अमरजीत सिंह ढिल्लों

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आखिर क्यों एम.टैक की पढ़ाई बीच में छोड़कर यह नौजवान करने लगा खेती?

हर माता-पिता का सपना होता है उनके बच्चे पढ़-लिखकर किसी अच्छी नौकरी पर लग जाएं ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो जाये। ऐसा ही सपना अमरजीत सिंह ढिल्लों के माता-पिता का था। इसलिए उन्होंने ने अपने बेटे के बढ़िया भविष्य के लिए उसे बढ़िया स्कूल में पढ़ाया और उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने दाखिला बी.टेक मैकेनिकल में करवाया। मैकेनिकल इंजीनियर में ग्रेजुएशन करने के बाद अमरजीत ने एम.टेक करने का फैसला किया और अपना दाखिला भी करवा लिया। पर एम.टेक की पढ़ाई में उनकी कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उन्होंने पढ़ाई बीच ही छोड़ने का फैसला किया।

अमरजीत जी के परिवार के पास 24 एकड़ ज़मीन थी, जिस पर उनके पिता जी और भाई पारंपरिक खेती करते हैं। एक साल तक अमरजीत जी भी अपने पिता के साथ खेती करते रहे, पर नौजवान होने के कारण अमरजीत पारंपरिक खेती के चक्र में नहीं फसना चाहते थे। कृषि के बारे में अपने ज्ञान को अधिक बढ़ाने के लिए उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना जाना शुरू कर दिया।

उन्होंने ने पीएयू में यंग फार्मर कोर्स दाखिला लिया। कोर्स पूरा होने के बाद उन्होंने बागवानी फसल करने का फैसला किया। सबसे पहले उन्होंने अपने फार्म जिसका नाम “ग्रीन एनर्जी फार्म” है,  में फलों की खेती शुरू की।। वह बाद में साथ-साथ सब्जियां, फूलों की खेती और मधु मक्खी पालन का काम भी करने लगे।

“मैंने एक साल के अंदर-अंदर यह सब छोड़कर केवल फलों और सब्जियों की खेती करने का फैसला किया, क्योंकि फलों और सब्जियों का मंडीकरण आसानी से एक ही मंडी में हो जाता है। इसमें दुकानदारी की तरह रोज़ाना कमाई हो जाती है” – अमरजीत सिंह ढिल्लों

अमरजीत जी ने पूरे साल के लिए एक टाइम-टेबल बनाया, जिसके अनुसार वह अलग-अलग महीने बोई हुई फसलों की कटाई करते हैं।

अमरजीत जी जैविक खेती नहीं करते, पर वह सबसे पहले जैविक तरीकों से कीड़ों और बिमारियों पर नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर पीएयू की तरफ से सिफारिश की गई स्प्रे का प्रयोग सिफारिश मात्रा में ही करते हैं। आज भी अमरजीत के.वी.के. और यूनिवर्सिटी और जिला स्तर ट्रेनिंग में भी हिस्सा लेते हैं। आज भी यहाँ अमरजीत जी कोई भी समस्या आती है तो वह पीएयू के माहिरों की सलाह लेते हैं।

“मेरे अनुसार, फल तोड़ने के बाद पौधों पर स्प्रे करनी चाहिए ताकि तोड़ाई और स्प्रे के समय में 24 से 48 घंटे का फासला हो “– अमरजीत सिंह ढिल्लों
उपलब्धियां
अमरजीत जी ने राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से सन्मान हासिल किये हैं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
  • पीएयू की तरफ से मुख्य मंत्री पुरस्कार (2006)
  • आत्मा की तरफ से राज्य स्तरीय पुरस्कार (2009)
  • एग्रीकल्चर समिट चप्पड़चिड़ी में स्टेट पुरस्कार
  • इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वेजिटेबल रिसर्च की तरफ से ज़ोनल पुरस्कार (2018)
  • IARI की तरफ से इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार (नेशनल अवार्ड 2018)
भविष्य की योजना

भविष्य में अमरजीत सिंह ढिल्लों अपना पूरा ध्यान फलों और सब्जियों की सेल्फ मार्केटिंग और प्रोसेसिंग पर केंद्र करना चाहते हैं।

संदेश
“बागवानी क्षेत्र में आने के चाहवान नौजवानों को अच्छी तरह पढ़ाई करके और ट्रेनिंग लेकर खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। छोटे स्तर पर खेती करनी शुरू करनी चाहिए, किसी की बातों में आकर शुरू में ही ज़्यादा पैसे का निवेश नहीं करना चाहिए। खेतीबाड़ी से संबंधित किताबें पड़नी चाहिए और हमेशा सीखते रहना चाहिए।”

राजिंदर पाल सिंह

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एक इंसान की कहानी जिसने अपनी गल्तियों से सीखकर बुद्धिमता के रास्ते को चुना – जैविक खेती

प्राकृति हमारे सबसे महान शिक्षकों में से एक है और वह कभी भी हमें सिखाने से रूकी नहीं है, जिसकी हमें जानने की जरूरत होती है। आज हम धरती पर इस तरीके से रह रहे हैं कि जैसे हमारे पास एक और ग्रह भी है। हम इस बात से अवगत नहीं है कि हम प्राकृति के संतुलन को कैसे परेशान कर रहे हैं और यह हमें कैसे प्रतिकूल प्रभाव दे सकती है। आजकल हम मनुष्यों और जानवरों में बीमारियों, असमानताओं और कमियों के कई मामलों को देख रहे हैं। लेकिन फिर भी ज्यादातर लोग गल्तियों की पहचान करने में सक्षम नहीं हैं वे आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे हैं। जैसे कि कुछ गलत हो ही नहीं रहा। पर इनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो कि अपनी गल्तियों से सीखते हैं और समाज में एक बड़ा बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसा कहा जाता है कि गल्तियों में आपको पहले से अच्छा बनाने की शक्ति होती है और एक ऐसे व्यक्ति हैं राजिंदर पाल सिंह जो कि बेहतर दिशा में अपना रास्ता बना रहे हैं और आज वे जैविक खेती के क्षेत्र में एक सफल शख्सियत हैं। उनके उत्पादों की प्रशंसा और अधिक मांग केवल भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, कैनेडा और यहां तक कि लंदन के शाही परिवार में भी है।

खैर, एक सफल यात्रा के पीछे हमेशा एक कहानी होती है।राजिंदरपाल सिंह जिला बठिंडा के गांव कलालवाला के वसनीक; एक समय में ऐसे किसान थे जो कि पारंपरिक खेती करते थे लेकिन रसायनों और कीटनाशकों के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वे रसायनों का प्रयोग करके अपने पर्यावरण और अपनी सेहत को प्रभावित कर रहे हैं। वे फसलों पर कीटनाशकों का प्रयोग करते थे, लेकिन एक दिन उस स्प्रे ने उनके नर्वस सिस्टम को प्रभावित किया और ऐसा ही उनके एक रिश्तेदार के साथ हुआ। उस दिन से उन्होंने रसायनों के प्रयोग को छोड़कर कृषि के लिए जैविक तरीका अपनाया।

शुरूआत में उन्होंने और उनके चाचा जी ने 4 एकड़ भूमि में जैविक खेती करनी शुरू की और धीरे धीरे इस क्षेत्र को बढ़ाया 2001 में वे उत्तर प्रदेश से गुलाब के पौधे खरीद कर लाये और तब से वे अन्य फसलों के साथ गुलाब की खेती भी कर रहे हैं। उन्होंने जैविक खेती के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं ली। उनके चाचा जी ने किताबों से सभी जानकारी इकट्ठा करके जैविक खेती करने में उनकी मदद की। वर्तमान में वे अपने संयुक्त परिवार अपनी पत्नी, बच्चे, चाचा, चाची और भाइयों के साथ रह रहे हैं और अपनी सफलता के पीछे का पूरा श्रेय अपने परिवार को देते हैं।

वे बठिंडा के मालवा क्षेत्र के पहले किसान हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर जैविक खेती को चुना। जब उन्होंने जैविक खेती शुरू की, उस समय उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया और कई लोगों ने उन्हें यह कहते हुए भी निराश किया कि वे सिर्फ पैसा बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन आज उनके उत्पाद एडवांस बुकिंग में बिक रहे हैं और वे पंजाब के पहले किसान भी हैं जिन्होंने अपने फार्म पर गुलाब का तेल बनाया और 2010 में फतेहगढ़ साहिब के समारोह में प्रिंस चार्ल्स और उनकी पत्नी को दिया था।

वे जो काम कर रहे हैं उसके लिए उन्हें फूलों का राजा नामक टाइटल भी दिया गया है। उनके पास गुलाब की सबसे अच्छी किस्म है जिसे Damascus कहा जाता है और आप गुलाबों की सुगंध उनके गुलाब के खेतों की कुछ ही दूरी पर से ले सकते हैं जो कि 6 एकड़ की भूमि पर फैला हुआ है। उन्होंने अपने फार्म में तेल निकालने का प्रोजैक्ट भी स्थापित किया है जहां पर वे अपने फार्म के गुलाबों का प्रयोग करके गुलाब का तेल बनाते हैं। गुलाब की खेती के अलावा वे मूंग दाल, मसूर, मक्की, सोयाबीन, मूंगफली, चने, गेहूं, बासमती, ग्वार और अन्य मौसमी सब्जियां उगाते हैं। 12 एकड़ में वे बासमती उगाते हैं और बाकी की भूमि में वे उपरोक्त फसलें उगाते हैं।

