और बिजली जैसे अन्य महत्वपूर्ण और बुनियादी संसाधन भी पर्याप्त नहीं थे।

श्री अब्दुल ने एक फार्म तैयार किया हुआ है, जिसमें पशुपालन के साथ मुर्गी पालन, बकरी पालन और डेयरी का भी काम रहे हैं। उनके पास स्थानीय नस्ल की ही पशु है, जिसमें 4 से 5 गायें हैं जो 15-20 लीटर दूध देती हैं और इसके अलावा 70-80 बकरियां और 100 मुर्गियां भी रखी हुई हैं। उनके द्वारा फसलों के लिए किया गया जैविक कचरे का उपयोग बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। आज उनकी प्रति वर्ष आय 10-15 के करीब होती है।

उपलब्धियां

  • आईसीएआर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इनोवेटिव फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया।
  • राजस्थान सरकार द्वारा 2016 में बेस्ट एग्री एंटरप्रेन्योर पुरस्कार दिया गया।
  • 2013 में गुजरात में 51000 के चैक के साथ राज्य स्तर पर पुरस्कार दिया गया।
  • 2011-12 में जिला स्तर पर पुरस्कार दिया गया।

भविष्य की योजनाएं

श्री अब्दुल खजूर की खेती को बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहते है और उसके साथ विभिन्न किस्मों की खेती करके प्रयोग करना चाहते हैं।

संदेश

श्री अब्दुल चाहते हैं कि अन्य किसान खजूर की खेती करें क्योंकि इस खेती में कम श्रम की आवश्यकता होती है। मौसम की बदलती परिस्थितियों से पौधा प्रभावित नहीं होता बस जड़ों को पानी में डुबाने और पौधे पर धूप की आवश्यकता होती है।

उडीकवान सिंह

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कम उम्र में मुश्किलों को पार कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाला 20 वर्षीय युवा किसान

“छोटी उम्र बड़ी छलांग” मुहावरा तो सभी ने सुना होगा पर किसी ने भी मुहावरे का पालन करने की कोशिश नहीं की, लेकिन बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो कि ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते।

लेकिन यहां इस मुहावरे की बात एक ऐसे युवक पर बिल्कुल फिट बैठती है जिसने इस मुहावरे को सच साबित कर दिया है और बाकि लोगों के लिए भी एक मिसाल कायम की है। इन्होंने ठेके पर जमीन ली और कम उम्र में सब्जी की खेती की और बुलंदियों को हासिल कर परिवार और गांव का नाम रोशन किया है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि हर इंसान का कुछ न कुछ करने का लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करता है। आज हम जिस युवक की हम बात करने वाले हैं, शुरू से ही उनकी दिलचस्पी खेती में थी और पढ़ाई में उनका ज़रा भी मन नहीं लगता था। इनका नाम उडीकवान सिंह है जो ज़िला फरीदकोट के गांव लालेयाणा के रहने वाले है। स्कूल में भी उनके मन में यही बात घूमती रहती थी कि कब वह घर जाकर अपने पिता जी के साथ खेत का दौरा करके आएंगे, मतलब कि उनका सारा ध्यान खेतों में ही रहता था।

उनके पिता मनजीत सिंह जी, जो मॉडर्न क्रॉप केयर केमिकल्स में कृषि सलाहकार के रूप में काम करते हैं, उनको हमेशा इस बात की चिंता रहती थी कि उनका एकलौता बेटा पढ़ाई को छोड़कर खेती के कामों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है लेकिन वह इसे बुरा नहीं कह रहे थे। उनका मानना था कि “बच्चे को खेत से जुड़ा रहना चाहिए पर अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और पढ़ाई छोड़नी नहीं चाहिए।”

लेकिन उनके पिता को क्या पता था कि एक दिन यह बेटा अपना नाम मशहूर करेगा, उडीकवान जी को बचपन से ही खेतों से लगाव था लेकिन इस प्यार के पीछे उनकी विशाल सोच थी जो हमेशा सवाल पूछती थी और फिर वह यह सवाल दूसरे किसानों से पूछते थे। जब उनके पिता खुद खेती करते थे और फसल बेचने के लिए बाजार जाते थे तो उडीकवान जी दूसरे किसनों से सवाल पूछने लग जाते थे कि अगर हम इस फसल को इस विधि से उगाएं तो इससे कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, जिस पर किसान हंसने लगते थे जो कि उडीकवान जी की सफलता का कारण बना।

इसके बाद उडीकवान जी के पिता मनजीत सिंह जी हमेशा काम के सिलसिले में दिन भर बाहर रहने लगे जिससे उनका ध्यान खेतों की तरफ कम होने लगा। तब उडीकवान जी ने खेती के कार्यों की तरफ ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और वह रोज़ाना खेतों में जाकर काम करने लगे। उस समय उडीकवान जी को लगा कि अब कुछ ऐसा करने का समय आ गया है जिसका उनको काफी लंबे समय से इंतज़ार था।

उस समय उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी। फिर उन्होंने खेती से जुड़े बड़े काम करने भी शुरू कर दिए और अपने पिता के कहने अनुसार पढ़ाई भी नहीं छोड़ी। लंबे समय तक उन्होंने पारम्परिक खेती की और महसूस किया कि कुछ अलग करना होगा।

उन्होंने इस मामले पर अपने पिता से चर्चा की और सब्जियों की खेती शुरू कर दी जिसमें मूल रूप से खाने वाली सब्ज़ियां ही हैं। वह अपने मन में आने वाले सवाल पूछते रहते थे और जब भी उडीकवान जी को खेती के कार्यों में कोई समस्या आती थी तो उनके पिता जी उनकी मदद करते थे और खेती के कई अन्य तरीकों से भी अवगत करवाते थे। वह हमेशा खेतों में अपने तरीकों का इस्तेमाल करते थे लेकिन परिणाम उन्हें थोड़े समय बाद मिला जब सब्जियां पककर तैयार हुईं। जिसमें से उनकी कद्दू की फसल काफी मशहूर हुई जिसमें से एक कद्दू 18 से 20 किलो का हुआ। अभी तक उडीकवान जी के सभी तरीके सब्ज़ियों की खेती में खरे उतरते आ रहे हैं जिनसे उनके पिता जी काफ़ी खुश हैं। इसके बाद उडीकवान जी ने खुद ही सब्ज़ियों को मंडी में बेचा। वह जिन सब्ज़ियों की मूल रूप से खेती करते थे उनके पकने पर वह सुबह उन्हें ले जाते थे और उन्होंने मंडी में उनकी मार्केटिंग करनी शुरू कर दी। उन्हें इस काम में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि मार्केटिंग करनी कैसे है।

लंबे समय तक सब्जियों की मार्केटिंग नहीं होने से उडीकवान जी काफ़ी निराश रहने लगे और उन्होंने बाजार में सब्जियां न बेचने का मन बनाकर मार्केटिंग बंद करने का फैसला किया। इस दौरान उनकी मुलाकात डॉ. अमनदीप केशव जी से हुई जो कि आत्मा में प्रोजेक्ट निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं और कृषि के बारे में किसानों को बहुत जागरूक करते हैं और उनकी काफी मदद भी करते हैं। इसलिए उन्होंने उडीकवान जी से पहले सब कुछ पूछा और खुश भी हुए क्योंकि कोई ही होगा जो इतनी छोटी उम्र में खेती के प्रति यह बातें सोच सकता है।

पूरी बात सुनने के बाद डॉ.अमनदीप ने उडीकवान जी को मार्केटिंग के कुछ तरीके बताये और उडीकवान जी के सोशल मीडिया और ग्रुप्स के ज़रिये खुद मदद की। जिससे उडीकवान जी की मार्केटिंग का सिलसिला शुरू हो गया जिससे उडीकवान जी काफ़ी खुश हुए।

इस बीच आत्मा किसान कल्याण विभाग ने आत्मा किसान बाजार खोला और उडीकवान जी को सूचित किया और उन्हें फरीदकोट में हर गुरुवार और रविवार को होने वाली सब्जियों को बाजार में बेचने के लिए कहा। तब उडीकवान जी हर गुरुवार और रविवार को सब्जी लेकर जाने लगे जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होने लगा और हर कोई उन्हें अच्छी तरह से जानने लगा और इस मंडी में उनकी मार्केटिंग भी अच्छे से होने लगी और 2020 तक आते-आते उनका सब्ज़ियों की मार्केटिंग में काफ़ी ज्यादा प्रसार हो गया और अभी वह इससे काफ़ी ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं और उनकी सफलता का राज उनके पिता मनजीत सिंह और आत्मा किसान कल्याण विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ.अमनदीप केशव जी हैं।

उडीकवान सिंह जी जिन्होंने 20 साल की उम्र में साबित कर दिया था कि सफलता के लिए उम्र जरूरी नहीं, इसके लिए केवल समर्पण और कड़ी मेहनत ज़रूरी है, भले ही उम्र छोटी ही क्यों न हो। 20 साल की उम्र में वह सोचते हैं कि आगे क्या करना है।

उडीकवान जी अब घरेलू उपयोग के लिए सब्ज़ियों की खेती कर रहे हैं जिसमें वह मल्चिंग विधि द्वारा भी सब्ज़ियां उगा रहे हैं।

भविष्य की योजनाएं

वह सब्जियों की संख्या बढ़ाकर और अंतरफसल पद्धति अपनाकर और अधिक प्रयोग करना चाहते हैं।

संदेश

यदि कोई व्यक्ति सब्जियों की खेती करना चाहता है, तो उसे सबसे पहले उन सब्जियों की खेती और विपणन करना चाहिए जो बुनियादी स्तर पर खाई जाती हैं, जिससे खेती के साथ-साथ आय भी होगी।

प्रदीप नत्त

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छोटी उम्र में ही कन्धों पर पड़ी जिम्मेवारियों को अपनाकर उन ऊपर जीत हांसिल करने वाला नौजवान

जिंदगी का सफर बहुत ही लंबा है जोकि पूरी जिंदगी काम करते हुए भी कभी खत्म नहीं होता, इस जिंदगी के सफर में हर एक इंसान का कोई न कोई मुसाफिर या साथी ऐसा होता है जोकि उसके साथ हमेशा रहता है, जैसे किसी के लिए दफ्तर में सहायता करने वाला कोई कर्मचारी, जैसे किसी पक्षी की थकावट दूर करने वाली पौधे की टहनी, इस तरह हर एक इंसान की जिंदगी में कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आज जिनके बारे में बात करने जा रहे हैं उनकी जिंदगी की पूरी कहानी इस कथन के साथ मिलती सी है, क्योंकि यदि एक साथ देने वाला इंसान जो आपके अच्छे या बुरे समय में आपके साथ रहता था, तो यदि वह अचानक से आपका साथ छोड़ दे तो हर एक काम जो पहले आसान लगता था वह बाद में अकेले करना मुश्किल हो जाता है, दूसरा आपको उस काम के बारे में कोई जानकारी नहीं होती।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान प्रदीप नत्त, जोकि गांव नत्त का रहने वाला है, जिसने छोटी आयु में अकेले ही कामयाबी की मंजिलों पर जीत पाई और अपने ज़िले बठिंडे में ऑर्गनिक तरीके के साथ सब्जियों की खेत और खुद ही मार्केटिंग करके नाम चमकाया।

साल 2018 की बात है जब प्रदीप अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेती करने लगा और उन्होंने शुरू से ही किसी के नीचे काम करने की बजाए खुद का काम करने के बारे में सोच रखा था, इसलिए वह खेती करने लगे और धीरे धीरे अपने पिता जी के बताएं अनुसार खेती करने लगे और लोग उन्हें खेतों का बेटा कहने लगे।

जब प्रदीप को फसल और खाद के बारे में जानकारी होने लगी उस समय 2018 में प्रदीप के पिता का देहांत हो गया जो उनके हर काम में उनके साथ रहते थे। जिससे घर की पूरी जिम्मेदारी प्रदीप जी पर आ गई और दूसरा उनकी आयु भी कम थी। प्रदीप ने हिम्मत नहीं हारी और खेती करने के जैविक तरीकों को अपनाया।

2018 में उन्‍होंने एक एकड़ में जैविक तरीके के साथ खेती करनी शुरू कर दी, बहुत से लोगों ने उसे इस काम को करने से रोका, पर उन्होनें किसी की न सुनी, उन्‍होंने सोचा कि अभी तक रसायनिक ही खा रहे हैं और पता नहीं कितनी बीमारियों को अपने साथ लगा लिया है, तो अभी शुद्ध और जैविक खाए जिससे कई बीमारियों से बचाव किया जा सके।

जैविक तरीके के साथ खेती करना 2018 से शुरू कर दिया था और जब जैविक खेती के बारे में पूरी जानकारी हो गई तो प्रदीप ने सोचा कि क्यों न कुछ अलग किया जाए और उनका ख्याल पारंपरिक खेती से हट कर सब्जियों की खेती करने का विचार आया। सितम्बर महीने की शुरुआत में उनहोंने कुछ मात्रा में भिंडी, शिमला मिर्च, गोभी आदि लगा दी और जैविक तरीके के साथ उनकी देखरेख करने लगे और जब समय पर सब्जियां पक कर तैयार हो जाए तो सबसे पहले प्रदीप ने घर में बना कर देखी और जब खाई तो स्वाद बहुत अलग था क्योंकि जैविक और रसायनिक तरीके के साथ उगाई गई फसल में जमीन आसमान का फर्क होता है।

फिर प्रदीप ने सब्जी बेचने के बारे में सोचा पर ख्याल आया कि लोग रसायनिक देख कर जैविक सब्जी को कैसे खरीदेंगे। फिर प्रदीप ने खुद मार्किट करने के बारे में सोचा और गांव गांव जाकर सब्जियां बेचने लगे और लोगों को जैविक के फायदे के बारे में बताने लगे जिससे लोगों को उस पर विश्वास होने लगा।

फिर रोजाना प्रदीप सब्जी बेचने मोटरसाइकिल पर जाता और शाम को घर वापिस आ जाता।एक बार वह अपने साथ नर्सरी के कार्ड छपवा कर ले गए और सब्जी के साथ देने लगे

फिर प्रदीप ने सोचा कि क्यों न बठिंडा शहर जाकर सब्जी बेचीं जाए और उसने इस तरह ही किया और शहर में लोगो की प्रतिक्रिया अच्छी थी जिसे देखकर वह खुद हुए और साथ साथ मुनाफा भी कमाने लगे।

इस तरह से 1 साल निकल गया और 2020 आते प्रदीप को पूरी तरह से सफलता मिल गई। जो प्रदीप ने 1 एकड़ से काम शुरू किया था उसे धीरे धीरे 5 एकड़ में फैला रहे थे जिसमें उनहोंने सब्जियों की खेती में विकास तो किया उसके साथ ही नरमे की खेती भी जैविक तरीके के साथ करनी शुरू की।

आज प्रदीप को घर बैठे ही सब्जियां खरीदने के लिए फ़ोन आते हैं और प्रदीप अपने ठेले पर सब्जी बेचने चले जाते हैं जिसमें सबसे अधिक फोन बठिंडे शहर से आते हैं जहां पर उनकी मार्केटिंग बहुत होती है और बहुत अधिक मुनाफा कमा रहे हैं।

छोटी आयु में ही प्रदीप ने बड़ा मुकाम पा लिया था, किसी को भी मुश्किलों से भागना नहीं चाहिए, बल्कि उसका मुकाबला करना चाहिए, जिसमें आयु कभी भी मायने नहीं रखती, जिसने मंजिलों को पाना होता है वह छोटी आयु में ही पा लेते हैं।

भविष्य की योजना

वह अपनी पूरी जमीन को जैविक में बदलना चाहते हैं और खेती जो रसायनिक खादों में बर्बाद की है उसे जैविक खादों द्वारा शक्तिशाली बनाना चाहते हैं।

संदेश

किसान चाहे बड़ा हो या छोटा हो हमेशा पहल जैविक खेती को देनी चाहिए, क्योंकि अपनी सेहत से अच्छा कुछ भी नहीं है और मुनाफा न देखकर अपने और दूसरों के बारे में सोच कर शुरू करें, आप भी शुद्ध चीजें खाएं और दूसरों को भी खिलाएं।

सिकंदर सिंह बराड़

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कृषि विभिन्ता को अपनाकर एक सफल किसान बनने वाले व्यक्ति की कहानी

कुछ अलग करने की इच्छा इंसान को धरती से आसमान तक ले जाती है। पर उसके मन में हमेश आगे बढ़ाने के इच्छा होनी चाहिए। आप चाहे किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हो, अपनी इच्छा और सोचा को हमेशा जागृत रखना चाहिए।

इस सोच के साथ चलने वाले सरदार सिकंदर सिंह बराड़, जोकि बलिहार महिमा, बठिंडा में रहते हैं और जिनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता सरदार बूटा सिंह पारंपरिक तरीके के साथ खेतीबाड़ी कर रहे हैं, जैसे गेहूं,धान आदि। क्या इस तरह नहीं हो सकता कि खेतीबाड़ी में कुछ नया या विभिन्ता लेकर आई जाए।

मेरे कहने का मतलब यह है कि हम खेती करते हैं पर हर बार हर साल वही फसलें उगाने की बजाए कुछ नया क्यों नहीं करते- सिकंदर सिंह बराड़

वह हमेशा खेतीबाड़ी में कुछ अलग करने के बारे में सोचा करते थे, जिसकी प्रेरणा उन्हें अपने नानके गांव से मिली। उनके नानके गांव वाले लोग आलू की खेती बहुत अलग तरीके के साथ करते थे, जिससे उनकी फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती थी।

जब मैं मामा के गांव की खेती के तरीकों को देखता था तो मैं बहुत ज्यादा प्रभवित होता था – सिकंदर सिंह बराड़

जब सिकंदर सिंह ने 1983 में सिरसा में डी. फार्मेसी की पढ़ाई शुरू की उस समय एस. शमशेर सिंह जो कि उनके बड़े भाई हैं, पशु चिकित्सा निरीक्षक थे और अपने पिता के बाद खेती का काम संभालते थे। उस समय जब दोनों भाइयों ने पहली बार खेतीबाड़ी में एक अलग ढंग को अपनाया और उनके द्वारा अपनाये गए इस तकनिकी हुनर के कारण उनके परिवार को काफी अच्छा मुनाफ़ा हुआ।

जब अलग तरीके अपनाने के साथ मुनाफा हुआ तो मैंने 1984 में D फार्मेसी छोड़ने का फैसला कर लिया और खेतबाड़ी की तरह रुख किया- सिकंदर सिंह बराड़

1984 में D फार्मेसी छोड़ने के बाद उन्होंने खेतीबाड़ी करनी शुरू कर दी। उन्होंने सबसे पहले नरमे की अधिक उपज वाली किस्म की खेती करनी शुरू की।

इस तरह छोटे छोटे कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए वह सब्जियों की खेती ही करते रहे, जहां पर उन्होंने 1987 में टमाटर की खेती आधे एकड़ में की और फिर बहुत सी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किए और अपने इस व्यवसाय को आगे से आगे बढ़ाते रहे।

1990 में विवाह के बाद उन्होंने आलू की खेती बड़े स्तर पर करनी शुरू की और विभिन्ता अपनाने के लिए 1997 में 5000 लेयर मुर्गियों के साथ पोल्ट्री फार्मिंग की शुरुआत की, जिसमें काफी सफलता हासिल हुई। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के 5 ओर किसानों को पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय को सहायक व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के लिए उत्साहित किया, जिसके साथ उन किसानों को स्व निर्भर बनने में सहायता मिली। 2005 में उन्होंने 5 रकबे में किन्नू का बाग लगाया। इसके इलावा उन्होंने नैशनल सीड कारपोरेशन लिमिटेड के लिए 15 एकड़ जमीन में 50 एकड़ रकबे के लिए गेहूं के बीज तैयार किया।

मुझे हमेशा कीटनाशकों और नुकसानदेह रसायन के प्रयोग से नफरत थी, क्योंकि इसका प्रयोग करने के साथ शरीर को बहुत नुक्सान पहुंचता है- सिकंदर सिंह बराड़

सिकंदर सिंह बराड़ अपनी फसलों के लिए अधिकतर जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। वह अब 20 एकड़ में आलू, 5 एकड़ में किन्नू और 30 एकड़ में गेहूं के बीजों का उत्पादन करते हैं। इसके साथ ही 2 एकड़ में 35000 पक्षियों वाला पोल्ट्री फार्म चलाते हैं।

बड़ी बड़ी कंपनी जिसमें पेप्सिको,नेशनल सीड कारपोरेशन आदि शामिल है, के साथ साथ काम कर सकते हैं, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना की तरफ से प्रमुख पोल्ट्री फार्मर के तौर पर सम्मानित किया गया। उन्हें बहुत से टेलीविज़न और रेडियो चैनल में आमंत्रित किया गया, ताकि खेती समाज में बदलाव, खोज, मंडीकरण और प्रबंधन संबंधी जानकारी ओर किसानों तक भी पहुँच सके।

वे राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खेती मेले और संस्था का दौरा कर चुके हैं।

भविष्य की योजना

सिकंदर सिंह बराड़ भविष्य में भी अपने परिवार के साथ साथ अपने काम को ओर आगे लेकर जाना चाहते हैं, जिसमें नए नए बदलाव आते रहेंगे।

संदेश

जो भी नए किसान खेतीबाड़ी में कुछ नया करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि कुछ भी शुरू करने से पहले उससे संबंधित माहिर या संस्था से ट्रेनिंग ओर सलाह ली जाए। उसके बाद ही काम शुरू किया जाए। इसके इलावा जितना हो सके कीटनाशकों और रसायन से बचना चाहिए और जैविक खेती को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

मलविंदर सिंह

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खेती के तरीकों को बदलकर क्रांति लेकर आने वाला यह प्रगतिशील युवा किसान

ज्यादातर इस दुनिया में कोई भी किसी का कहना नहीं मानता बेशक वह बात हमारी भलाई के लिए ही क्यों ना की जाए पर उसका अहसास बहुत समय बाद जाकर होता है, पर किसी द्वारा एक छोटी सी हंसी में ही बोली गई बात पर अमल करके अपने खेती के तरीके को बदल लेना, किसी ने सोचा नहीं था और क्या पता था कि एक दिन वह उसकी कामयाबी का ताज बनकर सिर पर सज जाएगा।

इस स्टोरी के द्वारा जिनकी बात करने जा रहे हैं उन्होंने आर्गेनिक तरीके को अपनाकर और फूड प्रोसेसिंग करके मंडीकरण में ऐसी क्रांति लेकर आए कि ग्राहकों द्वारा हमेशा ही उनके उत्पादों की प्रशंसा की गई, जो कि तब मलविंदर सिंह जो पटियाला जिले के रहने वाले हैं, उनकी तरफ से एक छोटे स्तर पर शुरू किया कारोबार था जो आज पूरे पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा और दिल्ली में बड़े स्तर पर फैल गया है।

आज कल की इस भागदौड़ की दुनिया में बीमार होना एक आम बात हो गई है इसी दौरान ही मलविंदर जी जब छोटे होते बीमार हुए जिसका कारण एलर्जी था तो उनके पिता दवाई लेने के लिए डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने दवाई देकर आगे से कहा कि भाई, कीटनाशक स्प्रे के उपयोग को घटाएं, यदि बीमारियों से छुटकारा पाना चाहते है। यह बात सुनकर मलविंदर के पिता जी के मन में बात इस तरह बैठ गई कि उन्होंने स्प्रेओं का उपयोग करना ही बंद कर दिया।

उसके बाद वे बिना स्प्रे से खेती करने लगे जिसमें गेहूं, बासमती, सरसों और दालें जो कि एक एकड़ में करते थे, जो 2014 में पूरी तरह जैविक हो गई और इस तरह खेती करते-करते बहुत समय हो गया था और वर्ष 2014 में ही मलविंदर के पिता जी स्वर्ग सिधार गए जिसका मलविंदर और उनके परिवार को बहुत ही ज्यादा दुख हुआ क्योंकि हर समय परछाई बनकर साथ रहने वाला हाथ सिर से सदा के लिए उठ गया था और घर की ज़िम्मेवारी संभालने वाले उनके पिता जी थे, उस समय मलविंदर अपने पढ़ाई कर रहे थे।

जब यह घटना घटी तो मलविंदर जी को कोई ख्याल नहीं था कि घर की पूरी ज़िम्मेवारी उन्हें ही संभालनी पड़नी है, जब थोड़े समय बाद घर में माहौल सही हुआ तो मलविंदर ने महसूस किया और पढ़ाई के साथ-साथ खेती में आ गए और कम समय में ही खेती को अच्छी तरह जानकर काम करने लगे जो कि बहुत हिम्मत वाली बात है, इस दौरान वे खेती संबंधी रिसर्च करते रहते थे क्योंकि एक पढ़ा लिखा नौजवान जब खेती में आता है तो वह कुछ ना कुछ परिवर्तन लेकर ही आएगा। मलविंदर ने वैसे तो पढ़ाई में बी ए, एम ए, एम फिल की हुई है।

मलविंदर जी जब रिसर्च कर रहे थे उस दौरान उन्हें फूड प्रोसेसिंग और मार्केटिंग करने का ख्याल आया, पर उसे वास्तविक रूप में लेकर नहीं आ रहे थे। उनके पास कुल 30 एकड़ ज़मीन हैऔर वे 2 भाई हैं, उस समय जब उन्होंने खेती को संभाला था तब वे एक एकड़ में ही स्प्रे रहित खेती करते थे जिसमें वे सिर्फ अपने घर के लिए ही उगा रहे थे पर कभी भी मार्केटिंग करने के बारे में सोचा नहीं था।

इस तरह खेती करते उन्हें 5 साल हो गए थे और उसके बाद सोचा कि अब की हुई रिसर्च को वास्तविक रूप में लेकर आने का समय आ गया है क्योंकि 2014 में वे पूरी तरह आर्गेनिक खेती करने लग गए थे, बेशक वे पहले भी स्प्रे रहित खेती करते थे पर अब पूरी तरह आर्गेनिक तरीकों से ही खेती कर रहे थे। मलविंदर ने सोचा कि यदि आर्गेनिक दालें, हल्दी, गेहूं और बासमती की प्रोसेसिंग करके बेचा जाए तो इस संबंधित देरी ना करते हुए सभी उत्पाद तैयार कर लिए क्योंकि आज कल बीमारियों ने घर-घर में राज़ कर लिया है जिस कारण हर कोई साफ, शुद्ध और देसी खाना चाहता है ताकि बीमारियों से बचा जा सके। यह ही मलविंदर की सबसे महत्तवपूर्ण धारणा थी पर इसलिए उस तरह के इंसान भी जरूरी थे जिन्हें इन सब उत्पादों की अहमियत के बारे में पता हो।

फिर मलविंदर ने अपने उत्पादों की मार्केटिंग करने के लिए एक ऐसा ही रास्ता सोचा कि जिससे उसके बारे में सभी को पता चल सके जो सोशल मीडिया थी वहां उन्होंने नीलोवालिया नैचुरल फार्म नाम से पेज बनाया और उत्पाद की फोटो खींच कर डालने लग गए और बहुत लोग उनसे जुड़ने लग गए पर किसी ने भी पहल नहीं की। इस संबंधी उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से बात की जो शहर में रहते थे उनके साथ और भी बहुत लोग जुड़े हुए थे जो कि हमेशा अच्छे उत्पादों की मांग करते थे जो कि मलविंदर के लिए बहुत बड़ी सफलता थी। इसमें सभी जान पहचान वालों ने पूरा साथ दिया जिस तरह धीरे-धीरे करके उनके एक-एक उत्पाद की मार्केटिंग होने लग गई, जिससे बेशक उनके मार्केटिंग का काम चल पड़ा था और इस दौरान वे पढ़ाई भी साथ-साथ कर रहे थे और जब कॉलेज जाते थे वहां हमेशा ही उनके प्रोफेसर मलविंदर से बातचीत करते और फिर वे अपने आर्गेनिक उत्पादों के बारे में उन्हें बताने लग जाते जिससे उनके उत्पाद प्रोफेसर भी लेने लगे और मार्केटिंग में प्रसार होने लग गया।

इससे मलविंदर ने सोचा कि क्यों ना शहर के लोगों के साथ मीटिंग करके अपने उत्पादों के बारे में अवगत करवाया जाए जिसमें उनके प्रोफेसर, रिश्तेदारों और दोस्तों के द्वारा जो अच्छे तरीके से उन्हें जानते थे मीटिंग बुला ली। जब उन्होंने अपने उत्पादों के बारे में लोगों को अवगत करवाया तो एक-एक उत्पाद करके लेकर जाना शुरू कर दिया।

इस तरह करते हुए साल 2016 के अंत तक मलविंदर ने अपने साथ पक्के ग्राहक जोड़ लिए जो कि तकरीबन 80 के करीब हैं और हमेशा ही उनसे सामान लेते हैं और साथ ही उन्होंने अपने खेती में भी वृद्धि कर दी एक एकड़ से शुरू की खेती को 3 एकड़ में करना शुरू कर दिया जिससे उनका मार्केटिंग में इतनी जल्दी प्रसार हुआ कि जहां वे एक उत्पाद खरीदते थे वहीं उनके और उत्पाद की भी बिक्री होने लग गई।

2016 में मलविंदर जी कामयाब हुए और उस समय उन्होंने 2018 में सब्जियों की काश्त करनी भी शुरू कर दी, जिसकी बहुत ज्यादा मांग है साल 2021 तक आते आते उन्होंने 3 एकड़ की खेती को 8 एकड़ में फैला दिया जिसमें घर में हर एक उपयोग में आने वाली वस्तुएं उगाने लगे और उनकी प्रोसेसिंग करते हैं। इस दौरान एक ट्रॉली भी तैयार की हुई है जो कि पूरी तरह पोस्टर लगाकर सजाई हुई है और इसके साथ एक किसान हट भी खोली हुई है जहां सारा शुद्ध, साफ और आर्गेनिक सामान रखा हुआ है, उन्होंने प्रोसेसिंग करने के लिए मशीनें रखी हुई हैं और उत्पाद की बढ़िया तरीके से पैकिंग करके नीलोवालिया नैचुरल फार्म नाम से बेच रहे हैं।

जिससे जो काम उन्होंने पहले छोटे स्तर पर शुरू किया था उसके चर्चे अब पूरे पंजाब में है और पढ़े लिखे इस नौजवान ने साबित किया कि खेती केवल खेतों में मिट्टी से मिट्टी होना ही नहीं, बल्कि मिट्टी में से निकलकर लोगों के सामने निखर कर सामने लेकर आना और उसे रोजगार बनाना ही खेती है।

