धरमजीत सिंह

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एक सफल अध्यापक के साथ साथ एक सफल किसान बनने तक का सफर

कोई भी पेशा आसान नहीं होता, मुश्किलें हर क्षेत्र में आती हैं। चाहे वह क्षेत्र कृषि हो या कोई और व्यवसाय। अपने रोज़ाना के काम को छोड़ना और दूसरे पेशे को अपनाना एक चुनौती ही होती है, जिसने चट्टान की तरह चुनौतियों का सामना किया है, आखिरकार वही जीतता है।

इस कहानी के माध्यम से हम एक प्रगतिशील किसान के बारे में बात करेंगे, जो एक स्कूल शिक्षक के रूप में एक तरफ बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर रहें है और दूसरी तरफ जैविक खेती के माध्यम से लोगों के जीवन को स्वास्थ्य कर रहे हैं, क्योंकि कोई कोई ही ऐसा होता है जो खुद का नहीं, दूसरों का भला सोचता है।

ऐसे ही किसानों में से एक “धर्मजीत सिंह” हैं, जो गांव माजरी, फतेहगढ़ साहिब के निवासी हैं। जैसा कि कहा जाता है, “जैसे नाम वैसा काम” अर्थ कि जिस तरह का धरमजीत सिंह जी का नाम है वे उस तरह का ही काम करते हैं। दुनिया में इस तरह के बहुत कम देखने को मिलते हैं।

काम की सुंदरता उस व्यक्ति पर निर्भर करती है जिसके लिए उसे सौंपा गया है। ऐसा काम, जिनके बारे में वे जानते भी नहीं थे और न कभी सुना था।

जब सूरज चमकता है, तो हर उस जगह को रोशन कर देता है जहां केवल अंधेरा होता है। उसी तरह से, धर्मजीत सिंह के जीवन पर यह बात लागू होती है क्योंकि बेशक वे उस रास्ते से जा रहे थे, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं थी, वह खेती तो कर रहे थे लेकिन जैविक नहीं।

जब समय आता है, वह पूछ कर नहीं आता, वह बस आ जाता है। एक ऐसा समय तब आया जब उन्हें रिश्तेदार उनसे मिलने आये थे। एक दूसरे से बात करते हुए, अचानक, कृषि से संबंधित बात होने लगी। बात करते करते उनके रिश्तेदारों ने जैविक खेती के बारे में बात की, तो धर्मजीत सिंह जी जैविक खेती का नाम सुनकर आश्चर्यचकित थे। जैविक और रासायनिक खेती में क्या अंतर है, खेती तो आखिर खेती है। तब उनके रिश्तेदार ने कहा, “जैविक खेती बिना छिड़काव, दवाई, रसायनिक खादों के बिना की जाती है और प्राकृतिक से मिले तोहफे को प्रयोग कर जैसे केंचए की खाद, जीव अमृत आदि बहुत से तरीके से की जाती है।

पर मैंने तो कभी जैविक खेती की ही नहीं यदि मैंने अब जैविक खेती करनी हो तो कैसे कर सकता हूँ- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने एक अभ्यास के रूप में एक एकड़ में गेहूं की फसल लगाई। उन्होंने फसल की काश्त तो कर दी और रिश्तेदार चले गए, लेकिन वे दोनों चिंतित थे और फसल के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे, कि फसल की कितनी पैदावार होगी। वे इस बात से परेशान थे।

जब फसल पक चुकी थी, तो उसका आधा हिस्सा उसके रिश्तेदारों ने ले लिया और बाकी घर ले आए। लेकिन पैदावार उनकी उम्मीद से कम थी।

जब मैंने और मेरे परिवार ने फसल का प्रयोग किया तो चिंता ख़ुशी में बदल गई- धरमजीत सिंह

फिर उन्होंने मन बनाया कि अगर खेती करनी है, तो जैविक खेती करनी है। इसलिए उन्होंने मौसम के अनुसार फिर से खेती शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने 11 एकड़ में जैविक खेती शुरू की।

जैविक खेती उनके लिए एक चुनौती जैसी थी जिसका सामना करते समय उन्हें कठिनाइयां भी आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस साहस को ध्यान में रखते हुए, वह अपने रस्ते पर चलते रहे और जैविक खेती के बारे में जानकारी लेते रहे और सीखते रहें। जब फसल पक गई और कटाई के लिए तैयार हो गई तो वह बहुत खुश थे।

