धर्मबीर कंबोज

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रिक्शा चालक से सफल इनोवेटर बनने तक का सफर

धर्मबीर कंबोज, एक रिक्शा चालक से सफल इनोवेटर का जन्म 1963 में हरियाणा के दामला गांव में हुआ। वह पांच भाई-बहन में से सबसे छोटे हैं। अपनी छोटी उम्र के दौरान, धर्मबीर जी को अपने परिवार को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी। धर्मबीर कंबोज, जो किसी समय गुज़ारा करने के लिए संघर्ष करते थे, अब वे अपनी पेटेंट वाली मशीनें 15 देशों में बेचते हैं और उससे सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं।
80 दशक की शुरुआत में, धर्मबीर कांबोज उन हज़ारों लोगों में से एक थे, जो अपने गांवों को छोड़कर अच्छे जीवन की तलाश में दिल्ली चले गए थे। उनके प्रयास व्यर्थ थे क्योंकि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी, इसलिए उन्होंने गुज़ारा करने के लिए छोटे-छोटे काम किए।
धर्मबीर सिंह कंबोज की कहानी सब दृढ़ता के बारे में है जिसके कारण वह एक किसान-उद्यमी बन गए हैं जो अब लाखों में कमा रहे हैं। 59 वर्षीय धर्मबीर कंबोज के जीवन में मेहनत और खुशियां दोनों रंग लाई।
धर्मबीर कंबोज जिन्होनें सफलता के मार्ग में आई कई बाधाओं को पार किया, इनके अनुसार जिंदगी कमज़ोरियों पर जीत प्राप्त करने और कड़ी मेहनत को जारी रखने के बारे में है। कंबोज अपनी बहुउद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन के लिए काफी जाने जाते हैं, जो किसानों को छोटे पैमाने पर कई प्रकार के कृषि उत्पादों को प्रोसेस करने की अनुमति देता है।
दिल्ली में एक साल तक रिक्शा चालक के रूप में काम करने के बाद, धर्मबीर को पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक पब्लिक लाइब्रेरी मिली। वह इस लाइब्रेरी में अपने खाली समय में, वह खेती के विषयों जैसे ब्रोकोली, शतावरी, सलाद, और शिमला मिर्च उगाने के बारे में पढ़ते थे। वे कहते हैं, ”दिल्ली में उन्होंने ने बहुत कुछ सीखा और बहुत अच्छा अनुभव था। हालाँकि, दिल्ली में एक दुर्घटना के बाद, वह हरियाणा में अपने गाँव चले गए।
दुर्घटना में घायल होने के बाद वह स्वस्थ होकर अपने गांव आ गए। 6 महीने के लिए, उन्होंने कृषि में सुधार करने के बारे में अधिक जानने के लिए ग्राम विकास समाज द्वारा चलाए जा रहे एक ट्रेनिंग कार्यक्रम में भाग लिया।
2004 में हरियाणा बागवानी विभाग ने उन्हें राजस्थान जाने का मौका दिया। इस दौरान, धर्मबीर ने औषधीय महत्व वाले उत्पाद एलोवेरा और इसके अर्क के बारे में जानने के लिए किसानों के साथ बातचीत की।
धर्मबीर राजस्थान से वापिस आये और एलोवेरा के साथ अन्य प्रोसेस्ड उत्पादों को फायदेमंद व्यापार के रूप में बाजार में लाने के तरीकों की तलाश में लगे। 2002 में, उनकी मुलाकात एक बैंक मैनेजर से हुई, जिसने उन्हें फ़ूड प्रोसेसिंग के लिए मशीनरी के बारे में बताया, लेकिन मशीन के लिए उन्हें 5 लाख रुपये तक का खर्चा बताया।
धर्मबीर जी ने एक इंटरव्यू में कहा कि, “मशीन की कीमत बहुत अधिक थी।” बहु-उद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन का मेरा पहला प्रोटोटाइप 25,000 रुपये के निवेश और आठ महीने के प्रयास के बाद पूरा हुआ।
कंबोज की बहु-उद्देश्यीय मशीन सिंगल-फेज़ मोटर वाली एक पोर्टेबल मशीन है जो कई प्रकार के फलों, जड़ी-बूटियों और बीजों को प्रोसेस कर सकती है।
यह तापमान नियंत्रण और ऑटो-कटऑफ सुविधा के साथ एक बड़े प्रेशर कुकर के रूप में भी काम करती है।
मशीन की क्षमता 400 लीटर है। एक घंटे में यह 200 लीटर एलोवेरा को प्रोसेस कर सकती है। मशीन हल्की और पोर्टेबल है और उसे कहीं पर भी लेकर जा सकते हैं। यह एक मोटर द्वारा काम करती है। यह एक तरह की अलग मशीन है जो चूर्ण बनाने, मिक्स करने, भाप देने, प्रेशर कुकिंग और जूस, तेल या जेल्ल निकालने का काम करती है।
धर्मबीर की बहु-उद्देश्यीय प्रोसेसिंग मशीन बहुत प्रचलित हुई है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने उन्हें इस मशीन के लिए पेटेंट भी दिया। यह मशीन धर्मबीर कंबोज द्वारा अमेरिका, इटली, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, केन्या, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे और युगांडा सहित 15 देशों में बेची जाती है।
2009 में, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया (NIF) ने उन्हें पांचवें राष्ट्रीय दो-वर्षीय पुरस्कार समारोह में बहु-उद्देशीय प्रोसेसिंग मशीन के आविष्कार के लिए हरियाणा राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया।
धर्मबीर ने बताया, “जब मैंने पहली बार अपने प्रयोग शुरू किए तो लोगों ने सहयोग देने की बजाए मेरा मज़ाक बनाया।” उन्हें मेरे काम में कभी दिलचस्पी नहीं थी। “जब मैं कड़ी मेहनत और अलग-अलग प्रयोग कर रहा था, तो मेरे पिता जी को लगा कि मैं अपना समय बर्बाद कर रहा हूं।”
‘किसान धर्मबीर’ के नाम से मशहूर धर्मबीर कंबोज को 2013 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। कांबोज, जो राष्ट्रपति के अतिथि के रूप में चुने गए पांच इनोवेटर्स में से एक थे, जिन्होनें फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन बनाई, जो प्रति घंटे 200 किलो टमाटर से गुद्दा निकाल सकती है।
वह राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अतिथि के रूप में रुके थे, यह सम्मान उन्हें एक बहु-उद्देश्यीय फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन बनाने के लिए दिया गया था जो जड़ी बूटियों से रस निकाल सकती है।
धर्मवीर कंबोज की कहानी बॉलीवुड फिल्म की तरह लगती है, जिसमें अंत में हीरो की जीत होती है।
धर्मबीर की फूड प्रोसेसिंग मशीन 2020 में भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मदद करने के लिए पॉवरिंग लाइवलीहुड्स प्रोग्राम के लिए विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन एंड काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) द्वारा चुनी गई छह कंपनियों में से एक थी। प्रोग्राम की शुरुआत मोके पर CEEW के एक बयान के अनुसार 22 करोड़ रुपये का कार्य, जिसमें स्वच्छ ऊर्जा आधारित आजीविका समाधानों पर काम कर रहे भारतीय उद्यमों को पूंजी और तकनीकी सहायता प्रदान करता है। इन 6 कंपनियों को COVID संकट से निपटने में मदद करने के लिए कुल 1 करोड़ रुपये की फंडिंग भी प्रदान की।
“इस प्रोग्राम से पहले, धर्मवीर का उत्पादन बहुत कम था।” अब इनका कार्य एक महीने में चार मशीनों से बढ़कर 15-20 मशीनों तक चला गया है। आमदनी भी तेजी से बढ़ने लगी। इस कार्य ने कंबोज और उनके बेटे प्रिंस को मार्गदर्शन दिया कि सौर ऊर्जा से चलने वाली मशीनों जैसे तरीकों का उपयोग करके उत्पादन को बढ़ाने और मार्गदर्शन करने में सहायता की। विलग्रो ने कोविड के दौरान धर्मवीर प्रोसेसिंग कंपनी को लगभग 55 लाख रुपये भी दिए। धर्मबीर और उनके बेटे प्रिंस कई लोगों को मशीन चलाने के बारे में जानकारी देते और सोशल मीडिया के माध्यम से रोजगार पैदा करते है।

भविष्य की योजनाएं

यह कंपनी आने वाले पांच सालों में अपनी फ़ूड प्रोसेसिंग मशीनों को लगभग 100 देशों में निर्यात करने की योजना बना रही है जिसका लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष में 2 करोड़ रुपये और वित्तीय वर्ष 27 तक लगभग 10 करोड़ तक ले जाना है। अब तक कंबोज जी ने लगभग 900 मशीनें बेच दी हैं जिससे लगभग 8000 हज़ार लोगों को रोज़गार मिला है।

संदेश

धर्मबीर सिंह का मानना है कि किसानों को अपने उत्पाद को प्रोसेस करने के योग्य होना चाहिए जिससे वह अधिक आमदनी कमा सके। सरकारी योजनाओं और ट्रेनिंग को लागू किया जाना चाहिए, ताकि किसान समय-समय पर सीखकर खुद को ओर बेहतर बना सकें और उन अवसरों का लाभ उठा सकें जो उनके भविष्य को सुरक्षित करने में मदद करेंगे।

मिलन शर्मा

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जज़्बा हो तो महिलाओं के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है….ऐसी ही एक मिसाल है मिलन शर्मा

अक्सर ही माना जाता है कि डेयरी फार्मिंग का काम ज़्यादातर कम पढ़े-लिखे लोग ही करते हैं। पर अब इस काम में ज़्यादा कमाई होती देखकर पढ़े लिखे लोग भी इस काम में शामिल हो रहे हैं। आज-कल डेयरी फार्मिंग के काम में पुरुषों के साथ-साथ महिलायें में आगे आ रही हैं। इस कहानी में हम एक ऐसी महिला की बात करने जा रहे हैं जो डेयरी फार्मिंग का काम अपनाकर कामयाब हुई और अब अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन रही है।

हरियाणा की रहनी वाली मिलन शर्मा जी ने M.Sc Biochemistry की पढ़ाई की है। पढ़ाई के दौरान ही उनका विवाह चेतन शर्मा जी, जो कि एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं, उनके साथ हो गया। विवाह के बाद दो बेटे होने के कारण वह अपने गृहस्थ में शामिल हो गए । बेटों के स्कूल जाने के बाद उन्होंने खाली समय में जर्मन भाषा सीखनी शुरू की और बाद में उनको एक स्कूल में जर्मन भाषा सिखाने के लिए अध्यापक के तौर पर नौकरी मिल गई। इसके साथ ही उन्होंने जर्मन कल्चर सेंटर के साथ प्रोजेक्ट मैनेजर के तौरपर कई सालों काम किया। इस प्रोजेक्ट के तहत बच्चों को जर्मन भाषा सिखाकर उच्च पढ़ाई के लिए जर्मन में जाने के लिए तैयार किया जाता था।

आगे जाकर दोनों बच्चों को बढ़िया नौकरी मिल गई तो हम दोनों (पति-पत्नी) ने वातावरण और समाज के लिए कुछ बेहतर करने के बारे में सोचा – मिलन शर्मा

मिलन जी के ससुर जी के पास गाँव में 4 गाय थी, जिनकी देखभाल स्वयं करते थे। 2017 में उनके देहांत के बाद मिलन और उनके पति ने अपने पिता की रखी 4 गायों की देखभाल करनी शुरू की और इसके साथ उन्होंने 2 और साहीवाल नस्ल की गाय खरीदी। समय के साथ उनका डेयरी का काम बढ़ने लगा और मिलन जी को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। पर उन्हें डेयरी फार्मिंग के बारे में कुछ ज़्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी जानकारी में वृद्धि करने के लिए करनाल और LUVAS और GADVASU से ट्रेनिंग हासिल की। उनके पास धीरे-धीरे 30 गाय हो गई। इसके बाद उन्होंने 6 एकड़ में “रेवनार” नाम का एक फार्म शुरू किया। रेवनार नाम रेवती और नारायण के सुमेल से लिया गया है, जो कि मिलन जी के पति के दादा-दादी का नाम है। इस फार्म को उन्होंने FSSAI से रजिस्टर करवा लिया। इस समय उनके पास साहीवाल, थारपारकर, राठी और गिर नस्ल की 140 गाय हैं।

मैं पहले गाय के पास जाने से भी डरती थी, पर अब मेरा पूरा दिन गायों के बीच में ही गुजरता है। अब गाय मेरे साथ ऐसे रहती है जैसे वह मेरी सहेली हो – मिलन शर्मा

गायों की संख्या ज़्यादा होने के कारण उनके पास दूध की मात्रा भी बढ़ने लगी। पहले उनसे रिश्तेदार और गाँव के कुछ लोग ही दूध लेकर जाते थे, पर दूध की गुणवत्ता बढ़िया होने के कारण और लोगों ने दूध खरीदना शुरू कर दिया है। पहले वह ड्रम में डालकर ग्राहक तक पहुंचाते थे, पर कुछ समय के बाद उन्हें महसूस हुआ कि इसमें कोई बदलाव आना चाहिए। अब वह कांच की बोतलों में दूध डालकर ग्राहकों को बेचते हैं। उनके द्वारा जिन कांच की बोतलों में ग्राहकों को दूध बेचा जाता है, अगले दिन ग्राहक उन बोतलों को वापिस कर देते हैं। इस तरह फिर अगले दिन कांच की बोतलों में दूध भरकर ग्राहकों तक पहुँचाया जाता है। उनके द्वारा दूध और दूध द्वारा तैयार किये उत्पाद (पनीर, दहीं, मक्खन, लस्सी, देसी घी) ऑनलाइन भी बेचे जाते हैं। मिलन जी अपनी डेयरी का दूध दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद के ग्राहकों को बेचते हैं।

डेयरी फार्म के साथ ही वह मथुरा में 15 एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं। यहाँ फसलों में वह गेहूं, धान, सरसों के साथ ही चारे की फसलें जई, बरसीम, बाजरा, मक्की, लोबिया, ग्वार, चने आदि की खेती करते हैं।

इनके द्वारा डेयरी में गायों के गोबर और मूत्र का भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने एक बायोगैस प्लांट भी लगाया है , जिसमें गायों के गोबर से गैस तैयार की जाती है, जिसका प्रयोग गायों के लिए खुराक जैसे दलिया आदि तैयार करने के लिए करते हैं।

इसके अलावा मिलन जी ने अपने फार्म पर अलग-अलग तरह के फलदार, चकित्सिक और विरासती पेड़ लगाए हैं, जैसे कि नीम, टाहली, कदम, पपीता, गिलोय, आंवला, अमरुद, बेलपत्र, नींबू, इमली आदि।

इन सभी पेड़ों के पत्तों को गाय के मूत्र में मिलाकर जीव अमृत तैयार करते हैं, जिसका प्रयोग फसलों के लिए किया जाता है। इसके अलावा कीड़ेमार दवाइयों की जगह वह खट्टी लस्सी आदि का प्रयोग करते हैं।

मिलन जी के पति, चेतन जी घरों और कंपनियों में सोलर पैनल लगाने के काम करते हैं। उन्होंने ने अपने फार्म में भी 800 किलोवाट का सोलर पैनल लगाया हुआ है।

उपलब्धियां
मिलन जी के संकल्प और मेहनत के ज़रिये उनके द्वारा हसिल की उपलब्धिया नीचे लिखे अनुसार हैं:
  • पशु पालन विभाग, हरियाणा की तरफ से प्रगतिशील किसान का दर्जा दिया गया है।
  • रेवनार फार्म की 2 गायों ने फरीदाबाद पशु मेले में ईनाम जीते।
  • केवल एक साल के समय में 30 से 140 गायों तक संख्या बढ़ाई और 5 घरों से 200 से ज़्यादा ग्राहकों को अपने साथ जोड़ा।
भविष्य की योजना

मिलन जी अपने पूरे गाँव को रसायन मुक्त वातावरण देना चाहते हैं। वह आगे चलकर अपने डेयरी फार्म को एक स्किल सेंटर के तौरपर पशु पालकों को ट्रेनिंग देना चाहते हैं। वह सरकार के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट शुरू करना चाहते हैं, जिसमें उनके गाँव में सभी के लिए एक कम्युनिटी बायोगैस प्लांट लगाया जाये। इस प्रोजेक्ट के साथ जहाँ गाँव वालों को मुफ्त गैस मिलेगी, वहां ही उन्हें अपने पशुओं के गोबर के सही प्रयोग के बारे में जानकारी हासिल होगी और वह गोबर गैस के व्यर्थ को खेतों में खाद के तौरपर प्रयोग करके रसायन के होने वाले खर्चे को कम कर सकते हैं।

संदेश
“नौजवानों को डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में आगे आना चाहिए। इस क्षेत्र में रोज़गार के बहुत से अवसर होते हैं। हमे अपने बच्चों को भी शुरू से ही इस काम में आने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”

मुकेश देवी

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मीठी सफलता की गूंज — मिलिए एक ऐसी महिला से जो शहद के व्यवसाय से 70 लाख की वार्षिक आय के साथ मधुमक्खीपालन की दुनिया में आगे बढ़ रही है

“ऐसा माना जाता है कि भविष्य उन लोगों से संबंधित होता है जो अपने सपने की सुंदरता पर विश्वास करते हैं।”

हरियाणा के जिला झज्जर में एक छोटा सा गांव है मिल्कपुर, जो कि अभी तक अच्छे तरीके से मुख्य सड़क से जुड़ा हुआ नहीं है और यहां सीधी बस सेवा की कोई सुविधा नहीं है। किसी व्यक्ति के लिए ऐसी जगह पर रहने के दौरान किसी भी खेती संबंधित गतिविधि या व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोचना भी असंभव सा लगता है। लेकिन मधुमक्खीपालन के क्षेत्र में मुकेश देवी के सफल प्रयासों ने साबित कर दिया है कि यदि आपके पास कुछ भी करने का जुनून है तो कुछ भी असंभव नहीं है। मधुमक्खियों के दर्दनाक जहरीले डंक से पीड़ित होने के बाद भी मुकेश देवी और उनके पति ने कभी भी रूकने का नहीं सोचा और उन्होंने उत्तरी भारत में सर्वश्रेष्ठ शहद उत्पादन करने का अपना जुनून जारी रखा।

वर्ष 1999 में, मुकेश देवी के पति — जगपाल फोगाट ने अपने रिश्तेदारों से प्रेरित होकर मधुमक्खीपालन की शुरूआत की, जो मधुमक्खीपालन कर रहे थे। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान की गई ट्रेनिंग की सहायता से मुकेश देवी भी 2001 में अपने पति के उद्यम में शामिल हो गईं। जिस काम को उन्होंने कुछ मधुमक्खियों के साथ शुरू किया, धीरे धीरे वह काम समय के साथ बढ़ने लगा और अब वह दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, राजस्थान और दिल्ली के क्षेत्रों में भी विस्तृत हो गया है।

स्वास्थ्य लाभ और शहद के लिए बढ़ती बाज़ार की मांग को देखते हुए, अब मुकेश देवी ने अपने ही ब्रांड- नेचर फ्रेश के तहत शहद बेचना शुरू कर दिया है। वर्तमान में, उनके पास शहद के संग्रह के लिए मधुमक्खियों के 2000 बक्से हैं।

मुकेश देवी ने ना केवल अपने परिवार की स्थिति को वित्तीय रूप से स्थिर बनाया बल्कि उन्होंने 30 से अधिक लोगों को रोज़गार भी प्रदान किया है। अपने नियोजित कार्यबल की सहायता से 5 अलग अलग राज्यों में मधुमक्खियों के बक्से भेजकर मुकेश देवी और उनके पति वार्षिक 600 से 700 क्विंटल शहद इक्ट्ठा करते हैं, और शहद से, इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्वाद का साधारण शहद है बल्कि उनके पास 7 से अधिक विभिन्न फ्लेवर में शहद है जो तुलसी, अजवायन, धनिया, शीशम, सफेदा, इलायची, नीम, सरसों और अरहर के पौधों से एकत्र किए जाते हैं। तुलसी का शहद उनकी विस्तृत बाज़ार मूल्यों के साथ सबसे अच्छे शहद में से एक है।