भविष्य की योजना

वे खेती में हर एक चीज़ का तज़ुर्बा करना चाहते हैं और मार्केटिंग चैनल बनाना चाहते हैं जिससे वे अपने और साथ के किसानों की सारी उपज स्वयं मंडीकरण करके बेच सकें और किसानों को अपनी मेहनत का मुल्य मिल सके।

संदेश

खेती बेशक करो पर वह करो जिससे किसी की सेहत के साथ खिलवाड़ ना हो और यदि हो सके तो ओरगैनिक खेती को ही पहल दें यदि खुशहाल इस दुनिया को देखना चाहते हैं और कोशिश करते रहें कि अपनी फसल स्वंय मंडीकरण करके बेच सकें।

राजविंदर सिंह खोसा

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अपाहिज होने के बाद भी बिना किसी सरकारी सहायता से कामयाबी हासिल करने वाला यह किसान

नए रास्ते में बाधाएं आती हैं, लेकिन उनका समाधान भी जरूर होता है।

आज आप जिस किसान की कहानी पढ़ेंगे वह शारीरिक रूप से विकलांग है, लेकिन उसका साहस और जज्बा ऐसा है कि वह दुनिया को जीतने का दम रखता है।

जिला फरीदकोट के गांव धूड़कोट का साहसी किसान राजविंदर सिंह खोसा जिसने बारहवीं, कंप्यूटर, B.A और सरकारी आई टी आई फरीदकोट से शार्ट हैंड स्टेनो पंजाबी टाइपिंग का कोर्स करने के बाद नौकरी की तलाश की, पर कहीं पर भी नौकरी न मिली और हार कर वह अपने गांव में गेहूं/धान की खेती करने लगे।

यह बात साल 2009 की है जब राजविंदर सिंह खोसा पारंपरिक खेती ही करते थे और इसके साथ-साथ अपने घर खाने के लिए ही सब्जियों की खेती करते थे जिसमें वह सिर्फ कम मात्रा में ही थोड़ी बहुत सब्जियां ही लगाते और बहुत बार जैसे गांव वाले आकर ले जाते थे पर उन्होंने कभी सब्जियों के पैसे तक नहीं लिए थे।

यह बहुत दिनों तक चलता रहा और वे सब्जियों की खेती करते रहे, लेकिन कम मात्रा में, लेकिन 2019 में कोविड की वजह से लॉकडाउन के कारण दुनिया को सरकार के आदेश के अनुसार अपने घरों तक ही सीमित रहना पड़ा और खाने-पीने की समस्या हो गई। खाना या सब्जी कहाँ से लेकर आए तो इसे देखते हुए जब राजविंदर खोसा जी घर आए तो वह सोच रहे थे कि यदि पूरी दुनिया घर बैठ गई तो खाना-पीना कैसे होगा और इसमें सबसे जरुरी था शरीर की इम्युनिटी बनाना और वह तब ही मजबूत हो सकती थी यदि खाना-पीना सही हो और इसमें सब्जियों की बहुत महत्ता है।

इसे देखते हुए राजविंदर ने सोचा और सब्जी के काम को बढ़ाने के बारे में सोचा। धीरे-धीरे राजविंदर ने 12 मरले में सब्जियों की खेती में जैसे भिंडी, तोरी, कद्दू, चप्पन कद्दू, आदि की सब्जियों की गिनती बढ़ानी शुरू कर दी और जो सब्जियां अगेती लगा और थोड़े समय में पक कर तैयार हो जाती है, सबसे पहले उन्होनें वहां से शुरू किया।

जब समय पर सब्जियां पक कर तैयार हुई तो उन्होनें सोचा कि इसे मंडी में बेच कर आया जाए पर साथ ही मन में ख्याल आया कि क्यों न इसका मंडीकरण खुद ही किया जाए जो पैसा बिचौलिए कमा रहे हैं वह खुद ही कमाया जाए।

फिर राजविंदर जी ने अपनी मारुती कार सब्जियों में लगा दी, सब्जियां कार में रख कर फरीदकोट शहर के नजदीकी लगती नहरों के पास सुबह जाकर सब्जियां बेचने लगे, पर एक दो दिन वहां बहुत कम लोग सब्जी खरीदने आए और घर वापिस निराश हो कर आए, लेकिन उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और सोचा कल किसी ओर जगह लगा कर देखा जाए जहां पर लोगों का आना जाना हो। जैसे राजविंदर जी कार में बैठ कर जाने लगे तो पीछे जसपाल सिंह नाम के व्यक्ति ने आवाज लगाई कि सुबह-सुबह लोग डेयरी से दूध और दही लेने के लिए आते हैं क्या पता तेरी सब्जी वाली कार देखकर सब्जी खरीदने लग जाए, सुबह के समय सब्जी बेच कर देखें।

राजविंदर सिंह जी उसकी बात मानते फिर DC रिहाइश के पास डेयरी के सामने सुबह 6 बजे जाकर सब्जी बेचने लगे, जिससे कुछ लोगों ने सब्जी खरीदी। राजविंदर सिंह खोसा को थोड़ी ख़ुशी भी हुई और अंदर एक उम्मीद की रौशनी जगने लगी और अगले दिन सुबह 6 बजे जाकर फिर सब्जी बेचने लगे और कल से आज सब्जी की खरीद अधिक हुई देखकर बहुत खुश हुए।

राजविंदर जी ने सुबह 6 बजे से सुबह 9 बजे तक का समय रख लिया और इस समय भी वह सब्जियों को बेचते थे। ऐसा करते-करते उनकी लोगों के साथ जान-पहचान बन गई जिसके साथ उनकी सब्जियों की मार्केटिंग में दिनों दिन प्रसार होने लगा।

राजविंदर सिंह जी ने देखा कि मार्केटिंग में प्रसार हो रहा है तो अगस्त 2020 खत्म होते उनके 12 मरले से शुरू किए काम को धीरे-धीरे एक एकड़ में फैला लिया और बहुत सी नई सब्जियां लगाई, जिसमें गोभी, बंदगोभी, मटर, मिर्च, मूली, साग, पालक, धनिया, मेथी, अचार, शहद आदि के साथ-साथ राजविंदर सिंह विदेशी सब्जियां भी पैदा करने लगे, जैसे पेठा, सलाद पत्ता, शलगम, और कई सब्जियां लगा दी और उनकी मार्केटिंग करने लगे।

वैसे तो राजविंदर जी सफल तो तभी हो गए थे जब उनके पास एक औरत सब्जी खरीदने के लिए आई और कहने लगी, मेरे बच्चे सेहतमंद चीजें जैसे मूलियां आदि नहीं खाते, तो राजविंदर ने कहा, एक बार आप मेरी जैविक बगीची से उगाई मूली अपने बच्चों को खिला कर देखें, औरत ने ऐसा किया और उसके बच्चे मूली स्वाद से खाने लगे। जब औरत ने राजविंदर को बताया तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई। फिर शहर के लोग उनसे जुड़े और सब्जी का इंतजार करने लगे।

इसके साथ साथ वह पिछले बहुत अधिक समय से धान की सीधी बिजाई भी करते आ रहे हैं ।

आज उनकी मार्केटिंग में इतना अधिक प्रसार हो चूका है कि फरीदकोट के सफल किसानों की सूची में राजविंदर का नाम भी चमकता है ।

राजविंदर खेती का पूरा काम खुद ही देखते हैं, सब्जियों के साथ वह ओर खेती उत्पाद जैसे शहद, अचार का खुद मंडीकरण कर रहे है, जिससे उनके बहुत से लिंक बन गए हैं और मंडीकरण में उन्हें कोई समस्या नहीं आती ।

खास बात यह भी है कि उन्होंने यह सारी सफलता बिना किसी सरकारी सहायता से अपनी मेहनत द्वारा हासिल की है।

सिर्फ मेहनत ही नहीं राजविंदर सिंह खोसा टेक्नोलॉजी के मामले भी अप टू डेट रहते है, क्योंकि सोशल मीडिया का सही प्रयोग करके अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करते हैं।

भविष्य की योजना

वे सब्जियों की खेती तो कर रहे हैं पर वह सब्जियों की मात्रा ओर बढ़ाना चाहते हैं ताकि लोगों को साफ सब्जी जोकि जहर मुक्त पैदा करके शहर के लोगों को प्रदान की जाए, जिससे खुद को स्वास्थ्य बनाया जाए।

कम खर्चे और कड़ी मेहनत करने वाले राजविंदर सिंह जी अच्छे मान-सम्मान के पात्र है।

संदेश

यदि कोई छोटा किसान है तो उसने पारंपरिक खेती के साथ-साथ कोई ओर छोटे स्तर पर सब्जियों की खेती करनी है तो वह जैविक तरीके के साथ ही शुरू करनी चाहिए और सब्जियों को मंडी में बेचें की बजाए खुद ही जाकर बेचे तो इससे बड़ी बात कोई भी नहीं, क्योंकि व्यवसाय कोई भी हो हमें काम करने के समय शर्म नहीं महसूस होनी चाहिए, बल्कि अपने आप पर गर्व होना चाहिए।

प्रियंका गुप्ता

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एक होनहार बेटी जो अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए मेहनत कर रही है

आज-कल के ज़माने में जहाँ बच्चे माता-पिता को बोझ समझते हैं, वहां दूसरी तरफ प्रियंका गुप्ता अपने पिता के देखे हुए सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है।

एम.बी.ए. फाइनांस की पढ़ाई पूरी कर चुकी प्रियंका का बचपन पंजाब के नंगल में बीता। प्रियंका के पिता बदरीदास बंसल बिजली विभाग, भाखड़ा डैम में नियुक्त थे जो कि नौकरी के साथ-साथ अपने खेती के शौंक को भी पूरा कर रहे थे। उनके पास घर के पीछे थोड़ी सी ज़मीन थी, जिस पर वह सब्जियों की खेती करते थे। 12 साल नंगल में रहने के बाद प्रियंका के पिता का तबादला पटियाला में हो गया और उनका पूरा परिवार पटियाला में आकर रहने लगा। यहाँ इनके पास बहुत ज़मीन खाली थी जिस पर वह खेती करने लग गए। इसके साथ ही उन्होंने अपना घर बनाने के लिए संगरूर में अपना प्लाट खरीद लिया।

बदरीदास जी बिजली विभाग में से चीफ इंजीनियर रिटायर हुए। इसके साथ ही उनके परिवार को पता लगा कि प्रियंका के माता जी (वीना बंसल) कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं और इस बीमारी से लड़ते-लड़ते वह दुनिया को अलविदा कह गए।

वीना बंसल जी के देहांत के बाद बदरीदास जी ने इस सदमे से उभरने के लिए अपना पूरा ध्यान खेती पर केंद्रित किया। उन्होंने संगरूर में जो ज़मीन घर बनाने के लिए खरीदी थी उसके आस-पास कोई घर नहीं और बाजार भी काफी दूर था तो उनके पिता ने उस जगह की सफाई करवाकर वहां पर सब्जियों की खेती करनी शुरू की। 10 साल तक उनके पिता जी ने सब्जियों की खेती में काफी तजुर्बा हासिल किया। रिश्तेदार भी उनसे ही सब्जियां लेकर जाते हैं। पर अब बदरीदास जी ने खेती को अपने व्यवसाय के तौरपर अपनाने के मन बना लिया।

पर बदरीदास जी की सेहत ज़्यादा ठीक नहीं रहती थी तो प्रियंका ने अपने पिता की मदद करने का मन बना लिया और इस तरह प्रियंका का खेती में रुझान और बढ़ गया।

वह पहले पंजाब एग्रो के साथ काम करते थे पर पिता की सेहत खराब होने के कारण उनका काम थोड़ा कम हो गया। इस बात का प्रियंका को दुख है क्योंकि पंजाब एग्रो के साथ मिलकर उनका काम बढ़िया चल रहा था और सामान भी बिक जाता था। इसके बाद संगरूर में 4-5 किसानों से मिलकर एक दुकान खोली पर कुछ कमियों के कारण उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी।

अब उनका 4 एकड़ का फार्म संगरूर में है पर फार्म की ज़मीन ठेके पर ली होने के कारण वह अभी तक फार्म का रजिस्ट्रेशन नहीं करवा सके क्योंकि जिनकी ज़मीन है, वह इसके लिए तैयार नहीं है।

पहले-पहले उन्हें मार्केटिंग में समस्या आई पर उनकी पढ़ाई के कारण इसका समाधान भी हो गया। अब वह अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय खेती को देने लगे। वह पूरी तरह जैविक खेती करते हैं।

ट्रेनिंग:

प्रियंका ने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना से बिस्कुट और स्कवैश बनाने की ट्रेनिंग के साथ-साथ मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग भी ली, जिससे उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।

प्रियंका के पति कुलदीप गुप्ता जो एक आर्किटेक्ट हैं, के बहुत से दोस्त और पहचान वाले प्रियंका द्वारा तैयार किये उत्पाद ही खरीदते हैं।

“लोगों का सोचना है कि आर्गेनिक उत्पाद की कीमत ज़्यादा होती है पर कीमत का कोई ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता। कीटनाशकों से तैयार किये गए उत्पाद खाकर सेहत खराब करने से अच्छा है कि आर्गेनिक उत्पादों का प्रयोग किया जाये, क्योंकि सेहत से बढ़कर कुछ नहीं”- प्रियंका गुप्ता
प्रियंका द्वारा तैयार किये कुछ उत्पाद:
  • बिस्कुट (बिना अमोनिया)
  • अचार
  • वड़ियाँ
  • काले छोले
  • साबुत मसर
  • हल्दी
  • अलसी के बीज
  • सोंफ
  • कलोंजी
  • सरसों
  • लहसुन
  • प्याज़
  • आलू
  • मूंगी
  • ज्वार
  • बाजरा
  • तिल
  • मक्की देसी
  • सभी सब्जियां
पेड़
  • ब्रह्मी
  • स्टीविया
  • हरड़
  • आम
  • मोरिंगा
  • अमरुद
  • करैनबेरी
  • पुदीना
  • तुलसी
  • नींबू
  • खस
  • शहतूत
  • आंवला
  • अशोका

यह सब उत्पाद बनाने के अलावा प्रियंका मधुमक्खी पालन और पोल्ट्री का काम भी करते हैं, जिसमें उनके पति भी उनका साथ देते हैं।

“हम मोनो क्रॉपिंग नहीं करते, अकेले धान और गेहूं की बिजाई नहीं करते, हम अलग-अलग फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, मक्की इत्यादि की बिजाई भी करते हैं।” – प्रियंका गुप्ता
उपलब्धियां:
  • प्रियंका 2 बार वोमेन ऑफ़ इंडिया ऑर्गेनिक फेस्टिवल में हिस्सा ले चुकी है।
  • छोटे बच्चों को बिस्कुट बनाने की ट्रेनिंग दी।
  • जालंधर रेडियो स्टेशन AIR में भी हिस्सा ले चुके हैं।
भविष्य की योजना:

भविष्य में यदि कोई उनसे सामान लेकर बेचना चाहता है तो वह सामान ले सकते हैं ताकि प्रियंका अपना पूरा ध्यान क्वालिटी बढ़ाने में केंद्रित कर सकें और अपने पिता का सपना पूरा कर सकें।

किसानों को संदेश
“मेहनत तो हर काम में करनी पड़ती है। मेहनत के बाद तैयार खड़ी हुई फसल को देखकर और ग्राहकों द्वारा तारीफ सुनकर जो संतुष्टि मिलती है , उसकी शब्दों में व्याख्या नहीं की जा सकती।”

गुरप्रीत सिंह अटवाल

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जानिये कैसे ये किसान जैविक खेती को सरल तरीके से करके सफलता हासिल कर रहे हैं