फसल की पैदावार कम हुई थी, जिससे ग्रामीणों ने मजाक उड़ाया कि यह रासायनिक खेती से लाभ कमा रहा था और अब यह नुकसान कर रहा है।

जब मैं अकेला बैठ कर सोचता था, तो मुझे लगा कि मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं- धर्मजीत सिंह

एक ओर वे परेशान थे और दूसरी ओर वे सोच रहे थे कि कम से कम वह किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे। जो भोजन मैं स्वयं खाता हूं और दूसरों को खिलाता हूं वह शुद्ध और स्वच्छ होता है।

ऐसा करते हुए, उन्होंने पहले 4 वर्षों बहु-फसल विधि को अपनाने के साथ-साथ जैविक खेती सीखना शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने गन्ना, दलहन और अन्य मौसमी फसलों की खेती शुरू की।

अच्छी तरह से सीखने के बाद, उन्होंने पिछले 4 वर्षों में मंडीकरण करना भी शुरू किया। वैसे, वे 8 वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं। जैविक खेती के साथ-साथ उन्होंने जैविक खाद बनाना भी शुरू किया, जिसमें वर्तमान में केवल केंचए की खाद और जीव अमृत का उपयोग करते हैं।

इसके बाद उन्होंने सोचा कि प्रोसेसिंग भी की जाए, धीरे-धीरे प्रोसेसिंग करने के साथ उत्पाद बनाना शुरू कर दिया। जिसमें वे लगभग 7 से 8 प्रकार के उत्पाद बनाते हैं जो बहुत शुद्ध और देसी होते हैं।

उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद-

  • गेहूं का आटा
  • सरसों का तेल
  • दलहन
  • बासमती चावल
  • गुड़
  • शक़्कर
  • हल्दी

जिसका मंडीकरण गाँव के बाहर किया जाता है और अब पिछले कई वर्षों से जैविक मंडी चंडीगढ़ में कर रहे है। वे मार्केटिंग के माध्यम से जो कमा रहे हैं उससे संतुष्ट हैं क्योंकि वे कहते हैं कि “थोड़ा खाएं, लेकिन साफ खाएं”। इस काम में केवल उनका परिवार उनका साथ दे रहा है।

अगर अच्छा उगाएंगे, तो हम अच्छा खाएंगे

भविष्य की योजना

वह अन्य किसानों को जैविक खेती के महत्व के बारे में बताना चाहते हैं और उन किसानों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जो जैविक खेती न कर रासायनिक खेती कर रहे हैं। वे अपने काम को बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं, क्योंकि वे यह बताना चाहते हैं कि जैविक खेती एक सौदा नहीं है, बल्कि शरीर को स्वस्थ रखने का राज है।

संदेश

हर किसान जो खेती करता है, जब वह खेती कर रहा होता है, तो उसे सबसे पहले खुद को और अपने परिवार को देखना चाहिए, जो वे ऊगा रहे हैं वह सही और शुद्ध उगा रहे है, तभी खेती करनी चाहिए।

संदीप सिंह

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नौकरी छोड़ कर अपने पिता के रास्ते पर चलकर आधुनिक खेती कर कामयाब हुआ एक नौजवान किसान- संदीप सिंह

एक ऊँचा और सच्चा नाम खेती, लेकिन कभी भी किसी ने कृषि के पन्नों को खोलकर नहीं देखा यदि हर कोई खेती के पन्नों को खोलकर देखना शुरू कर दें तो उन्हें खेती के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त हो जाएगी और हर कोई खेती में सफल हो सकता है। सफल खेती वह है जिसमें नए-नए तरीकों से खेती करके ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा सकते है।

ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं, संदीप सिंह जो गाँव भदलवड, ज़िला संगरूर के रहने वाले हैं और M Tech की हुई है जो अपने पिता के बताए हुए रास्ते पर चलकर और एक अच्छी नौकरी छोड़कर खेती में आज इस मुकाम पर पहुंच चुके है, यहाँ हर कोई उनसे कृषि के तरीकों के बारे में जानकारी लेने आता है। छोटी आयु में सफलता प्राप्त करने का सारा श्रेय अपने पिता हरविंदर सिंह जी को देते हैं, क्योंकि उनके पिता जी पिछले 40 सालों से खेती कर रहे हैं और खेती में काफी अनुभव होने से प्रेरणा अपने पिता से ही मिली है।

