white-button-mushrooms.jpg

आम जानकारी

खुम्ब प्रोटीन, विटामिन, फोलिक और आयरन का अच्छा स्त्रोत है। यह दिल और शूगर के मरीजों के लिए काफी उपयुक्त है। इसकी खेती विश्व भर में 200 वर्षों से भी ज्यादा वर्षों से की जा रही है। भारत में वर्तमान वर्षों में इसकी खेती व्यापारिक तौर पर शुरू हुई है। इसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में उगाया जाता है। खुम्ब की खेती कोई भी कर सकता है जैसे गृहिणी, रिटायर्ड व्यक्ति  आदि। इस की खेती के लिए कम जगह की ही जरूरत पड़ती है। ढींगरी मशरूम की खेती बहुत आसान है और बहुत कम निवेश में की जा सकती है। इसलिए इसकी खेती बहुत प्रसिद्ध है और राजस्थान में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

मिट्टी

खुम्ब की खेती अच्छे हवादार कमरे, शैड, बेसमैंट, गैरेज आदि में की जा सकती है। पैडी स्ट्रॉ खुम्ब को बाहर शैड वाले स्थान पर उगाया जा सकता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

भारत में तीन प्रकार के खुम्ब को उगाया जा सकता है।
 
बटन खुम्ब
इस किस्म को पूरे विश्व में उगाया जाता है और पूरे वर्ष उगाया जा सकता है, सफेद बटन खुम्ब में उच्च मात्रा में प्रोटीन होता है। इसका ताजा और डिब्बा बंद उपभोग किया जा सकता है। इसकी औषधीय विशेषताएं हैं। हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्रा प्रदेष, तामिलनाडू और कर्नाटक मुख्य खुम्ब उगाने वाले राज्य हैं।
यू पी में खुम्ब को उगाने के लिए नवंबर से मार्च का महीना उपयुक्त होता है। अच्छी वृद्धि के लिए इसे 22-25 डिगरी सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है और खुम्ब निकलते समय इसे 14-18 डिगरी सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
 
स्ट्रॉ खुम्ब
यह पूरे विश्व में उगाई जाने वाली तीसरी सबसे प्रसिद्ध किस्म है। इसे कपास के व्यर्थ मिश्रण के साथ पराली की छोटी मात्रा के ऊपर उगाया जाता है। यह छोटे आकार की खुम्ब होती हैं जो कि कोण के आकार की होती हैं। इसकी टोपी ऊपर से गहरे भूरे रंग की होती है। भारत में इसकी तीन प्रजातियां हैं  V. diplasia, V. volvacea and V. esculenta इन प्रजातियों के अलावा उत्तर प्रदेश में Volvariella volvacea की खेती की जाती है।
इसे “चाइनीज़” या “पैडी” खुम्ब के रूप में भी जाना जाता है। इन्हें बड़े स्तर पर उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। इन्हें 35 डिगरी सेल्सियस के तापमान पर उगाया जा सकता है। इस किस्म की खुम्ब की खेती के लिए अप्रैल से सितंबर का समय उपयुक्त होता है।
 
ओइस्टर खुम्ब या ढींगरी खुम्ब
यह सामान्य और खाने योग्य खुम्ब है। इसका गुद्दा नर्म, मखमली बनावट और अच्छा स्वाद होता है। यह प्रोटीन, फाइबर और विटामिन बी1 से बी 12 का उच्च स्त्रोत है। इस किस्म की सभी प्रजातियां और किस्में खाने योग्य हैं सिर्फ  P. olearius और P. nidiformis को छोड़कर, ये ज़हरीली होती हैं। उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्रा प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिमी बंगाल और उत्तर पूर्व के पहाड़ी क्षेत्र मुख्य राज्य हैं जो खुम्ब का उत्पादन करते हैं।
इस खुम्ब को उगाने का उपयुक्त समय अक्तूबर से मार्च तक का है। यह 20-30 डिगरी सेल्सियस तापमान के साथ 80-85 प्रतिशत आर्द्रता को सहने योग्य है।
 

 

खेती करने की तकनीक

स्पान (बीज) की तैयारी
सबस्ट्रेट की तैयारी
सबस्ट्रेट की स्पॉनिंग
फसल का प्रबंधन
स्पान की तैयारी

 
स्पान / खुम्ब के बीजों की तैयारी
ये बाज़ार में उपलब्ध होते हैं। इन्हें खेत में भी तैयार या उत्पादन किया जा सकता है। ताजे तैयार किए हुए खुम्ब के बीज प्रयोग के लिए सबसे अच्छे होते हैं।
 
सबस्ट्रेट की तैयारी
खुम्ब की खेती बडी़ मात्रा में खेत के व्यर्थ पदार्थ और अन्य सामग्री जैसे व्यर्थ कागज़, कपास का व्यर्थ पदार्थ, अनाज की पराली आदि पर की जा सकती है। धान की पराली और गेहूं की पराली मुख्य तौर पर प्रयोग होने वाली सामग्री हैं जिनका प्रयोग सब्स्ट्रेट की तैयारी के लिए किया जाता है।
 
ओइस्टर को पॉलीथीन बैग में उगाया जाता है।
कार्बेनडाज़ि़म 7 ग्राम के साथ फॉरमालीन 125 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर डालें और एक मिश्रण तैयार करें।
ऊपर दिए गए मिश्रण में 20 किलो गेहूं की पराली डालें और इसे 18 घंटे के लिए रख दें।
18 घंटों के बाद गेहूं की पराली को हटा दें और इसे एक सतह पर रखें और इसमें से अतिरिक्त पानी को निकाल दें।
गेहूं की पराली में 2 प्रतिशत बीज डालें और इस मिश्रण को 15x12 इंच के पॉलीथीन बैग में भरें।
पॉलीथीन बैग 2 मि.मी. अर्द्ध व्यास से छिद्रित हो। हवा परिसंचरण के लिए पूरी सतह पर लगभग 4 सैं.मी. के छेद हों।
उसके बाद बैग को 80-85 प्रतिशत आर्द्रता वाले कमरे में शैल्फ पर रखें। कमरे का तापमान 24-26 डिगरी सेल्सियस होना चाहिए।
बैगों को सुरक्षित जगह पर रखें और पानी के छिड़काव द्वारा इनमें नमी बनाए रखें।
पराली पर सफेद रंग की सूती माइसीलियम विकसित हो जाती है। गेहूं की पराली अपना रंग बदलकर भूरे रंग की हो जाती है और आवाज करती है और सिकुड़ जाती है।
इस अवस्था में पॉलीथीन को काट कर निकाल दें।
पॉलीथीन में पराली सिकुड़ जाती है और बेलनाकार हो जाती है।
इन बेलनाकार पराली के आकार को शैल्फ पर लगाएं और इनमें पानी के छिड़काव द्वारा नमी बनाए रखें।
 

 

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम

फंगस की बीमारियां:
भूरे धब्बे, फंगस या वर्टीसिलियम बीमारियां - कभी कभी खुम्ब की छतरी पर हल्के भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं, जिससे धीरे धीरे खुम्ब का आकार अनियमित हो जाता है। लेकिन सूक्ष्मदर्शी यंत्र में इस बीमारी को देखा जाए, तो इन धब्बों की बहुत पतली  सफेद से सलेटी रंग की और एक सेल फंगस देखी जा सकती है। यदि यह बीमारी फैल जाए, तो खुम्ब चमड़े जैसी हो जाती है और बिना किसी गंध के सूख जाती है।
 
उपचार - इस बीमारी के फैलने से पहले इसे रोकना जरूरी है। कमरों को साफ करें, हवादार रखें, सभी यंत्रों को धूल रहित रखें। तापमान को ना बढ़ायें और इंडोफिल एम- 45, 0.25-0.5 प्रतिशत की स्प्रे तीन बार करें। पहली केसिंग के समय, दूसरी पिन बांधने के समय और तीसरी 2 फसलों की तुड़ाई के बाद करें।

सफेद फंगस माइकोजन बीमारी - इस बीमारी के द्वारा खुम्ब मुख्यत: भूरे रंग की हो जाती है और भद्दी गंध देती है। इसके लक्षण हैं - खुम्ब का नर्म होना, निचले भाग का मोटा होना और छतरी का छोटे आकार का होना।
 
उपचार - मिट्टी को पास्चयूराइज़िंग या रासायनिक खादों से विषाणु रहित बनायें। इंडोफिल एम 45 की स्प्रे की जा सकती है।

हरी फंगस - यह बीमारी मुख्यत: कंपोस्ट ओर केसिंग मिट्टी पर होती है। यह विषाणु केसिंग मिट्टी में जहरीले तत्व का उत्पादन करता है। ये खुम्ब के पतले तत्वों को मार देते हैं और डंठल गहरे भूरे से लाल भूरे रंग का हो जाता है। यह फंगस गहरे हरे रंग की होती है और खुम्ब की छतरी पर जख्म बनाती है।
 
उपचार- डिथियोकार्बोमेट या बेनज़ाइमडाज़ोल से कंपोस्ट या केसिंग को विषाणु रहित बनाकर इसे रोका जा सकता है।

ट्रफल - यह बीमारी डिलियोमाइसिस माइक्रोपोरस के द्वारा फैलती है। इससे अनियमित आकार की हल्के पीले रंग की खुम्ब विकसित हो जाती है। खुम्ब का कद 1.0 मि.मी. से 3.5 मि.मी. होता है।
 
उपचार - ट्रफल को दूर करने के लिए कमरे अच्छी तरह से हवादार होने चाहिए और इन्हें नमी से बचाना चाहिए। यह स्पॉन के विकसित होने को रोकता है। इसे दूर करने के लिए स्पॉन के विकसित होने के समय तापमान 18 डिगरी सेल्सियस होना चाहिए और फसल का तापमान 17 डिगरी सेल्सियस से अधिक नहीं होना चाहिए।

प्लास्टर मोल्ड - स्कोपुलैरियापसिस फिमीकोला एक प्रकार की फंगस है जिसके कारण यह बीमारी होती है। यह सफेद रंग की फंगस होती है जो कि सफेद धब्बे बनाती है। धब्बे सफेद रंग से बदलकर हल्के गुलाबी रंग के हो जाते हैं।
 
उपचार - यदि इस फंगस का हमला हो तो फॉरमैलीन 2 प्रतिशत की स्प्रे करें। स्पानिंग के समय खाद में कार्बेनडाज़िम 10 पी एफ एम की स्प्रे करें।

बैक्टीरियल बीमारी

बैक्टीरियल ब्लॉच-
इसके कारण छतरी की सतह पर भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। शुरू मे ये हल्के रंग के होते हैं बाद में गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं।

उपचार- इस बीमारी को दूर करने के लिए हाइपोक्लोराइड 150 पी पी एम डालें।
 

 

  • हानिकारक कीट और रोकथाम

निमाटोड - निमाटोड स्पान को खाते हैं।
 
उपचार -  इसे पास्चुराइज़ेशन से नियंत्रित किया जा सकता है। कंपोस्ट के समय इसकी रोकथाम के लिए फुराडान 120 ग्राम (प्रति 300 ग्राम) डालना चाहिए।
 

 

फसल की कटाई

स्पॉनिंग के 18-20 दिन बाद पहली खुम्ब दिखनी शुरू हो जाती है। एक सप्ताह के अंतराल पर दो से तीन खुम्ब दिखनी शुरू हो जायेंगी।
जब खुम्ब की टोपी मुड़ना शुरू हो जाये तो खुम्ब की तुड़ाई कर लें।
तुड़ाई के लिए तीखे चाकू का प्रयोग करें और इसे उंगलियों से मरोड़ कर भी तोड़ा जा सकता है।
इसे ताजा भी खाया जा सकता है या धूप में या मशीनी ड्रायर से सुखाकर इसका प्रयोग किया जा सकता है।
45-60 दिनों के अंदर अंदर एक टन सूखी पराली से 500 किलो से ज्यादा ताजी खुम्ब प्राप्त की जा सकती है।