35 वर्षीय गुरप्रीत सिंह अटवाल एक प्रगतिशील जैविक किसान है जो जिला जालंधर (पंजाब) के एक छोटे से नम्र और मेहनती परिवार से आये हैं। लेकिन सफलता के इस स्तर पर पहुंचने से पहले और अपने समाज के अन्य किसानों को प्रेरणा देने से पहले, श्री अटवाल भी अपने पिता और आसपास के अन्य किसानों की तरह रासायनिक खेती करते थे।

12वीं के बाद श्री गुरप्रीत सिंह अटवाल ने कॉलेज की पढ़ाई करने का फैसला किया, उन्होंने स्वंय जालंधर के खालसा कॉलेज में बी. ए. में दाखिला लिया। लेकिन जल्दी ही दिमाग में कुछ अन्य विचारों के कारण उन्होंने पहले वर्ष में ही कॉलेज छोड़ दिया और अपने चाचा और पिता के साथ खेतीबाड़ी करने लगे। खेती के साथ साथ वे 2006 में युवा अकाली दल के प्रधान के चुनाव में भी खड़े हुए और इसे जीत भी लिया। समय के साथ श्री अटवाल, 2015 में जिला स्तर पर उसी संगठन के प्रधान से वरिष्ठ प्रधान बन गए।

लेकिन शायद खेती में,किस्मत उनके साथ नहीं थी और उन्हें लगातार नुकसान और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। धान और ग्वार की खेती में उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा था इसलिए 2014 में उन्होंने हल्दी की खेती करने का फैसला किया लेकिन वह भी उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। क्योंकि वे बाज़ार में उचित तरीके से अपनी फसल को बेचने में सक्षम नहीं थे। अंत में, उन्होंने हल्दी से हल्दी पाउडर बनाया और गुरूद्वारों और मंदिरों में मुफ्त में बांट दिया। इस तरह की स्थिति का सामना करने के बाद, गुरप्रीत सिंह अटवाल ने फैसला किया कि वे खुद सभी उत्पादों का मंडीकरण करेंगे और बिचौलिये पर निर्भर नहीं रहेंगे।

उसी वर्ष, गुरप्रीत सिंह अटवाल को अपने पड़ोसी गांव के भंगु फार्म के बारे में पता चला। भंगु फार्म का दौरा श्री अटवाल के लिए इतना प्रेरणादायक था कि उन्होंने जैविक खेती करने का फैसला किया। हालांकि भंगु फार्म में गन्ने की खेती और प्रोसेसिंग होती थी लेकिन वहां से जैविक कृषि तकनीकों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हुई और उसी आधार पर, उन्होंने अपने परिवार के लिए 2.5 एकड़ भूमि पर सब्जियों की जैविक खेती शुरू की।

अब गुरप्रीत सिंह अटवाल ने अपने फार्म पर लगभग जैविक खेती शुरू कर दी है और उपज भी पहले से बेहतर है। वे मक्की, गेहूं, धान, गन्ना और मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं और भविष्य में वे गेहूं का आटा और मक्की का आटा प्रोसेस करने की योजना बना रहे हैं। इसी बीच, श्री अटवाल ने भोगपुर शहर में 2 किलोमीटर के क्षेत्र में फार्म में उत्पादित ताजा सब्जियों की होम डिलीवरी शुरू की है।

जैविक खेती के अलावा, गुरप्रीत सिंह अटवाल डेयरी फार्मिंग में भी सक्रिय रूप से शामिल है। उन्होंने घरेलु उपयोग के लिए गायें और भैंसों की स्वदेशी नस्लें रखी हुई है और अधिक दूध गांव में बेच देते हैं।

भविष्य की योजना
गुरप्रीत सिंह अटवाल पंजाब स्तर पर और फिर भारत स्तर पर एक जैविक स्टोर खोलने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
प्रत्येक किसान को जैविक खेती करनी चाहिए यदि बड़े स्तर तक संभव ना हो तो इसे कम से कम घर के उद्देश्य के लिए छोटे क्षेत्र में करने की कोशिश करनी चाहिए। इस तरह, वे अपनी ज़िंदगी में एक अंतर बना सकते हैं और इसे बेहतर बना सकते हैं।

गुरप्रीत सिंह अटवाल एक प्रगतिशील किसान है जो ना केवल अपने फार्म पर जैविक खेती कर रहे हैं बल्कि अपने गांव के अन्य किसानों को इसे अपनाने की प्रेरणा भी दे रहे हैं। वे डीकंपोज़र की सहायता से कुदरती कीटनाशक और खादें तैयार करते हैं और इसे किसानों में भी बांटते हैं अपने कार्यों से गुरप्रीत अटवाल ने यह साबित कर दिया है कि वे दूर की सोच रखते हैं और वर्तमान और कठिन समय का डट कर सामना करते हैं और सफलता हासिल करते हैं।

दविंदर सिंह मुशकाबाद

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भारत में विदेशी कृषि के मॉडल को लागू करके सफलता प्राप्त करता यह किसान

भारतीयों में विदेश जाने और वहां बसने की बढ़ रही मानसिकता सामान्य है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें वहां जाकर क्या करना है, भले ही वह एक सफाई कर्मचारी की नौकरी हो या अन्य मजदूर वाली नौकरी। लेकिन यदि उन्हें वही काम अपने देश में करना पड़े तो उन्हें शर्म महसूस होती है। हां, यह तथ्य सच है कि वहां विदेश में काम करने में अधिक पैसा है लेकिन क्या होगा यदि हम विदेशी टैक्नोलोजी को अपने देश में लाएं और अपने व्यवसाय को लाभदायक उद्यम बनाएं। यह कहानी है मालवा क्षेत्र के, 46 वर्षीय किसान दविंदर सिंह की, जिन्होंने विदेश जाने के अवसर का बहुत अच्छी तरह से उपयोग किया और विदेशी कृषि मॉडल को पंजाब में लेकर आये।

1992 में दविंदर सिंह ने विदेश जाने की योजना बनाई, पर वे अपने प्रयत्नों में असफल रहे और आखिर में उन्होंने खेतीबाड़ी शुरू करने का फैसला किया। उस समय वे इस तथ्य से अनजान थे कि विदेश में रहना आसान नहीं था क्योंकि वहां रहने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, पर खेतीबाड़ी से बढ़िया लाभ प्राप्त करना आसान नहीं है क्योंकि खेतीबाड़ी खून और पसीने की मांग करती है। उन्होंने खेती करनी शुरू की लेकिन जब वे मार्किटिंग में आए तब मध्यस्थों से धोखा खाने के डर से उन्होंने खुद अपने हाथ में तराजू लेने का फैसला किया।

“मैं मां की दी सफेद दरी, तराजू और हरी मिर्च की बोरी के साथ लिए चंडीगढ़ के सेक्टर 42 की सब्जी मंडी के दौरे के अपने पहले अनुभव को कभी नहीं भूल सकता, मैं वहां पूरा दिन बैठा रहा, मैं इतना परेशान और संकुचित सा महसूस कर रहा था कि ग्राहक से पैसे लूं या नहीं। समझ नहीं आ रहा था। मुझे ऐसा देखने के बाद, मेरे कुछ किसान भाइयों ने मुझे बताया कि यहां इस तरह काम नहीं चलेगा आपको अपने ग्राहकों को बुलाना होगा और अपनी फसल की बिक्री कीमत पर ज़ोर देना होगा। इस तरह से मैंने सब्जियों को बेचना सीखा।”

उस समय लड़खड़ाते कदमों के साथ आगे बढ़ते हुए, दविंदर सिंह ने अपनी पहली फसल से 45 हज़ार रूपये कमाए और वे इससे बहुत खुश थे, खैर, उस समय तक दविंदर सिंह पहले ही जान चुके थे कि खेतीबाड़ी का मार्ग बहुत मजबूती और दृढ़ संकल्प की मांग करता है। वापिस मुड़े बिना, दविंदर सिंह ने कड़ी मेहनत और जुनून से काम करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे जब उन्होंने अपने खेती क्षेत्र का विस्तार किया और अपने कौशल को और बढ़ाने के लिए 2007 में अपने एक दोस्त के साथ एक ट्रेनिंग कैंप के लिए स्पेन का दौरा किया।

स्पेन में उन्होंने कृषि मॉडल को देखा और इससे वे बहुत चकित हुए। छोटी सी छोटी जानकारी को बिना खोए दविंदर सिंह ने सब कुछ अपने नोट्स में लिखा।

“मैंने देखा कि इटली में प्रचलित कृषि मॉडल भारत से बहुत अलग है। इटली के कृषि मॉडल में किसान समूह में काम करते हैं और वहां बिचौलिये नहीं है। मैंने यह भी देखा कि इटली की जलवायु स्थिति भारत की तुलना में कृषि के अनुकूल नहीं थी, फिर भी वे अपने खेतों से उच्च उत्पादकता ले रहे थे। लोग अपनी फसल की वृद्धि और विकास के लिए फसलों को उच्च वातावरण देने के लिए पॉलीहाउस का उपयोग कर रहे थे। यह सब देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। ”

उत्कृष्ट कृषि तकनीकों की खोज करने के बाद, दविंदर सिंह ने फैसला किया कि वे पॉलीहाउस का तरीका अपनाएंगे। शुरूआत में, उन्हें पॉलीहाउस का निर्माण करने के लिए कोई सहायता नहीं मिली, इसलिए उन्होंने इसे स्वंय बनाने का फैसला किया। बांस की सहायता से उन्होंने 500 वर्ग मीटर में अपना पॉलीहाउस स्थापित किया और इसमें सब्जियां उगानी शुरू की। जब आस पास के लोगों को इसके बारे में पता चला तो कई विशेषज्ञों ने भी उनके फार्म का दौरा किया लेकिन वे नकारात्मक प्रतिक्रिया देकर वापिस चले आये और कहा कि यह पॉलीहाउस सफल नहीं होगा। लेकिन फिर भी, दविंदर सिंह ने अपनी कड़ी मेहनत और उत्साहित भाव से इसे सफल बनाया और इससे अच्छी उपज ली।

उनके काम से खुश होकर, राष्ट्रीय बागबानी मिशन ने उन्हें पॉलीहाउस में सहायता करने और निर्माण करने में उनकी मदद करने का फैसला किया। जब कृषि विभाग उस समय दविंदर सिंह के पक्ष में था तब उनके पिता सुखदेव सिंह उनके पक्ष में नहीं थे। उनके पिता ने अपनी ज़मीन नहीं देना चाहते थे क्योंकि पॉलीहाउस तकनीक नई थी और उन्हें यकीन नहीं था कि इससे लाभ मिलेगा या नहीं और किसी मामले में ऋृण का भुगतान नहीं किया गया तो बैंक उनकी ज़मीन छीन लेगा।

अपने परिवार पर निर्भर हुए बिना, दविंदर सिंह ने पॉलीहाउस स्थापित करने के लिए एक एकड़ भूमि पर 30 लाख रूपये का ऋृण लेकर अपने दोस्त के साथ साझेदारी में अपना उद्यम शुरू करने का फैसला किया। उस वर्ष उन्होंने अपने पॉलीहाउस में रंग बिरंगी शिमला मिर्च उगाई उत्पादनऔर गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि उन्होंने एक वर्ष के अंदर अंदर अपनी कमाई से ऋृण का भुगतान कर दिया।

अगला चरण, जिस पर दविंदर सिंह ने कदम रखा। 2010 में उन्होंने एक समूह बनाया, उन्होंने धीरे धीरे उन लोगों और समूहों में काम का विस्तार किया जो एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह के तहत पॉलीहाउस तकनीक सीखने के लायक थे। दविंदर सिंह का यह कदम एक बहुत ही अच्छा कदम था क्योंकि उनके समूह ने बीज, खाद और अन्य आवश्यक कृषि इनपुट 25 से 30 प्रतिशत सब्सिडी दर पर लेकर शुरूआत की। इसके अलावा सभी किसान जो समूह के सदस्य हैं अब कृषि इनपुट इकट्ठा करने के लिए विभिन्न दरवाजों पर दस्तक नहीं देते उन्हें सब कुछ एक ही छत के नीचे मिल जाता है। समूह निर्माण ने किसानों को परिवहन शुल्क, मंडीकरण, पैकेजिंग और अधिकतम लाभ प्रदान किए और इसका परिणाम यह हुआ कि एक किसान ज्यादा खर्चे के बोझ से परेशान नहीं होता। एग्री मार्ट ब्रांड नाम है जिसके तहत समूह द्वारा उत्पादित फसलों को चंडीगढ़ और दिल्ली की सब्जी मंडी में बेचा जाता है, लोग उनके ब्रांड पर भरोसा करते हैं और मंडीकरण के लिए उन्हें अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता।

जब मैं अकेला था उस समय मंडीकरण का स्तर अलग था लेकिन आज हमारे पास एक समूह है और समूह में मंडीकरण करना आसान है लेकिन समूह की गुणवत्ता का अपना स्थान है। समूह एक बहुत शक्तिशाली चीज़ है क्योंकि लाभ को छोड़कर समूह में सब कुछ साझा किया जाता है — दविंदर सिंह मुशकाबाद ने कहा।

20 वर्ष की अवधि में, दविंदर सिंह के प्रयासों ने उन्हें एक साधारण विक्रता से एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह का प्रमुख बना दिया, जिसके तहत वर्तमान में 230 किसान उस समूह में हैं। एक छोटे से क्षेत्र से शुरूआत करके, वर्तमान में उन्होंने अपने खेती क्षेत्र को बड़े पैमाने पर विस्तारित किया जिसमें से साढ़े पांच एकड़ में पॉलीहाउस खेती की जाती है और इसके अलावा उन्होंने कुछ आधुनिक कृषि तकनीकों जैसे तुपका सिंचाई, स्प्रिंकलर को पानी वितरण के उचित प्रबंधन के लिए मशीनीकृत किया है। अपनी इस सफलता के लिए वे पी ए यू, लुधियाना और उनके संगठित कार्यक्रमों और समारोह को भारी श्रेय देते हैं जिन्होंने उन्हें अच्छे ज्ञान स्रोत के रूप में समर्थन दिया।

आज दविंदर सिंह का समूह नवीन तकनीकों और स्थायी कृषि तरीकों से कृषि क्षेत्र में विवधीकरण का मॉडल बन गया है। बागबानी के क्षेत्र में उनके जबरदस्त प्रयासों के लिए, दविंदर सिंह को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है और उन्होंने विदेशों में कई प्रतिनिधिमंडल में भाग लिया है।

• 2008 में उजागर सिंह धालीवाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
• 2009 में पूसा कृषि विज्ञान मेले में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा मुख्यमंत्री पुरस्कार प्राप्त हुआ।
• 2014 में पंजाब सरकार द्वारा प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ।
• 2014 में डॉ. मोहिंदर सिंह रंधावा मेमोरियल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
• पंजाब कृषि विश्वविद्यालय वैज्ञानिक सलाहकार समिती के लिए नॉमिनेट हुए।
• पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में, अनुसंधान परिषद के सदस्य बने।
• अप्रैल 2013 में, कृषि विभाग द्वारा डेलीगेशन प्रायोजित के सदस्य बनकर उन नौजवान किसानों के लिए एग्रो आधारित मलेशिया और मंत्रालय का दौरा किया।

• अक्तूबर 2016 में कृषि मंत्रालय, पंजाब सरकार के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल के प्रगतिशील किसान सदस्य के रूप में बाकी, अज़रबैजान का भी दौरा किया।

संदेश
“एक किसान के लिए मुश्किलों का सामना करना अनिवार्य है, क्योंकि जितना अधिक आप कठिनाइयों का सामना करते हैं, उतनी ही आपको सफलता मिलती है। मुश्किलें व्यक्ति को तैयार करती हैं, इसलिए मुश्किल परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए बल्कि इनसे सीखना चाहिए। हमेशा अपने आप को प्रेरित करें और सकारात्मक सोचें। क्योंकि सब कुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है।

जब जल प्रबंधन की बात आती है तो जल कृषि में प्रमुख भूमिका निभाता है। किसान को अपने पानी की जांच करवानी चाहिए और उसके बाद नहर के पानी से अपना टैंक स्थापित करना चाहिए और फिर उसे पॉलीहाउस में इस्तेमाल करना चाहिए, इसके परिणामस्वरूप 25—30 प्रतिशत आय में वृद्धि होती है।”

भविष्य की योजनाएं

उपभोक्ताओं को होम डिलीवरी प्रदान करने की योजना है ताकि वे कम रसायनों वाले पोषक तत्वों से समृद्ध ताजी सब्जियां खा सकें।

अपनी खेती के साथ अपने कृषि के अनुभव को साझा करते समय, दविंदर सिंह ने हमारे साथ अपनी ज़िंदगी का एक सुखद क्षण सांझा किया—
इससे पहले मैं विदेश जाने का सपना देखता था, बिना जाने कि मुझे वहां वास्तव में क्या करना है। लेकिन बाद में, जब मैंने मलेशिया और अन्य देशों के प्रतिनिधिमंडल टीम के सदस्य के रूप में दौरा किया तो मुझे बहुत खुशी और गर्व महसूस हुआ,यह सपना सच होने के जैसा था। मुझे “श्रमिक कार्य करने के लिए विदेश जाना” और “प्रतिनिधिमंडल टीम के सदस्य के रूप में विदेश जाने” के बीच के अंतर का एहसास हुआ।

शर्मिंदगी महसूस किए बिना, दविंदर सिंह ने अपने खेतों में किए गए प्रयासों के फलस्वरूप, परिणाम हर किसी के सामने हैं। वर्तमान में, वे अपने एग्रो हेल्प एड सोसाइटी मुशकाबाद समूह के तहत 230 किसानों का मार्गदर्शन कर रहे हैं और कृषि तकनीकों में अच्छे बदलाव कर रहे हैं। दविंदर सिंह संघर्ष कर रहे किसानों के लिए एक महान उदाहरण और प्रेरणा हैं। यदि उनकी कहानी पढ़कर आप प्रेरित महसूस करते हैं और अपने उद्यम में उससे जुड़ना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके उनसे संपर्क कर सकते हैं।

करमजीत सिंह भंगु

पूरी कहानी पढ़ें

मिलिए आधुनिक किसान से, जो समय की नज़ाकत को समझते हुए फसलें उगा रहा है

करमजीत सिंह के लिए किसान बनना एक धुंधला सपना था, पर हालात सब कुछ बदल देते हैं। पिछले सात वर्षों में, करमजीत सिंह की सोच खेती के प्रति पूरी तरह बदल गई है और अब वे जैविक खेती की तरफ पूरी तरह मुड़ गए हैं।

अन्य नौजवानों की तरह करमजीत सिंह भी आज़ाद पक्षी की तरह सारा दिन क्रिकेट खेलना पसंद करते थे, वे स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंट में भी हिस्सा लेते थे। उनका जीवन स्कूल और खेल के मैदान तक ही सीमित था। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी ज़िंदगी एक नया मोड़ लेगी। 2003 में जब वे स्कूल में ही थे उस दौरान उनके पिता जी का देहांत हो गया और कुछ समय बाद ही, 2005 में उनकी माता जी का भी देहांत हो गया। उसके बाद सिर्फ उनके दादा – दादी ही उनके परिवार में रह गए थे। उस समय हालात उनके नियंत्रण में नहीं थे, इसलिए उन्होंने 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और अपने परिवार की मदद करने के बारे में सोचा।

उनका विवाह बहुत छोटी उम्र में हो गया और उनके पास विदेश जाने और अपने जीवन की एक नई शुरूआत करने का अवसर भी था पर उन्होंने अपने दादा – दादी के पास रहने का फैसला किया। वर्ष 2011 में उन्होंने खेती के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने छोटे रकबे में घरेलु प्रयोग के लिए अनाज, दालें, दाने और अन्य जैविक फसलों की काश्त करनी शुरू की। उन्होंने अपने क्षेत्र के दूसरे किसानों से प्रेरणा ली और धीरे धीरे खेती का विस्तार किया। समय और तज़ुर्बे से उनका विश्वास और दृढ़ हुआ और फिर करमजीत सिंह ने अपनी ज़मीन ठेके पर से वापिस ले ली।
उन्होंने टिंडे, गोभी, भिंडी, मटर, मिर्च, मक्की, लौकी और बैंगन आदि जैसी अन्य सब्जियों में वृद्धि की और उन्होंने मिर्च, टमाटर, शिमला मिर्च और अन्य सब्जियों की नर्सरी भी तैयार की।

खेतीबाड़ी में दिख रहे मुनाफे ने करमजीत सिंह की हिम्मत बढ़ाई और 2016 में उन्होंने 14 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का फैसला किया और इस तरह उन्होंने अपने रोज़गार में ही खुशहाल ज़िंदगी हासिल कर ली।

आज भी करमजीत सिंह खेती के क्षेत्र में एक अनजान व्यक्ति की तरह और जानने और अन्य काम करने की दिलचस्पी रखने वाला जीवन जीना पसंद करते हैं। इस भावना से ही वे वर्ष 2017 में बागबानी की तरफ बढ़े और गेंदे के फूलों से ग्लैडियोलस के फूलों की अंतर-फसली शुरू की।

करमजीत सिंह जी को ज़िंदगी में अशोक कुमार जी जैसे इंसान भी मिले। अशोक कुमार जी ने उन्हें मित्र कीटों और दुश्मन कीटों के बारे में बताया और इस तरह करमजीत सिंह जी ने अपने खेतों में कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया।

करमजीत सिंह जी ने खेतीबाड़ी के बारे में कुछ नया सीखने के तौर पर हर अवसर का फायदा उठाया और इस तरह ही उन्होंने अपने सफलता की तरफ कदम बढ़ाए।

इस समय करमजीत सिंह जी के फार्म पर सब्जियों के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली और पैक हाउस उपलब्ध है। वे हर संभव और कुदरती तरीकों से सब्जियों को प्रत्येक पौष्टिकता देते हैं। मार्किटिंग के लिए, वे खेत से घर वाले सिद्धांत पर ताजा-कीटनाशक-रहित-सब्जियां घर तक पहुंचाते हैं और वे ऑन फार्म मार्किट स्थापित करके भी अच्छी आय कमा रहे हैं।

ताजा कीटनाशक रहित सब्जियों के लिए उन्हें 1 फरवरी को पी ए यू किसान क्लब के द्वारा सम्मानित किया गया और उन्हें पटियाला बागबानी विभाग की तरफ से 2014 में बेहतरीन गुणवत्ता के मटर उत्पादन के लिए दूसरे दर्जे का सम्मान मिला।

करमजीत सिंह की पत्नी- प्रेमदीप कौर उनके सबसे बड़ी सहयोगी हैं, वे लेबर और कटाई के काम में उनकी मदद करती हैं और करमजीत सिंह खुद मार्किटिंग का काम संभालते हैं। शुरू में, मार्किटिंग में कुछ समस्याएं भी आई थी, पर धीरे धीरे उन्होने अपनी मेहनत और उत्साह से सभी रूकावटें पार कर ली। वे रसायनों और खादों के स्थान पर घर में ही जैविक खाद और स्प्रे तैयार करते हैं। हाल ही में करमजीत सिंह जी ने अपने फार्म पर किन्नू, अनार, अमरूद, सेब, लोकाठ, निंबू, जामुन, नाशपाति और आम के 200 पौधे लगाए हैं और भविष्य में वे अमरूद के बाग लगाना चाहते हैं।

संदेश

“आत्म हत्या करना कोई हल नहीं है। किसानों को खेतीबाड़ी के पारंपरिक चक्र में से बाहर आना पड़ेगा, केवल तभी वे लंबे समय तक सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा किसानों को कुदरत के महत्तव को समझकर पानी और मिट्टी को बचाने के लिए काम करना चाहिए।”

 

इस समय 28 वर्ष की उम्र में, करमजीत सिंह ने जिला पटियाला की तहसील नाभा में अपने गांव कांसूहा कला में जैविक कारोबार की स्थापना की है और जिस भावना से वे जैविक खेती में सफलता प्राप्त कर रहे हैं, उससे पता लगता है कि भविष्य में उनके परिवार और आस पास का माहौल और भी बेहतर होगा। करमजीत सिंह एक प्रगतिशील किसान और उन नौजवानों के लिए एक मिसाल हैं, जो अपने रोज़गार के विकल्पों की उलझन में फंसे हुए हैं हमें करमजीत सिंह जैसे और किसानों की जरूरत है।

विपिन यादव

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एक किसान और एक कंप्यूटर इंजीनियर विपिन यादव की कहानी, जिसने क्रांति लाने के लिए पारंपरिक खेती के तरीके को छोड़कर हाइड्रोपोनिक खेती को चुना

आज का युग ऐसा युग है जहां किसानों के पास उपजाऊ भूमि या ज़मीन ही नहीं है, फिर भी वे खेती कर सकते हैं और इसलिए भारतीय किसानों को अपनी पहल को वापिस लागू करना पड़ेगा और पारंपरिक खेती को छोड़ना पड़ेगा।

टैक्नोलोजी खेतीबाड़ी को आधुनिक स्तर पर ले आई है। ताकि कीट या बीमारी जैसी रूकावटें फसलों की पैदावार पर असर ना कर सके और यह खेतीबाड़ी क्षेत्र में सकारात्मक विकास है। किसान को तरक्की से दूर रखने वाली एक ही चीज़ है और वह है उनका डर – टैक्नोलोजी में निवेश डूब जाने का डर और यदि इस काम में कामयाबी ना मिले और बड़े नुकसान का डर।

पर इस 20 वर्ष के किसान ने खेतीबाड़ी के क्षेत्र में तरक्की की, समय की मांग को समझा और अब पारंपरिक खेती से अलग कुछ और कर रहे हैं।

“हाइड्रोपोनिक्स विधि खेतीबाड़ी की अच्छी विधि है क्योंकि इसमें कोई भी बीमारी पौधों को प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि इस विधि में मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा, हम पॉलीहाउस में पौधे तैयार करते हैं, इसलिए कोई वातावरण की बीमारी भी पौधों को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर सकती। मैं खेती की इस विधि से खुश हूं और मैं चाहता हूं कि दूसरे किसान भी हाइड्रोपोनिक तकनीक अपनाएं।”विपिन यादव

कंप्यूटर साइंस में अपनी इंजीनियरिंग डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी औरवेतन से असंतुष्टी के कारण विपिन ने खेती शुरू करने का फैसला किया, पर निश्चित तौर पर अपने पिता की तरह नहीं, जो परंपरागत खेती तरीकों से खेती कर रहे थे।

एक जिम्मेवार और जागरूक नौजवान की तरह, उन्होंने गुरूग्राम से ऑनलाइन ट्रेनिंग ली। शुरूआती ऑनलाइन योग्यता टेस्ट पास करने के बाद वे गुरूग्राम के मुख्य सिखलाई केंद्र में गए।

20 उम्मीदवारों में से सिर्फ 16 ही हाइड्रोपोनिक्स की प्रैक्टीकल सिखलाई हासिल करने के लिए पास हुए और विपिन यादव भी उनमें से एक थे। उन्होंने अपने हुनर को और सुधारने के लिए के.वी.के. शिकोहपुर से भी सुरक्षित खेती की सिखलाई ली।

“2015 में, मैंने अपने पिता को मिट्टी रहित खेती की नई तकनीक के बारे में बताया, जबकि खेती के लिए मिट्टी ही एकमात्र आधार थी। विपिन यादव

सिखलाई के दौरान उन्होंने जो सीखा उसे लागू करने के लिए उन्होंने 5000 से 7000 रूपये के निवेश से सिर्फ दो मुख्य किस्मों के छोटे पौधों वाली केवल 50 ट्रे से शुरूआत की।

“मैंने हार्डनिंग यूनिट के लिए 800 वर्ग फुट क्षेत्र निर्धारित किया और 1000 वर्ग फुट पौधे तैयार करने के लिए गुरूग्राम में किराये पर जगह ली और इसमें पॉलीहाउस भी बनाया। – विपिन यादव

हाइड्रोपोनिक्स की 50 ट्रे के प्रयोग से उन्हें बड़ी सफलता मिली, जिसने बड़े स्तर पर इस विधि को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हाइड्रोपोनिक खेती शुरू करने के लिए उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों की सहायता से अगला बड़ा निवेश 25000 रूपये का किया।

“इस समय मैं ऑर्डर के मुताबिक 250000 या अधिक पौधे तैयार कर सकता हूं।”

गर्म मौसमी स्थितियों के कारण अप्रैल से मध्य जुलाई तक हाइड्रोपोनिक खेती नहीं की जाती, पर इसमें होने वाला मुनाफा इस अंतराल की पूर्ती के लिए काफी है। विपिन यादव अपने हाइड्रोपोनिक फार्म में हर तरह की फसलें उगाते हैं – अनाज, तेल बीज फसलें, सब्जियां और फूल। खेती को आसान बनाने के लिए स्प्रिंकलर और फोगर जैसी मशीनरी प्रयोग की जाती है। इनके फूलों की क्वालिटी अच्छी है और इनकी पैदावार भी काफी है, जिस कारण ये राष्ट्रपति सेक्ट्रीएट को भी भेजे गए हैं।

मिट्टी रहित खेती के लिए, वे 3:1:1 के अनुपात में तीन चीज़ों का प्रयोग करते हैं कोकोपिट, परलाइट और वर्मीक्लाइट। 35-40 दिनों में पौधे तैयार हो जाते हैं और फिर इन्हें 1 हफ्ते के लिए हार्डनिंग यूनिट में रखा जाता है। NPK, जिंक, मैगनीशियम और कैलशियम जैसे तत्व पौधों को पानी के ज़रिये दिए जाते हैं। हाइड्रोपोनिक्स में कीटनाशक दवाइयों का कोई प्रयोग नहीं क्योंकि खेती के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता, जो आसानी से घर में तैयार की जा सकती है।

भविष्य की योजना:
मेरी भविष्य की योजना है कि कैकटस, चिकित्सक और सजावटी पौधों की और किस्में, हाइड्रोपोनिक फार्म में बेहतर आय के लिए उगायी जायें।

विपिन यादव एक उदाहरण है कि कैसे भारत के नौजवान आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके खेतीबाड़ी के भविष्य को बचा रहे हैं।

संदेश

“खेतीबाड़ी के क्षेत्र में कुछ भी नया शुरू करने से पहले, किसानों को अपने हुनर को बढ़ाने के लिए के.वी.के. से सिखलाई लेनी चाहिए और अपने आप को शिक्षित बनाना चाहिए।”

देश को बेहतर आर्थिक विकास के लिए खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मेहनत करने वाले और नौजवानों एवं रचनात्मक दिमाग की जरूरत है और यदि हम विपिन यादव जैसे नौजवानों को मिलना जारी रखते हैं तो यह भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