उनके पिता हरविंदर सिंह जो 2005 से खेती में बिना कोई अवशेष जलाए खेती करते आ रहे हैं। उसके बाद 2007 से 2011 तक धान के पुआल को आग न लगाकर सीधी बिजाई की थी, जिसमें वे कामयाब हुए और उससे खेती की उपजाऊ शक्ति में बढ़ावा हुआ और साथ ही खर्चे में कमी आई है। हमेशा संदीप अपने पिता को काम करते हुए देखा करता था और खेती के नए-नए तरीकों के बारे जानकारी प्रदान करता था।

2012 में जब संदीप ने M Tech की पढ़ाई पूरी की तब उन्हें अच्छी आय देने वाले नौकरी मिल रही थी लेकिन उनके पिता ने संदीप को बोला, तुम नौकरी छोड़कर खेती कर जो नुस्खे तुम मुझे बताते थे अब उनका खेतों में प्रयोग करना। संदीप अपने पिता की बात मानते हुऐ खेती करने लगे।

मुझे नहीं पता था कि एक दिन यह खेती मेरी ज़िंदगी में बदलाव करेगी- संदीप सिंह

जब संदीप परंपरागत खेती कर रहा था तो सभी कुछ अच्छे तरीके से चल रहा था और पिता हरविंदर ने बोला, बेटा, खेती तो कब से ही करते आ रहे हैं, क्यों न बीजों पर भी काम किया जाए। इस बात के ऊपर हाँ जताते हुए संदीप बीजों वाले काम के बारे में सोचने लगा और बीजों के ऊपर पहले रिसर्च की, जब रिसर्च पूरी हुई तो संदीप ने बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का फैसला लिया।

फिर मैंने देरी न करते हुए के.वी.के. खेड़ी में बीज प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स पूरा किया- संदीप सिंह

2012 में ही फिर उन्होंने गेहूं, चावल, गन्ना, चने, सरसों और अन्य कई प्रकार के बीजों के ऊपर काम करना शुरू कर दिया जिसकी पैकिंग और प्रोसेसिंग का सारा काम अपने तेग सीड प्लांट नाम से चला रहे फार्म में ही करते थे और उसकी मार्केटिंग धूरी और संगरूर की मंडी में जाकर और दुकानों में थोक के रूप में बेचने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा।

संदीप ने बीजों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम तो करना शुरू किया था तो उसका बीजों के कारण और PAU के किसान क्लब के मेंबर होने के कारण पिछले 4 सालों से PAU में आना जाना लगा रहता था। लेकिन जब सूरज ने चढ़ना है तो उसने रौशनी हर उस स्थान पर करनी है, यहाँ पर अंधेरा छाया हुआ होता है।

साल 2016 में जब वह बीजों के काम के दौरान PAU में गए थे तो अचानक उनकी मुलाकात प्लांट ब्रीडिंग के मैडम सुरिंदर कौर संधू जी से हुई, उनकी बातचीत के दौरान मैडम ने पूछा, आप GSC 7 सरसों की किस्म का क्या करते है, तो संदीप ने बोला, मार्केटिंग, मैडम ने बोला, ठीक है बेटा। इस समय संदीप को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैडम कहना क्या चाहते हैं। तब मैडम ने बोला, बेटा आप एग्रो प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स करके, सरसों का तेल बनाकर बेचना शुरू करें, जो आपके लिए बहुत फायदेमंद है।

जब संदीप सिंह ने बोला सरसों का तेल तो बना लेंगे पर मार्केटिंग कैसे करेंगे, इस के ऊपर मैडम ने बोला, इसकी चिंता तुम मत करो, जब भी तैयार हो, मुझे बता देना।

जब संदीप घर पहुंचा और इसके बारे में बहुत सोचने लगा, कि अब सरसों का तेल बनाकर बेचेंगे, पर दिमाग में कहीं न कहीं ये भी चल रहा था कि मैडम ने कुछ सोच समझकर ही बोला होगा। फिर संदीप ने इसके बारे पिता हरविंदर जी से बात की और बहुत सोचने के बाद पिता जी ने बोला, चलो एक बार करके देख ही लेते हैं। फिर संदीप ने के.वी.के. खेड़ी में सरसों के तेल की प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग का कोर्स किया।

2017 में जब ट्रेनिंग लेकर संदीप सरसों की प्रोसेसिंग के ऊपर काम करने लगे तो यह नहीं पता चल रहा था कि सरसों की प्रोसेसिंग कहाँ पर करेंगे, थोड़ा सोचने के बाद विचार आया कि के.वी.के. खेड़ी में ही प्रोसेसिंग कर सकते हैं। फिर देरी न करते हुए उन्होंने सरसों के बीजों का तेल बनाना शुरू कर दिया और घर में पैकिंग करके रख दी। लेकिन मार्केटिंग की मुश्किल सामने आकर खड़ी हो गई, बेशक मैडम ने बोला था।

PAU में हर साल जैसे किसान मेला लगता था, इस बार भी किसान मेला आयोजित होना था और मैडम ने संदीप की मेले में ही अपने आप ही स्टाल की बुकिंग कर दी और बोला, बस अपने प्रोडक्ट को लेकर पहुँच जाना।

हमने अपनी गाड़ी में तेल की बोतलें रखकर लेकर चले गए और मेले में स्टाल पर जाकर लगा दी- संदीप सिंह

देखते ही देखते 100 से 150 लीटर के करीब कनोला सरसों तेल 2 घंटों में बिक गया और यह देखकर संदीप हैरान हो गया कि जिस वस्तु को व्यर्थ समझ रहा था वे तो एक दम ही बिक गया। वे दिन संदीप के लिए एक न भूलने वाला सपना बन गया, जिसको सिर्फ सोचा ही था और वह पूरा भी हो गया।

फिर संदीप ने यहां-यहां पर भी किसान मेले, किसान हट, आत्मा किसान बाज़ार में जाना शुरू कर दिया, लेकिन इन मेलों में जाने से पहले उन्होंने कनोला तेल के ब्रैंड के नाम के बारे में सोचा जो ग्राहकों को आकर्षित करेगा। फिर वह कनोला आयल को तेग कनोला आयल ब्रैंड नाम से रजिस्टर्ड करके बेचने लगे।

धीरे-धीरे मेलों में जाने से ग्राहक उनसे सरसों का तेल लेने लगे, जिससे मार्केटिंग में प्रसार होने लगा और बहुत से ग्राहक ऐसे थे जो उनके पक्के ग्राहक बन गए। वह ग्राहक आगे से आगे मार्केटिंग कर रहे थे जिससे संदीप को मोबाइल पर ऑर्डर आते हैं और ऑर्डर को पूरा करते हैं। आज उनको कहीं पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि घर बैठे ही आर्डर पूरा करते हैं और मुनाफा कमा रहे हैं, जिस का सारा श्रेय वे अपने पिता हरविंदर को देते हैं। बाकि मार्केटिंग वह संगरूर, लुधियाना शहर में कर रहे हैं।

आज मैं जो भी हूँ, अपने पिता के कारण ही हूँ- संदीप सिंह

इस काम में उनका साथ पूरा परिवार देता है और पैकिंग बगेरा वे अपने घर में ही करते हैं, लेकिन प्रोसेसिंग का काम पहले के.वी.के. खेड़ी में ही करते थे, अब वे नज़दीकी गांव में किराया देकर काम करते हैं।

इसके साथ वे गन्ने की भी प्रोसेसिंग करके उसकी मार्केटिंग भी करते हैं और जिसका सारा काम अपने फार्म में ही करते हैं और 38 एकड़ ज़मीन में 23 एकड़ में गन्ने की खेती, सरसों, परंपरागत खेती, सब्जियां की खेती करते हैं, जिसमें वह खाद का उपयोग PAU के बताए गए तरीकों से ही करते हैं और बाकि की ज़मीन ठेके पर दी हुई है।

उनको किसान मेले में कनोला सरसों आयल में पहला स्थान प्राप्त हुआ है, इसके साथ-साथ उनको अन्य बहुत से पुरस्कारों से सन्मानित किया जा चूका है।

भविष्य की योजना

वे प्रोसेसिंग का काम अपने फार्म में ही बड़े स्तर पर लगाकर तेल का काम करना चाहते हैं और रोज़गार प्रदान करवाना चाहते हैं।

संदेश

हर एक किसान को चाहिए कि वह प्रोसेसिंग की तरफ ध्यान दें, ज़रूरी नहीं सरसों की, अन्य भी बहुत सी फसलें हैं जिसकी प्रोसेसिंग करके आप खेती में मुनाफा कमा सकते हैं।