गिन्नी घास उत्पादन

आम जानकारी

गिन्नी घास का वानस्पतिक नाम मेगार्थिसस मैक्सिमस है। यह पशुओं के चारे और आचार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह 3-4 मीटर लंबी सदाबहार घास है। इसके पत्तों के सिरे तीखे और लंबे होते हैं और पत्ते के बीच की नाड़ी 1 सैं.मी. चौड़ी होती है। बीज का सिरा 40 सैं.मी लंबा, आयताकार और हरा-जामुनी रंग का होता है। यह उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, यमन, फिलस्तीन  और भारत में पाया जाता है। भारत में, पंजाब गिन्नी घास का मुख्य उत्पादक राज्य है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    19-23°C
  • Season

    Rainfall

    1000-1100 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    19-26°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    31-38°C
  • Season

    Temperature

    19-23°C
  • Season

    Rainfall

    1000-1100 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    19-26°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    31-38°C
  • Season

    Temperature

    19-23°C
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    Rainfall

    1000-1100 mm
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    Sowing Temperature

    19-26°C
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    Harvesting Temperature

    31-38°C
  • Season

    Temperature

    19-23°C
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    Rainfall

    1000-1100 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    19-26°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    31-38°C

मिट्टी

यह मिट्टी की विभिन्न प्रकार की किस्मों, जिसमें नमी और उपजाऊ शक्ति ज्यादा हो, में उगाई जाती है। यह फसल ज्यादा गहरी और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। भारी चिकनी और पानी रोकने वाली मिट्टी में इस फसल की खेती करने से परहेज़ करें।  इस फसल के विकास के लिए हल्की सिंचाई अच्छी रहती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

PGG 101: यह किस्म 1991 में विकसित की गई थी। इस किस्म के बीज गहरे मोटे होते हैं। इस फसल की कटाई मुख्य रूप से मई - नवंबर के महीने में फूल आने से पहले की जाती है। इस किस्म के हरे चारे की औसतन पैदावार 675 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसकी 5-7  बार कटाई की जाती है। 
 
PGG 518: यह 1998 में विकसित की गई थी। इस किस्म के पत्ते लंबे और आकार में चौड़े होते हैं। पौधे के अच्छी तरह से विकसित होने पर इसकी कटाई की जाती है। इस किस्म के हरे चारे की औसतन पैदावार 750 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसकी 5-7 बार कटाई की जा सकती है।
 
PGG 19: यह किस्म पंजाब में खेती करने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 450-500 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
CO 2: इस किस्म के पत्ते की ऊंचाई 150-200 सैं.मी. और पत्ते की लंबाई 65-75 सैं.मी. होती है। इस किस्म की वार्षिक पैदावार 1100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसकी 7 बार कटाई की जा सकती है।
CO (GG) 3: इस किस्म के पत्ते की ऊंचाई 210-240 सैं.मी. और पत्ते की लंबाई 97-110 सैं.मी. होती है। इस किस्म के हरे चारे की वार्षिक पैदावार 1400-1450 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसकी 7 बार कटाई की जा सकती है। 
 
Hamil: यह किस्म उत्तर, दक्षिण और केंद्रिय भारत में उगाने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 208 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PGG 1: यह किस्म उत्तर पश्चिम, केंद्रिय भारत और पहाड़ी इलाकों में उगाने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 210 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 

ज़मीन की तैयारी

गिन्नी घास के रोपण के लिए अच्छी तरह से तैयार मिट्टी की आवश्यकता होती है। हल से जोताई करके ज़मीन को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। फिर दो बार तवियों से जोताई करें और सुहागे से दो बार तिरछा खेत को समतल करें। गिन्नी घास के रोपण के लिए बीज बैड की तैयारी जरूरी होती है।

बिजाई

बिजाई का समय
बीजों को मध्य मार्च से मध्य मई के महीने में बीज बोया जाता है।
 
फासला
फसल के विकास और अच्छी वृद्धि के लिए फासला 50x30 सैं.मी. और 90x45 सैं.मी.रखें।
 
बीज की गहराई
इसकी बिजाई हाथ से छींटे द्वारा की जाती है।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई के लिए केरा ढंग का प्रयोग किया जाता है। छींटे द्वारा भी इसकी बिजाई की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
अच्छी उपज के लिए 6 से 8 किलो बीज प्रति एकड़ प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
अच्छे अंकुरन के लिए बिजाई से पहले सल्फयूरिक एसिड से 10 मिनट के लिए  बीजों का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बिजाई के लिए बीजों का प्रयोग करें।
 

