मोहम्मद गफूर

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1 बीघा ज़मीन से शुरू करके 65 एकड़ ज़मीन तक का खेती सफरमोहम्मद गफूर

पंजाब के नामी शहर पटियाला के एक बहुत ही प्रतिभाशाली किसान मोहम्मद गफूर, जो अपनी कड़ी मेहनत से खुद का खेती व्यवसाय स्थापित करने में सफल हुए। केवल 1 बीघा ज़मीन से शुरुआत करके, उन्होंने अब अपने खेती व्यवसाय को 65 एकड़ तक बढ़ा लिया है। आज, गफूर जी खेती की बारीकियों में विशेषज्ञ हैं, और अपने दृढ़ संकल्प और अटूट भावना के माध्यम से उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर रहे हैं।

मलेरकोटला शहर के रहने वाले मोहम्मद गफूर के पिता की 1983 में अचानक ही मृत्यु हो गई और परिवार की पूरी जिम्मेदारी का बोझ गफूर के युवा कंधो पर गया। जिस वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और अपने परिवार का पालनपोषण करने का रास्ता खोजना पड़ा। सब्जियों की एक छोटी नर्सरी से गफूर के कृषि सफर की शुरूआत हुई। जल्दी ही उन्हें यह एहसास हुआ कि शायद यही वो रास्ता है जिस पर चलकर वे अपनी सभी जिम्मेदारियां पूरी कर सकते हैं।

खेती में गफूर जी की उन्नति असाधारण थी। 1992 में उन्हें खालसा कॉलेज की 6 से 7 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का मौका मिला, जो उनके कृषि सफर के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ। वर्ष 2000 में, गफूर ने अपनी खेती के काम को 20 एकड़ तक बढ़ाया और 2004 तक, उन्होंने अपनी ज़मीन बढ़ाकर 31 एकड़ कर ली। अपनी अपार मेहनत और प्रयासों से उन्हें बहुत अच्छे परिणाम मिले और 2017 में उनकी ज़मीन 41 एकड़ से बढ़कर 65 एकड़ हो गई और आज वे गर्व से गर्व सेठेके पर ली गई 65 एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं।

खेती की समस्याओं को अनुभव के माध्यम से समझने की योग्यता गफूर को दूसरों से अलग करती है। उन्हें किसी भी कृषि संस्थान से कोई औपचारिक ट्रेनिंग या मार्गदर्शन नहीं मिला। समय के साथ, उन्होंने खेती की कला में महारत हासिल कर ली और विभिन्न कृषि तकनीकों में निपुण हो गए। गफूर की सफलता, खेती में उनके अनुभव और अथक मेहनत का परिणाम है।

पूरे वर्षों में, गफूर ने उत्पादन बढ़ाने विभिन्न फसलों और सिंचाई तकनीकों का प्रयोग किया। शुरूआती दिनों में वे संगरूर नेहरू मार्केट और मोगा में काम करते थे जहां पर वे पनीरी बेचते थे। 1991 में वे राजपुरा गए और अंतत: पटियाला में बस गए। इसी समय के दौरान गफूर ने मल्चिंग सिंचाई ढंग का उपयोग करना शुरू किया, जिसका उपयोग वह पिछले 5 वर्षों से कर रहे हैं। इसके अलावा, वह अपनी 15 एकड़ ज़मीन पर ड्रिप प्रणाली का उपयोग करते हैं और इस पहल के लिए उन्हें पटियाला के अधिकारियों और केंद्र सरकार दोनों की तरफ से सब्सिडी भी मिलती है।

गफूर की विशेषज्ञता केवल खेती तक बल्कि फसल योजना तक भी फैली हुई है। गफूर जी ने सब्जियों के लिए 15 एकड़, गेहूं के लिए 5 एकड़ और धान के लिए 25 एकड़ जमीन आरक्षित रखी है। खेती में अधिक ज्ञान होने के कारण उन्हें साथी किसानों से सम्मान मिला, जो अक्सर उनकी सलाह और सहायता चाहते हैं। गफूर जी दूसरे किसानों की सब्जी की खेती करने में मदद करते हैं और दवाओं और स्प्रे के नामों के बारे में मार्गदर्शन करते रहते हैं।

मोहम्मद गफूर के परिवार ने उनके कृषि के सफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके तीन भाई सक्रिय रूप से खेती में लगे हुए हैं, और बाकी भाईबहनों ने बीज की दुकानें स्थापित की हैं। 2000 में, गफूर एक आर्मी के सब्जी ठेकेदार बन गए और उन्हें अपनी 10 एकड़ की उपज बेचनी शुरू कर दी। यह समझौता जारी है और इससे दोनों पक्षों को लाभ होता है। भविष्य में गफूर जब तक संभव हो खुद खेती करना चाहते हैं। वर्तमान में, उनके बच्चे अपने खुद के सफल व्यवसायों में शामिल हैं और सीधे तौर पर खेती से जुड़े हुए नहीं हैं।