जब शहद इक्ट्ठा करने की बात आती है तब यह पति पत्नी का जोड़ा विभिन्न राज्यों के समय और मौसम पर विशेष ध्यान देते हैं और उनके अनुसार उन्होंने अपने मधुमक्खियों के बक्सों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया है। जैविक शहद के लिए बक्सों को विभिन्न राज्यों में जंगलों में भेजा जाता है,विभिन्न स्थानों से शहद इक्ट्ठा करने के कुछ समय काल नीचे दिए गए हैं—

  • तुलसी शहद के लिए — बक्सों को मध्यप्रदेश के जंगलों में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • अजवायन शहद के लिए — बक्सों को राजस्थान के जंगलों में दिसंबर से जनवरी में भेजा जाता है।
  • अजवायन के लिए — बक्सों को जम्मू कश्मीर और पंजाब में अक्तूबर से नवंबर में भेजा जाता है।
  • और फरवरी से अप्रैल में बक्सों को हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया जाता है।

इसके अलावा, इस जोड़ी की आय शहद उत्पादन और इसकी बिक्री तक ही सीमित नहीं है बल्कि वे कॉम्ब हनी, हनी आंवला मुरब्बा, हनी कैरट मुरब्बा, बी पॉलन, बी वैक्स, प्रोपोलिस और बी वीनॉम भी बेचते हैं जो बाज़ार में अच्छे दामों में बिक जाते हैं।

वर्तमान में, मुकेश देवी और उनके पति सिर्फ मधुमक्खीपालन से ही लगभग 70 लाख वार्षिक आय कमा रहे हैं।

मुकेश देवी और जगपाल फोगाट के प्रयासों को कई संगठनों और अधिकारिकों द्वारा सराहा गया है उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं—

  • 2016 में IARI,नई दिल्ली,राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेले में मधुमक्खीपालन और विभिन्न तरह के शहद उत्पादन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • मुकेश देवी और जगपाल फोगाट को सूरजकुंड, फरीदाबाद में एग्री लीडरशिप पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह द्वारा अच्छे शहद उत्पादन के लिए सम्मानित किया गया।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्री, परषोत्तम खोदाभाई रूपला द्वारा सम्मानित किया गया।
  • उनकी उपलब्धियों को प्रगतिशील किसान अधीता और अभिनव किसान नामक पत्रिका में अन्य 39 प्रगतिशील किसानों के साथ प्रकाशित किया गया।

मुकेश देवी एक प्रगतिशील मधुमक्खी पालनकर्ता हैं और उनकी पहल ने अन्य महिला उद्यमियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। कि यदि आपके प्रयास सही दिशा में हैं यहां तक कि मधुमक्खीपालन के व्यवसाय में भी तो आप करोड़पति बन सकते हैं।

भविष्य की योजनाएं

मुकेश देवी और उनके पति ने अपने गांव में ज़मीन खरीदी है जहां पर वे बाज़ार की मांग के अनुसार अपने उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।

संदेश
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, किसानों को बेहतर वित्तीय स्थिरता के लिए रवायती खेती के साथ संबंधित कृषि गतिविधियों को आगे बढ़ाना चाहिए।

बिनसर फार्म

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बिनसर फार्म: कैसे दोस्तों की तिकड़ी ने फार्म से टेबल तक दूध पहुंचाने के कारोबार को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की

आप में से कितने लोगों ने रोज़गार के साथ साथ कृषि समाज में योगदान देने के बारे में सोचा है ? जवाब बहुत कम हैं…

जो व्यक्ति पेशेवर तौर पर कृषि क्षेत्र के लिए समर्पित है, उसके लिए समाज की तरफ समय निकालना कोई बड़ी बात नहीं, पर सर्विस करने वाले व्यक्ति के लिए यह एक मुश्किल काम है।

खैर, यह उन तीन दोस्तों की कहानी है जिन्होंने अपने सपनों को अपनी नौकरी से जुड़े होने के बावजूद भी पूरा किया और बिनसर फार्म को सही तौर पर स्थापित करने के लिए मिलकर काम किया।

बिनसर फार्म के पीछे 40 वर्षों के पंकज नवानी जी की मेहनत है, जो आदर्शवादी पिछोकड़ से संबंधित थे, जहां उनके दादा पोखरा ब्लॉक, उत्तरांचल में अपने गांव गवानी की बेहतरी के लिए काम करते थे। उनके दादा जी ने गांव के बच्चों के लिए तीन प्राइमरी स्कूल, एक कन्या विद्यालय,एक इंटरमिडिएट और एक डिग्री कॉलेज स्थापित किया। पंकज नवानी जी की परवरिश ऐसे वातावरण में हुई, जहां उनके दादा जी ने समाज के लिए बिना शर्त स्व: इच्छुक भाईचारे की जिम्मेवारी का सकारात्मक दृष्टिकोण बनाया और अब तक पंकज के साथ ही रहे हैं।

उसके सपनों को अपने साथ लेकर, पंकज जी अभी भी एक अवसर की तलाश में थे और जीनामिक्स और इंटीग्रेटिव बायोलोजी के इंस्टीट्यूट में काम करते हुए आखिर में उन्होंने अपने भविष्य के साथी दीपक और सुखविंदर (जो उनके अधीन काम सीख रहे थे) के साथ मुलाकात की। बिनसर फार्म का विचार हकीकत में आया जब उनमें से तीनों ही बिनसर की पहाड़ियों में एक सफर पर गए और वापिस आते समय रास्ता भूल गए। पर सौभाग्य से वे एक गडरिये से मिले और उसने उन्हें अपने शैड की तरफ बुलाया और उन्होंने वह रात उस झोंपड़ी में बड़े आराम से व्यतीत की। अगली सुबह गडरिये ने उन्हें शहर की तरफ सही मार्ग दिखाया और इस तरह ही बिनसर का उनका सफर एक परी कहानी की तरह लगता है। गडरिये की दयालुता और निम्रता के बारे में सोचते हुए उन्होंने उत्तरांचल के लोगों के लिए कुछ करने का फैसला किया। वास्तव में, सबसे पहले उन्होंने सोचा कि वे फल, सब्जियां और दालों को पहाड़ों में उगाएं और मैदानी इलाकों में अन्य गांव के किसानों को इक्ट्ठा करके बेचें। उन तीनों ने नौकरी के साथ साथ इस प्रोजैक्ट पर काम करना शुरू कर दिया और उन्होंने समर्थन लेना शुरू कर दिया।

यह 2011 की बात है, जब तीनों ने अपने सपनों के प्रोजैक्ट से आगे बढ़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी। चुनाव का समय होने के कारण, जहां कहीं भी वे गए, सबने उनकी योजना का समर्थन किया और उसी वर्ष पंकज एक दफ्तरी काम के सिलसिले में न्यूज़ीलैंड गए। पर इससे उनके सपनों के प्रोजैक्ट और प्रयत्नों में ज्यादा अंतर नहीं आया। न्यूज़ीलैंड में पंकज जी फोंटेरा डेयरी ग्रुप के संस्थापक डायरैक्टर अरल रैटरे को मिले। अरल रैटरे के साथ कुछ सामान्य बातें करने के बाद, पंकज जी ने उनके साथ अपने सपनों की योजना का विचार सांझा किया और उत्तरांचल की कहानी सुनने के बाद, अरल ने तिक्कड़ी में शामिल होने और चौथा साथी बनने में दिलचस्पी दिखाई बिनसर फार्म प्रोजैक्ट को हकीकत में बदलने के लिए अरल रैटरे हिस्सेदार कम निवेशक के रूप में आगे आए।

जैसे ही चुनाव खत्म हुए तो पता लगा कि सत्ताधारी पार्टी को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। इससे ही सारे वायदे और विचार एक रात में ही खत्म हो गए और बिनसर फार्म के सपनों का प्रोजैक्ट शुरूआती स्तर पर आ गया। पर पंकज, दीपक और सुखविंदर जी ने उम्मीद नहीं छोड़ी और खेतीबाड़ी समाज की मदद के लिए और संभव विकल्प अपनाने का फैसला किया, और यह वह समय था जब अरल रैटरे ने बिनसर फार्म प्रोजैक्ट की पूर्ति के लिए डेयरी फार्मिंग के विशाल अनुभव के साथ आगे आये।

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सुखविंदर सराफ, पंकज नवानी, अरल रैटरे, एक मित्र, दीपक राज (बायें से दायीं ओर)

दीपक और सुखविंदर जी दोनों ऐसे परिवारों से थे, जहां सभ्याचार और रीति रिवाज पुराने समय की तरह ही थे और उनका रहन सहन बहुत ही रवायती और बुनियादी है। प्राजैक्ट के बारे में जानने के बाद दीपक जी के पिता ने उन्हें सोनीपत, हरियाणा के नज़दीक 10 एकड़ ज़मीन ठेके पर लेने का प्रस्ताव दिया। 2012 तक उन्होंने डेयरी प्रबंधन और अरल द्वारा बतायी आधुनिक तकनीकों से डेयरी फार्मिंग का कारोबार शुरू किया।

इतना ही नहीं, सामाजिक विकास के लिए जिम्मेवारी से काम करते हुए उन (पंकज, दीपक, सुखविंदर और अरल) ने पांच स्थानीय किसानों को चारा उगाने के लिए 40 एकड़ ज़मीन ठेके पर दी, जिन्हें वे बीज, खादें और अन्य संसाधन सप्लाई करते हैं। पांच किसानों का यह समूह अपनी नियमित आय के लिए निश्चित रहता है और इन्हें फसलों के लिए मंडी रेट के बारे में सोचना नहीं पड़ता, जिससे वे भविष्यवादी सोच द्वारा अपने परिवार के बारे में सोच सकते हैं और अपने बच्चों की पढ़ाई और अन्य चीज़ों की तरफ ध्यान दे सकते हैं।

जब बात आती है पशुओं की सेहत की तो चारा सबसे अधिक ध्यान देने योग्य चीज़ है। किसानों को यह हिदायत दी जाती है कि वे कटाई से 21 दिन पहले तक ही कीटनाशकों का प्रयोग करें। पंकज और उनके साथी बहुत सारा समय और ताकत बेहतर डेयरी प्रबंधन के अभ्यास में लगाते हैं। इस कारण पशुओं के आवास स्थान पर पानी का भराव और चीकड़ जैसी समस्या नहीं आती। इसके अलावा शैड की तरफ ध्यान देते हुए उन्होंने फर्श कंकरीट की बजाय मिट्टी का बनाया है, क्योंकि पक्का फर्श पशुओं की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है और बहुत सारे डेयरी किसान इस बात से अनजान हैं।

पंकज जी ने डेयरी संबंधी अन्य दिलचस्प जानकारी सांझा की। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर पशुओं में लंगड़ापन 1 प्रतिशत है जबकि बाकी फार्मो पर यह 12—13 प्रतिशत होता है।

यह बहुत ही अनोखी जानकारी थी क्योंकि यह जानकार दुख होता है कि जब पशु में लंगड़ापन आता है तो वह नियमित फीड नहीं लेता, जिससे दूध उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है।

इस समय बिनसर फार्म पर 1000 से अधिक गायें हैं, जिनके द्वारा वे फार्म से टेबल तक दिल्ली और एन.सी.आर. के 600 परिवारों को दूध सप्लाई करते हैं।

थोड़े समय के बाद उन्होंने स्थानीय किसान परिवारों को गायें दान करने की योजना बनाई, जिनसे वे डेयरी प्रबंधन संबंधी माहिर सलाह और जानकारी सांझा करते हैं और अंत में उनसे स्वंय ही दूध खरीद लेते हैं। इससे किसान को स्थिर आय और जीवन में समय के साथ सार्थक बदलाव लाने में मदद मिलती है।

इस समय बिनसर फार्म हरियाणा और पंजाब के 12 अन्य डेयरी फार्म के मालिकों के साथ काम कर रहा है और सामूहिक तौर पर दहीं, पनीर, घी आदि का उत्पादन करते हैं।

इस तिकड़ी ने अपने प्रयत्नों के सुमेल से एक ऐसा ढांचा बनाने की कोशिश की, जिससे वे ना केवल सामाजिक विकास में मदद कर रहे हैं, बल्कि कृषि समाज से अपने आधुनिक खेती अभ्यास भी सांझा कर सकते हैं। बिनसर फार्म प्रोजैक्ट का विचार पहाड़ी सफर के दौरान पंकज, दीपक और सुखविंदर जी के दिमाग में आया, पर उसके बाद इससे कई किसान परिवारों की ज़िंदगी बदल गई।

पंकज और टीम का यह यकीन है कि आने वाले समय में नई पीढ़ी को चलाने के लिए पैसे ज़रूरत नहीं रहेगी बल्कि उन्हें उत्साहित करने और नैतिकता के अहसास के लिए जुनून की जरूरत होगी, तो ही वे आपने सपने पूरे कर सकेंगे।

शमशेर सिंह संधु

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जानिये क्या होता है जब नर्सरी तैयार करने का उद्यम कृषि के क्षेत्र में अच्छा लाभ देता है

जब कृषि की बात आती है तो किसान को भेड़ चाल नहीं चलना चाहिए और वह काम करना चाहिए जो वास्तव में उन्हें अपने बिस्तर से उठकर, खेतों जाने के लिए प्रेरित करता है, फिर चाहे वह सब्जियों की खेती हो, पोल्टरी, सुअर पालन, फूलों की खेती, फूड प्रोसेसिंग या उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाना हो। क्योंकि इस तरह एक किसान कृषि में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है।

जाटों की धरती—हरियाणा से एक ऐसे प्रगतिशील किसान शमशेर सिंह संधु ने अपने विचारों और सपनों को पूरा करने के लिए कृषि के क्षेत्र में अपने रास्तों को श्रेष्ठ बनाया। अन्य किसानों के विपरीत, श्री संधु मुख्यत: बीज की तैयारी करते हैं जो उन्हें रासायनिक खेती तकनीकों की तुलना में अच्छा मुनाफा दे रहा है।

कृषि के क्षेत्र में अपने पिता की उपलब्धियों से प्रेरित होकर, शमशेर सिंह ने 1979 में अपनी पढ़ाई (बैचलर ऑफ आर्ट्स) पूरी करने के बाद खेती को अपनाने का फैसला किया और अगले वर्ष उन्होंने शादी भी कर ली। लेकिन गेहूं, धान और अन्य रवायती फसलों की खेती करने वाले अपने पिता के नक्शेकदम पर चलना उनके लिए मुश्किल था और वे अभी भी अपने पेशे को लेकर उलझन में थे।

हालांकि, कृषि क्षेत्र इतने सारे क्षेत्र और अवसरों के साथ एक विस्तृत क्षेत्र है, इसलिए 1985 में उन्हें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के युवा किसान ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में पता चला, यह प्रोग्राम 3 महीने का था जिसके अंतर्गत डेयरी जैसे 12 विषय थे जैसे डेयरी, बागबानी, पोल्टरी और कई अन्य विषय। उन्होंने इसमें भाग लिया। ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उन्होंने बीज तैयार करने शुरू किए और बिना सब्जी मंडी या कोई अन्य दुकान खोले बिना उन्होंने घर पर बैठकर ही बीज तैयार करने के व्यवसाय से अच्छी कमाई की।

कृषि गतिविधियों के अलावा, शमशेर सिंह सुधु एक सामाजिक पहल में भी शामिल हैं जिसके माध्यम से वे ज़रूरतमंदों को कपड़े दान करके उनकी मदद करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से अवांछित कपड़े इक्ट्ठे करने और अच्छे उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करने के लिए किसानों का एक समूह बनाया है।

बीज की तैयारी के लिए, शमशेर सिंह संधु पहले स्वंय यूनिवर्सिटी से बीज खरीदते, उनकी खेती करते, पूरी तरह पकने की अवस्था पर पहुंच कर इसकी कटाई करते और बाद में दूसरे किसानों को बेचने से पहले अर्ध जैविक तरीके से इसका उपचार करते। इस तरीके से वे इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमा रहे हैं उनका उद्यम इतना सफल है कि उन्हें 2015 और 2018 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और फैलो फार्मर अवार्ड के साथ आई.ए.आर.आई ने उत्कृष्ट प्रयासों के लिए दो बार सम्मानित किया है।

वर्तमान में शमशेर सिंह संधु बीज की तैयारी के साथ, ग्वार, गेहूं, जौ, कपास और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इससे अच्छे लाभ कमा रहे हैं। भविष्य में वे अपने संधु बीज फार्म के काम का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि अन्य पड़ोसी राज्यों में भी बीज की आपूर्ति कर सकें।

संदेश
किसानों को अन्य बीज आपूर्तिकर्ताओं के बीज भी इस्तेमाल करके देखने चाहिए ताकि वे अच्छे सप्लायर और बुरे के बीच का अंतर जान सकें और सर्वोत्तम का चयन कर फसलों की बेहतर उपज ले सकें।

विनोद कुमार

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जानें इस नौजवान के बारे में जिसने मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़कर मोती उत्पादन शुरू किया, और अब है वार्षिक कमाई 5 लाख से भी ज्यादा

विनोद कुमार जो पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर थे, वे अक्सर अपनी व्यस्त व्यवसायी ज़िंदगी से समय निकालकर खेती में अपनी दिलचस्पी तलाशने के लिए नई आधुनिक कृषि तकनीकों की खोज करते थे। एक दिन इंटरेनेट पर विनोद कुमार को मोती उत्पादन के बारे में पता चला और वे इसकी तरफ आकर्षित हुए और उन्होंने इसकी गहराई से जानकारी प्राप्त की जिससे उन्हें पता चला कि मोती उत्पादन कम पानी और कम क्षेत्र में किया जा सकता है।

जब उन्हें यह पता चला कि मोती उत्पादन की ट्रेनिंग देने वाला एकमात्र इंस्टीट्यूट सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर में स्थित है तो विनोद कुमार ने बिना समय गंवाए, अपने दिल की बात सुनी और अपनी नौकरी छोड़कर मई 2016 में एक सप्ताह की ट्रनिंग के लिए भुवनेश्वर चले गए।

उन्होंने मोती उत्पादन 20 x 10 फुट क्षेत्र में 1000 सीप से शुरू की थी और आज उन्होंने अपना मोती उत्पादन का व्यवसाय का विस्तार कर दिया है जिसमें वे 2000 सीप से, 5 लाख से भी ज्यादा का मुनाफा कमा रहे हैं। खैर, यह विनोद कुमार का कृषि की तरफ दृढ़ संकल्प और जुनून था जिसने उन्होंने सफलता का यह रास्ता दिखाया।

विनोद कुमार ने हमसे मोती उत्पादन शुरू करने वाले नए लोगों के लिए मोती उत्पादन की जानकारी सांझा की –

• न्यूनतम निवेश 40000 से 60000
• मोती उत्पादन के लिए आवश्यक पानी का तापमान — 35°सेल्सियस
• मोती उत्पादन के लिए एक पानी की टैंकी आवश्यक है।
• सीप मेरठ और अलीगढ़ से मछुआरों से 5—15 रूपये में खरीदे जा सकते हैं।
• इन सीपको पानी की टैंकी में 10—12 महीने के लिए रखा जाता है और जब शैल अपना रंग बदलकर सिल्वर रंग का हो जाता है तब मोती तैयार हो जाता है।
• खैर, यह अच्छा गोल आकार लेने में 2 —2.5 वर्ष लगाता है।
• शैल को इसकी आंतरिक चमक से पहचाना जाता है।
• आमतौर पर शैल का आकार 8—11 सैं.मी. होता है।
• मोती के लिए आदर्श बाजार राजकोट, दिल्ली, दिल्ली के नज़दीक के क्षेत्र और सूरत हैं।

मोती उत्पादन के मुख्य कार्य:
मुख्य कार्य सीप की सर्जरी है और इस काम के लिए संस्थान द्वारा विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। मोती के अलावा सीप के अंदर विभिन्न तरह के आकार और डिज़ाइन बनाए जा सकते हैं।