दीपकभाई भवनभाई पटेल

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गुजरात के एक किसान ने आम की विभिन्न किस्मों की खेती करके अच्छा लाभ कमाया

आज, यदि हम प्रगतिशील खेती और किसानों के तथ्यों को देखें तो, तो टेक्नोलोजी की तरफ एक स्पष्ट इशारा दिखाई देता है। किसान की सफलता और उसके फार्म को अच्छा बनाने के लिए टेक्नोलोजी की प्रमुख भूमिका है। यह कहानी है गुजरात के एक किसान – दीपकभाई भवनभाई पटेल की, जिन्होंने कृषि से अच्छी उत्पादकता लेने के लिए अपने आशावादी व्यवहार के साथ कृषि की आधुनिक तकनीकों को अपनाया और अपने प्रयत्नों के साथ उन्होंने उन सभी मुश्किलों का सामना किया जो उनके पिता और दादा-पड़दादा को खेती करते समय आती थी।

आम वह फल है, जिसने गुजरात में नवसारी जिले के काचियावाड़ी गांव में दीपकभाई को बागों का बादशाह बना दिया। दीपकभाई को 1991 में, अपने पिता से 20 एकड़ ज़मीन विरासत में मिली थी, वे अलग-अलग तरह के आम जैसे कि जंबो केसर, लंगड़ा, राजापुरी, एलफोन्ज़ो, दशहरी और तोतापुरी उगाते हैं। समय के साथ धीरे-धीरे उन्होंने खेती के क्षेत्र को बढ़ा लिया और आज उनके आम के बगीचे में 125 एकड़ ज़मीन पर 3000 से 3200 आम के वृक्ष हैं, जिसमें से 65 एकड़ ज़मीन उनकी अपनी है और 70 एकड़ ज़मीन ठेके पर है।

शुरूआती खेती की पद्धती और लागूकरन:

खैर, शुरूआत में दीपक भाई के लिए रास्ता थोड़ा मुश्किल था। उन्होंने सब्जियों और आम का अंतरफसली करके अपना खेताबड़ी उद्यम शुरू किया लेकिन मज़दूरों की कमी और आय कम होने के कारण उन्होने सिर्फ आम की खेती की तरफ पूरा ध्यान देने का फैसला किया।

दीपकभाई कहते हैं – खेती करते हुए मुझे जहां भी एहसास होता है अपनी गल्तियों का, मैं उन्हें सुधारने की पूरी कोशिश करता हूं। ज्ञान और अनुभव की कमी के कारण, मैंने आम के वृक्षों में पानी और खाद की ज्यादा मात्रा प्रयोग की और बागों में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया। लेकिन एक बार जब मैं रिसर्च और एग्रीकल्चर सेंटर के संपर्क में आया तब मुझे ज्ञान और खेती करने के सही तरीकों के बारे में पता चल गया।”

सही कृषि पद्धतियों का पालन करने के परिणाम प्राप्त करने के बाद, दीपक भाई ने काफी मेहनत करके अपने आप को आम का माहिर बना लिया है, और यही वो वक्त था जब उन्होंने आम की खेती करने को अपनी आय का मुख्य स्त्रोत बनाने का फैसला किया। और उसके बाद उन्होंने किताबें पढ़नी शुरू कर दी, और उन निर्देशों और सलाहों का पालन किया जो खेतीबाड़ी संस्थाओं द्वारा दी जाती थी।

“मैंने अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए अलग अलग समारोह में हिस्सा लिया, जिनमें से कुछ को औरंगाबाद के गन्ना रिसर्च केंद्र, दिल्ली कृषि रिसर्च केंद्र, जयपुर कृषि यूनिवर्सिटी आदि द्वारा आयोजित किया गया था। इन प्रोग्रामों से मैंने अलग-अलग फलों, सब्जियों और अन्य फसलों जैसे कि केला, अनार, आम, चीकू, अमरूद, आंवला, अनाज, गेहूं और सब्जियां उगाने की अधिक जानकारी प्राप्त की।”

दीपक ने ना केवल खेती की आधुनिक तकनीकों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया बल्कि पैसों का प्रबंधन करना भी सीखा जो कि एक किसान के लिए बहुत महत्तवपूर्ण होता है। उन्होंने अपनी आमदन और खर्चों का रिकॉर्ड रखना शुरू कर दिया। जो भी दीपक भाई बचत करते थे वे उसे नई ज़मीन खरीदने के लिए प्रयोग कर लेते थे।

मंडीकरण:

शुरूआत में मंडीकरण एक छोटी सी समस्या थी क्योंकि दीपकभाई के पास आमों के कारोबार का कोई बाज़ार नहीं थी। बिचोलिये और व्यापारी आम के उत्पादन के लिए बहुत कम कीमत देते थे, जो दीपकभाई को स्वीकार नहीं थी। लेकिन कुछ समय बाद, दीपक साहाकारी मंडली के संपर्क में आये और फिर उन्होंने आम के जूस की पैकिंग के लिए सहकारी फैडरेशन के साथ जुड़ने का फैसला किया। उन्होंने उत्पाद की सही कीमत दीपक भाई को पेश की, जिससे दीपकभाई की आमदन में बहुत अधिक वृद्धि हुई।

आम के साथ, दीपकभाई ने फार्म के किनारों पर केला, 250 कालीपट्टी चीकू और नारियल के वृक्ष भी लगाये जिससे उनकी आमदन में काफी वृद्धि हुई।

“आम के वृक्ष को बहुत देखभाल की जरूरत होती है जिसमें सही मात्रा में पानी, खाद और कीटनाशक शामिल करने होते हैं। इसके अलावा, इस बार मैंने अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए यूनिवर्सिटी द्वारा सिफारिश की गई बढ़िया पैदावार वाले वृक्ष लगाए हैं। बीमारियों को नियंत्रण करने के लिए, यूनिवर्सिटियों द्वारा सिफारिश की गई दवाइयों का प्रयोग करता हूं। मैं समय समय पर वृक्षों को अच्छा आकार देने के लिए वृक्ष की शाखाओं की कांट छांट भी करता हूं। मैं पानी की जांच भी करता हूं और सभी कमियों को सुधारता भी हूं।”

दीपकभाई की सफलता को देखने के बाद, बहुत सारे किसान यह जानने के लिए उनके फार्म का दौरा करने के लिए आते हैं कि उन्होंने किस आधुनिक तकनीक या ढंग को अपने फार्म पर लागू किया है। कई किसान दीपकभाई से सलाह भी लेते हैं।

दीपकभाई ने नवसारी खेतीबाड़ी विभाग और आत्मा प्रोजेक्ट को उनके समर्थन और मार्गदर्शन के लिए प्रमुख श्रेय दिया है। उनकी सहायता से दीपकभाई ने आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों को अपने फार्म पर लागू किया। उन्होंने खेती के ज्ञान को इक्ट्ठा करने के लिए जानकारी का एक भी स्त्रोत नहीं छोड़ा।

“तुपका सिंचाई जल बचत करने की एक ऐसी खेती विधि है जिसे मैंने अपने फार्म पर स्थापित किया और यह पानी को बड़े स्तर पर बचाने में मदद करती है। अब अनावश्यक खर्चे कम हो गए हैं और ज़मीन अधिक उपजाऊ और नम हो गई है।”

इस पूरे समय के दौरान दीपकभाई पटेल के जीवन में बुरा समय भी आया। 2013 में दीपक भाई को पता चला कि वे जीभ के कैंसर से ग्रस्त हैं। इसे ठीक करने के लिए उन्होंने ऑप्रेशन करवाया और सर्जरी के दौरान उनका ज़ुबानी भाग हटा दिया गया। उन्होंने अपनी बोलने की क्षमता को खो दिया।

“पर उन्होंने कभी भी अपनी विकलांगता को अपने जीवन की अक्षमता में परिवर्तित नहीं होने दिया।”

2017 में, उन्होंने दूसरा ऑप्रेशन करवाया जिसमें कैंसर को उनके शरीर से पूरी तरह से हटा दिया गया था और आज वे अपने सपनों को हासिल करने के लिए मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ स्वस्थ व्यक्ति हैं।

पुरस्कार और उपलब्धियां:
वर्ष 2014-15 में दीपकभाई को “ATMA Best Farmer of Gujarat” के तौर पर सम्मानित किया गया।

खैर, उल्लेख करने के लिए यह सिर्फ एक पुरस्कार है, बागबानी के क्षेत्र में उनकी सफलता ने उन्हें 19 पुरस्कार, प्रमाण पत्र, नकद पुरस्कार और राज्य स्तरीय ट्रॉफी जिताये हैं।

संदेश
“यूनिवर्सिटियों द्वारा दिए गए सही ढंगों का पालन करके बागबानी करना आय का एक अच्छा स्त्रोत है। यदि किसान अपना भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं तो उन्हें बागबानी में निवेश करना चाहिए।”

मनि कलेर

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कैसे फूलों की बिखर रही खुशबू ने पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र को स्थापित किया

फूलों की खेती में निवेश एक बढ़िया तरक्की का विकल्प है जिसमें किसान अधिक रूचि ले रहे हैं। कई सफल पुष्पहारिक हैं जो ग्लैडियोलस, गुलाब, गेंदे और कई अन्य फूलों की सुगंध बिखेर रहे हैं और पंजाब में संभावित फूलों की खेती के एक नए केंद्र का निर्माण कर रहे हैं। एक पुष्पवादी जो फूलों और सब्जियों के व्यापार से अधिक लाभ कमा रहे हैं, वे हैं – मनि कलेर

अन्य ज़मींदारों की तरह, कलेर परिवार अपनी ज़मीन अन्य किसानों को किराये पर देने के लिए उपयोग करता था और एक छोटे से ज़मीन के टुकड़े पर वे घरेलु प्रयोजन के लिए गेहूं और धान का उत्पादन करते थे। लेकिन जब मनि कलेर ने अपनी शिक्षा पूरी की तो उन्होंने बागबानी के व्यवसाय में कदम रखने का फैसला किया। मनि ने भूमि का आधा हिस्सा (20 एकड़) वापिस ले लिया जो उन्होंने किराये पर दिया था और उस पर खेती करनी शुरू की।

कुछ समय बाद, एक रिश्तेदार की सहायता से, मनि को RTS Flower व्यापार के बारे में पता चला जो कि गुरविंदर सिंह सोही द्वारा सफलतापूर्वक चलाया जाता है। इसलिए RTS Flower के मालिक से प्रेरित होने के बाद मनि ने अंतत: अपना फूलों का उद्यम शुरू कर दिया और पेटुनिया, बारबिना ओर मेस्टेसियम आदि जैसे पांच से छ: प्रकार के फूलों को उगाना शुरू किया।

शुरूआत में उन्होंने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में भी कोशिश की लेकिन कॉन्ट्रेक्टड कंपनी के साथ एक कड़वे अनुभव के बाद उन्होंने उनसे अलग होने का फैसला किया।

फूलों की खेती के दूसरे वर्ष में उन्होंने गुरविंदर सिंह सोही से 1 लाख रूपये के बीज खरीदे। उन्होंने 2 कनाल में ग्लेडियोलस की खेती शुरू की और आज 2 वर्ष बाद उन्होंने 5 एकड़ में फार्म का विस्तार किया है।

वर्तमान में वे 20 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से वे 4 एकड़ का प्रयोग सब्जियों की लो टन्नल फार्मिंग के लिए कर रहे हैं जिसमें वे करेला, कद्दू, बैंगन, खीरा, खरबूजा, लहसुन (1/2 एकड़) और प्याज (1/2 एकड़) उगाते हैं। घरेलु उद्देश्य के लिए वे धान और गेहूं उगाते हैं। कुछ समय से उन्होंने प्याज के बीज तैयार करना भी शुरू किया है।

कड़ी मेहनत और विविध खेती तकनीक के कारण उनकी आय में वृद्धि हुई है। अब तक उन्होंने सरकार से कोई सब्सिडी नहीं ली। वे संपूर्ण मार्किटिंग का अपने दम पर प्रबंधन करते हैं और फूलों को दिल्ली और कुरूक्षेत्र की मार्किट में बेचते हैं। हालांकि वे सब्जियों और फूलों की खेती के व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं लेकिन फिर भी उन्हें फूलों की खेती में कुछ समस्याएं आती हैं लेकिन वे अपनी उम्मीद को कभी नहीं खोने देते और हमेशा मजबूत दृढ़ संकल्प के साथ अपना काम जारी रखते हैं।

मनि के परिवार ने हमेशा उनका समर्थन किया और कृषि क्षेत्र में जो वे करना चाहते हैं उसे करने से कभी नहीं रोका। वर्तमान में वे अपने पिता मदन सिंह और बड़े भाई राजू कलेर के साथ अपने गांव संगरूर जिले के राय धरियाना गांव में रह रहे हैं। दूध के प्रयोजन के लिए उन्होंने 7 गायें और 2 मुर्रा भैंसे रखी हैं। वे पशुओं की देखभाल और फीड के साथ कभी समझौता नहीं करते। वे जैविक रूप से उगाए धान, गेहूं और चारे की फसलों से स्वंय फीड तैयार करते हैं। अतिरिक्त समय में वे गन्ने के रस से गुड़ बनाते हैं और गांव वालों को बेचते हैं।

भविष्य की योजना:

भविष्य में वे अपने, फूलों की खेती के उद्यम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश

आजकल के किसान धान और गेहूं के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। उन्हें सोचना शुरू करना चाहिए और इस चक्र से बाहर निकलकर काम करना चाहिए यदि वे अच्छा कमाना चाहते हैं।

गुरदीप सिंह बराड़

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एक व्यक्ति का जागृत परिवर्तन- रासायनिक खेती से जैविक खेती की तरफ

लोगों की जागृति का मुख्य कारण यह है कि जो चीज़ें उन्हें संतुष्ट नहीं करती हैं उन पर उन्होंने सहमति देना बंद कर दिया है। यह कहा जाता है कि जब व्यक्ति सही रास्ता चुनता है तो उसे उस पर अकेले ही चलना पड़ता है वह बहुत अकेला महसूस करता है और इसके साथ ही उसे उन चीज़ों और आदतों को छोड़ना पड़ता है जिसकी उसे आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही एक व्यक्ति गुरदीप सिंह बराड़ हैं, जिन्होंने सामाजिक प्रवृत्ति के विपरीत जाकर, जागृत होकर रासायनिक खेती को छोड़ जैविक खेती को अपनाया।

गुरदीप सिंह बराड़ गांव मेहमा सवाई जिला बठिंडा के निवासी हैं। 17 वर्ष पहले श्री गुरदीप सिंह के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया जिसने उनके विचारों और खेती करने के ढंगों को पूरी तरह बदल दिया। आज गुरदीप सिंह एक सफल किसान हैं और बठिंडा में जैविक किसान के नाम से जाने जाते हैं और उनकी कमायी भी अन्य किसानों के मुकाबले ज्यादा हैं जो पारंपरिक या रासायनिक खेती करते हैं।

जैविक खेती करने से पहले गुरदीप सिंह बराड़ एक साधारण किसान थे जो कि वही काम करते थे जो वे बचपन से देखते आ रहे थे। उनके पास केवल 2 एकड़ की भूमि थी जिस पर वे खेती करते थे और उनकी आय सिर्फ गुज़ारा करने योग्य थी।

