एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जिसने मज़बूरी में मछली पालन शुरू किया, लेकिन आज वह दूसरे किसानो के लिए एक मिसाल बन चुके हैं
कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि जो ज़मीन पिछले 100 वर्षों से खाली पड़ी थी, वह आज उपजाऊ और उपयोगी होगी। इसके पीछे का कारण है कि किसी ने वहां कुछ भी करने की कोशिश नहीं की क्योंकि वहां साल के 11 महीने पानी खड़ा रहता था, लेकिन हर आने वाली नई पीढ़ी के साथ नई सोच आती है। हम सभी जानते हैं कि हमारे आस-पास और वातावरण में थोड़ा बदलाव करने के लिए एक बड़ी कोशिश की आवश्यकता होती है। यह कोशिश सिर्फ केवल मजबूत इच्छाशक्ति और जुनून के साथ प्रयोग में आ सकती है और इस तरह एक अलग नज़रिए, बुद्धि और उत्साह के साथ अपनी मातृ भूमि और अपने समुदाय के लिए कुछ करने के लिए गुरजतिंदर सिंह विर्क आए।
गुरजतिंदर सिंह विर्क गांव कंडोला, जिला रूपनगर के रहने वाले हैं, उन्होंने वर्ष 1985 में 5 एकड़ की जल जमाव वाली ज़मीन पर मछली पालन का काम शुरू किया, यह ज़मीन उन्हें पैतिृक संपत्ति से मिली थी। चूंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने गुरदासपुर का दौरा किया और वहां से 5 दिन की ट्रेनिंग लेकर मछली पालन का काम शुरू कर दिया। उन्होंने तकरीबन 30 साल पहले मछली पालन का काम शुरू किया और अब तक अपनी मेहनत और लगन से इस कार्य को 5 एकड़ से 30 एकड़ तक फैलाया है। मछली पालन के इस कार्य की दिशा में उनके इस क्रांतिकारी कदम ने कई अन्य किसानों को प्रेरित किया और अंतत: इससे कई अनुकूल प्रभाव दिखे जिन्होंने एक बंजर भूमि को मछली पालन के क्षेत्र में विकसित किया। उसी क्षेत्र में आज लगभग 300-400 एकड़ बंजर भूमि को मछली पालन के लिए उपयोग किया जाता है।
यह सब काफी वर्ष पहले एक बंजर ज़मीन और एक इंसान की मेहनत द्वारा शुरू हुआ और आज इससे काफी लोग प्रेरित हैं। आखिरकार यह छोटा कदम किसानों और कई अन्य इलाकों की जीविका को सुधारने में मदद कर रहा है ताकि उनके जीवन स्तर को उन्नत किया जा सके। अब उस क्षेत्र में आवेशपूर्ण मछली पकड़ने वाले किसानों का एक समुदाय बनाया गया है और इनके प्रयासों से अंतत: उस क्षेत्र का आर्थिक विकास हो रहा है जो राज्य और राष्ट्र के आर्थिक विकास को जोड़ रहा है।
अब विर्क जी की खेती पद्धति और आर्थिक प्रगति पर आते हैं। गुरजतिंदर सिंह विर्क के फार्म पर सामान्य कार्प मछलियां जैसे कतला और रोहू की किस्में हैं। एक एकड़ तालाब के लिए 2000 मछली के बच्चों की आवश्यकता होती है, इसीलिए वे 2000 मछली के बच्चों को पानी में छोड़ते हैं। मछलियों की वृद्धि, पानी की गुणवत्ता, आहार की गुणवत्ता और पानी में मौजूद शिकारियों के आधार पर निर्भर होती है। आमतौर पर वे तालाब में मछली की दो किस्मों को डालते हैं और उनकी अच्छी पैदावार के लिए उचित हालात बनाकर रखते हैं। वे मछलियों को 80 रू प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं जबकि बाज़ार में वह मछली 120 रू प्रति किलो के हिसाब से बिकती है और कम कीमतों पर मछलियों को बेचने के बावजूद भी वे लाखों कमा रहे हैं और पर्याप्त लाभ कमा रहे हैं।
गुरजतिंदर सिंह विर्क ने वातावरण के संरक्षण के लिए काफी कदम उठाए हैं, उनमें से एक महत्तवपूर्ण कार्य यह है कि उन्होंने अपने रसोई उद्यान की सिंचाई और तालाब को भरने के लिए सौर पंप सेटों का उपयोग करके कार्बन को कम किया है। श्री विर्क द्वारा किए गए अच्छे कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कार और उपलब्धियां मिली हैं। जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
उन्हें Agriculture Technology Management के लिए जिला स्तरीय पुरस्कार मिला है और सर्वोत्तम कृषि प्रणाली के लिए उन्हें Roopnagar Administration द्वारा प्रशंसा पत्र मिला है। उन्हें क्षेत्र को विकसित करने के लिए Zee Networks द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। 2011 में उन्हें Best Citizen India Award से नवाज़ा गया। उसके बाद उन्हें Bharat Jyoti Award और Fish Farmer Award भी मिला।
खेती के क्षेत्र में उनके अच्छे काम से उन्हें कई प्रतिष्ठित समितियों और समाज में मैंबरशिप मिली। आज वे Advisory Committee (ATMA) और Board of Management at GADVASU के मैंबर हैं। वे किसान विकास चैंबर के 11 मैंबरों की सूचि में भी शामिल हैं जिन्होंने भारत की मुख्य उद्योग संघ को स्थापित किया जैसे CII, FICCI और ASSOCHAM और इस संघ का कार्य, राज्य की बिगड़ती कृषि अर्थव्यवस्था को अपग्रेड करना और खेती से संबंधित तकनीकों का प्रयोग करना जो किसान पहले से ही प्रयोग कर रहे थे। वे रूपनगर और मोहाली जिलों के लिए NABARD के तहत गांव Cooperative Society की तरफ से (वन विभाग) में भूतपूर्व वार्डन भी थे।
गुरजतिंदर सिंह विर्क द्वारा लिया गया एक महत्तवपूर्ण कदम था कि भूतपूर्व मंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ देखे गए चीन में मछली पालन के ढंग के बारे में ओर जानने के लिए चीने के मछली पालन के तरीके को अपनाया।
उनकी इन उपलब्धियों के इलावा उन्होंने हरियाली से भरी एक सुंदर जगह बनाने में बहुत मेहनत की है। उन्होंने तालाब के मध्य में अपना घर बनाया है और उस भूमि के टुकड़े पर जहां उनका घर है, उन्होंने सभी प्रकार की सब्जियां और फलों को विकसित किया है। उनके खेत में आडू, बादाम, किन्नू, मैड्रिन, आम, अनार, सेब, अनानास और 17 से अधिक सब्जियां और दालें हैं। उन्होंने अपने घर के आस-पास की ज़मीन को इस तरह विकसित किया है कि बाज़, किंगफिशर, fork tail, geese, तोते और मोर की कई दुर्लभ और आम प्रजातियां को उनके फार्म पर चहचहाते हुए आसानी से देखा जा सकता है। संक्षेप में उनके अपने देश के विकास कार्यों ने पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों की एक विविधता बनाई है।
आज वे जो कुछ भी हैं उसके पीछे उनकी प्रेरणा और साथी उनकी पत्नी रूपिंदर कौर विर्क हैं जिन्होने ज़िंदगी के हर कदम पर उनका साथ दिया और उनके प्रत्येक काम में उनकी मदद की। वे उनकी ज़िंदगी में एक पेशेवर भूमिका भी निभाती हैं और उनके फार्म के सभी लेखों का रिकार्ड बनाकर रखती हैं। खाली समय में वे अपने खेत में उगाए फलों का बेचने के उद्देश्य से आचार और कैडिज़ बनाना पसंद करती हैं। गुरजतिंदर सिंह विर्क अपनी पत्नी और सिर्फ दो नौकरों की सहायता से फार्म के सभी कार्यों को संभालते हैं और भविष्य के विकास के लिए वे अपने फार्म को पर्यटन स्थल बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं।
चीन की यात्रा के बाद गुरजतिंदर सिंह विर्क ने निष्कर्ष निकाला कि बेहतर तकनीकों का उपयोग करके बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है इसलिए वे चाहते हैं कि किसान बेहतर उत्पादन के लिए नई तकनीकों को अपनायें। उन्होंने ये भी कहा कि उनके गांव में 24 घंटे बिजली नहीं रहती जिसके कारण खेती का उत्पादन कम होता है और भविष्य में, यदि उन्हें 24 घंटे बिजली सुविधा उपलब्ध की जाती है तो वे खेती क्षेत्र में बेहतर परिणाम दे सकते हैं। वे सोचते हैं कि कड़ी मेहतन से आप ज़मीन के किसी भी टुकड़े से कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं, अंतर बस फल और सब्जी के आकार में होगा।