सरबीरइंदर सिंह सिद्धू

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पंजाब -मालवा क्षेत्र के किसान ने कृषि को मशीनीकरण तकनीक से जोड़ा, क्या आपने कभी इसे आज़माया है…

44 वर्षीय सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को लागू किया जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है और प्रकृति के साथ मिलकर काम करने का यह विचार उनके दिमाग में तब आया जब वे बहुत दूर विदेश में थे।

खेतीबाड़ी, जैसे कि हम जानते हैं कि यह एक पुरानी पद्धति है जिसे हमारे पूर्वजों और उनके पूर्वजों ने भोजन उत्पादित करने और जीवन जीने के लिए अपनाया। लेकिन मांगों में वृद्धि और परिवर्तन के साथ, आज कृषि का एक लंबा इतिहास बन चुका है। हां, आधुनिक कृषि पद्धतियों के कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं लेकिन अब न केवल कृषि समुदाय बल्कि शहर के बहुत से लोग स्थाई कृषि पद्धतियों के लिए पहल कर रहे हैं।

सरबीरइंदर सिंह सिद्धू उन व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने विदेश में रहते हुए महसूस किया कि उन्होंने अपनी धरती के लिए कुछ भी नहीं किया जिसने उन्हें उनके बचपन में सबकुछ प्रदान किया। यद्यपि वे विदेश में बहुत सफल जीवन जी रहे थे, नई खेती तकनीकों, मशीनरी के बारे में सीख रहे थे और समाज की सेवा कर रहे थे, लेकिन फिर भी वे निराश महसूस करते थे और तब उन्होंने विदेश छोड़ने का फैसला किया और अपनी मातृभूमि पंजाब (भारत) वापिस आ गए।

“पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं उच्च शिक्षा के लिए कैनेडा चला गया और बाद में वहीं पर बस गया, लेकिन 5-6 वर्षों के बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे वहां पर वापिस जाने की जरूरत है जहां से मैं हूं।”

विदेशी कृषि पद्धतियों से पहले से ही अवगत सरबीरइंदर सिंह सिद्धू ने खेती के अपने तरीके को मशीनीकृत करने का फैसला किया और उन्होंने व्यापारिक खेती और कृषि तकनीक को इक्ट्ठे जोड़ा। इसके अलावा, उन्होंने गेहूं और धान की बजाय किन्नू की खेती शुरू करने का फैसला किया।

“गेहूं और धान पंजाब की रवायती फसले हैं जिन्हें ज़मीन में केवल 4-5 महीने श्रम की आवश्यकता होती है। गेहूं और धान के चक्र में फंसने की बजाय, किसानों को बागबानी फसलों और अन्य कृषि संबंधित गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए जो साल भर की जा सकती हैं।”

श्री सिंह ने एक मशीन तैयार की जिसे बगीचे में ट्रैक्टर के साथ जोड़ा जा सकता है और यह मशीन किन्नू को 6 अलग-अलग आकारों में ग्रेड कर सकती है। मशीन में 9 सफाई करने वाले ब्रश और 4 सुखाने वाले ब्रश शामिल हैं। मशीन के मशीनीकरण ने इस स्तर तक श्रम की लागत को लगभग शून्य कर दिया है।

“मेरे द्वारा डिज़ाइन की गई मशीन एक घंटे में लगभग 1-1 ½ टन किन्नू ग्रेड कर सकती है और इस मशीन की लागत 10 लीटर डीज़ल प्रतिदिन है।”

श्री सिंह के मुताबिक- शुरूआत में जो मुख्य बाधा थी वह थी किन्नुओं के मंडीकरण के दौरान, किन्नुओं का रख रखाव, तुड़ाई में लगने वाली श्रम लागत जिसमें बहुत समय जाता था और जो बिल्कुल भी आर्थिक नहीं थी। श्री सिंह द्वारा विकसित की ग्रेडिंग मशीन के द्वारा, तुड़ाई और ग्रेडिंग की समस्या आधी हल हो गई थी।

छ: अलग अलग आकारों में किन्नुओं की ग्रेडिंग करने का यह मशीनीकृत तरीके ने बाजार में श्री सिंह की फसल के लिए एक मूल्यवान जगह बनाई, क्योंकि इससे उन्हें अधिक प्राथमिकता और निवेश पर प्रतिफल मिलता है। किन्नुओं की ग्रेडिंग के लिए इस मशीनीकृत तरीके का उपयोग करना “सिद्धू मॉडल फार्म” के लिए एक मूल्यवान जोड़ है और पिछले 2 वर्षों से श्री सिंह द्वारा उत्पादित फल सिट्रस शो में राज्य स्तर पर पहला और दूसरा पुरस्कार प्राप्त किए हैं।

सिर्फ यही दृष्टिकोण नहीं था जिसे श्री सिंह अपना रहे थे, बल्कि ड्रिप सिंचाई, फसल अपशिष्ट प्रबंधन, हरी खाद, बायोगैस प्लांट, वर्मी कंपोस्टिंग, सब्जियों, अनाज, फल और गेहूं का जैविक उत्पादन के माध्यम से वे कृषि के रवायती ढंगों के हानिकारक प्रभावों को कम कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र में सरबीरइंदर सिंह सिद्धू के योगदान ने उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त करवाये हैं जिनमें से ये दो मुख्य हैं।
• पंजाब के अबोहर में राज्य स्तरीय सिट्रस शो जीता
• अभिनव खेती के लिए पूसा दिल्ली पुरस्कार प्राप्त हुआ
कृषि के साथ श्री सिंह सिर्फ अपने शौंक की वजह से अन्य पशु पालन और कृषि संबंधित गतिविधियों के भी माहिर हैं। उन्होंने डेयरी पशु, पोल्टरी पक्षी, कुत्ते, बकरी और मारवाड़ी घोड़े पाले हुए हैं। उन्होंने आधे एकड़ में मछली तालाब और जंगलात बनाया हुआ है जिसमें 7000 नीलगिरी के वृक्ष और 25 बांस की झाड़ियां हैं।
कृषि क्षेत्र में अपने 12 वर्ष के अनुभव के साथ, श्री सिंह ने कुछ महत्तवपूर्ण मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और इन मुद्दों के माध्यम से वे समाज को संदेश देना चाहते हैं जो पंजाब में प्रमुख चिंता के विषय हैं:

सब्सिडी और कृषि योजनाएं
किसान मानते हैं कि सरकार सब्सिडी देकर और विभिन्न कृषि योजनाएं बनाकर हमारी मदद कर रही है, लेकिन यह सच नहीं है, यह किसानों को विकलांग बनाने और भूमि हथियाने का एक तरीका है। किसानों को अपने अच्छे और बूरे को समझना होगा क्योंकि कृषि इतना व्यापक क्षेत्र है कि यदि इसे दृढ़ संकल्प से किया जाए तो यह किसी को भी अमीर बना सकती है।

आजकल के युवा पीढ़ी की सोच
आजकल युवा पीढ़ी विदेश जाने या शहर में बसने के लिए तैयार है, उन्हें परवाह नहीं है कि उन्हें वहां किस प्रकार का काम करना है, उनके लिए खेती एक गंदा व्यवसाय है। शिक्षा और रोजगार में सरकार के पैसे निवेश करने का क्या फायदा जब अंतत: प्रतिभा पलायन हो जाती है। आजकल की नौजवान पीढ़ी इस बात से अनजान है कि खेतीबाड़ी का क्षेत्र इतना समृद्ध और विविध है कि विदेश में जीवन व्यतीत करने के जो फायदे, लाभ और खुशी है उससे कहीं ज्यादा यहां रहकर भी वे हासिल कर सकते हैं।

कृषि क्षेत्र में मंडीकरण – आज, किसानों को बिचौलियों को खेती- मंडीकरण प्रणाली से हटाकर स्वंय विक्रेता बनना पड़ेगा और यही एक तरीका है जिससे किसान अपना खोया हुआ स्थान समाज में दोबारा हासिल कर सकता है। किसानों को आधुनिक पर्यावरण अनुकूल पद्धतियां अपनानी पड़ेंगी जो कि उन्हें स्थायी कृषि के परिणाम की तरफ ले जायेंगी।

सभी को यह याद रखना चाहिए कि-
“ज़िंदगी में एक बार सबको डॉक्टर, वकील, पुलिस अधिकारी और एक उपदेशक की जरूरत पड़ती है पर किसान की जरूरत एक दिन में तीन बार पड़ती है।”

जगदीप सिंह

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जानें कैसे इस किसान की व्यावहारिक पहल ने पंजाब को पराली जलाने के लिए ना कहने में मदद की

पराली जलाना और कीटनाशकों का प्रयोग करना पुरानी पद्धतियां हैं जिनका पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव आज हम देख रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के कारण भारत के उत्तरी भागों को वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कई वर्षों में वायु की गुणवत्ता खराब हो गई है और यह कई गंभीर श्वास और त्वचा की समस्याओं को जन्म दे रही है।

हालांकि सरकार ने पराली जलाने की समस्या को रोकने के लिए कई प्रमुख कदम उठाए हैं फिर भी वे किसानों को पराली जलाने से रोक नहीं पा रहे। किसानों में ज्ञान और जागरूकता की कमी के कारण पंजाब में पराली जलाना एक बड़ा मुद्दा बन रहा है। लेकिन एक ऐसे किसान जगदीप सिंह ने ना केवल अपने क्षेत्र में पराली जलाने से किसानों को रोका बल्कि उन्हें जैविक खेती की तरफ प्रोत्साहित किया।

जगदीप सिंह पंजाब के संगरूर जिले के एक उभरते हुए किसान हैं। अपनी मातृभूमि और मिट्टी के प्रति उनका स्नेह बचपन में ही बढ़ गया था। मिट्टी प्रेमी के रूप में उनकी यात्रा उनके बचपन से ही शुरू हुई। जन्म के तुरंत बाद उनके चाचा ने उन्हें गोद लिया जिनका व्यवसाय खेतीबाड़ी था। उनके चाचा उन्हें शुरू से ही फार्म पर ले जाते थे और इसी तरह खेती की दिशा में जगदीप की रूचि बढ़ गई।

बढ़ती उम्र के साथ उनका दिमाग भी विकासशील रहा और पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्राथमिकता खेती को ही दी। अपनी 10वीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और खेती में अपने पिता मुख्तियार सिंह की मदद करनी शुरू की। खेती के प्रति उनकी जिज्ञासा दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी, इसलिए अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए उन्होंने 1989 से 1990 के बीच उन्होंने पी ए यू का दौरा किया। पी ए यू का दौरा करने के बाद जगदीप सिंह को पता चला कि उनकी खेती की मिट्टी का बुनियादी स्तर बहुत अधिक है जो कई मिट्टी और फसलों के मुद्दे को जन्म दे रहा है और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए दो ही उपाय थे या तो रूड़ी की खाद का प्रयोग करना या खेतों में हरी खाद का प्रयोग करना।

इस समस्या का निपटारा करने के लिए जगदीप एक अच्छे समाधान के साथ आये क्योंकि रूड़ी की खाद में निवेश करना उनके लिए महंगा था। 1990 से 1991 के बीच उन्होंने पी ए यू के समर्थन से happy seeder का प्रयोग करना शुरू किया। happy seeder के प्रयोग से वे खेत में से धान की पराली को बिना निकाले मिट्टी में बीजों को रोपित करने के योग्य हुए। उन्होंने अपने खेत में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए धान की पराली को खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू किया। धीरे-धीरे जगदीप ने अपनी इस पहल में 37 किसानों को इकट्ठा किया और उन्हें happy seeder प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया और पराली जलाने से परहेज करने को कहा। उन्होंने इस अभियान को पूरे संगरूर में चलाया जिसके तहत उन्होंने 350 एकड़ से अधिक ज़मीन को कवर किया।

2014 में मैंने IARI (Indian Agricultural Research Institute) से पुरस्कार प्राप्त किया और उसके बाद मैनें अपने गांव में ‘Shaheed Baba Sidh Sweh Shaita Group’ नाम का ग्रुप बनाया। इस ग्रुप के तहत हम किसानों को हवा प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए, पराली ना जलाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इन दिनों वे 40 एकड़ की भूमि पर खेती कर रहे हैं जिसमें से 32 एकड़ भूमि उन्होंने किराये पर दी है और 4 एकड़ की भूमि पर वे जैविक खेती कर रहे हैं और बाकी की भूमि पर वे बहुत कम मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। उनका मुख्य मंतव जैविक की तरफ जाना है। वर्तमान में वे अपने पिता, माता, पत्नी और दो बेटों के साथ कनोई गांव में रह रहे हैं।

जगदीप सिंह के व्यक्तित्व के बारे में सबसे आकर्षक चीज़ यह है कि वे बहुत व्यावहारिक हैं और हमेशा खेतीबाड़ी के बारे में नई चीज़ें सीखने के लिए इच्छुक रहते हैं। वे पशु पालन में भी बहुत दिलचस्पी रखते हैं और घर के उद्देश्य के लिए उनके पास 8 भैंसे हैं। वे भैंस के दूध का प्रयोग सिर्फ घर के लिए करते हैं और कई बार इसे अपने पड़ोसियों या गांव वालों को भी बेचते हैं खेतीबाड़ी और दूध की बिक्री से वह अपने परिवार के खर्चों को काफी अच्छे से संभाल रहे हैं और भविष्य में वे अच्छे मुनाफे के लिए अपनी उत्पादकता की मार्किटिंग शुरू करना चाहते हैं।

संदेश
दूसरे किसानों के लिए जगदीप सिंह का संदेश यह है कि उन्हें अपने बच्चों को खेती के बारे में सिखाना चाहिए और उनके मन में खेती के बारे में नकारात्मक विचार ना डालें अन्यथा वे अपने जड़ों के बारे में भूल जाएंगे।

श्री कट्टा रामकृष्ण

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जानिये कैसे कट्टा रामकृष्ण ने उच्च घनत्व में रोपाई की तकनीक से कपास की खेती को और दिलचस्प बनाया

कट्टा रामकृष्ण आंध्र प्रदेश राज्य के प्रकाशम जिले में नागुलूप्पलडु के नज़दीक ओबन्न पलेम गांव के एक प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों के सुझाव अनुसार अपने कपास के खेत में उच्च घनत्व रोपाई तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया जिसके परिणामस्वरूप बेहतर उत्पादकता के साथ उच्च पैदावार प्राप्त की।

कट्टा रामकृष्ण की एक छोटे से क्षेत्र में अधिक पौधों को लगाने के लिए इस अभिनव पहल ने अंतत: उपज में वृद्धि की। इस कदम से उन्होंने 10 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन किया जिसने उन्हें भारतीय कृषि परिषद से राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करवाई और उन्हें 2013 में “बाबू जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

बाद में, जिला कृषि सलाहकार और ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलोजी सेंटर के मार्गदर्शन से, कट्टा रामकृष्ण ने एक एकड़ में 12500 पौधे लगाए और इसे अपने 5 एकड़ प्लॉट में लागू किया और एक एकड़ से 22 क्विंटल उपज प्राप्त की।

“मेरे द्वारा निवेश की गई हर राशि के लिए, मुझे बदले में लाभ के बराबर राशि मिली”

— कट्टा रामकृष्ण ने गर्व से अपना पुरस्कार दिखाकर कहा जो उन्हें नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन से प्राप्त किया।

“सामान्यत: एक किसान एक एकड़ में 8000 कपास के पौधे लगाता है और 10 से 15 क्विंटल उपज प्राप्त करता है लेकिन वे नहीं जानते कि पौधे की घनता में वृद्धि कपास की उपज में वृद्धि कर सकती है”

— डी ओ टी सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक वरप्रसाद राव ने कहा।

सफेद सोने की अच्छी उत्पादकता से उत्साहित होकर कट्टा रामकृष्ण ने कहा कि

– “आने वाले समय में मैं 16000 पौधे प्रति एकड़ में लगाकर 25 से 20 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकता हूं।”

उपलब्धियां

• उन्हें विभिन्न राज्यों और राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है।

• श्री रामकृष्ण ने कपास की सघन रोपाई अपनाई जिसमें 90 सैं.मी. x 30 सैं.मी. का फासला रखा (90 सैं.मी. x 45 सैं.मी. के स्थान पर), जिसके फलस्वरूप बारानी परिस्थितियों में अच्छी उपज (45.10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर) प्राप्त हुई है।

• कपास के खेत में अधिकतम जल संरक्षण के लिए हाइड्रोजैल तकनीक कोअपनाया, जिसके फलस्वरूप उपज में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

• उन्होंने अपने खेतों में चना, उड़द, मूंग के प्रक्षेत्र परीक्षण लगाए, जिसके परिणामस्वरूप प्रकाशम जिले में किसानों के खेतों के लिए उपयुक्त प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिली।

• चने की फसल में जैविक खादों जैसे राइजोबियम और फॉस्फोबैक्टीरिया का प्रयोग किया जिससे उपज में बढ़ोत्तरी हुई।

• वे खेती के लिए जैविक खादों और हरी खाद को पहल देते हैं।

• कीटों की नियंत्रण के लिए वे नीम के बीजों का प्रयोग करते हैं।

• उन्होंने सी.टी.आर.आई कंडुकर प्रकाशम जिले के सहयोग से तंबाकू के व्यर्थ पदार्थ को अपने खेतों में खाद के रूप में प्रयोग करके नई तकनीक विकसित की।

• उन्होंने सीड कम फर्टिलाइजर को मॉडीफाई किया, ताकि बीज और खाद को मिट्टी की विभिन्न गहराई पर एक समय में बोया जा सके। यह मॉडीफाइड सीड कम फर्टीलाइज़र ड्रिल स्थानीय किसानों के लिए सभी प्रकार की दालों की बिजाई के लिए उपयुक्त है।

• उनके द्वारा तैयार की गई आविष्कारी तकनीकें और संशोधित पैकेज प्रैक्टिसिज़ स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित हैं। इसके अलावा, उनके फार्म पर होने वाले अनुभवों की अलग अलग रेडियो और सार्वजनिक मीटिंगों में चर्चा की जाती है।

• वे अपने क्षेत्र में दूसरे किसानों के लिए आदर्श मॉडल और प्रेरणा बन गए हैं।

संदेश
“फसल के बेहतर विकास के लिए किसानों को मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन करने के लिए विशेषज्ञों से अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए और इसी तरीके से वे कम रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करके कीट प्रबंधन के सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।”

 

सरदार गुरमेल सिंह

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जानिये कैसे गुरमेल सिंह ने अपने आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करके सब्जियों की खेती में लाभ कमाया

गुरमेल सिंह एक और प्रगतिशील किसान पंजाब के गाँव उच्चागाँव (लुधियाना),के रहने वाले हैं। कम जमीन होने के बावजूद भी वे पिछले 23 सालों से सब्जियों की खेती करके बहुत लाभ कमा रहे हैं। उनके पास 17.5 एकड़ जमीन है जिसमें 11 एकड़ जमीन अपनी है और 6 .5 एकड़ ठेके पर ली हुई है।

आधुनिक खेती तकनीकें ड्रिप सिंचाई, स्प्रे सिंचाई, और लेज़र लेवलर जैसे कई पावर टूल्स उनके पास हैं जो इन्हें कुशल खेती और पानी का संरक्षण करने में सहायता करते हैं। और जब बात कीटनाशक दवाइयों की आती है तो वे बहुत बुद्धिमानी से काम लेते हैं। वे सिर्फ पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की सिफारिश की गई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर वे अच्छी पैदावार के लिए अपने खेतों में हरी कुदरती खाद का इस्तेमाल करते हैं।

दूसरी आधुनिक तकनीक जो वह सब्जियों के विकास के लिए 6 एकड़ में हल्की सुरंग का सही उपयोग कर रहे हैं। कुछ फसलों जैसे धान, गेहूं, लौंग, गोभी, तरबूज, टमाटर, बैंगन, खीरा, मटर और करेला आदि की खेती वे विशेष रूप से करते हैं। अपने कृषि के व्यवसाय को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सोया के हाइब्रिड बीज तैयार करने और अन्य सहायक गतिविधियां जैसे कि मधुमक्खी पालन और डेयरी फार्मिंग आदि की ट्रेनिंग कृषि विज्ञान केंद्र पटियाला से हासिल की।

मंडीकरण
उनके अनुभव के विशाल क्षेत्र में ना सिर्फ विभिन्न फसलों को लाभदायक रूप से उगाना शामिल है, बल्कि इसी दौरान उन्होंने अपने मंडीकरण के कौशल को भी बढ़ाया है और आज उनके पास “आत्मा किसान हट (पटियाला)” पर अपना स्वंय का बिक्री आउटलेट है। उनके प्रासेसड किए उत्पादों की गुणवत्ता उनकी बिक्री को दिन प्रति दिन बढ़ा रही है। उन्होंने 2012 में ब्रांड नाम “स्मार्ट” के तहत एक सोया प्लांट भी स्थापित किया है और प्लांट के तहत वे, सोया दूध, पनीर, आटा ओर गिरियों जैसे उत्पादों को तैयार करते और बेचते हैं।

उपलब्धियां
वे दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं और जल्दी ही उन्हें CRI पम्प अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा

संदेश:
“यदि वह सेहतमंद ज़िंदगी जीना चाहते हैं तो किसानों को अपने खेत में कम कीटनाशक और रसायनों का उपयोग करना चाहिए और तभी वे भविष्य में धरती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं।”

 

हरजीत सिंह बराड़

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कई मुश्किलों का सामना करने के बावजूद भी इस नींबू वर्गीय संपदा के मालिक ने सर्वश्रेष्ठ किन्नुओं के उत्पादन में सफल बने रहने के लिए अपना एक नया तरीका खोजा

फसल खराब होना, कीड़े/मकौड़ों का हमला, बारानी भूमि, आर्थिक परिस्थितियां कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो किसानों को कभी-कभी असहाय और अपंग बना देती हैं और यही परिस्थितियां किसानों को आत्महत्या, भुखमरी और निरक्षरता की तरफ ले जाती हैं। लेकिन कुछ किसान इतनी आसानी से अपनी असफलता को स्वीकार नहीं करते और अपनी इच्छा शक्ति और प्रयासों से अपनी परिस्थितियों पर काबू पाते हैं। डेलियांवाली गांव (फरीदकोट) से ऐसे ही एक किसान है जिनकी प्रसिद्धि किन्नू की खेती के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध है।

श्री बराड़ को किन्नू की खेती करने की प्रेरणा अबुल खुराना गांव में स्थित सरदार बलविंदर सिंह टीका के बाग का दौरा करने से मिली। शुरूआत में उन्होंने कई समस्याओं जैसे सिटरस सिल्ला, पत्ते का सुरंगी कीट और बीमारियां जैसे फाइटोपथोरा, जड़ गलन आदि का सामना किया लेकिन उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं लिए और ना ही अपने किन्नू की खेती के फैसले से निराश हुए। बल्कि धीरे-धीरे समय के साथ उन्होंने सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त की और अपने बाग का विस्तार 6 एकड़ से 70 एकड़ तक कर दिखाया।

बाग की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने उच्च घनता वाली खेती की तकनीक को लागू किया। किन्नू की खेती के बारे में अधिक जानने के लिए पूरी निष्ठा और जिज्ञासा के साथ उन्होंने सभी समस्याओं को समाधान किया और अपने उद्यम से अधिक लाभ कमाना शुरू किया।

अपनी खेतीबाड़ी के कौशल में चमक लाने और इसे बेहतर पेशेवर स्पर्श देने के लिए उन्होंने पी.ए.यू., के.वी.के फरीदकोट और बागबानी के विभाग से ट्रेनिंग ली।

प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जुनून:
वे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति बहुत ही उत्साही हैं वे हमेशा उन खेती तकनीकों को लागू करने की कोशिश करते हैं जिसके माध्यम से वे संसाधनों को बचा सकते हैं। पी.ए.यू के माहिरों के मार्गदर्शन के साथ उन्होंने तुपका सिंचाई प्रणाली (drip irrigation system) स्थापित किया और 42 लाख लीटर क्षमता वाले पानी का भंडारण टैंक बनाया, जहां वे नहर के पानी का भंडारण करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने सौर ऊर्जा के संरक्षण के लिए सौर पैनल में भी निवेश किया ताकि इसके प्रयोग से वे भंडारित पानी को अपने बगीचों तक पहुंचा सके। उन्होंने अधिक गर्मी के महीनों के दौरान मिट्टी में नमी के संरक्षण के लिए मलचिंग भी की।

मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए वे हरी खाद का उपयोग करते हैं और अन्य किसानों को भी इसका प्रयोग करने की सिफारिश करते हैं। उन्होंने किन्नू की खेती के लिए लगभग 20 मीटर x 10 मीटर और 20 मीटर x 15 मीटर के मिट्टी के बैड तैयार किए हैं।

कैसे करते हैं कीटों का नियंत्रण…
सिटरस सिल्ला, सफेद मक्खी और पत्तों के सुरंगी के हमले को रोकने के लिए उन्होंने विशेष रूप से स्वदेशी एरोब्लास्ट स्प्रे पंप लागू किया है जिसकी मदद से वे कीटनाशक और नदीननाशक की स्प्रे एकसमान कर सकते हैं।

अभिनव प्रवृत्तियों को अपनाना…
जब भी उन्हें कोई नई प्रवृत्ति या तकनीक अपनाने का अवसर मिलता है, तो वे कभी भी उसे नहीं गंवाते। एक बार उन्होंने गुरराज सिंह विर्क- एक प्रतिष्ठित बागबानी करने वाले किसान से, एक नया विचार लिया और कम लागत वाली किन्नू क्लीनिंग कम ग्रेडिंग मशीन (साफ करने वाली और छांटने वाली) (क्षमता 2 टन प्रति एकड़) डिज़ाइन की और अब 2 टन फलों की सफाई और छंटाई के लिए सिर्फ 125 रूपये खर्चा आता है जिसका एक बहुत बड़ा लाभ यह है कि वे इससे 1000 रूपये बचाते हैं। आज वे अपने बागबानी उद्यम से बहुत लाभ कमा रहे हैं। वे अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा हैं।

संदेश
“हर किसान, चाहे वे जैविक खेती कर रहे हों या परंपरागत खेती उन्हें मिट्टी का उपजाऊपन बनाए रखने के लिए तत्काल और दृढ़ उपाय करने चाहिए। किन्नू की खेती के लिए, किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए।”