1995 में वे किसान सलाहकार सेवा केंद्र के माहिरों के संपर्क में आये। वहां वे अपने खेती संबंधित समस्याओं के बारे में बातचीत करते थे और उनका समाधान और जवाब पाते थे। वे के वी के बठिंडा ब्रांच के माहिरों से भी जुड़े थे। कुछ समय बाद किसान सलाहकार केंद्र ने उन्हें सब्जियों के बीजों की किट उपलब्ध करवाकर क्षेत्र के 1 कनाल में एक छोटी सी घरेलु बगीची लगाने के लिए प्रेरित किया। जब घरेलु बगीची का विचार सफल हुआ तो उन्होंने 1 कनाल क्षेत्र को 2 कनाल में फैला दिया और सब्जियों का अच्छा उत्पादन करना शुरू किया।

सिर्फ चार वर्ष बाद 1999 में वे अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के संपर्क में आये। उन्होने उनके साथ मिलकर काम किया और कई विभिन्न खेतों का दौरा भी किया।

उनमें से कुछ हैं
• नाभा ऑरगैनिक फार्म
• गंगानगर में भगत पूर्ण सिंह फार्म
• ऑरगैनिक फार्म

इन सभी विभिन्न खेतों का दौरा करने के बाद वे जैविक खेती की तरफ प्रेरित हुए और उसके बाद उन्होंने सब्जियों के साथ मौसमी फल उगाने शुरू किए। वे बीज उपचार, कीटों के नियंत्रण और जैविक खाद तक तैयार करने के लिए जैविक तरीकों का प्रयोग करते थे। बीज उपचार के लिए वे नीम का पानी, गाय का मूत्र, चूने के पानी का मिश्रण और हींग के पानी के मिश्रण का प्रयोग करते हैं। वे सब्जियों की उपज को स्वस्थ और रसायन मुक्त बनाने के लिए घर पर तैयार जीव अमृत का प्रयोग करते हैं। कीटों के हमले के नियंत्रण के लिए वे खेतों में लस्सी का प्रयोग करते हैं। वे पानी के प्रबंधन की तरफ भी बहुत ध्यान देते हैं। इसलिए वे सिंचाई के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करते हैं।

गुरदीप सिंह ने अपने फार्म पर वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी लगाई है ताकि वे सब्जियों और फलों के लिए शुद्ध जैविक खाद उपलब्ध कर सकें। उन्होंने प्रत्येक कनाल में दो गड्ढे बनाये हैं जहां पर वे गाय का गोबर, भैंस का गोबर और पोल्टरी खाद डालते हैं।

खेती के साथ साथ वे कद्दू, करेले और काली तोरी के बीज घर पर ही तैयार करते हैं। जिससे उन्हें बाज़ार जाकर सब्जियों के बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कद्दू की मात्रा और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए वे विशेष तौर पर कद्दू की बेलों को उचित सहारा देने के लिए रस्सी का प्रयोग करते हैं।

आज उनकी सब्जियां इतनी प्रसिद्ध हैं कि बठिंडा, गोनियाना मंडी और अन्य नज़दीक के लोग विशेष तौर पर सब्जियों खरीदने के लिए उनके फार्म का दौरा करने आते हैं। जब बात सब्जियों के मंडीकरण की आती है तो वे कभी तीसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं होते। वे 500 ग्राम के पैकेट बनाकर उत्पादों को स्वंय बेचते हैं और आज की तारीख में वे इससे अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

खेती की तकनीकों और ढंगों के लिए उन्हें कई स्थानीय पुरस्कार मिले हैं और वे कई खेती संस्थाओं और संगठनों के सदस्य भी हैं। 2015 में उन्होंने पी ए यू से सुरजीत सिंह ढिल्लों पुरस्कार प्राप्त किया। उस इंसान के लिए इस स्तर पर पहुंचना जो कभी स्कूल नहीं गया बहुत महत्तव रखता है। वर्तमान में वे अपनी माता, पत्नी और पुत्र के साथ अपने गांव में रह रहे है। भविष्य में वे जैविक खेती को जारी रखना चाहते हैं और समाज को स्वस्थ और रासायन मुक्त भोजन उपलब्ध करवाना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के कारण आज लोगों में कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं। मैं ये नहीं कहता कि किसानों को खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए लेकिन उन्हें इनका प्रयोग कम कर देना चाहिए और जैविक खेती का अपनाना चाहिए। इस तरह वे मिट्टी और जल प्रदूषण को बचा सकते हैं और कैंसर जैसी अन्य बीमारियों को रोक सकते हैं।

खुशदीप सिंह बैंस

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कैसे एक 26 वर्षीय नौजवान लड़के ने सब्जी की खेती करके अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी को हासिल किया

भारत के पास दूसरी सबसे बड़ी कृषि भूमि है और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव बहुत बड़ा है। लेकिन फिर भी आज अगर हम युवाओं से उनकी भविष्य की योजना के बारे में पूछेंगे तो बहुत कम युवा होंगे जो खेतीबाड़ी या एग्रीबिज़नेस कहेंगे।

हरनामपुरा, लुधियाना के 26 वर्षीय युवा- खुशदीप सिंह बैंस, जिसने दो विभिन्न कंपनियों में दो वर्ष काम करने के बाद खेती करने का फैसला किया और आज वह 28 एकड़ की भूमि पर सिर्फ सब्जियों की खेती कर रहा है।

खैर, खुशदीप ने क्यों अपनी अच्छी कमाई वाली और आरामदायक जॉब छोड़ दी और खेतीबाड़ी शुरू की। यह एग्रीकल्चर की तरफ खुशदीप की दिलचस्पी थी।

खुशदीप सिंह बैंस उस परिवार की पृष्ठभूमि से आते हैं जहां उनके पिता सुखविंदर सिंह मुख्यत: रियल एसटेट का काम करते थे और घर के लिए छोटे स्तर पर गेहूं और धान की खेती करते थे। खुशदीप के पिता हमेशा चाहते थे कि उनका पुत्र एक आरामदायक जॉब करे, जहां उसे काम करने के लिए एक कुर्सी और मेज दी जाए। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उनका पुत्र धूप और मिट्टी में काम करेगा। लेकिन जब खुशदीप ने अपनी जॉब छोड़ी और खेतीबाड़ी शुरू की उस समय उनके पिता उनके फैसले के बिल्कुल विरूद्ध थे  क्योंकि उनके विचार से खेतीबाड़ी एक ऐसा व्यवसाय है जहां बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती है और यह वह काम नहीं है जो पढ़े लिखे और साक्षर लोगों को करना चाहिए।

लेकिन किसी भी नकारात्मक सोच को बदलने के लिए आपको सिर्फ एक शक्तिशाली सकारात्मक परिणाम की आवश्यकता होती है और यह वह परिणाम था जिसे खुशदीप अपने साथ लेकर आये।

यह कैसे शुरू हुआ…

जब खुशदीप ईस्टमैन में काम कर रहे थे उस समय वे नए पौधे तैयार करते थे और यही वह समय था जब वे खेती की तरफ आकर्षित हुए। 1 वर्ष और 8 महीने काम करने के बाद उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) के साथ काम करना शुरू किया। लेकिन वहां भी उन्होंने 2-3 महीने काम किया। वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे और वे कुछ और करना चाहते थे। इसलिए ईस्टमैन और यू पी एल पेस्टीसाइड (UPL Pesticides) कंपनी में 2 वर्ष काम करने के बाद खुशदीप ने सब्जियों की खेती शुरू करने का फैसला किया।

उन्होंने आधे – आधे एकड़ में कद्दू, तोरी और भिंडी की रोपाई की। वे कीटनाशकों का प्रयोग करते थे और अपनी कल्पना से अधिक फसल की तुड़ाई करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने खेती के क्षेत्र को बढ़ाया और सब्जियों की अन्य किस्में उगायी। उन्होंने हर तरह की सब्जी उगानी शुरू की। चाहे वह मौसमी हो और चाहे बे मौसमी। उन्होंने मटर और मक्की की फसल के लिए Pagro Foods Ltd. से कॉन्ट्रैक्ट भी साइन किया और उससे काफी लाभ प्राप्त किया। उसके बाद 2016 में उन्होंने धान, फलियां, आलू, प्याज, लहसुन, मटर, शिमला मिर्च, फूल गोभी, मूंग की फलियां और बासमती को बारी-बारी से उसी खेत में उगाया।

खेतीबाड़ी के साथ खुशदीप ने बीज और लहसुन और कई अन्य फसलों के नए पौधे तैयार करने शुरू किए और इस सहायक काम से उन्होंने काफी लाभ प्राप्त किया। पिछले तीन वर्षों से वे बीज की तैयारी को पी ए यू लुधियाना किसान मेले में दिखा रहे हैं और हर बार उन्हें काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

आज खुशदीप के पिता और माता दोनों को अपने पुत्र की उपलब्धियों पर गर्व है। खुशदीप अपने काम से बहुत खुश है और दूसरे किसानों को इसकी तरफ प्रेरित भी करते हैं। वर्तमान में वे सब्जियों की खेती से अच्छा लाभ कमा रहे हैं और भविष्य में वे अपनी नर्सरी और फूड प्रोसेसिंग का व्यापार शुरू करना चाहते हैं।

किसानों को संदेश
किसानों को अपने मंडीकरण के लिए किसी तीसरे इंसान पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें अपना काम स्वंय करना चाहिए। एक और बात जिसका किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें किसी एक के पीछे नहीं जाना चाहिए। उन्हें वो काम करना चाहिए जो वे करना चाहते हैं।
किसानों को विविधता वाली खेती के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें एक से ज्यादा फसलों को उगाना चाहिए क्योंकि यदि एक फसल नष्ट हो जाये तो आखिर में उनके पास सहारे के लिए दूसरी फसल तो हो। हर बार एक या दो माहिरों से सलाह लेनी चाहिए और उसके बाद ही अपना नया उद्यम शुरू करना चाहिए।

सतवीर सिंह

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एक सफल एग्रीप्रेन्योर की कहानी जो समाज में अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनें – सतवीर फार्म सधाना

यह कहा जाता है कि महान चीज़ें कभी भी आराम वाले क्षेत्र से नहीं आती और यदि एक व्यक्ति वास्तव में कुछ ऐसा करना चाहता है, जो उसने पहले कभी नहीं किया तो उसे अपना आराम क्षेत्र छोड़ना होगा। ऐसे एक व्यक्ति सतवीर सिंह हैं, जिन्होंने अपने आसान जीवनशैली को छोड़ दिया और वापिस पंजाब, भारत आकर अपने लक्ष्य का पीछा किया।

आज श्री सतवीर सिंह एक सफल एग्रीप्रेन्योर हैं और गेहूं और धान की तुलना में दो गुणा अधिक लाभ कमा रहे हैं। उन्होंने सधाना में सतवीर फार्म के नाम से अपना फार्म भी स्थापित किया है। वे मुख्य रूप से स्वंय की 7 एकड़ भूमि में सब्जियों की खेती करते हैं और उन्होंने अपनी 2 एकड़ ज़मीन किराये पर दी है।

सतवीर सिंह ने जीवन के इस स्तर पर पहुंचने के लिए जिस रास्ते को चुना वह आसान नहीं था। उन्हें कई उतार चढ़ाव का सामना किया, लेकिन फिर भी लगातार प्रयासों और संघर्षों के बाद उन्होंने अपनी रूचि को आगे बढ़ाया और इसमें सफलता हासिल की। यह सब शुरू हुआ जब उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई खत्म की और चार साल बाद वे नौकरी के लिए दुबई चले गए। लेकिन कुछ समय बाद वे भारत लौट आए और उन्होंने खेती शुरू करने का फैसला किया और वापिस दुबई जाने का विचार छोड़ दिया। शुरूआत में उन्होंने गेहूं और धान की खेती शुरू की, लेकिन अपने दोस्तों के साथ एक सब्जी के फार्म का दौरा करने के बाद वे बहुत प्रभावित हुए और सब्जी की खेती की तरफ आकर्षित हो गये।

करीब 7 साल पहले (2010 में) उन्होने सब्जी की खेती शुरू की और शुरूआत में कई समस्याओं का सामना किया। फूलगोभी पहली सब्जी थी जिसे उन्होंने अपने 1.5 एकड़ खेत में उगाया और एक गंभीर नुकसान का सामना किया। लेकिन फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और सब्जी की खेती करते रहें। धीरे धीरे उन्होने अपने सब्जी क्षेत्र का विस्तार 7 एकड़ तक कर दिया और कद्दू, लौकी, बैंगन, प्याज और विभिन्न किस्मों की मिर्चें और करेले को उगाया और साथ ही उन्होंने नए पौधे तैयार करने शुरू किए और उन्हें बाज़ार में बेचना शुरू किया। धीरे धीरे उनके काम को गति मिलती रही और उन्होंने इससे अच्छा लाभ कमाया।

फूलगोभी के गंभीर नुकसान का सामना करने के बाद, भविष्य में ऐसी स्थितियों से बचने के लिए सतवीर सिंह ने सब्जी की खेती बहुत ही बुद्धिमानी और योजना बनाकर की। पहले वे ग्राहक और मंडी की मांग को समझते हैं और उसके अनुसार वे सब्जी की खेती करते हैं। वे एक एकड़ में सब्जी की एक किस्म को उगाते हैं फिर मंडीकरण की समस्याओं का समाधान करते हैं। उन्होंने पी ए यू के समारोह में भी हिस्सा लिया जहां उनहें विभिन्नि खेतों को देखने का मौका मिला और नेट हाउस फार्मिंग के ढंग को सीखा और वर्तमान में वे अपनी सब्जियों को संरक्षित वातावरण देने के लिए इस ढंग का प्रयोग करते हैं। उन्होंने थोड़े समय पहले टुटुमा चप्पन कद्दू की खेती की और दिसंबर में सही समय पर बाज़ार में उपलब्ध करवाया था। इससे पहले इसी सब्जी का स्टॉक गुजरात से बाज़ार में पहुंचा था। इस तरह उन्होंने अपने सब्जी उत्पाद को बाज़ार में अच्छी कीमत पर बेच दिया। इसके इलावा, वे हर बार अपने उत्पाद को बेचने के लिए मंडी में स्वंय जाते हैं और किसी पर भी निर्भर नहीं होते।

सर्दियों में वे पूरे 7 एकड़ भूमि में सब्जियों की खेती करते हैं और गर्मियों में इसे कम करके 3.5 एकड़ में खेती करते हैं और बाकी की भूमि धान और गेहूं की खेती के लिए प्रयोग करते हैं। पूरे गांव में सिर्फ उनका ही खेत सब्जियों की खेती से ढका होता है और बाकी का क्षेत्र धान और गेहूं से ढका होता है। अपनी कुशल कृषि तकनीकों और मंडीकरण नीतियों के लिए, उन्हें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से चार पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उनकी अनेक उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह है कि उन्होंने कद्दू की एक नई किस्म को विकसित किया है और उसका नाम अपने बेटे के नाम पर कबीर पंपकीन रखा है।

वर्तमान में वे अपने परिवार (माता, पिता, पत्नी, दो बेटों और बड़े भाई और उनकी पत्नी सिंगापुर में बस गए हैं) के साथ सधाना गांव में रह रहे हैं जो कि पंजाब के बठिंडा जिले में स्थित है। उनके पिता उनकी मुख्य प्रेरणा थे जिन्होंने खेती की शुरूआत की, लेकिन अब उनके पिता खेत में ज्यादा काम नहीं करते। वे सिर्फ घर पर रहते हैं और बच्चों के साथ समय बिताते हैं। आज उनके सफलतापूर्वक खेती अनुभव के पीछे उनके परिवार का समर्थन है और वे पूरा श्रेय अपने परिवार को देते हैं।

सतवीर सिंह अपने खेत का प्रबंधन केवल एक स्थायी कर्मचारी की मदद से करते हैं और कभी कभी महिला श्रमिकों को सब्जियां चुनने के लिए नियुक्त कर लेते हैं। सब्जियों की कीमत के आधार पर वे एक एकड़ ज़मीन से एक मौसम में 1-2 लाख कमाते हैं।

भविष्य कि योजना
भविष्य में वे जैविक खेती करने की योजना बना रहे हैं और वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए उन्होंने 3 दिन की ट्रेनिंग भी ली है। वे लोगों को जैविक और गैर कार्बनिक सब्जियों और खाद्य उत्पादों के बीच के अंतर से अवगत करवाना चाहते हैं। वे ये भी चाहते हैं कि सब्जियों को अन्य किराने के सामान जैसे पैकेट में भी आना चाहिए ताकि लोग समझ सकें कि वे कौन से खेत और कौन से ब्रांड की सब्जी खरीद रहे हैं।

किसानों को संदेश
“मैंने अपने ज्ञान में कमी होने के कारण शुरू में बहुत कठिनाइयों का सामना किया। लेकिन अन्य किसान जो कि सब्जियों की खेती करने में दिलचस्पी रखते हैं उन्होंने मेरी तरह गल्ती नहीं करनी चाहिए और सब्जियों की खेती शुरू करने से पहले किसी माहिर से सलाह लेनी चाहिए और सब्जियों की मंडी का विश्लेषण करना चाहिए। इसके इलावा, जिन किसानों के पास पर्याप्त संसाधन है उन्हें अपनी प्राथमिक जरूरतों को बाज़ार से खरीदने की बजाय स्वंय पूरा करना चाहिए।”

अवतार सिंह रतोल

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53 वर्षीय किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और बागबानी के क्षेत्र में दोहरा लाभ कमा रहे हैं।

खेती सिर्फ गायों और हल चलाने तक ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है!

आज खेतीबाड़ी के क्षेत्र में, करने के लिए कई नई चीज़ें हैं जिसके बारे में सामान्य शहरी लोगों को नहीं पता है। बीज की उन्नत किस्मों का रोपण करने से लेकर खेतीबाड़ी की नई और आधुनिक तकनीकों को लागू करने तक, खेतीबाड़ी किसी रॉकेट विज्ञान से कम नहीं हैं और बहुत कम किसान हैं जो समझते हैं कि बदलते वक्त के साथ खेतीबाड़ी की पद्धति में बदलाव उन्हें कई भविष्य के खतरों को कम करने में मदद करता है। एक ऐसे ही संगरूर जिले के गांव सरोद के किसान – सरदार अवतार सिंह रतोल हैं जिन्होंने समय के साथ बदलाव के तथ्य को बहुत अच्छी तरह से समझा।

एक किसान के लिए 32 वर्षों का अनुभव बहुत ज्यादा है और सरदार अवतार सिंह रतोल ने अपने बागबानी के रोज़गार को एक सही दिशा में आकार देने में इसे बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने 50 एकड़ में सब्जियों की खेती से शुरूआत की और धीरे-धीरे अपने खेतीबाड़ी के क्षेत्र का विस्तार किया। बढ़िया सिंचाई के लिए उन्होंने 47 एकड़ में भूमिगत पाइपलाइन लगाई जिसका उन्हें भविष्य में बहुत लाभ हुआ।

अपनी खेतीबाड़ी की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और संगरूर में फार्म सलाहकार सेवा केंद्र से ट्रेनिंग ली। अपनी ट्रेनिंग के दौरान मिले ज्ञान से उन्होंने 4000 वर्ग फीट में दो बड़े हाई-टैक पॉलीहाउस का निर्माण किया और इसमें खीरे एवं जरबेरा फूल की खेती की। खीरे और जरबेरा की खेती से उनकी वर्तमान में वार्षिक आमदन 7.5 लाख रूपये है जो कि उनके खेतीबाड़ी उत्पादों के प्रबंध के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा है।

बागबानी सरदार अवतार सिंह रतोल के लिए पूर्णकालिक जुनून बन गया और बागबानी में अपनी दिलचस्पी को और बढ़ाने के लिए वे बागबानी की उन्नत तकनीकों को सीखने के लिए विदेश गए। विदेशी दौरे ने फार्म की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डाला और सरदार अवतार सिंह रतोल ने आलू, मिर्च, तरबूज, शिमला मिर्च, गेहूं आदि फसलों की खेती में एक बड़ी सफलता हासिल की। इसके अलावा उन्होंने सब्जियों की नर्सरी तैयार करी और दूसरे किसानों को बेचनी भी शुरू कर दी।

उनकी उपलब्धियों की संख्या

पानी बचाने के लिए तुपका सिंचाई प्रणाली को अपनाना, सब्जियों के छोटे पौधों को लगाने के लिए एक छोटा ट्रांस प्लांटर विकसित करना और लो टन्ल तकनीक का प्रयोग उनकी कुछ उपलब्धियां हैं जिन्होंने उनकी शिमला मिर्च और कई अन्य सब्जियों की सफलतापूर्वक खेती करने में मदद की। अपने फार्म पर इन सभी आधुनिक तकनीकों को लागू करने में उन्हें कोई मुश्किल नहीं हुई जिसने उन्हें और तरक्की करने के लिए प्रेरित किया।

पुरस्कार
• दलीप सिंह धालीवाल मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित।

• बागबानी में सफलता के लिए मुख्यमंत्री अवार्ड द्वारा सम्मानित।


संदेश
“बागबानी बहुत सारे नए खेती के ढंगों और प्रभावशाली लागत तकनीकों के साथ एक लाभदायक क्षेत्र है जिसे अपनाकर किसान को अपनी आय को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए।”

यादविंदर सिंह

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पंजाब के इस किसान ने गेहूं-धान की पारंपरिक खेती के स्थान पर एक सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना और इससे दोहरा लाभ कमा रहे हैं

पंजाब में जहां आज भी धान और गेहूं की खेती जारी है वहीं कुछ किसानों के पास अभी भी विकल्पों की कमी है। किसानों के पास भूमि का एक छोटा टुकड़ा होता है और कम जागरूकता वाले किसान अभी भी गेहूं और धान के पारंपरिक चक्र में फंसे हुए हैं। लेकिन बठिंडा जिले के चक बख्तू गांव के यादविंदर सिंह ने खेतीबाड़ी की पुरानी पद्धति को छोड़कर नर्सरी की तैयारी और सब्जियों की जैविक खेती शुरू की।

अपने लाखों सपनों को पूरा करने की इच्छा रखने वाले एक युवा यादविंदर सिंह ने अपनी ग्रेजुएशन के बाद होटल मैनेजमेंट में अपना डिप्लोमा पूरा किया और उसके बाद दो साल के लिए सिंगापुर में एक प्रतिष्ठित शेफ रहे। लेकिन वे अपने काम से खुश नहीं थे और सब कुछ होने के बावजूद भी अपने जीवन में कुछ कमी महसूस करते थे। इसलिए वे वापिस पंजाब आ गए और पूरे निश्चय के साथ खेतीबाड़ी के क्षेत्र में प्रवेश करने का फैसला किया।

2015 में उन्होंने अपना जैविक उद्यम शुरू किया लेकिन इससे पहले उन्होंने भविष्य के नुकसान से बचने के लिए बुद्धिमानी से काम लिया। अपनी चतुराई का प्रयोग करते हुए उन्होंने इंटरनेट की मदद ली और किसान मेलों में भाग लिया और जैविक सब्जियों को नर्सरी में तैयार करना शुरू किया। अपने ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए यादविंदर ने अपने व्यापार का लोगो (LOGO) भी डिज़ाइन किया।

अपने खेतीबाड़ी उद्यम के पहले वर्ष उन्होंने 1 लाख कमाया और आज वे सिर्फ 2 कनाल (5 एकड़) से 2.5 लाख से भी ज्यादा कमा रहे हैं। खेतीबाड़ी के साथ उन्होंने नर्सरी प्रबंधन भी शुरू किया जिसमें कि बीज की तैयारी, मिट्टी प्रबंधन शामिल है। यहां तक कि उन्हें नए पौधे बेचने के लिए मार्किट जाने की भी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि पौधे खरीदने के लिए किसान स्वंय उनके फार्म का दौरा करते हैं।

आज यादविंदर सिंह अपने व्यवसाय और अपनी आमदन से बहुत खुश हैं। भविष्य में वे अपनी खेतीबाड़ी के व्यवसाय को बढ़ाना चाहते हैं और अच्छा मुनाफा कमाने के लिए कुछ और फसलें उगाना चाहते हैं।

संदेश:
“हम जानते हैं कि सरकार साधारण किसानों के समर्थन के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करती। लेकिन किसानों को निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि मजबूत दृढ़ संकल्प और सही दृष्टिकोण से वे जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं।”

रत्ती राम

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एक उम्मीद की किरण जिसने रत्ती राम की खेतीबाड़ी को एक लाभदायक उद्यम में बदल दिया

रत्ती राम मध्य प्रदेश के हिनोतिया गांव के एक साधारण सब्जियां उगाने वाले किसान हैं। उन्नत तकनीकों और सरकारी स्कीमों का लाभ लेकर उन्होंने अपना सब्जियों का फार्म स्थापित किया जिससे कि आज वे करोड़ों में लाभ कमा रहे हैं। लेकिन यदि हम पहले की बात करें तो रत्ती राम एक हारे हुए किसान थे जिनके लिए जूते खरीदना भी मुश्किल काम था। आज उनके पास अपनी बाइक है जिसे वे गर्व से अपने गांव में चलाते हैं।

हालांकि रत्ती राम के पास खेती के लिए कम भूमि थी लेकिन जल संसाधनों की कमी ने उनके प्रयासों और भूमि के बीच प्रमुख हस्तक्षेप का काम किया। बारिश के मौसम में जब वे खेती करने की कोशिश करते थे तब अत्याधिक बारिश उनकी फसलों को खराब कर देती थी। ये सभी जलवायु परिस्थितियों और अन्य खमियां उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने का मुख्य कारण थी।

कम आमदन जो उन्हें खेती से प्राप्त होती थी उसे वे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने में खर्च कर देते थे और ये स्थितियां कई वित्तीय समस्याओं को जन्म दे रही थीं लेकिन एक दिन रत्ती राम को बागबानी विभाग के बारे में पता चला और वे नंगे पांव अपने गांव हिनोतिया के कलेक्टर राजेश जैन के ऑफिस जिला मुख्यालय (Head Quarter) की तरफ चल दिए। जब कलेक्टर ने रत्ती राम को देखा तो उन्होंने उनके दर्द को महसूस किया और अगला कदम जो उन्होंने उठाया, उसने रत्ती राम की ज़िंदगी को बदल दिया।

कलेक्टर ने रत्ती राम को बागबानी विभाग के अधिकारी के पास भेजा, जहां श्री रत्ती को विभिन्न बागबानी योजनाओं के बारे में पता चला। उन्होंने अमरूद, आंवला, हाइब्रिड टमाटर, भिंडी, आलू, लहसुन, मिर्च आदि के बीज लिए और बागबानी योजनाओं और सब्सिडी की मदद से उन्होंने ड्रिप सिंचाई प्रणाली, स्प्रेयर, बिजली स्प्रे पंप, पावर ड्रिलर की भी स्थापना की। इसके अलावा, कलेक्टर ने उन्हें सब्सिडी दर के तहत एक पैक हाउस लगाने में मदद की।

रत्ती राम ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती शुरू कर दी और एक साल में रत्ती राम ने 1 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया जिससे उन्होंने मैटाडोर वैन, दो बाइक और दो ट्रैक्टर खरीदे। वाहनों में निवेश करने के अलावा उन्होंने अन्य संसाधनों में भी निवेश किया और 3 पानी के कुएं बनवाए, 12 ट्यूबवैल और 4 घर विभिन्न स्थानों पर खरीदे। उन्होंने खेती के लिए 20 एकड़ भूमि खरीदकर अपनी खेती के क्षेत्र का विस्तार किया और किराये पर 100 एकड़ ज़मीन ली। आज वे अपने परिवार के साथ खुशी से रह रहे हैं और कुछ समय पहले उन्होंने अपने दो बेटों और एक बेटी की शादी भी धूमधाम से की।

रत्ती राम भारत में उन सभी किसानों के लिए एक आदर्श हैं जो खुद को असहाय और अकेला महसूस करते हैं और उम्मीदों को खो बैठते हैं, क्योंकि रत्ती राम ने अपने मुश्किल समय में कभी भी अपनी उम्मीद को नहीं छोड़ा।

सरदार गुरमेल सिंह

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जानिये कैसे गुरमेल सिंह ने अपने आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती में लाभ कमाया

गुरमेल सिंह एक और प्रगतिशील किसान पंजाब के गाँव उच्चागाँव (लुधियाना),के रहने वाले हैं। कम जमीन होने के बावजूद भी वे पिछले 23 सालों से सब्जियों की खेती करके बहुत लाभ कमा रहे हैं। उनके पास 17.5 एकड़ जमीन है जिसमें 11 एकड़ जमीन अपनी है और 6 .5 एकड़ ठेके पर ली हुई है।

आधुनिक खेती तकनीकें ड्रिप सिंचाई, स्प्रे सिंचाई, और लेज़र लेवलर जैसे कई पावर टूल्स उनके पास हैं जो इन्हें कुशल खेती और पानी का संरक्षण करने में सहायता करते हैं। और जब बात कीटनाशक दवाइयों की आती है तो वे बहुत बुद्धिमानी से काम लेते हैं। वे सिर्फ पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की सिफारिश की गई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे अच्छी पैदावार के लिए अपने खेतों में हरी कुदरती खाद का इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी आधुनिक तकनीक जो वह सब्जियों के विकास के लिए 6 एकड़ में हल्की सुरंग का सही उपयोग कर रहे हैं। कुछ फसलों जैसे धान, गेहूं, लौंग, गोभी, तरबूज, टमाटर, बैंगन, खीरा, मटर और करेला आदि की खेती वे विशेष रूप से करते हैं। अपने कृषि के व्यवसाय को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सोया के हाइब्रिड बीज तैयार करने और अन्य सहायक गतिविधियां जैसे कि मधुमक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग आदि की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से हासिल की।

मंडीकरण
उनके अनुभव के विशाल क्षेत्र में ना सिर्फ विभिन्न फसलों को लाभदायक रूप से उगाना शामिल है, बल्कि इसी दौरान उन्होंने अपने मंडीकरण के कौशल को भी बढ़ाया है और आज उनके पास “आत्मा किसान हट (पटियाला)” पर अपना स्वंय का बिक्री आउटलेट है। उनके प्रासेसड किए उत्पादों की गुणवत्ता उनकी बिक्री को दिन प्रति दिन बढ़ा रही है। उन्होंने 2012 में ब्रांड नाम “स्मार्ट” के तहत एक सोया प्लांट भी स्थापित किया है और प्लांट के तहत वे, सोया दूध, पनीर, आटा ओर गिरियों जैसे उत्पादों को तैयार करते और बेचते हैं।

उपलब्धियां
वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और जल्दी ही उन्हें CRI पम्प अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

संदेश:
“यदि वह सेहतमंद ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो किसानों को अपने खेत में कम कीटनाशक और रसायनों का उपयोग करना चाहिए और तभी वे भविष्य में धरती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं।”