मसूर फसल की जानकारी

आम जानकारी

यह एक महत्तवपूर्ण प्रोटीन युक्त दालों वाली फसल है। इसे ज्यादातर मुख्य दाल के तौर पर जो कि दो भागों द्वारा बनी होती है, खायी जाती है। यह दाल गहरी संतरी, और संतरी पीले रंग की होती है। इसे बहुत सारे पकवानों में प्रयोग किया जाता है। यह कपड़ों और छपाई के लिए स्टार्च का स्त्रोत भी मुहैया करता है। इसे गेहूं के आटे में मिलाकर ब्रैड और केक भी बनाये जाते हैं। भारत, दुनिया में सब से अधिक मसूर पैदा करने वाला देश है। 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Rainfall

    100 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22°C - 24°C
  • Season

    Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Rainfall

    100 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22°C - 24°C
  • Season

    Temperature

    18°C - 20°C
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    100 cm
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    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
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    Harvesting Temperature

    22°C - 24°C
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    Temperature

    18°C - 20°C
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    Rainfall

    100 cm
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    Sowing Temperature

    18°C - 20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22°C - 24°C

मिट्टी

मसूर को मिट्टी की सभी किस्मों में उगाया जा सकता है। नमक वाली, क्षारीय और जल जमाव वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें। मिट्टी भुरभुरी और नदीन रहित होनी चाहिए ताकि बीज एक समाज गहराई में बोये जा सकें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

LL 699 (2001): इसके पौधे छोटे, सीधे और अधिक शाखाओं वाले होते हैं। इसके पौधे गहरे हरे रंग के होते हैं और  अधिक मात्रा में फलियाँ लगती हैं और जल्दी खिलते हैं। यह किस्म 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह फली छेदक रोग को उच्च स्तर पर सहनेयोग्य है। इसमें पकने के अच्छे गुण मौजूद होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

LL 931 (2009): इसके पौधे छोटे, सीधे और अधिक शाखाओं वाले होते हैं, इसलिए इस पर बहुत सारी फलियाँ लगती हैं। इसके पत्ते गहरे हरे, गुलाबी फूल, बिना रंजित हरी फली, और अल्पविकसित प्रतान यह सब इस फसल की विशेषताएं हैं। यह किस्म 146 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह जंग रोग के लिए उच्च स्तर पर प्रतिरोधक है और फली छेदक रोग के लिए उच्च सहनशीलता है। इसमें मध्यम आकार के बीज है जो भूरे रंग के होते हैं जिसपर हल्के धब्बे होते हैं। इसमें पकने के अच्छे गुण मौजूद होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ है।

LL 1373 (2020): इसके पौधे छोटे, सीधे और अधिक शाखाओं वाले होते हैं, इसलिए इसमें अधिक फलियाँ लगती हैं। हल्के हरे पत्ते, गुलाबी फूल, गैर-रंजित हल्के हरे रंग की फली, और अल्पविकसित प्रतान यह सब इस फसल की विशेषताएं हैं। यह किस्म 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है यह जंग रोग के प्रतिरोधी है और फली छेदक रोग के लिए उच्च सहनशील है। इसके बीज बड़े होते हैं जिनका वजन 3.5 ग्राम प्रति 100 बीज होता है। इसमें पकने के अच्छे गुण मौजूद होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.1 क्विंटल प्रति एकड़ है।

दूसरे राज्यों की किस्में

Bombay 18 : यह किस्म 130-140 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

DPL 15: यह किस्म 130-140 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

DPL 62 : यह किस्म 130-140 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

K 75: यह किस्म 120-125 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.5-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Pusa 4076: यह किस्म 130-135 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

 L 4632

 

ज़मीन की तैयारी

हल्की मिट्टी में सीड बैड तैयार करने के लिए कम जोताई की आवश्यकता होती है। भारी मिट्टी में एक गहरी जोताई के बाद 3-4 हैरो से क्रॉस जोताई करनी चाहिए। ज़मीन को समतल करने के लिए 2-3 जोताई पर्याप्त होती है। पानी के उचित वितरण के लिए ज़मीन समतल होनी चाहिए। बीजों की बिजाई के समय खेत में उचित नमी मौजूद होनी चाहिए।
 

