पुदीने की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

पुदीना मैंथा के नाम से जानी जाने वाली एक क्रियाशील जड़ी बूटी है। पुदीना को तेल, टूथ पेस्ट, माउथ वॉश और कई व्यंजनों में स्वाद के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके पत्ते कई तरह की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। पुदीने से तैयार दवाइयों को नाक, गठिया,नाड़ियां, पेट में गैस और सोजिश आदि के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसे व्यापक श्रेणी की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक छोटी जड़ी-बूटी होती है जिसकी औसतन ऊंचाई 1-2 फीट के साथ फैलने वाली जड़ें होती हैं। इसके पत्ते 3.7-10 सैं.मी. लंबे और जामुनी रंग के छोटे फूल होते हैं। इसका मूल मैडिटेरेनियन बेसिन है। यह ज्यादा अंगोला, थाइलैंड, चीन, अर्जेंनटीना, ब्राज़ील, जापान, भारत और पारागुए में पाया जाता है। भारत में उत्तर प्रदेश और पंजाब भारत के पुदीना उत्पादक राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    41°C
  • Season

    Rainfall

    100mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-19°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-40°C
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    41°C
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    100mm
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    Sowing Temperature

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    Harvesting Temperature

    30-40°C
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    41°C
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    100mm
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    15-19°C
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    Harvesting Temperature

    30-40°C
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    41°C
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    100mm
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    Sowing Temperature

    15-19°C
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    Harvesting Temperature

    30-40°C

मिट्टी

पुदीने को मिट्टी की कई किस्मों जैसे दरमियाने से गहरी उपजाऊ मिट्टी, जिसमें पानी को सोखने की क्षमता ज्यादा हो, में उगाया जाता है। इसको जल-जमाव वाली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। उच्च नमी वाली मिट्टी में यह अच्छे परिणाम देती है। इस फसल के लिए मिट्टी का pH 6-7.5 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

MAS-1: यह छोटे कद की किस्म है| जिसकी ऊंचाई 30-45 सैं.मी. होती है। यह बीमारीयों की रोधक और जल्दी पकने वाली  किस्म है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 70-80% होती है। इसकी औसतन पैदावार  80 क्विंटल प्रति एकड़ जड़ी-बूटियां के तौर पर और 50-60 किलोग्राम प्रति एकड़ तेल के तौर पर होती है।

Hybrid-77: इसकी ऊंचाई 50-60 सैं.मी. होती है। यह किस्म पत्तों के धब्बा रोग और कुंगी के रोधक होती है, और यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 80-85% होती है। इसकी औसतन पैदावार  80 क्विंटल प्रति एकड़ जड़ी-बूटियां के तौर पर और 50-60 किलोग्राम प्रति एकड़ तेल के तौर पर होती है। यह रेतली दोमट मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है औरऐसी शुष्क मौसम में की आवश्यकता होती है।

Shivalik:  यह चीन की खेती से चुनी गई किस्म है। यह किस्म उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों और उत्तरांचल में अच्छी वृद्धि करती है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 65-70% होती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ जड़ी-बूटियां के तौर पर और 72 किलोग्राम प्रति एकड़ तेल के तौर पर होती है। यह किस्म फंगस रोगों से जल्दी प्रभावित होती है।

EC-41911: यह किस्म रूसी जर्मप्लाज्म से ली गई है। यह किस्म पानी की रोधक और आकार में सीधी होती है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 70%पायी जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ जड़ी-बूटियां के तौर पर और 72 किलोग्राम प्रति एकड़ तेल के तौर पर होती है। इस किस्म से तैयार तेल का प्रयोग विभिन्न व्यंजनों में स्वाद के लिए किया जाता है।

Gomti:  यह किस्म रंग में हल्के लाल रंग की होती है। इसकी पैदावार बाकी किस्मों की पैदावार से कम होती है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 78-80% होती है।

Himalaya: इसके पत्तों का आकार बाकी किस्मों से बड़ा होता है। यह किस्म कुंगी, झुलस, सफेद धब्बे और पत्तों पर धब्बे रोग की रोधक है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 78-80% होती है।इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ जड़ी-बूटियां के तौर पर और 80-100 किलोग्राम प्रति एकड़ तेल के तौर पर होती है।

Kosi: यह किस्म 90 दिनों में पक जाती है। यह किस्म कुंगी, झुलस, सफेद धब्बे और पत्तों के धब्बे रोग की प्रतिरोधक है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 75-80 प्रतिशत होती है और तेल की पैदावार 80-100 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है।

Saksham: यह किस्म सी वी हिमालय की तरफ से टिशू कल्चर द्वारा तैयार की गई है। इसमें मैन्थोल की मात्रा 80% होती है और तेल की पैदावार 90-100 किलोग्राम प्राप्त होती है।

Kushal: यह किस्म टिशू कल्चर द्वारा तैयार की गई है और 90-100 दिनों में पक जाती है। यह किस्म कीट और बीमारियों की रोधक होती है। यह किस्म अर्द्ध शुष्क उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी पैदावार देती है और उत्तर प्रदेश और पंजाब में भी अच्छी उगती है। है। इसकी औसतन पैदावार 120-132 क्विंटल प्रति एकड़ जड़ी-बूटियां के तौर पर और 70-80 किलोग्राम प्रति एकड़ तेल के तौर पर होती है।

·       Punjab Spraymint 1: इस किस्म में तेल की मात्रा 0.57 प्रतिशत होती है और इसमें तेल का मुख्य तत्व कारवोन होता है। इसकी औसतन पैदावार 80—100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

ज़मीन की तैयारी

पुदीने की बिजाई के लिए सुविधाजनक आकार के बैड तैयार करें। खेत की तैयारी के समय खेत की अच्छी तरह जोताई करें। जैविक खाद जैसे रूड़ी की खाद 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद डालें| रूड़ी की खाद के बाद हरी खाद डालें|

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई के लिए दिसंबर-जनवरी का समय अनुकूल होता है।

फासला
पौधे के भागों की बिजाई 40 सैं.मी. के फासले पर और पंक्तियों के बीच का फासला 60 सैं.मी होना चाहिए।

बीज की गहराई
बीज को 2-3 सैं.मी. की गहराई में बोयें।

बिजाई का ढंग
पौधे के जड़ वाले भाग को मुख्य खेत में बोया जाता है|

बीज

बीज की मात्रा
प्रजनन क्रिया जड़ के भाग या टहनियों द्वारा की जाती है| अच्छी पैदावार के लिए 160 किलो भागों को  प्रति एकड़ में प्रयोग करें। जड़ें पिछले पौधों से दिसंबर और जनवरी के महीने में प्राप्त की जाती है|

बीज का उपचार
फसल को जड़ गलने से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीजे जाने वाले  उपचार कप्तान 0.25 प्रतिशत या आगालोल 0.3% या बैनलेट 0.1%  से 2-3 मिनट के लिए किया जाना चाहिए।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बिजाई से पहले पौधे की बारीक जड़ 10-14 सैं.मी. काटें। पुदीने की जड़ को आकार और जड़ के हिसाब से बोयें। पौधे की बारीक जड़ की रोपाई 40 सैं.मी. के फासले पर और कतार से कतार का फासला 60 सैं.मी होना चाहिए। बिजाई के बाद मिट्टी को नमी देने के लिए सिंचाई करें।

रोपाई के बाद नदीनों की रोकथाम के लिए सिनबार 400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

नदीनों से बचाव के लिए एट्राज़ीन और सिमाज़ीन 400 ग्राम, पैंडीमैथालीन 800 मि.ली. और ऑक्सीफ्लूरोफेन 200 ग्राम की बूटीनाशक स्प्रे प्रति एकड़ में करें।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
130 80-100 33

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
58 32-40 20

 

खेत की तैयारी के समय रूड़ी की खाद 80-120 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 58 किलो (यूरिया 130 किलो), फासफोरस 32-40 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 80-100 किलो), पोटाशियम 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 33 किलो) प्रति एकड़ में डालें।

खरपतवार नियंत्रण

हाथों से लगातार गोडाई करें और पहली कटाई के बाद खेत को नदीन मुक्त करें। नदीनों की रोकथाम के लिए सिनबार 400 ग्राम प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नदीनों को नियंत्रित करने के लिए जैविक मल्च के साथ ऑक्सीफलोरफिन 200 ग्राम या पैंडीमैथालीन बूटीनाशक 800 मि.ली को प्रति एकड़ में प्रयोग करें। यदि नदीन ज्यादा हो तो डालापोन 1.6 किलोग्राम प्रति एकड़ या ग्रामाक्ज़ोन 1 लीटर और डयूरॉन 800 ग्राम या टेरबेसिल 800 ग्राम  की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

सिंचाई

गर्मियों में मॉनसून से पहले जलवायु और मिट्टी के आधार पर 6-9 सिंचाइयां जरूर की जानी चाहिए। मॉनसून के बाद 3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई सितंबर महीने में, दूसरी अक्तूबर में और तीसरी नवंबर महीने में की जानी चाहिए। सर्दियों में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन यदि सर्दियों में बारिश ना पड़े तो एक सिंचाई जरूर देनी चाहिए।

पौधे की देखभाल

बालों वाली सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

बालों वाली सुंडी : यह डिकारसिया ओबलीकुआ के कारण होती है। यह हरे पत्तों को खाती है और पूरे पौधे को नष्ट कर देती है।

इस कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियॉन या थायोडन 1.7 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कुतरा सुंडी

कुतरा सुंडी : यह एगरोटिस फलेमैटरा के कारण होती है। यह बसंत ऋतु के दौरान पौधे की गर्दन को नुकसान पहुंचाती है।

इस कीट की रोकथाम के लिए रोपाई से पहले फॉरेट 10 ग्राम से मिट्टी का उपचार करें।

लाल भुंडी

लाल भुंडी: यह आउलोकोफोरा फोइवीकॉलिस के कारण होती है। यह ताजे हरे पत्तों और कलियों को खाती है।

इस कीट की रोकथाम के लिए थायोडैन 1 मि.ली को 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पुदीने की पत्ता लपेट सुंडी

पुदीने की पत्ता लपेट सुंडी : यह सिंगमिया अबरूपतालिस के कारण होती है। यह कीट पत्तों को लपेट देती है और अगस्त सितंबर के महीने में अंदर से पत्तों को खाती है।

इस कीट से बचाव के लिए थायोडन 1.5 मि.ली. को 1 लीटर पानी में मिलाकर सप्ताह के अंतराल में 2-3 बार छिड़काव करें।

तना गलन
  • बीमारियां और रोकथाम

तना गलन : यह मैकरोफोमिना फेज़िओली के कारण होती है। यह पौधे के निचले भागों में हमला करती है जिससे पौधे पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में पौधे को खोखला कर देता है।

इस कीट की रोकथाम के लिए कप्तान 0.25% या आगालोल घोल 0.3 % या बैनलेट 0.1 प्रतिशत में 2-3 मिनट के लिए तने को रखें।

फुज़ारियम सूखा

फुज़ारियम सूखा : यह फुज़ारियम ऑग्ज़ीस्पोरियम के कारण होती है। इससे पत्ते पीले, मुड़े हुए और सूख जाते हैं।

इस कीट की रोकथाम के लिए बवास्टिन, बैनलेट और टॉपसिन दें।

पत्ते का झुलस रोग

पत्ते का झुलस रोग : यह ऑल्टरनेरिया के कारण होती है। यह गर्मियों के मौसम में पत्तों को नुकसान पहुंचाती है।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए कॉपर फंगसनाशी का प्रयोग करें।

फसल की कटाई

पौधे 100-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब निचले पत्ते पीले रंग के होने शुरू हो जायें, तब कटाई करें। कटाई दराती से और बूटियों को मिट्टी की सतह के 2-3 सैं.मी. ऊपर से निकालें। अगली कटाई पहली कटाई के बाद 80 दिनों के अंतराल पर करें। ताजी पत्तियों को उत्पाद बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

कटाई के बाद

कटाई करने के बाद तेल निकालने के लिए उसके नर्म तनों का प्रयोग किया जाता है। फिर पुदीने के तेल को पैक करके बड़े स्टील के या एल्यूमीनियम के बक्सों में रखा जाता है। फसल को नुकसान होने से बचाने के लिए जल्दी मंडी में भेजा जाता है। पुदीने की पत्तियों से काफी तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं जैसे प्रक्रिया के बाद पुदीने का तेल और चटनी आदि।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare