मनदीप वर्मा

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जानिए कैसे यह किसान बंजर भूमि पर खेती कर कमा रहा है लाखों रुपए

एक किसान के लिए उसकी भूमि ही सब कुछ होती है। फसल की पैदावार भूमि के उपजाऊपन पर ही निर्भर करती है, पर यदि भूमि ही बंजर हो तो किसान की उम्मीदें हो टूट जाती है। पर हिमाचल का एक ऐसा किसान है जो बंजर भूमि पर खेती कर आज लाखों रूपये कमा रहा है।

एम.बी.ए. की पढ़ाई करने वाले मनदीप वर्मा ने मैनेजर के रूप में विपरो कंपनी में 4-5 साल नौकरी की। पर इस नौकरी से उनको संतुष्टि नहीं मिली और फिर उन्होंने अपनी पत्नी के साथ अपने शहर सोलन आने का फैसला किया। उन्होंने ने सोलन वापिस आकर बंजर भूमि पर खेती करने के बारे में सोचा। पर वह सभी किसानों की तरह पारंपरिक खेती नहीं करना चाहते थे। उन्होंने सबसे अलग करने का फैसला किया और बागवानी करने के विचार बनाया।

अपने इस विचार को हकीकत (वास्तविकता) का रूप देने के लिए उन्होंने ने पहले अपने इलाके के मौसम के बारे में जानकारी हासिल की और यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों से मिलकर सभी जानकारी हासिल की और अंत में उन्होंने कीवी की खेती करने का फैसला किया।

कीवी के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए मैं पुस्तकालय (लाइब्रेरी) में गया, बहुत सी किताबें पड़ी और यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों से भी मिले और सभी जानकारी हासिल करने के बाद कीवी की खेती शुरू की- मनदीप वर्मा

सोलन के बागवानी विभाग और डॉ.यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से बात करने के बाद 2014 में कीवी का बाग तैयार करने का मन बनाया। उन्होंने ने 14 बीघा भूमि पर कीवी का बगीचा बनाया।

उन्होंने ने इस बगीचे में कीवी की उन्नत किस्में एलिसन और हैबर्ड के पौधे लगाए। लगभग 14 लाख रूपये में बगीचा तैयार करने के बाद 2017 में मनदीप सिंह जी ने कीवी बेचने के लिए वेबसाइट बनाई।

बाग से फल सीधा ग्राहक तक पहुँचाने की मेरी यह कोशिश सफल रही। – मनदीप वर्मा

कीवी की सप्लाई वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग के बाद की जाती है। हैदराबाद, बंगलौर, दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में ऑनलाइन कीवी फल बेचा जाता है।

कीवी के डिब्बे के ऊपर फल की कब तोड़ाई की, कब डिब्बे में पैक किया सभी जानकारी डिब्बे के ऊपर दी जाती है। एक डिब्बे में एक किलो कीवी फल पैक किया जाता है और इसकी कीमत 350 रूपये प्रति/बॉक्स है। जबकि सोलन में कीवी 150 रूपये प्रति किलोग्राम बेचा जाता है।

मनदीप मुताबिक देश में कीवी की खेती की शुरुआत हिमाचल प्रदेश से ही हुई। आज देश का कुल 60 प्रतिशत कीवी उत्पादन अरुणाचल प्रदेश में तैयार होता है।

मनदीप कीवी फल पूरी तरह जैविक तरीके से तैयार करते हैं। जैविक खेती के उद्देश्य को अपनाते हुए वह कंपोस्ट और जैविक अमृत भी आप तैयार करते हैं।

हमारे फार्म में तैयार हुए कीवी डेढ़-दो महीने तक खराब नहीं होता- मनदीप वर्मा

कीवी की खेती में सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने 2018 में सेब की खेती शुरू की। मनदीप जीरो बजट खेती में विश्वास रखते हैं।

उपलब्धियां

कीवी की खेती में सफलता हासिल करने के कारण उन्हें 2019 में कृषि मेला हिमाचल प्रदेश में प्रगतिशील किसान पुरस्कार दिया गया।

भविष्य की योजना

इस समय मनदीप वर्मा की दो नर्सरी है और वे ऐसी और नर्सरी तैयार करना चाहते हैं।

संदेश
“किसी भी तरह की खेती करने से पहले उस जगह के मौसम संबंधी जानकारी हासिल करनी चाहिए। आज-कल सोशल मीडिया पर सभी जानकारी उपलब्ध है। हमें सोशल मीडिया का उपयोग सहज तरीके से करना चाहिए। हमे जैविक खेती और जीरो बजट खेती साथ में करनी चाहिए, क्योंकि इसमें ज़्यादा मुनाफा है।”

हरिमन शर्मा

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एक किसान की कहानी जिसने अपना कर्म करते हुए, अपनी मेहनत से सफलता का स्वाद चखा

ऐसा कहा जाता है कि मानव इच्छा शक्ति के आगे कोई भी चीज़ टिकी नहीं रह सकती। ऐसी ही इच्छा और शक्ति के साथ एक ऐसे व्यक्ति आये जिन्होंने अपने निरंतर प्रयास के साथ उस ज़मीन पर सेब की एक नई किस्म का विकास किया, जहां पर यह लगभग असंभव था।

श्री हरिमन शर्मा एक सफल किसान हैं जिनके पास  सेब, आम, आडू, कॉफी, लीची और अनार के बगीचे हैं। एक उष्णकटिबंधीय स्थान (गांव पनीला कोठी, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश), जहां तापमान 45 डिग्री तक बढ़ जाता है और भूमि में 80 %चट्टानें हैं और 20% मिट्टी है। यहां पर सेब उगाना लगभग असंभव था लेकिन हरिमन शार्मा की लगातार कोशिशों ने इसे संभव किया।

इससे पहले हरिमन शर्मा एक किसान नहीं थे और जो सफलता उन्होंने आज हासिल की है उसके लिए उन्हें अपने जीवन में कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 1971 से 1982 तक वे मजदूर थे, 1983 से 1990 तक उन्होंने पत्थर तोड़ने का और सब्जियों की खेती का काम किया। 1991 से 1998 तक उन्होंने सब्जी की खेती के साथ-साथ आम के बाग भी लगाए।

1999 में एक मोड़ ऐसा आया जब उन्होंने अपने आंगन में एक सेब का बीज अंकुरित होते देखा।उन्होंने उस अंकुर को संरक्षित किया और अपने खेती के अनुभव के दौरान प्राप्त ज्ञान से इसका पोषन करना शुरू कर दिया। क्वालिटी को सुधारने के लिए उन्होंने आलूबुखारा के वृक्ष के तने पर सेब के वृक्ष की शाखा की ग्राफ्टिंग कर दी और इसका परिणाम असाधारण था। दो वर्ष बाद सेब के पेड़ ने फल देना शुरू कर दिया। आखिरकार उन्होंने एक अलग प्रकार का सेब विकसित किया, जो कि गर्म जलवायु के साथ बहुत कम पहाड़ियों पर व्यापारिक रूप से उगाया जा सकता है।

धीरे-धीरे समय के साथ हरिमन शर्मा के द्वारा खोजी गई सेब की नई किस्म की बात फैल गई। अधिकांश लोगों ने इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया और कुछ आश्चर्यचकित हुए। लेकिन 7 जुलाई 2008 को हरिमन शर्मा शिमला गए और उन्होंने उनके द्वारा विकसित किए गए सेब की एक टोकरी की पेशकश की, जो हिमाचल के मुख्यमंत्री के लिए थी। मुख्यमंत्री ने तुरंत अपने मंत्रीमंडल के सहयोगियों को इकट्ठा किया और उन सभी ने उन सेबों को चखा और जल्द ही मुख्यमंत्री ने इस सेब को हरिमन नाम दिया। बागबानी विश्वविद्यालय और विभाग के कई विशेषज्ञ विशेष रूप से उनके बगीचे में गए और वास्तव में आश्चर्यचकित और उनके काम से आश्वस्त हुए।

उन्होंने एक ही किस्म के सेब के 8 वृक्ष विकसित किए हैं जो कि बाग में आम के वृक्ष के साथ बढ़ रहे हैं और अब तक अच्छी उपज दे रहे हैं। हरिमन शर्मा द्वारा विकसित की गई किस्म का नाम उन्हीं के नाम पर HRMN-99  है। उन्होंने देश भर में किसानों, माली, उद्यमियों और सरकारी संगठनों को 3 लाख से अधिक पौधों को विकसित और वितरित किया है और HRMN-99  किस्म के 55 सेब के पौधे राष्ट्रपति भवन में लगाए हैं। उन्होंने आम, लीची, अनार, कॉफी और आड़ू फलों के बाग भी बनाए हैं।

हरिमन शर्मा द्वारा विकसित सेब की किस्म को कम  तापमान की जरूरत होती है और उप उष्णकटिबंधीय मैदानों में फूलों और फलों का उत्पादन होता है। उनकी उपलब्धि बागबानी के क्षेत्र में बहुत महत्तव रखती है, आज समाज में हरिमन शर्मा का योगदान केवल महान ही नहीं बल्कि दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी है।

आज हरिमन एप्पल को भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में उगाया और पोषित किया जाता है। उनकी कड़ी मेहनत ने साबित कर दिया है कि गर्म जलवायु के साथ बहुत कम पहाड़ियों पर सेब को व्यापारिक तौर पर उगाया जा सकता है।  श्री शर्मा अपनी बेहतर तकनीकों को अपने किसान साथियों के साथ शेयर कर रहे हैं और फैला रहे हैं।

कृषि के क्षेत्र में हरिमन शर्मा को उनके काम के लिए कई पुरस्कार और प्रशंसा मिली है उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

• भारतीय कृशि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली में प्रगतिशील किसान के रूप में सम्मानित किया गया।

• राष्ट्रपति भवन में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के प्रोग्राम में अपनी नई खोज के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त किया।

• 2010 के सर्वश्रेष्ठ हिमाचली किसान शीर्षक से सम्मानित।

• 15 अगस्त 2009 में प्रेरणा स्त्रोत सम्मान पुरस्कार।

• 15 अगस्त 2008 में राज्य स्तरीय सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार।

• ऊना (2011 में) सेब का सफलतापूर्वक उत्पादन पुरस्कार।

• 19 जनवरी 2017 को कृषि पंडित पुरस्कार।

• इफको की जयंति के शुभ अवसर पर 29.4.2017 को उत्कृष्ट कृषक पुरस्कार।

• पूसा भवन दिल्ली केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री द्वारा 17.3.2-10 में IARI Fellow Award

• 21 मार्च 2016 में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री भारत सरकार – राधा मोहन सिंह द्वारा राष्ट्रीय नवोन्मेषी कृषक सम्मान।

• सेब उत्पादन के लिए 3 फरवरी 2016 को हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल द्वारा।

• नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित, 4 मार्च 2017 को राष्ट्रीय द्वितीय अवार्ड।

• 9 मार्च 2017 को राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ वैटर्नरी एंड एनीमल साइंसिज़ बीकानेर द्वारा फार्मर साइंटिस्ट अवार्ड।

हरिमन शर्मा द्वारा दिया गया संदेश
कर्म मनुष्य का अधिकार है फल को प्राप्त करने के लिए कर्म नहीं किया जाता। एक खेत में किसान का काम बीज बोना है, लेकिन अनाज का बढ़ना किसान के हाथों में नहीं है। किसान को अपना काम कभी भी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए और उसे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए। मैंने उस सेब के अंकुर को विकसित करने और उसके साथ कुछ नया करने की कोशिश की। यही कारण है कि मैं यहां हूं और यही कारण है कि सेब की किस्म का नाम मेरे नाम पर है। हर किसान को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए और कर्म करते रहना चाहिए।

कांता देष्टा

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एक किसान महिला जिसे यह अहसास हुआ कि किस तरह वह रासायनिक खेती से दूसरों में बीमारी फैला रही है और फिर उसने जैविक खेती का चयन करके एक अच्छा फैसला लिया

यह कहा जाता है, कि यदि हम कुछ भी खा रहे हैं और हमें किसानों का हमेशा धन्यवादी रहना चाहिए, क्योंकि यह सब एक किसान की मेहनत और खून पसीने का नतीजा है, जो वह खेतों में बहाता है, पर यदि वही किसान बीमारियां फैलाने का एक कारण बन जाए तो क्या होगा।

आज के दौर में रासायनिक खेती पैदावार बढ़ाने के लिए एक रूझान बन चुकी है। बुनियादी भोजन की जरूरत को पूरा करने की बजाय खेतीबाड़ी एक व्यापार बन गई है। उत्पादक और भोजन के खप्तकार दोनों ही खेतीबाड़ी के उद्देश्य को भूल गए हैं।

इस स्थिति को, एक मशहूर खेतीबाड़ी विज्ञानी मासानुबो फुकुओका ने अच्छी तरह जाना और लिखते हैं।

“खेती का अंतिम लक्ष्य फसलों को बढ़ाना नहीं है, बल्कि मानवता के लिए खेती और पूर्णता है।”

इस स्थिति से गुज़रते हुए, एक महिला- कांता देष्टा ने इसे अच्छी तरह समझा और जाना कि वह भी रासायनिक खेती कर बीमारियां फैलाने का एक साधन बन चुकी है और उसने जैविक खेती करने का एक फैसला किया।

कांता देष्टा समाला गांव की एक आम किसान थी जो कि सब्जियों और फलों की खेती करके कई बार उसे अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों में बांटती थी। पर एक दिन उसे रासायनिक खादों के प्रयोग से पैदा हुए फसलों के हानिकारक प्रभावों के बारे में पता लगा तो उसे बहुत बुरा महसूस हुआ। उस दिन से उसने फैसला किया कि वह रसायनों का प्रयोग बंद करके जैविक खेती को अपनाएगी।

जैविक खेती के प्रति उसके कदम को और प्रभावशाली बनाने के लिए वह 2004 में मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग द्वारा चलाए जा रहे एक प्रोग्राम में शामिल हो गई। उसने कई तरह के फल, सब्जियां, अनाज और मसाले जैसे कि सेब, नाशपाति, बेर, आड़ू, जापानी खुबानी, कीवी, गिरीदार, मटर, फलियां, बैंगन, गोभी, मूली, काली मिर्च, प्याज, गेहूं, उड़द, मक्की और जौं आदि को उगाना शुरू किया।

जैविक खेती को अपनाने पर उसकी आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और यह बढ़कर वार्षिक 4 से 5 लाख रूपये हुई। केवल यही नहीं, मोरारका फाउंडेशन की मदद से कांता देष्टा ने अपने गांव में महिलाओं का एक ग्रुप बनाया और उन्हें जैविक खेती के बारे में जानकारी प्रदान की, और उन्हें उसी फाउंडेशन के तहत रजिस्टर भी करवाया।

“मैं मानती हूं कि एक ग्रुप में लोगों को ज्ञान प्रदान करना बेहतर है क्योंकि इसकी कीमत कम है और हम एक समय में ज्यादा लोगों को ध्यान दे सकते हैं।”

आज उसका नाम सफल जैविक किसानों की सूची में आता है उसके पास 31 बीघा सिंचित ज़मीन है जिस पर वह खेती कर रही है और लाखों में लाभ कमा रही है। बाद में वह NONI यूनिवर्सिटी , दिल्ली, जयपुर और बैंगलोर में भी गई, ताकि जैविक खेती के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके और हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा उसे उसके प्रयत्नों के लिए दो बार सरकारी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। शिमला में बेस्ट फार्मर अवार्ड के तौर पर सम्मानित किया गया और 13 जून 2013 को उसे जैविक खेती के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रशंसा और सम्मान भी मिला।

एक बड़े स्तर पर इतनी प्रशंसा मिलने के बावजूद यह महिला अपने आप पूरा श्रेय नहीं लेती और यह मानती है कि उनकी सफलता का सारा श्रेय मोरारका फाउंडेशन और खेतीबाड़ी विभाग को जाता है। जिसने उसे सही रास्ता दिखाया और नेतृत्व किया।

खेती के अलावा, कांता के पास दो गायें और 3 भैंसें भी हैं और उसके खेतों में 30x8x10 का एक वर्मीकंपोस्टिंग प्लांट भी है जिस में वह पशुओं के गोबर और खेती के बचे कुचे को खाद के तौर पर प्रयोग करती है। वह भूमि की स्थितियों में सुधार लाने के लिए और खर्चों को कम करने के लिए कीटनाशकों के स्थान पर हर्बल स्प्रे, एप्रेचर वॉश, जीव अमृत और NSDL का प्रयोग करती है।

अब, कांता अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में सब्जियां और फल बांटने के दौरान खुशी महसूस करती है क्योंकि वह जानती है कि जो वह बांट रही है वह नुकसानदायक रसायनों से मुक्त है और इसे खाकर उसके रिश्तेदार और दोस्त सेहतमंद रहेंगे।

कांता देष्टा की तरफ से संदेश –
“यदि हम अपने पर्यावरण को साफ रखना चाहते हैं तो जैविक खेती बहुत महत्तवपूर्ण है।”

 

कृष्ण दत्त शर्मा

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जानें कैसे जैविक खेती ने कृष्ण दत्त शर्मा को कृषि के क्षेत्र में सफल बनाने में मदद की

जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जो लोगों को अपने जीवन के खोये हुए उद्देश्य का एहसास करवाती हैं और इसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं। यही चीज़ चिखड़ गांव, (शिमला) के साधारण किसान कृष्ण दत्त शर्मा, के साथ हुई और उन्हें जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया।

जैविक खेती में कृष्ण दत्त शर्मा की उपलब्धियों ने उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया है कि आज उनका नाम कृषि के क्षेत्र में महत्तवपूर्ण लोगों की सूची में गिना जाता है।

यह सब शुरू हुआ जब कृष्ण दत्त शर्मा को कृषि विभाग की तरफ से हैदराबाद (11 नवंबर, 2002) का दौरा करने का मौका मिला। इस दौरे के दौरान उन्होंने जैविक खेती के बारे में काफी कुछ सीखा। वे जैविक खेती के बारे में और अधिक जानने के लिए उत्सुक थे और इसे अपनाना भी चाहते थे।

मोरारका फाउंडेशन (2004 में) के संपर्क में आने के बाद उनका जुनून और विचार अमल में आया। उस समय तक वे कृषि क्षेत्र में रसायनों के बढ़ते उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में अच्छी तरह से जान चुके थे और इससे वे बहुत परेशान और चिंतित थे। जैसे कि वे जानते थे कि आने वाले भविष्य में उन्हें खाद और कीटनाशकों के परिणाम का सामना करना पड़ेगा इसलिए उन्होंने जैविक खेती को पूरी तरह से अपनाने का फैसला किया।

उनके पास कुल 20 बीघा ज़मीन है, जिसमें से 5 बीघा सिंचित क्षेत्र हैं और 15 बीघा बारानी क्षेत्र हैं। शुरूआत में उन्होंने बागबानी विभाग से सेब का एक मुख्य पौधा खरीदा और उस पौधे से उन्होंने अपने पूरे बाग में सेब के 400 पौधे लगाए। उन्होंने नाशपाती के 20 वृक्ष, चैरी के 20 वृक्ष, आड़ू के 10 वृक्ष और अनार के 15 वृक्ष भी उगाए। फलों के साथ साथ उन्होंने सब्जियां जैसे फूल गोभी, मटर, फलियां, शिमला मिर्च और ब्रोकली भी उगायी।

आमतौर पर कीटनाशकों और रसायनों से उगायी जाने वाले ब्रोकली की फसल आसानी से खराब हो जाती है, लेकिन कृष्ण दत्त शर्मा द्वारा जैविक तरीके से उगाई गई ब्रोकली का जीवन काफी ज्यादा है। इस कारण किसान अब ब्रोकली को जैविक तरीके से उगाते हैं और उसे बिक्री के लिए दिल्ली की मंडी में ले जाते हैं। इसके अलावा जैविक तरीके से उगाई गई ब्रोकली की बिक्री 100-150 रूपये प्रति किलो के हिसाब से होती है और इसी को अगर किसानों की आय में जोड़ दिया जाये तो उनकी आय 500000 तक पहुंच जाती है, और इस छ अंकों की आमदनी में आधा हिस्सा ब्रोकली की बिक्री से आता है।

जैविक खेती की तरफ अन्य किसानों को प्रेरित करने के लिए कृष्ण दत्त शर्मा ने अपने नेतृत्व में अपने गांव में एक ग्रुप बनाया है। उनकी इस पहल ने कई किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया है।

जैविक खेती के क्षेत्र में कृष्ण दत्त शर्मा की उपलब्धियां काफी बड़ी हैं और यहां तक कि हिमाचल सरकार ने उन्हें जून 2013 में, “Organic Fair and Food Festival” में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित भी किया है। लेकिन अपनी नम्रता के कारण वे अपनी सफलता का सारा श्रेय मोरारका फाउंडेशन और कृषि विभाग को देते हैं।

वे अपने खेत और बगीचे में गाय (3), बैल (1) और बछड़े (2) के गोबर का उपयोग करते हैं और वे अच्छी उपज के लिए वर्मी कंपोस्ट भी खुद तैयार करते हैं। उन्होंने अपने खेत में 30 x 8 x 10 के बैड तैयार किए हैं जहां पर वे प्रति वर्ष 250 केंचुओं की वर्मी कंपोस्ट तैयार करते हैं। कीटनाशकों के स्थान पर वे हर्बल स्प्रे, एपर्चर वॉश, जीवामृत और NSDL का उपयोग करते हैं। इस तरह रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर कुदरती कीटनाशकों ने प्रयोग से उनकी ज़मीन की स्थितियों में सुधार हुआ और उनके खर्चे भी कम हुए।

संदेश:
बेहतर भविष्य और अच्छी आय के लिए वे अन्य किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।