बिजाई

बिजाई का समय
बीजों को मध्य अक्तूबर से लेकर नवंबर के पहले पखवाड़े में बोया जाता है।
 
फासला
पंक्तियों में बीज 22 सैं.मी. की दूरी पर बीजने चाहिए और देरी से बिजाई करने की हालतों में पंक्तियों की दूरी कम करके 20 सैं.मी. कर देनी चाहिए।
 
बीज की गहराई
बीज की गहराई 3-4 सैं.मी. होनी चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए पोरा ढंग या खाद और बीज वाली मशीन का प्रयोग करें। इसके इलावा इसकी बिजाई हाथों से छींटा देकर की जा सकती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
12-15 किलो बीज प्रति एकड़ में पर्याप्त होते हैं।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीजों को कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Captan 3gm
Thiram 3gm
 
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
12 50 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
5 8 -

 

नाइट्रोजन 5 किलो (12 किलो यूरिया), फासफोरस 8 किलो (50 किलो सिंगल सुपर फासफेट) प्रति एकड़ में बिजाई के समय डालनी चाहिए। बिजाई से पहले बीजों को राइज़ोबियम से उपचार कर लेना चाहिए। यदि बिजाई से पहले बीजों का राइज़ोबियम से उपचार नहीं किया है तो फासफोरस की मात्रा दोगुनी कर देनी चाहिए।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

बाथू, अणकारी और चटरी मटरी इसके मुख्य नदीन है। इनकी रोकथाम के लिए दो गोडाई पहली 30 दिन और दूसरी 60 दिनों के बाद करें। 45-60 दिनों तक खेत को नदीन मुक्त रखें ताकि फसल अच्छा विकास करे और ज्यादा पैदावार दे। इसके इलावा स्टंप 30 ई सी 550 मि.ली. बीजने के दो से तीन दिनों के अंदर अंदर छिड़काव करें और इसके साथ एक गोडाई 50 दिनों के बाद करें जो कि नदीनों की रोकथाम के लिए अनुकूल है।

सिंचाई

मसूर को बारानी फसल के तौर पर उगाया जाता है। जलवायु हालातों के आधार पर सिंचित क्षेत्रों में इसे 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बिजाई के 4 सप्ताह बाद एक सिंचाई जरूर करनी चाहिए और दूसरी फूल निकलने की अवस्था में करनी चाहिए। फलियां भरने और फूल निकलने की अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं।

पौधे की देखभाल

फली छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फली छेदक : यह सुंडी पत्ते, डंडियां और फूलों को खाती है। यह मसूर की खतरनाक सुंडी है और पैदावार का बहुत नुकसान करती है। इसकी रोकथाम के लिए हेक्ज़ाविन 900 ग्राम 50 डब्लयु पी को 90 लीटर पानी में मिलाकर फूल लगने के समय प्रति एकड़ में छिड़काव करें। यदि जरूरत हो तो तीसरा छिड़काव 3 हफ्तों बाद कर सकते हैं।
 
कुंगी
  • बीमारियां और रोकथाम
कुंगी : इससे टहनियां, पत्ते और फलियों के ऊपर हल्के पीले रंग के उभरे हुए धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे ग्रुप के रूप में नज़र आते हैं। छोटे धब्बे धीरे धीरे बड़े धब्बों में बदल जाते हैं। कई बार प्रभावित पौधा पूरी तरह सूख जाता है। इससे बचाव के लिए रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें और रोकथाम के लिए 400 ग्राम M-45 को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
 

 

झुलस रोग
झुलस रोग : इससे टहनियां और फलियों के ऊपर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे धीरे धीरे लंबे आकार के बनते हैं। कईं बाद ये धब्बे गोलाकार का रूप ले लेते हैं। बचाव के लिए बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें और पौधे को नष्ट कर दें। इसकी रोकथाम के लिए 400 ग्राम बाविस्टिन को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें।
 

फसल की कटाई

कटाई सही समय पर करनी चाहिए। जब पौधे के पत्ते सूख जाएं और फलियां पक जाएं तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। देरी करने से फलियां झड़नी शुरू हो जाती है। इसकी कटाई द्राती से करें। दानों को साफ करके धूप में सुखाकर 12 प्रतिशत नमी पर स्टोर कर लें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare