पंजाब में जामुन की खेती

आम जानकारी

जामुन को भारत की देशी फसल के नाम से जाना जाता है| इसके फल खाने के लिए और इसके बीज दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किये जाते है| जामुन से तैयार की गई दवाइयां डायबटीस , बढ़ते खून और शुगर के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है| यह एक सदाबहार वृक्ष है,जिसकी औसतन ऊंचाई 30 मीटर होती है इसकी छाल भूरे या स्लेटी रंग की होती है| इसके पत्ते नरम होते है, जोकि 10-15 सै.मी. लम्बे और 4-6 मीटर चौड़े होते है| इसके फूल पीले रंग के होते है, जिनका व्यास 5 सै.मी. होता है और इसके फल हरे रंग के होते है जो कि पकने के बाद गहरे लाल रंग के हो जाते है| इस किस्म के फल के बीज  1-1.5  सै.मी. लम्बे होते हैं| अफगानिस्तान, म्यांमार, फिलीपींस, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और भारत जैसे देशों में जामुन के वृक्ष लगाये जा सकते हैं| महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आसाम और राजस्थान भारत के मुख्य जामुन उगाने वाले क्षेत्र है|

मिट्टी

इसके सख्त होने के कारण इसको कई किस्म की मिट्टी में उगाया जा सकता है| इसको सोडिक, पुअर, नमकीन, चूने वाली और दलदली मिट्टी में उगाया जा सकता है| इसको पानी के घटिया निकास वाली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है| यह अच्छे निकास वाली उपजाऊ, घनी दोमट मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है| भारी और रेतली मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Rie Jamun: यह एक प्रभावशाली किस्म है, जो आम रूप से भारत के क्षेत्रों में उगाई जाती है| इसके फल मुख्य रूप से जून-जुलाई में पक जाते है| इसके फल बढे, औसतन 2.5-3.5 सै.मी. लम्बे और 1.5-2  मीटर व्यास के होते है| इसके फलों का रंग गहरा जमुनी या काला-नीला होता है| इसके फल का गुद्दा मीठा और रसीला होता है| इसकी गुठली बहुत छोटी होती है|

और राज्यों की किस्मे

Badama: इस किस्म के फल आकार में बढे और बहुत ज्यादा रसीले होते हैं|

kaatha: इस किस्म के फल आकार में छोटे और खट्टे होते हैं|

jathi: इस किस्म के फल मुख्य रूप से मई-जून के महीने में पक जाते हैं|

Ashada: इस किस्म के फल मुख्य रूप से जून-जुलाई के महीने में पक जाते हैं|

Bhado: इस किस्म के फल मुख्य रूप से अगस्त के महीने में पक जाते हैं |

Ra-jamun: इस किस्म के फल आकार में बढे और रसीले होते हैं, जिनका रंग जमुनी होता है और बीज छोटे होते है|

नीचे दी गई किस्में के वी के, आई सी ऐ आर और राज्य स्तरीय खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के द्वारा तैयार की  गई है|

Narendra Jamun 6:
यह किस्म नरेंदर देव यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश के द्वारा तैयार की गई है|

Rajendra Jamun 1: यह किस्म बिहार खेतीबाड़ी कॉलेज ऑफ़ भगलपुर, बिहार के द्वारा तैयार की गई है|

Konkan Bahadoli: यह किस्म क्षेत्रीय फल खोज केन्द्र, वेंगुर्ला, महाराष्ट्र के द्वारा तैयार की गई है|

Goma Priyanka: यह किस्म केन्द्री बागबानी प्रयोग केन्द्र, गोधरा, गुजरात के द्वारा तैयार की गई है|

CISH J-42: इस किस्म के फल बीज रहित होते है| यह किस्म सेंट्रल () फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर ऑफ़ लखनऊ, उत्तर प्रदेश के द्वारा तैयार की गई है|

CISH J-37 : यह किस्म सेंट्रल () फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर ऑफ़ लखनऊ, उत्तर प्रदेश के द्वारा तैयार की गई है|

ज़मीन की तैयारी

जामुन की बिजाई के लिए अच्छी तरह से तैयार की गई ज़मीन की जरूरत होती है| मिट्टी को ठीक स्तर पर लेकर आने के लिए एक बार खेत की जोताई करें| फिर गड्ढे खोदे और रूडी की खाद 3:1 के अनुपात के साथ गड्ढों को भर दें| तैयार किये हुए बैडों पर पनीरी वाले पौधों की बिजाई करें|

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी खेती बसंत और मानसून - दोनों मौसम में की जा सकती है| बसंत मौसम में इसकी बिजाई फरवरी-मार्च के महीने में और मानसून मौसम में इसकी बिजाई जुलाई-अगस्त के महीने में की जाती है|

फासला
पनीरी वाले पौधों के लिए दोनों तरफ से 10 मीटर के फासले और गांठों के लिए दोनों तरफ से 8 मीटर के फासले की सिफारिश की जाती है|

बीज की गहराई
बीज को 4-5 सै.मी. गहरा बोयें|

बिजाई का ढंग
बीजों को सीधा बैड पर ही बोया जाता है|

बीज

बीज की मात्रा
एक गड्ढे के लिए एक बीज का प्रयोग करें|

बीज का उपचार
बीजों को मिट्टी से होने वाली बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए बविस्टीन के साथ उपचार करें| रासायनिक उपचार के बाद बीजों को हवा में सुखायें और बीज दें|

प्रजनन

इसके पौधे आम रूप से कलम या बीजों के द्वारा तैयार किये जाते है|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

जामुन के बीजों को तैयार किये हुए बैडों पर 4-5 सै.मी गहरा बोयें| बिजाई के बाद बैडों में नमी बरकरार रखने के लिए पतले कपड़े के साथ ढक दें| विषाणुओं के हमले से बचाने के लिए बीजों का बविस्टीन के साथ उपचार करें| बिजाई के 10-15 दिनों में पौधे का अंकुरण शुरू हो जाता है|
रोपण आम रूप से अगले मानसून में की जाती है, जब नये पौधे के 3-4 पत्ते निकल आते है| रोपण से 24 घंटे पहले बैडों को पानी दें ताकि पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सके|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP or MOP ZINC
1 1.5 0.5 -

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
500 600 300

 

अच्छी तरह से गली-सड़ी हुई 20-25 किलो रूडी की खाद प्रति पौधे को प्रति साल डालें| जब पौधे फल देने की स्थिति में पहुंच जाये तो रूडी की खाद की मात्रा बढ़ा कर 50-60 किलो प्रति पौधे को प्रति साल डालें| पूरी तरह से विकसित हो चुके वृक्ष को नाइट्रोजन 500 ग्राम, पोटाश 600 ग्राम और फास्फोरस 300 ग्राम प्रति पौधे को प्रति साल डालें|

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए पौधे के आधार पर हाथों से गोड़ाई करें और खेत को नदीन- रहित रखें| अगर नदीनों की मात्रा ज्यादा हो तो यह फसल के विकास को नुकसान पहुँचाती है| मिटटी का तापमान कम करने के लिए साथ-साथ नदीनों की रोकथाम के लिए मल्चिंग भी एक प्रभावशाली तरीका है|

सिंचाई

इस पौधे को नियमित समय के फासले पर लगातार सिंचाई की जरूरत होती है| खाद डालने के बाद हल्की सिंचाई करें| छोटे पौधों के लिए 6-8 और विकसित पौधों को 5-6 सिंचाइयों की जरूरत होती है| लगातार सिंचाई के साथ-साथ सितम्बर-अक्टूबर में कली के बढ़िया विकास के लिए और मई-जून में, फल के बढ़िया विकास के लिए एक-एक सिंचाई करें| अगर ज्यादा समय के लिया सोखा पड़ जाये तो जीवन बचाव के लिए सिंचाई करें

पौधे की देखभाल

पत्ते खाने वाली सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

पत्ते खाने वाली सुंडी: यह सुंडी ताज़े पत्ते और तने को खाकर फसल को नुकसान करती है|

इसे रोकने के लिए फ्लूबैनडीयामाइड@20 मि.ली. या क्विनलफॉस@400 मि.ली. को प्रति 150 लीटर  पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

जामुन के पत्तों की सुंडी

जामुन के पत्तों की सुंडी: यह सुंडी पत्तों को खाती है|

इसकी रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30 ई सी 1.2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें|

छाल खाने वाली सुंडी

छाल खाने वाली सुंडी: यह सुंडी टिशू की छाल को खाती है|

रोगोर 30 ई सी 3 मि.ली. या मैलाथियोन 50 ई सी 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फूल निकलने के समय स्प्रे करें।

जामुन की पत्ता लपेट सुंडी

जामुन की पत्ता लपेट सुंडी: यह जामुन के पत्तों को लपेट देती है और फसल का नुकसान करती हैं|

इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफोस 20 ई सी या इंडोसल्फान 35 ई सी 2 मि.ली.प्रति लीटर की स्प्रे करें|

पत्ता जोड़ सुंडी

पत्ता जोड़ सुंडी: यह कीट पत्तें और कली को खाकर फसल को नुकसान पहुँचाता हैं|

इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपारिफॉस 20 ई सी या इंडोसल्फान 35 ई सी 2 मि.ली.प्रति लीटर की स्प्रे करें|

ऐंथ्राक्नोस
  • बीमारियां और रोकथाम

ऐंथ्राक्नोस: इस बीमारी के साथ पत्तों पर धब्बे पड़ना, पत्ते झाड़ जाना और टहनियों का सूखना आदि मुश्किलें आती है|

यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम या एम-45@400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

फूल और फलों का गिरना

फूल और फलों का गिरना: इस बीमारी के साथ फूल और फल पकने से पहले ही गिर जाते है जिसके कारण पैदावार बहुत कम होता हैं|

इसकी रोकथाम के लिए जिब्रेलिक एसिड 3 की दो बार स्प्रे करें, पहली स्प्रे फूल निकलने पर और दूसरी फलों के गुच्छे बनने के 15 दिन बाद करें|

फसल की कटाई

तुड़ाई फल पकने के बाद मुख्य रूप से रोज़ की जाती हैं| इसकी तुड़ाई आम रूप से वृक्ष के ऊपर चढ़ कर की जाती है| तुड़ाई के लिए काले-जमुनी रंग के फल चुने जाते हैं| तुड़ाई के समय ध्यान रखें कि फलों को कोई नुकसान न पहुंचे|

कटाई के बाद

कटाई के बाद फलों की छंटाई की जाती है| फिर फलों को बांस की टोकरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक किया जाता हैं| जामुनों को लम्बे समय तक रखने के लिए इनको कम तापमान पर रखा जाता है| फलों को नुकसान से बचाने के लिए अच्छी तरह से पैकिंग करें और जल्दी ठीक जगह पर ले जायें| जामुनों के फलों से सिरका,कैप्सूल, बीजों का पाउडर, जैम, जेली, और स्कवेश आदि उत्पाद तैयार किये जाते हैं|