विनोद ना केवल मोती उत्पादनकर रहे हैं बल्कि वे अन्य किसानों को भी ट्रेनिंग प्रदान कर रहे हैं। उन्हें उद्यमिता विकास के लिए ताजे पानी में मोती की खेती की ट्रेनिंग में ICAR- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर द्वारा प्रमाणित किया गया है। अब तक 30000 से अधिक लोगों ने उनके फार्म का दौरा किया है और उन्होंने कभी भी किसी को निराश नहीं किया है।

संदेश
“आज के किसान यदि अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें अलग सोचना चाहिए लेकिन यह भावना भी धैर्य की मांग करती है क्योंकि मेरे कई छात्र ट्रेनिंग के लिए मेरे पास आए और ट्रेनिंग के तुरंत बाद ही उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू करने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। लोगों को यह समझना चाहिए कि सफलता धैर्य और लगातार अभ्यास से मिलती है।”

फारूखनगर तहसील, गुरूग्राम के एक छोटे से गांव जमालपुर में रहने वाले श्री विनोद कुमार ने अपने अनुभव और दृढ़ संकल्प के साथ साबित कर दिया है कि फ्रैश वॉटर सीपकल्चर में विशाल क्षमता है।

विपिन यादव

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एक किसान और एक कंप्यूटर इंजीनियर विपिन यादव की कहानी, जिसने क्रांति लाने के लिए पारंपरिक खेती के तरीके को छोड़कर हाइड्रोपोनिक खेती को चुना

आज का युग ऐसा युग है जहां किसानों के पास उपजाऊ भूमि या ज़मीन ही नहीं है, फिर भी वे खेती कर सकते हैं और इसलिए भारतीय किसानों को अपनी पहल को वापिस लागू करना पड़ेगा और पारंपरिक खेती को छोड़ना पड़ेगा।

टैक्नोलोजी खेतीबाड़ी को आधुनिक स्तर पर ले आई है। ताकि कीट या बीमारी जैसी रूकावटें फसलों की पैदावार पर असर ना कर सके और यह खेतीबाड़ी क्षेत्र में सकारात्मक विकास है। किसान को तरक्की से दूर रखने वाली एक ही चीज़ है और वह है उनका डर – टैक्नोलोजी में निवेश डूब जाने का डर और यदि इस काम में कामयाबी ना मिले और बड़े नुकसान का डर।

पर इस 20 वर्ष के किसान ने खेतीबाड़ी के क्षेत्र में तरक्की की, समय की मांग को समझा और अब पारंपरिक खेती से अलग कुछ और कर रहे हैं।

“हाइड्रोपोनिक्स विधि खेतीबाड़ी की अच्छी विधि है क्योंकि इसमें कोई भी बीमारी पौधों को प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि इस विधि में मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा, हम पॉलीहाउस में पौधे तैयार करते हैं, इसलिए कोई वातावरण की बीमारी भी पौधों को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर सकती। मैं खेती की इस विधि से खुश हूं और मैं चाहता हूं कि दूसरे किसान भी हाइड्रोपोनिक तकनीक अपनाएं।”विपिन यादव

कंप्यूटर साइंस में अपनी इंजीनियरिंग डिग्री पूरी करने के बाद नौकरी औरवेतन से असंतुष्टी के कारण विपिन ने खेती शुरू करने का फैसला किया, पर निश्चित तौर पर अपने पिता की तरह नहीं, जो परंपरागत खेती तरीकों से खेती कर रहे थे।

एक जिम्मेवार और जागरूक नौजवान की तरह, उन्होंने गुरूग्राम से ऑनलाइन ट्रेनिंग ली। शुरूआती ऑनलाइन योग्यता टेस्ट पास करने के बाद वे गुरूग्राम के मुख्य सिखलाई केंद्र में गए।

20 उम्मीदवारों में से सिर्फ 16 ही हाइड्रोपोनिक्स की प्रैक्टीकल सिखलाई हासिल करने के लिए पास हुए और विपिन यादव भी उनमें से एक थे। उन्होंने अपने हुनर को और सुधारने के लिए के.वी.के. शिकोहपुर से भी सुरक्षित खेती की सिखलाई ली।

“2015 में, मैंने अपने पिता को मिट्टी रहित खेती की नई तकनीक के बारे में बताया, जबकि खेती के लिए मिट्टी ही एकमात्र आधार थी। विपिन यादव

सिखलाई के दौरान उन्होंने जो सीखा उसे लागू करने के लिए उन्होंने 5000 से 7000 रूपये के निवेश से सिर्फ दो मुख्य किस्मों के छोटे पौधों वाली केवल 50 ट्रे से शुरूआत की।

“मैंने हार्डनिंग यूनिट के लिए 800 वर्ग फुट क्षेत्र निर्धारित किया और 1000 वर्ग फुट पौधे तैयार करने के लिए गुरूग्राम में किराये पर जगह ली और इसमें पॉलीहाउस भी बनाया। – विपिन यादव

हाइड्रोपोनिक्स की 50 ट्रे के प्रयोग से उन्हें बड़ी सफलता मिली, जिसने बड़े स्तर पर इस विधि को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हाइड्रोपोनिक खेती शुरू करने के लिए उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों की सहायता से अगला बड़ा निवेश 25000 रूपये का किया।

“इस समय मैं ऑर्डर के मुताबिक 250000 या अधिक पौधे तैयार कर सकता हूं।”

गर्म मौसमी स्थितियों के कारण अप्रैल से मध्य जुलाई तक हाइड्रोपोनिक खेती नहीं की जाती, पर इसमें होने वाला मुनाफा इस अंतराल की पूर्ती के लिए काफी है। विपिन यादव अपने हाइड्रोपोनिक फार्म में हर तरह की फसलें उगाते हैं – अनाज, तेल बीज फसलें, सब्जियां और फूल। खेती को आसान बनाने के लिए स्प्रिंकलर और फोगर जैसी मशीनरी प्रयोग की जाती है। इनके फूलों की क्वालिटी अच्छी है और इनकी पैदावार भी काफी है, जिस कारण ये राष्ट्रपति सेक्ट्रीएट को भी भेजे गए हैं।

मिट्टी रहित खेती के लिए, वे 3:1:1 के अनुपात में तीन चीज़ों का प्रयोग करते हैं कोकोपिट, परलाइट और वर्मीक्लाइट। 35-40 दिनों में पौधे तैयार हो जाते हैं और फिर इन्हें 1 हफ्ते के लिए हार्डनिंग यूनिट में रखा जाता है। NPK, जिंक, मैगनीशियम और कैलशियम जैसे तत्व पौधों को पानी के ज़रिये दिए जाते हैं। हाइड्रोपोनिक्स में कीटनाशक दवाइयों का कोई प्रयोग नहीं क्योंकि खेती के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता, जो आसानी से घर में तैयार की जा सकती है।

भविष्य की योजना:
मेरी भविष्य की योजना है कि कैकटस, चिकित्सक और सजावटी पौधों की और किस्में, हाइड्रोपोनिक फार्म में बेहतर आय के लिए उगायी जायें।

विपिन यादव एक उदाहरण है कि कैसे भारत के नौजवान आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके खेतीबाड़ी के भविष्य को बचा रहे हैं।

संदेश

“खेतीबाड़ी के क्षेत्र में कुछ भी नया शुरू करने से पहले, किसानों को अपने हुनर को बढ़ाने के लिए के.वी.के. से सिखलाई लेनी चाहिए और अपने आप को शिक्षित बनाना चाहिए।”

देश को बेहतर आर्थिक विकास के लिए खेतीबाड़ी के क्षेत्र में मेहनत करने वाले और नौजवानों एवं रचनात्मक दिमाग की जरूरत है और यदि हम विपिन यादव जैसे नौजवानों को मिलना जारी रखते हैं तो यह भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

रविंदर सिंह और शाहताज संधु

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कैसे संधु भाइयों ने अपने पारंपरिक आख्यान को जारी रखा और पोल्टरी के व्यवसाय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया

यह कहानी सिर्फ मुर्गियों और अंडो के बारे में ही नहीं है। यह कहानी है भाइयों के दृढ़ संकल्प की, जिन्होंने अपने छोटे परिवार के उद्यम को कई बाधाओं का सामना करने के बाद एक करोड़पति परियोजना में बदल दिया।

खैर, कौन जानता था कि एक साधारण किसान- मुख्तियार सिंह संधु द्वारा शुरू किया गया पोल्टरी फार्मिंग का सहायक उद्यम उनकी अगली पीढ़ी द्वारा नए मुकाम तक पहुंचाया जायेगा।

तो, पोलटरी व्यवसाय की नींव कैसे रखी गई…

यह 1984 की बात है जब मुख्तियार सिंह संधु ने खेतीबाड़ी के साथ पोल्टरी फार्मिंग में निवेश करने का फैसला किया। श्री संधु ने वैकल्पिक आय के अच्छे स्त्रोत के रूप में मुर्गी पालन के व्यवसाय को अपनाया और परिवार की बढ़ती हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें खेतीबाड़ी के साथ यह उपयुक्त विकल्प लगा। उन्होंने 5000 ब्रॉयलर मुर्गियों से शुरूआत की और धीरे-धीरे समय और आय के साथ इस व्यवसाय का विस्तार किया।

उनके भतीजे का इस व्यवसाय में शामिल होना…

समय बीतने के साथ मुख्तियार सिंह ने इस व्यवसाय में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और 1993 में उनके भतीजे रविंदर सिंह संधु (लाडी) ने अपने चाचा जी के व्यवसाय में शामिल होने और ब्रॉयलर उद्यम को नई ऊंचाइयों तक लेकर जाने का फैसला किया।

जब बर्ड फ्लू की मार मार्किट पर पड़ी और कई पोल्टरी व्यवसाय प्रभावित हुए…

2003-04 वर्ष में बर्ड फ्लू फैलने से पोल्टरी उद्योग को एक बड़ा नुकसान हुआ। मुर्गी पालकों ने अपनी मुर्गियां नदी में फेंक दी और पोल्टरी उद्यम शुरू करने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। संधु पोल्टरी को भी इस बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा लेकिन रविंदर सिंह संधु बहुत दृढ़ थे और वे किसी भी कीमत पर अपने व्यवसाय को शुरू करना चाहते थे। वे थोड़ा डरे हुए भी थे क्योंकि उनका कारोबार बंद हो जाएगा, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और लक्ष्य के बीच कुछ भी खड़ा नहीं रहा। उन्होंने बैंक से लोन लिया और मुर्गी पालन दोबारा शुरू किया।

“पोल्टरी उद्योग दोबारा शुरू करने का कारण यह था कि मेरे चाचा जी (मुख्तियार सिंह) का इस उद्योग से काफी लगाव था क्योंकि इस व्यवसाय को शुरू करने वाले वे पहले व्यक्ति थे।इसके अलावा हमारे परिवार में प्रत्येक सदस्य की शिक्षा (प्राथमिक से उच्च शिक्षा) का खर्च और परिवार के प्रत्येक सदस्य का खर्च इसी उद्यम से लिया गया। आज मेरी एक बहन कैलिफोर्निया में सरकारी अफसर के रूप में कार्यरत है। एक बहन करनाल के सरकारी हाई स्कूल में लैक्चरार है। कुछ वर्षों पहले शाहताज सिंह (रविंदर सिंह का चचेरा भाई) ने फ्लोरिडा की यूनिवर्सिटी से मकैनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स पूरी की है। दोनों बेटी और बेटे की शादी का खर्च … सब कुछ पोल्टरी फार्म की आमदन से किया गया है।”

बहुत कम लोगों ने फिर से अपना पोल्टरी व्यवसाय शुरू किया और रविंदर सिंह संधु उनमें से एक थे। व्यवसाय दोबारा खड़ा करने के बाद संधु पोल्टरी फार्म जोश के साथ वापिस आए और पोल्टरी व्यवसाय से अच्छे लाभ कमाये।

व्यापार का विस्तार…

2010 तक, रविंदर ने अपने अंकल के साथ फार्म की उत्पादकता 2.5 लाख मुर्गियों तक बढ़ा दी। उसी वर्ष में, उन्होंने 40000 पक्षियों की क्षमता के साथ एक हैचरी की स्थापना की जिसमें से उन्होंने रोजाना औसतन 15000 पक्षी प्राप्त करने शुरू किए।

जब शाहताज व्यवसाय में शामिल हुए…

2012 में, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, शाहताज सिंह संधु अपने चचेरे भाई (रविंदर उर्फ लाडी पाजी) और पिता (मुख्तियार सिंह) के पोल्टरी व्यवसाय में शामिल हुए। पहले वे दूसरी कंपनियों से खरीदी गई फीड का प्रयोग करते थे लेकिन कुछ समय बाद दोनों भाई संधु पोल्टरी फार्म को नई ऊंचाइयों पर लेकर गए और संधु फीड्स की स्थापना की। संधु पोल्टरी फार्म और संधु फीड दोनों ही अधिकृत संगठन के तहत पंजीकृत हैं।

वर्तमान में उनके पास जींद रोड, असंध (हरियाणा) में स्थित, 22 एकड़ में पोल्टरी फार्म की 7-8 यूनिट, 4 एकड़ में हैचरी, 4 एकड़ में फीड प्लांट हैं और 30 एकड़ में वे फसलों की खेती करते हैं। अपने फार्म को हरे रंग के परिदृश्य और ताजा वातावरण देने के लिए उन्होंने 5000 से अधिक वृक्ष लगाए हैं। फीड प्लांट का उचित प्रबंधन 2 लोगों को सौंपा गया है और इसके अलावा पोल्टरी फार्म के कार्य के लिए 100 कर्मचारी हैं जिनमें से 40 आधिकारिक कर्मचारी हैं।

जब बात स्वच्छता और फार्म की स्थिति की आती है तो यह संधु भाइयों की कड़ी निगरानी के तहत बनाकर रखी जाती है। पक्षियों के प्रत्येक बैच की निकासी के बाद, पूरे पोल्टरी फार्म को धोया जाता है और साफ किया जाता है और उसके बाद मुर्गियों के बच्चों को ताजा और सूखा वातावरण प्रदान करने के लिए धान की भूसी की एक मोटी परत (3-3.5 इंच) ज़मीन पर फैला दी जाती है। तापमान बनाकर रखना दूसरा कारक है जो पोल्टरी फार्म को चलाने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए उन्होंने गर्मियों के मौसम में फार्म को हवादार बनाए रखने के लिए कूलर लगाए हुए हैं और सर्दियों के मौसम के दौरान पोल्टरी के अंदर भट्ठी के साथ ताप बनाकर रखा जाता है।

“एक छोटी सी अनदेखी से काफी बड़ा नुकसान हो सकता है इसलिए हम हमेशा मुर्गियों की स्वच्छता और स्वस्थ स्थिति बनाकर रखने को पहल देते हैं। हम सरकारी पशु चिकित्सा हस्पताल और कभी कभी विशेष पोल्टरी हस्पतालों में रेफर करते हैं जिनकी फीस बहुत मामूली है।”

मंडीकरण

पोल्टरी उद्योग में 24 वर्षों के अनुभव के साथ रविंदर संधु और 5 वर्षों के अनुभव के साथ शाहताज संधु ने अपने ही राज्य के साथ-साथ पड़ोसी राज्य जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में एक मजबूत मार्किटिंग नेटवर्क स्थापित किया है। वे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में विभिन्न डीलरों के माध्यम से और कभी कभी सीधे ही किसानों को मुर्गियां और उनके चूज़ों को बेचते हैं।

“यदि कोई पोल्टरी फार्म शुरू करने में दिलचस्पी रखता है तो उसे कम से कम 10000 पक्षियों के साथ इसे शुरू करना चाहिए शुरूआत में यह लागत 200 रूपये प्रति पक्षी और एक पक्षी तैयार करने के लिए 130 रूपये लगते हैं। आपका खर्चा लगभग 30 -35 लाख के बीच होगा और यदि फार्म किराये पर है तो 10000 पक्षियों के बैच के लिए 13-1400000 लगते हैं – यह संधु भाइयों का कहना है।”

भविष्य की योजनाएं

“फार्म का विस्तार करना और अधिक पक्षी तैयार करना हमारी चैकलिस्ट में पहले से ही है लेकिन एक नई चीज़ जो हम भविष्य में करने की योजना बना रहे हैं वो है पोल्टरी के उत्पादों की फुटकर बिक्री के उद्योग में निवेश करना।”
भाईचारे के अपने अतुल मजबूत बंधन के साथ दोनों भाई अपने परिवार के व्यवसाय को नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं और वे इसे भविष्य में भी जारी रखेंगे।

संदेश
पोल्टरी व्यवसाय आय का एक अच्छा वैकल्पिक स्त्रोत है जिसमें किसानों को निवेश करना चाहिए यदि वे खेती के साथ अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं। कुछ चीज़ें हैं जो हर पोल्टरी किसान को ध्यान में रखनी चाहिए यदि वे अपने पोल्टरी के कारोबार को सफलतापूर्वक चलाना चाहते हैं जैसे -स्वच्छता, तापमान बनाकर रखना और अच्छी गुणवत्ता वाले मुर्गी के चूज़े और फीड।

पूजा शर्मा

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एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाली महिला की कहानी जिसने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती के माध्यम से अपने पति का साथ दिया

हमारे भारतीय समाज में एक धारणा को जड़ दिया गया है कि महिला को घर पर होना चाहिए और पुरूषों को कमाना चाहिए। लेकिन फिर भी ऐसी कई महिलाएं हैं जो रोटी अर्जित के टैग को बहुत ही आत्मविश्वास से सकारात्मक तरीके से पेश करती हैं और अपने पतियों की घर चलाने और घर की जरूरतों को पूरा करने में मदद करती हैं। ऐसी ही एक महिला हैं – पूजा शर्मा, जो अपने घर की जरूरतों को पूरा करने में अपने पति की सहायता कर रही हैं।

श्री मती पूजा शर्मा जाटों की धरती- हरियाणा की एक उभरती हुई एग्रीप्रेन्योर हैं और वर्तमान में वे क्षितिज सेल्फ हेल्प ग्रुप की अध्यक्ष भी हैं और उनके गांव (चंदू) की प्रगतिशील महिलाएं उनके अधीन काम करती हैं। अभिनव खेती की तकनीकों का प्रयोग करके वे सोयाबीन, गेहूं, मक्का, बाजरा और मक्की से 11 किस्मों का खाना तैयार करती हैं, जिन्हें आसानी से बनाया जा सकता है और सीधे तौर पर खाया जा सकता है।

खेती के क्षेत्र में जाने का निर्णय 2012 में तब लिया गया, जब श्री मती पूजा शर्मा (तीन बच्चों की मां) को एहसास हुआ कि उनके घर की जरूरतें उनके पति (सरकारी अनुबंध कर्मचारी) की कमाई से पूरी नहीं हो रही हैं और अब ये उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने पति को सहारा दें।

वे KVK शिकोपूर में शामिल हुई और उन्हें उन चीज़ों को सीखने के लिए कहा गया जो उनकी आजीविका कमाने में मदद करेंगे। उन्होंने वहां से ट्रेनिंग ली और खेती की नई तकनीकें सीखीं। उन्होंने वहां सोयाबीन और अन्य अनाज की प्रक्रिया को सीखा ताकि इसे सीधा खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सके और यह ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपने पड़ोस और गांव की अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

2013 में उन्होंने अपने घर पर भुनी हुई सोयाबीन की अपनी एक छोटी निर्माण यूनिट स्थापित की और अपने उद्यम में अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी शामिल किया और धीरे-धीरे अपने व्यवसाय का विस्तार किया। उन्होंने एक क्षितिज SHG के नाम से एक सेल्फ हेल्प ग्रुप भी बनाया और अपने गांव की और महिलाओं को इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। ग्रुप की सभी महिलाओं की बचत को इकट्ठा करके उन्होंने और तीन भुनाई की मशीने खरीदीं और कुछ समय बाद उन्होंने और पैसा इकट्ठा किया और दो और मशीने खरीदीं। वर्तमान में उनके ग्रुप के पास निर्माण के लिए 7 मशीनें हैं। ये मशीनें उनके बजट के मुताबिक काफी महंगी हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने सब प्रबंध किया और इन मशीनों की लागत 16000 और 20000 के लगभग प्रति मशीन है। उनके पास 1.25 एकड़ की भूमि है और वे सक्रिय रूप से खेती में भी शामिल हैं। वे ज्यादातर दालों और अनाज की उन फसलों की खेती करती हैं जिन्हें प्रोसेस किया जा सके और बाद में बेचने के लिए प्रयोग किया जा सके। वे अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी यही सिखाती हैं कि उन्हें अपनी भूमि का प्रभावी ढंग से प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें भविष्य में फायदा हो सकता है।

11 महिलाओं की टीम के साथ आज वे प्रोसेसिंग कर रही है और 11 से ज्यादा किस्मों के उत्पादों (बाजरे की खिचड़ी, बाजरे के लड्डू, भुने हुए गेहूं के दाने, भुनी हुई ज्वार, भुनी हुई सोयाबीन, भुने हुए काले चने) जो कि खाने और बनाने के लिए तैयार हैं, को राज्यों और देश में बेच रही हैं। पूजा शर्मा की इच्छा शक्ति ने गांव की अन्य महिलाओं को आत्म निर्भरता और आत्म विश्वास हासिल करने में मदद की है।

उनके लिए यह काफी लंबी यात्रा थी जहां वे आज पहुंची हैं और उन्होंने कई चुनौतियों का सामना भी किया। अब उन्होंने अपने घर पर ही मशीनों को स्थापित किया है ताकि महिलाएं इन्हें चला सकें जब भी वे खाली हों और उनके गांव में बिजली की कटौती भी काफी होती हैं इसलिए उन्होंने उनके काम को उसी के अनुसार बांटा हुआ है। कुछ महिलायें बीन्स को सुखाती हैं, कुछ साफ करती है और बाकी की महिलायें उन्हें भूनती और पीसती हैं।

वर्तमान में कई बार पूजा शर्मा और उनका ग्रुप अंग्रेजी भाषा की समस्या का सामना करता है क्योंकि जब बड़ी कंपनियों के साथ संवाद करने की बात आती है तो उन्हें पता है कि किस कौशल में उनकी सबसे ज्यादा कमी है और वह है शिक्षा। लेकिन वे इससे निराश नहीं हैं और इस पर काम करने की कोशिश कर रही हैं। खाद्य वस्तुओं के निर्माण के अलावा वे सिलाई, खेती और अन्य गतिविधियों में ट्रेनिंग लेने में भी महिलाओं की मदद कर रही हैं, जिसमें वे रूचि रखती हैं।

उनके भविष्य की योजनाएं अपने व्यवसाय का विस्तार करना और अधिक महिलाओं को प्रेरित करना और उन्हें आत्म निर्भर बनाना ताकि उन्हें पैसों के लिए दूसरों पर निर्भर ना रहना पड़े। ज़ोन 2 के अंतर्गत राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली राज्यों से उन्हें उनके उत्साही काम और प्रयासों के लिए और अभिनव खेती की तकनीकों के लिए पंडित दीनदयाल उपध्याय कृषि पुरस्कार के साथ 50000 रूपये की नकद राशि और प्रमाण पत्र भी मिला। वे ATMA SCHEME की मैंबर भी हैं और उन्हें गवर्नर कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा उच्च प्रोटीन युक्त भोजन बनाने के लिए प्रशंसा पत्र भी मिला।

किसानों को संदेश
जहां भी किसान अनाज, दालों और किसी भी फसल की खेती करते हैं वहां उन्हें उन महिलाओं का एक समूह बनाना चाहिए जो सिर्फ घरेलू काम कर रही हैं और उन्हें उत्पादित फसलों से प्रोसेसिंग द्वारा अच्छी चीजें बनाने के लिए ट्रेनिंग देनी चाहिए, ताकि वे उन चीज़ों को मार्किट में बेच सकें और इसके लिए अच्छी कीमत प्राप्त कर सकें।”

 

सत्या रानी

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सत्या रानी: अपनी मेहनत से सफल एक महिला, जो फूड प्रोसेसिंड उदयोग में सूर्य की तरह उभर रही हैं

जब बात विकास की आती है तो इसमें कोई शक नहीं है कि महिलाएं भारत के युवा दिमागों को आकार देने और मार्गदर्शन करने में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। यहां तक कि खेतीबाड़ी के क्षेत्र में भी महिलायें पीछे नहीं हैं वे टिकाऊ और जैविक खेती के मार्ग का नेतृत्व कर रही हैं। आज, कई ग्रामीण और शहरी महिलायें खेतीबाड़ी में प्रयोग होने वाले रसायनों के प्रति जागरूक हैं और वे इस कारण इस क्षेत्र में काम भी कर रही हैं। सत्या रानी उन महिलाओं में से एक हैं जो जैविक खेती कर रही हैं और फूड प्रोसेसिंग के व्यापार में भी क्रियाशील हैं।

बढ़ते स्वास्थ्य मुद्दों और जलवायु परिर्वतन के साथ, खाद्य सुरक्षा से निपटना एक बड़ी चुनौती बन गई है और सत्या रानी एक उभरती हुई एग्रीप्रेन्योर हैं जो इस मुद्दे पर काम कर रही हैं। कृषि के क्षेत्र में योगदान करना और प्राकृति को उसका दिया वापिस देना सत्या का बचपन का सपना था। शुरू से ही उसके माता पिता ने उसे हमेशा इसकी तरफ निर्देशित और प्रेरित किया और अंतत: एक छोटी लड़की का सपना एक महिला का दृष्टिगोचर बन गया।

सत्या के जीवन में एक बुरा समय भी आया जिसमें अगर कोई अन्य लड़की होती तो वह अपना आत्म विश्वास और उम्मीद आसानी से खो देती। सत्या के माता पिता ने उन्हें वित्तीय समस्याओं के कारण 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई रोकने के लिए कहा। लेकिन उसका अपने भविष्य के प्रति इतना दृढ़ संकल्प था कि उसने अपने माता-पिता से कहा कि वह अपनी उच्च शिक्षा का प्रबंधन खुद करेगी। उसने खाद्य उत्पाद जैसे आचार और चटनी बनाने का और इसे बेचने का काम शुरू किया।

इस समय के दौरान उसने कई नई चीज़ें सीखीं और उसकी रूचि फूड प्रोसेसिंग व्यापार में बढ़ गई। हिंदू गर्ल्स कॉलेज, जगाधरी से अपनी बी ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे उसी कॉलेज में होम साइंस ट्रेनर की जॉब मिल गई। इसके तुरंत बाद उसने 2004 में राजिंदर कुमार कंबोज से शादी की, लेकिन शादी के बाद भी उसने अपना काम नहीं छोड़ा। उसने अपने फूड प्रोसेसिंग के काम को जारी रखा और कई नये उत्पाद जैसे आम के लड्डू, नारियल के लड्डू, आचार, फ्रूट जैम, मुरब्बा और भी लड्डुओं की कई किस्में विकसित की। उसकी निपुणता समय के साथ बढ़ गई जिसके परिणाम स्वरूप उसके उत्पादों की गुणवत्ता अच्छी हुई और बड़ी संख्या में उसका ग्राहक आधार बना।

खैर, फूड प्रोसेसिंग ही ऐसा एकमात्र क्षेत्र नहीं है जिसमें उसने उत्कृष्टा हासिल की। अपने स्कूल के समय से वह खेल में बहुत सक्रिय थीं और कबड्डी टीम की कप्तान थी। वह अपने पेशे और काम के प्रति बहुत उत्साही थी। यहां तक कि उसने हिंदू गर्ल्स कॉलेज से सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग पुरस्कार भी प्राप्त किया। वर्तमान में वह एक एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती कर रही है और डेयरी फार्मिंग में भी सक्रिय रूप से शामिल है। वह अपने पति की सहायता से हर तरह की मौसमी सब्जियां उगाती है। सत्या ऑरगैनिक ब्रांड नाम है जिसके तहत वह अपने प्रोसेस किए उत्पादों (विभिन्न तरह के लड्डू, आचार, जैम और मुरब्बा ) को बेच रही है।

आने वाले समय में वह अपने काम को बढ़ाने और इससे अधिक आमदन कमाने की योजना बना रही है वह समाज में अन्य लड़कियों और महिलाओं को फूड प्रोसेसिंग और जैविक खेती के प्रति प्रेरित करना चाहती है ताकि वे आत्म निर्भर हो सकें।

किसानों को संदेश
यदि आपको भगवान ने सब कुछ दिया है अच्छा स्वास्थ्य और मानसिक रूप से तंदरूस्त दिमाग तो आपको एक रचनात्मक दिशा में काम करना चाहिए और एक सकारात्मक तरीके से शक्ति का उपयोग करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को स्वंय में छिपी प्रतिभा को पहचानना चाहिए ताकि वे उस दिशा में काम कर सके जो समाज के लिए लाभदायक हो।

अशोक वशिष्ट

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मशरूम की जैविक खेती और मशरूम के उत्पादों से पैसा बनाने वाले एक किसान की उत्साहजनक कहानी

बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने के लिए कृषि का विज्ञान परिष्कृत और अधिक समय तक सिद्ध हुआ है और उन्नति के साथ कृषि की तकनीकों में भी बदलाव आया है। वर्तमान में ज्यादातर किसान अपनी फसलों के ज्यादा उत्पादन के लिए परंपरागत / औद्योगिक कृषि तकनीकों, रासायनिक खादों, कीटनाशकों, जी एम ओ और अन्य औद्योगिक उत्पादों पर आधारित हैं। इनमें से कुछ ही किसान रसायनों का प्रयोग किए बिना खेती करते हैं। आज हम आपकी ऐसी शख्सीयत से पहचान करवाएंगे जो पहले परंपरागत खेती करते थे लेकिन बाद में कुदरती खेती के तरीकों के लाभ जानकर, उन्होंने कुदरती खेती के ढंगो से खेती करनी शुरू की।

अशोक वशिष्ट हरियाणा गांव के साधारण किसान हैं जिन्होंने परंपरागत खेती तकनीकों को उपयोग करने की रूढ़ी सोच को छोड़कर, मशरूम की खेती के लिए जैविक ढंगो का उपयोग करना शुरू किया। मशरूम के रिसर्च सेंटर के दौरे के बाद अशोक वशिष्ट को कुदरती ढंग से मशरूम की खेती करने की प्रेरणा मिली, जहां उन्हें मुख्य वैज्ञानिक डॉ. अजय सिंह यादव ने मशरूम के फायदेमंद गुणों से अवगत कराया और इसकी खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

शुरूआत में जब उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की, तब वैज्ञानिक अजय सिंह यादव के अलावा उन्हें खेती के लिए प्रोत्साहन और सहायता करने वाली उनकी पत्नी थी। उनके परिवार के अन्य छ: सदस्यों ने भी उनकी मदद की और उनका साथ दिया।

अशोक वशिष्ट मशरूम की खेती करने के लिए महत्तवपूर्ण तीन कार्य करते हैं:

पहला कार्य: पहले वे धान की पराली, गेहूं की पराली, बाजरे की पराली आदि का उपयोग करके खाद तैयार करते हैं। वे पराली को 3 से 4 सैं.मी. काट लेते हैं और उसे पानी में भिगो देते हैं।

दूसरा  कार्य: वे घर में खाद तैयार करने के लिए पराली को 28 दिनों के लिए छोड़ देते हैं।

तीसरा कार्य: जब खाद तैयार हो जाती है, तब उनमें मशरूम के बीजों को बोया जाता है जो विशेषकर लैब में तैयार होते हैं।

मशरूम की खेती करने के लिए वे हमेशा ये तीन कार्य करते हैं और मशरूम की खेती के इलावा वे अपने खेत में गेहूं और धान की भी खेती करते हैं। योग्यता से वे सिर्फ 10वीं पास है लेकिन इस चीज़ ने उन्हें नई चीज़ों को सीखने और तलाशने में कभी भी उजागर नहीं किया। अपनी नई सोच और उत्साह के साथ वे मशरूम से अलग उत्पाद बनाने की कोशिश करते हैं और अब तक उन्होंने शहद का मुरब्बा, मशरूम का आचार, मशरूम का मुरब्बा, मशरूम की भुजिया, मशरूम के बिस्कुट, मशरूम की जलेबी और लड्डू जैसे उत्पाद बनाये हैं। उन्होंने हमेशा विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए एक बात का ध्यान रखा है वह है सेहत। इसीलिए वे मीठे व्यंजनों को मीठा बनाने के लिए स्टीविया पौधे की प्रजातियों से तैयार स्टीविया पाउडर का प्रयोग करते हैं। स्टीविया सेहत के लिए एक अच्छा मीठा पदार्थ होता है और इसमें पोषक तत्व भी होते हैं, शूगर के मरीज़ बिना किसी चिंता के स्टीविया युक्त मीठे उत्पादों का प्रयोग कर सकते हैं।

अशोक वशिष्ट की यात्रा बहुत छोटे स्तर से, लगभग शून्य से ही शुरू हुई और आज उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से अपना खुद का व्यवसाय स्थापित किया है जहां वे FSSAI द्वारा पारित घरेलू उत्पादों को बेचते हैं। महर्षि वशिष्ट मशरूम वह ब्रांड नाम है जिसके तहत वे अपने उत्पादों को बेच रहे हैं और कई विशेषज्ञ, अधिकारी, नेताओं और मीडिया उनके आविष्कार किए तरीकों और मशरूम की खेती के पीछे के विचार और स्वादिष्ट मशरूम उत्पादों के लिए समय-समय पर उनके फार्म पर जाते रहते हैं।

महर्षि वशिष्ट की उपलब्धियां इस प्रकार हैं:

• HAIC Agro Research and Development Centre की तरफ से मशरूम प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए र्स्टीफिकेट मिला।

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार की तरफ से ट्रेनिंग र्स्टीफिकेट मिला।

• 2nd Agri Leadership Summit 2017 का पुरस्कार और र्स्टीफिकेट मिला।

• आमना तरनीम, DC जींद की तरफ से प्रशंसा पुरस्कार मिला।

मशरुम का बीज:
हाल ही में अशोक जी ने मशरूम का बीज तैयार किया है, जिसे स्पान की जगह पर इस्तेमाल किया जा सकता है और ऐसा करने वाले वह देश के पहले किसान है।

खैर, अशोक वशिष्ट के बारे में उल्लेख करने के लिए ये सिर्फ कुछ पुरस्कार और उपलब्धियां ही हैं। यहां तक कि उनकी भैंस ने 23 किलो दूध देकर प्रतियोगिता जीती, जिससे उन्हें 21 हज़ार रूपये का नकद पुरस्कार मिला। उनके पास 4.5 एकड़ ज़मीन है और 6 मुर्रा भैंस हैं, जिनमें से वे सबसे अच्छी कमाई और लाभ कमाने की कोशिश करते हैं। वे विभिन्न प्रदर्शनियों और इवेंट्स में भी जाते हैं जो उनके उत्पादों को दिखाने और उनके खेती तकनीक के बारे में जागरूक करवाने में उनकी मदद करते हैं। अपनी कड़ी मेहनत और जुनून के साथ वे भविष्य में निश्चित ही खेती की क्षेत्र में अधिक सफलताएं और प्रशंसा प्राप्त करेंगे।

अशोक वशिष्ट का किसानों के लिए एक विशेष संदेश
मशरूम बेहद पौष्टिक और मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। मैंने कुदरती तरीके से मशरूम की खेती करके बहुत लाभ कमाया है। जैसे कि हम जानते हैं कि भविष्य में खाद्य उत्पाद तैयार करना एक बहुत बड़ी बात होगी, इसलिए इस अवसर का लाभ उठाएं। आने वाले समय में, मैं अपने मशरूम की खेती का विस्तार करने की योजना बना रहा हूं ताकि इनसे तैयार उत्पादों को बेचने के लिए भारी मात्रा में उत्पादों को उत्पादन किया जा सके। अन्य किसानों के लिए मेरा संदेश यह है कि उन्हें भी मशरूम की खेती करनी चाहिए और बाज़ार में मशरूम से बने विभिन्न उत्पाद बेचने चाहिए। भूमिहीन किसान भी मशरूम की खेती से बड़ी कमाई कर सकते हैं और उन्हें खेती के लिए इस क्षेत्र का चयन करना चाहिए।

राजवीर सिंह

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करनाल के एक छोटे डेयरी फार्म की सफलता की कहानी जो प्रतिदिन 800 लीटर दूध का उत्पादन करते हैं

यह राजवीर सिंह के डेयरी फार्म की उपलब्धियों और उनकी सफलता की कहानी है। करनाल जिले (हरियाणा) के एक छोटे से गांव से होने के कारण राजवीर सिंह ने कभी सोचा नहीं कि उनकी एच.एफ नस्ल की गाय लक्ष्मी को उच्च दूध उत्पादन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।

राजवीर सिंह की लक्ष्मी गाय होल्स्टीन फ्रिसियन नस्ल की है जिस के दूध उत्पादन की क्षमता प्रति दिन 60 लीटर है जो अन्य एच.एफ नस्ल की गायों की तुलना में अधिक है। लक्ष्मी ने न केवल अपने उच्च दूध उत्पादन क्षमता के लिए पुरस्कार जीते हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर कई पशु मेलों में अपनी सुंदरता के लिए भी पुरस्कार प्राप्त किए हैं। वह पंजाब नेशनल डेयरी फार्मिंग समारोह में एक ब्यूट चैंपियन रही है।

खैर, श्री राजवीर के फार्म पर लक्ष्मी सिर्फ एक उच्च दूध उत्पादक गाय है। उनके फार्म में कुल मिलाकर 75 पशु हैं, जिनसे राजवीर सिंह वार्षिक लगभग 15 लाख का लाभ कमा रहे हैं। उनका पूरा फार्म 1.5 एकड़ भूमि में बनाया गया है और विस्तारित किया गया है, जिस में आप 60 एच.एफ गाय, 10 जर्सी गाय, 5 साहीवाल गाय के अद्भुत दृश्य देख सकते है।

राजवीर सिंह के डेयरी फार्म पर दूध उत्पादन की कुल क्षमता 800 लीटर प्रति दिन की है। जिनमें से वे कुछ दूध बाजार में बेचते हैं और शेष अमूल डेयरी को बेचते हैं । उन्हें 8 साल हो गए है डेयरी फार्मिंग में सक्रिय रूप से शामिल हुए और अपने सभी प्रयासों और विशेषज्ञता के साथ वह अपनी गायों का ख्याल रखने की कोशिश करते है।

कोई भी कीमत राजवीर सिंह और उनकी गायों के बंधन को कमज़ोर नहीं बना सकती…

राजवीर सिंह अपनी गायें और डेयरी काम से बहुत जुड़े हुए है। एक बार उन्होंने बैंगलोर से आए एक बड़े व्यवसायी को 5 लाख रुपये में अपनी गाय लक्ष्मी बेचने से इनकार कर दिया। व्यवसायी ने गाय खरीदने के लिए राजवीर सिंह के फार्म का दौरा किया और लक्ष्मी के बदले में वह कोई भी राशि की देने के लिए तैयार थे, लेकिन लेकिन वे अपने फैसले पर अडिग थे और उन्होने उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।

राजवीर सिंह द्वारा लक्ष्मी को प्रदान की जाने वाली फ़ीड और देखभाल…

लक्ष्मी का जन्म राजवीर सिंह के फार्म में हुआ था, जिसके कारण राजवीर उससे बहुत जुड़े थे। लक्ष्मी आम तौर पर प्रति दिन 50 किलो हरा चारा, 2 किलो सूखा चारा और 14 किलो अनाज खाती है। फार्म में लक्ष्मी और अन्य जानवरों की देखभाल में लगभग 6 कर्मचारी रखे हुए हैं।

संदेश
“गायों की देखभाल एक बच्चे की तरह की जानी चाहिए। गायों को जो प्यार और देखभाल दी जाती है उसके प्रति वे बहुत प्रतिक्रियाशील रहती हैं। डेयरी किसानों को गायों की हर जरूरत का ख्याल रखना चाहिए, फिर ही वे अच्छा दूध उत्पादन प्राप्त कर सकते है।”