गफूर की खेती के प्रयास लाभदायक रहे। अनुबंधित ज़मीन पर गेहूं और धान की खेती से प्रति एकड़ लगभग 10,000 से 15,000 रुपये की कमाई होती है। सब्जियों की खेती से और भी अधिक 50,000 से 100,000 रुपये प्रति एकड़ मुनाफा कमाने की क्षमता है। हालांकि, गफूर सिर्फ इन आंकड़ों पर निर्भर रहने के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि बाजार दरों में उतारचढ़ाव होता रहता है। वह किसानों को सलाह देते हैं कि वे अपने निवेश पर सावधानीपूर्वक विचार करें और छोटे पैमाने से शुरुआत करें, धीरेधीरे अपना काम बढ़ाएं।

खेती में मदद के लिए, गफूर सीज़न के दौरान 40 से 50 श्रमिकों को रोज़गार देते हैं। जैसेजैसे सीज़न ख़त्म होता है, संख्या घटकर लगभग 20 हो जाती है। गफूर अपने फार्म के प्रति समर्पित है और भविष्य में रिटायर होने की उनकी कोई योजना नहीं है। वह विनम्र और ज़मीन से जुड़े रहना चाहते हैं और इसके लिए किसी भी पुरस्कार को स्वीकार नहीं करना चाहते। गफूर का खेती से प्रेम, त्याग और कड़ी मेहनत पूरे क्षेत्र के किसानों को प्रेरित करती है। गफूर की विरासत निस्संदेह किसानों की नई पीढ़ी को चुनौतियों का सामना करने और कृषि के क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रेरित करेगी।

किसानों को संदेश

साथी किसानों के लिए गफूर जी का संदेश स्पष्ट है: केवल दूसरों पर निर्भर रहें, छोटी शुरुआत करें, अनुभव हासिल करें और लगातार बढ़ते रहें।

गुरचरन सिंह मान

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जानें कैसे गुरचरन सिंह मान ने विविध खेती और अन्य सहायक गतिविधियों के द्वारा अपनी ज़मीन से अधिकतम उत्पादकता ली

भारत में विविध खेती का रूझान इतना आम नहीं है। गेहूं, धान और अन्य पारंपरिक फसलें जैसे जौं आदि मुख्य फसलें हैं जिन्हें किसान उगाने के लिए पहल देते हैं। वे इस तथ्य से अनजान है कि परंपरागत खेती ना केवल मिट्टी के उपजाऊपन को प्रभावित करती है बल्कि किसान को भी प्रभावित करती है और कभी कभी यह उन्हें कमज़ोर भी बना देती है। दूसरी ओर विविध खेती को यदि सही ढंग से किया जाए तो इससे किसान की आय में बढ़ोतरी होती है। एक ऐसे ही किसान – गुरचरन सिंह संधु जिन्होंने विविध खेती की उपयोगिता को पहचाना और इसे उस समय लागू करके लाभ कमाया जब उनकी आर्थिक स्थिति बिल्कुल ही खराब थी।

गुरचरन सिंह संधु बठिंडा जिले के तुंगवाली गांव के एक साधारण से किसान थे। जिस स्थान से वे थे वह बहुत ही शुष्क और अविकसित क्षेत्र था लेकिन उनकी मजबूत इच्छा शक्ति के सामने ये बाधाएं कुछ भी नहीं थी।

1992 में युवा उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खेती करनी शुरू की। उनके पास पहले से ही 42 एकड़ ज़मीन थी लेकिन वे इससे कभी संतुष्ट नहीं थे। शुष्क क्षेत्र होने के कारण गेहूं और धान उगाना उनके लिए एक सफल उद्यम नहीं था। कई कोशिश करने के बाद जब गुरचरन पारंपरिक और रवायती खेती में सफल नहीं हुए तो उन्होंने खेती के ढंगों में बदलाव लाने का फैसला किया। उन्होंने विविध खेती को अपनाया और इस पहल के कारण उन्हें Punjab Agriculture University के द्वारा वर्ष का सर्वश्रेष्ठ किसान चुना गया और विविध खेती अपनाने के लिए उन्हें PAU के पूर्व अध्यापक मनिंदरजीत सिंह संधु द्वारा “Parwasi Bharti Puraskar” से सम्मानित किया गया।

आज 42 एकड़ में से उनके पास 10 एकड़ में बाग हैं, 2.5 एकड़ में सब्जियों की खेती, 10 एकड़ में मछली फार्म और आधे एकड़ में बरगद के वृक्ष हैं। हालांकि उनके लिए विविध खेती के अलावा वास्तविक खेल प्रवर्त्तक, जिसने सब कुछ बदल दिया वह था मधु मक्खी पालन। उन्होंने मक्खीपालन की सिर्फ मक्खियों के 7 बक्से से शुरूआत की और आज उनके पास 1800 से भी अधिक मधुमक्खियों के बक्से हैं जिनसे प्रत्येक वर्ष एक हज़ार क्विंटल शहद का उत्पादन होता है।

श्री गुरचरन अपने काम में इतने परिपूर्ण हैं कि उनके द्वारा निर्मित शहद की गुणवत्ता अति उत्तम हैं और कई देशों में मान्यता प्राप्त है। मक्खीपालन में उनकी सफलता ने उनके गांव में शहद प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने के लिए जिला प्रशासन का नेतृत्व किया और इस प्लांट ने 15 लोगों को रोजगार दिया जो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। उनका मधुमक्खी पालन व्यवसाय ना केवल उन्हें लाभ देता है बल्कि कई अन्य लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।

श्री गुरचरन ने विभिन्नता के वास्तविक अर्थ को समझा और इसे ना केवल सब्जियों की खेती पर लागू किया बल्कि अपने व्यवसाय पर भी इसे लागू किया। उनके पास बागान, मछली फार्म, डेयरी फार्म हैं और इसके अलावा वे जैविक खेती में भी निष्क्रिय रूप से शामिल हैं। मधुमक्खी पालन व्यवसाय से उन्होंने मधुमक्खी बक्से बनाने और मोमबत्ती बनाने जैसी अन्य गतिविधियों को शुरू किया है।

“एक चीज़ जो प्रत्येक किसान को करनी चाहिए वह है मिट्टी और पानी की जांच और दूसरी चीज़ किसानों को यह समझना चाहिए कि यदि एक किसान आलू उगा रहा है तो दूसरे को लहसुन उगाना चाहिए उन्हें कभी किसी की नकल नहीं करनी चाहिए।”

मधुमक्खी पालन अब उनका प्राथमिक व्यवसाय बन चुका है इसलिए उनके फार्म का नाम “Mann Makhi Farm” है और शहद के अलावा वे जैम, आचार, मसाले जैसे हल्दी पाउडर और लाल मिर्च पाउडर आदि भी बनाते हैं। वे इन सभी उत्पादों का मंडीकरण “Maan” नाम के तहत करते हैं।

वर्तमान में उनका फार्म आस पास के वातावरण और मनमोहक दृश्य के कारण Punjab Tourism के अंतर्गत आता है उनका फार्म वृक्षों की 5000 से भी ज्यादा प्रजातियों से घिरा हुआ है और वहां का दृश्य प्रकृति के नज़दीक होने का वास्तविक अर्थ देता है।

उनके अनुसार आज उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया वह सिर्फ PAU के कारण। शुरूआत से उन्होंने वही किया जिसकी PAU के माहिरों द्वारा सिफारिश की गई। अपने काम में अधिक व्यावसायिकता लाने के लिए उन्होंने उच्च शिक्षा भी हासिल की और बाद में technical and scientific inventions में ग्रेजुएशेन की।

गुरचरन सिंह की सफलता की कुंजी है उत्पादन लागत कम करना, उत्पादों को स्वंय मंडी में लेकर जाना और सरकार पर कम से कम निर्भर रहना। इन तीनों चीज़ें अपनाकर वे अच्छा लाभ कमा रहे हैं।

उन्होंने खेती के प्रति सरकार की पहल से संबंधित अपने विचारों पर भी चर्चा की –

“ सरकार को खेतीबाड़ी में परिवर्तन को और उत्साहित करने की तरफ ध्यान देना चाहिए। रिसर्च के लिए और फंड निर्धारित करने चाहिए और नकदी फसलों के लिए सहयोग मुल्य पक्का करना चाहिए तभी किसान खेतीबाड़ी में परिवर्तन को आसानी से अपनाएंगे।”

संदेश
किसानों को इस प्रवृत्ति का पालन नहीं करना चाहिए कि अन्य किसान क्या कर रहे हैं उन्हें वह काम करना चाहिए जिसमें उन्हें लाभ मिले और अगर उन्हें मदद की जरूरत है तो कृषि विशेषज्ञों से मदद ले सकते हैं। फिर चाहे वे पी ए यू के हों या किसी अन्य यूनिवर्सिटी के क्योंकि वे हमेशा अच्छा सुझाव देंगे।