राजिंदरपाल सिंह जिन गुलाबों की खेती करते हैं वे वर्ष में एक बार दिसंबर महीने में खिलते हैं और इनकी कटाई मार्च और अप्रैल तक पूरी कर ली जाती है। एक एकड़ खेत में वे 12 से 18 क्विंटल गुलाब उगाते हैं और आज एक एकड़ गुलाब के खेतों से उनका वार्षिक मुनाफा 1.25 लाख रूपये है। उनके उत्पादों की मांग अमेरिका, कैनेडा और अन्य देशों में है। यहां तक कि उनके द्वारा बनाये गये गुलाब के तेल को भी निर्यातकों द्वारा अच्छी कीमत पर खरीदा जाता हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि वे तेल, शुद्ध जैविक गुलाबों से बनाते हैं। बेमौसम में वे गुलाब की अन्य किस्में उगाते हैं और उनसे गुलकंद बनाते हैं और उसे नज़दीक के ग्रोसरी स्टोर में बेचते हैं। गुलाब का तेल, रॉज़ वॉटर और गुलकंद के इलावा अन्य फसलें जैविक मसूर, गेहूं, मक्की, धान को भी बेचते हैं। सभी उत्पाद उनके द्वारा बनाये जाते है और उनके ब्रांड नाम भाकर जैविक फार्म के नाम से बेचे जाते हैं।

आज राजिंदर पाल सिंह जैविक खेती से बहुत संतुष्ट हैं। हां उनके उत्पादों की उपज कम होती है लेकिन उनके उत्पादों की कीमत, पारंपरिक खेती का प्रयोग करके उगाई अन्य फसलों की कीमत से ज्यादा होती है। वे अपने खेतों में सिर्फ गाय की खाद और नदी के पानी का प्रयोग करते हैं और बाज़ार से किसी भी तरह की खाद या कंपोस्ट नहीं खरीदते। जैविक खेती करके वे मिट्टी के पोषक तत्व और उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने में सक्षम हैं। शुरूआत में उन्होंने अपने उत्पादों के मंडीकरण में छोटी सी समस्या का सामना किया लेकिन जल्दी ही लोगों ने उनके उन्पादों की क्वालिटी को मान्यता दी, फिर उन्होंने अपने काम में गति प्राप्त करनी शुरू की और वे जैविक खेती करके अपनी फसलों में बहुत ही कम बीमारियों का सामना कर रहे हैं।

अब उनके पुरस्कार और प्राप्तियों पर आते हैं। ATMA स्कीम के तहत केंद्र सरकार द्वारा उनकी सराहना की गई और देश के अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में प्रस्तुत किया गया। वे भूमि वरदान फाउंडेशन के मैंबर भी हैं जो कि रोयल प्रिंस ऑफ वेलस के नेतृत्व में होता है और उनके सभी उत्पाद इस फाउंउेशन के द्वारा प्रमाणित हैं। उन्होंने पटियाला के पंजाब एग्रीकल्चर विभाग से प्रशंसा पत्र भी प्राप्त किया और यहां तक कि पंजाब के पूर्व कृषि मंत्री श्री तोता सिंह ने उन्हें प्रगतिशील किसान के तौर पर पुरस्कृत किया।

भविष्य की योजना
भविष्य में वे जैविक खेती के क्षेत्र में अपने काम को जारी रखना चाहते हैं और जैविक खेती के बारे में ज्यादा से ज्यादा किसानों को जागरूक करना चाहते हैं ताकि वे जैविक खेती करने के लिए प्रेरित हो सकें।

राजिंदर पाल सिंह द्वारा दिया गया संदेश-
आज हमारी धरती को हमारी जरूरत है और किसान के तौर पर धरती को प्रदूषन से बचाने के लिए हम सबस अधिक जिम्मेदार व्यक्ति हैं। हां, जैविक खेती करने से कम उपज होती है लेकिन आने वाले समय में जैविक उत्पादों की मांग बहुत अधिक होगी, सिर्फ इसलिए नहीं कि ये स्वास्थ्यवर्धक हैं अपितु इसलिए क्योंकि यह समय की आवश्यकता बन जाएगी। इसके अलावा जैविक खेती स्थायी है और इसे कम वित्तीय की आवश्यकता होती है। इसे सिर्फ श्रमिकों की आवश्यकता होती है और यदि एक किसान जैविक खेती करने में रूचि रखता है तो वह इसे बहुत आसानी से कर सकता है।