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बीज बोने से पहले मिट्टी अच्छी तरह से तैयार कर लें। उचित लंबाई और चौड़ाई के बैड पर बीज को बोना चाहिए। बीज को 1-2 सैं.मी.की गहराई में बोयें। बिजाई के बाद नमी बनाए रखने के लिए पतले कपड़े से  बैड को ढक दें।

बिजाई से 35-45 दिन बाद बीज अंकुरित होकर 3-4 पत्तियों के साथ खेत में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपण मॉनसून के आने से पहले या उस वक्त जब आपके पास सिंचाई के साधन मौजूद हों, किया जाना चाहिए।  रोपाई से 24 घंटे पहले बैडों को पानी देना जरूरी है ताकि रोपाई करते समय पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सके।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA (After 20 days)
UREA (After 35 days) UREA (After each cutiing)
44 23 66

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN (After 20 days) NITROGEN (After 35 days) NITROGEN (After each cutting)
20 10 30

 

खेत की तैयारी के समय जैविक खाद यानि (FYM) 20-25 टन प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के 20 दिन बाद नाइट्रोजन 20 किलो (यूरिया 44 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की दूसरी मात्रा 10 किलो (यूरिया 23 किलो) बिजाई के 35 दिनों के बाद प्रति एकड़ में डालें।
 
प्रत्येक कटाई के बाद  नाइट्रोजन 30 किलो ( 66 किलो यूरिया ) प्रति एकड़ में डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए नियमित समय के अंतराल पर खेत को नदीन मुक्त करना चाहिए l नदीनों की रोकथाम के लिए एट्राटाफ 50 डब्लयु पी (एट्राज़ीन) 500 ग्राम 200 लीटर पानी में डाल कर स्प्रे करें। मिट्टी के तापमान को कम करने और नदीनों की रोकथाम के लिए मलचिंग भी अच्छा उपाय है।

सिंचाई

गर्मियों में थोड़ी थोड़ी देर बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है। बिजाई के 10 दिनों के अंतराल पर सितंबर-नवंबर महीने में सिंचाई करें। पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करें। दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 4-6 दिनों के बाद करें। बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती लेकिन जीवन बचाव सिंचाई की आवश्यकता होती है। खेतों में ज्यादा पानी ना लगाएं क्योंकि गिन्नी घास की फसल ज्यादा पानी को सहनयोग्य नहीं है।
 
सिंचाई की संख्या बिजाई के बाद फासला (दिनों में)
पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद
दूसरी सिंचाई बिजाई के 4-6 दिन बाद
 
 

पौधे की देखभाल

घास का टिड्डा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
घास का टिड्डा :  घास का टिड्डा ताजे पत्तों को अपने खाने के रूप में प्रयोग करता है जिससे सारा पौधा नष्ट हो जाता है।
रोकथाम : इसका हमला दिखने पर कार्बरिल 50 डब्लयु पी 400 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

 

पत्तों पर धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बे : यह रोग पौधे की पत्तियों को प्रभावित करता है और उन पर धब्बे बना देता है जो कि बाद में काले रंग के हो जाते हैं।
रोकथाम : यदि खेत में इस बीमारी का हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 300 ग्राम या मैनकोजेब 250 ग्राम को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर 3 से 4 बार 15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
 
गोंदिया रोग : यह फफूंदी रोग क्लैविसे पसप्यूरिया से होता है जो कि फसल के मुख्य भाग को प्रभावित करता है।
रोकथाम : इस रोग से बचाने के लिए फंगसनाशी उपचार आवश्यक है।
 

 

 

काले धब्बे का रोग : यह रोग मुख्य रूप से अनाज और चारे वाली फसलों का नुकसान करता है। पौधे के पत्तों पर काले दानेदार धब्बे बन जाते हैं।
रोकथाम : काले धब्बे के रोग की रोकथाम के लिए फंगसनाशी का प्रयोग करना लाभदायक होता है।
 
मुरझाना : यह रोग जड़ों में पानी जाने से रोकता है जिससे कि परिणामस्वरूप पत्ते पीले पड़ जाते हैं।
रोकथाम : इस बीमारी की रोकथाम के लिए थायोफनेट मिथाइल 10 ग्राम और यूरिया  50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार कर लें और पौधे के नज़दीक डालें।
 

फसल की कटाई

मुख्य रूप से बिजाई के 55 दिनों के बाद फसल की कटाई की जाती है। अलग-अलग अंतराल पर 5-7 बार कटाई की जाती है। पहली कटाई 55 दिनों के बाद दूसरी कटाई 25-30 दिनों के अंतराल की जाती है। कटाई ज़मीन के नजदीक से करनी चाहिए इससे फसल की उपज में वृद्धि होती है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare