काले मांह  की जानकारी

आम जानकारी

काले मांह का वानस्पतिक नाम विगना अमबैलटा है। यह सदाबहार फलीदार फसल है जिसका कद 30-100 सैं.मी. और यह 200 सैं.मी. तक उगाई जा सकती है। इसके पत्ते त्रिकोने 6-9 सैं.मी. लंबे होते हैं। फूल गहरे पीले रंग के होते हैं जो बाद में फल बनते हैं। इसके फल बेलनाकार होते हैं जिसके बीज आकार में 6-8 मि.मी. होते हैं। यह इंडो-चीन, दक्षिण चीन, नेपाल, बांग्लादेश और भारत में पाया जाता है। भारत में हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, आसाम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रमुख काले मांह उत्पादक राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-37°C
  • Season

    Rainfall

    60-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    18-37°C
  • Season

    Rainfall

    60-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    18-37°C
  • Season

    Rainfall

    60-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    18-37°C
  • Season

    Rainfall

    60-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C

मिट्टी

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

ज़मीन की तैयारी

काले मांह की खेती के लिए, बढ़िया सीड बैड की आवश्यकता होती है जो कि किसान द्वारा अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। पौधे के अच्छे खड़े रहने के लिए तैयार सीड बैड की जरूरत होती है। सीड बैड पर बीजों का अंकुरन होता है और तैयार नर्सरी बैड पर रोपाई की जाती है।

बिजाई

बीज

बीज की मात्रा
बढ़िया पैदावार के लिए 10-12 किलो बीजों का प्रयोग प्रति एकड़ में करें।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

काले मांह के बीजों को आवश्यक लंबाई और चौड़ाई वाले बैडों पर बोयें। बीज को सीड ड्रिल की सहायता से बोयें। बीजों की उच्च अंकुरन प्रतिशतता के लिए अच्छी सिंचित हालातों में बिजाई करें।

खाद

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए लगातार निराई और गोडाई करें। बिजाई के 30-50 दिनों के बाद नदीनों की रोकथाम के लिए 1-2 गोडाई की आवश्यकता होती है। मिट्टी के तापमान को कम करने और नदीनों को रोकने के लिए मलचिंग भी एक आसान तरीका है।

सिंचाई

मानसून के मौसम में, सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती| लेकिन समय पर मानसून ना होने और सूखे पड़ने पर मानसून के बाद 2-3 बार सिंचाई करें।
 

पौधे की देखभाल

तना गलन
  • बीमारियां और रोकथाम

तना गलन: यह बीमारी तने को नष्ट कर देती है जिस कारण फसल की कम पैदावार और गुणवत्ता घटिया होती है।

पीले पत्ते

पीले पत्ते: इस बीमारी से पहले लाल रंग के धब्बे पड़ जाते हैं फिर रंग बदलकर लाल भूरे रंग के हो जाते हैं और फिर पीले हो जाते हैं। इससे पत्तों की पैदावार कम हो जाती  है।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए प्रभावित भाग को जल्दी से निकाल दें।

फली छेदक(लेपिडोपटेरा)

फली छेदक(लेपिडोपटेरा): यह कीट नए बीजों को खाकर और फली को एक से दूसरे स्थान पर ले जाकर नुकसान पहुंचाती है।
इसकी रोकथाम के लिए, इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम या स्पिनोसैड 45 एस सी 60 मि.ली को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

छिपकली

छिपकली: यह पत्तों को काटकर पौधे को नुकसान पहुंचाता है|
छिपकली को पौधे से दूर रखने पौधे के आस-पास कीटनाशी स्प्रे करें। यह स्प्रे शाम के समय जरूर की जानी चाहिए।

सुंडी

सुंडी: यह पत्तों और फलियों को नष्ट कर देती है| यह पौधे की पत्तियों और फलियों को अपना भोजन बनाती है और फलियों में छेद कर देती है।

फसल की कटाई

जब फलियां 80% भूरे रंग की हो जाती हैं तब कटाई की जाती है। इनकी कटाई सुबह के समय की जाती है ताकि फलियों को कोई नुकसान ना हो। कटाई छोटे-छोटे भागों में की जाती है क्योंकि पौधे एक दूसरे के साथ जुड़े हुए होते हैं।

कटाई के बाद

कटाई के बाद, दानों को धूप में सुखाया जाता है। सुखाने के बाद इन्हें बोरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक करके लम्बी दूरी वाले स्थानों पर और बिक्री के उद्देश्य भेजा जाता है।

रेफरेन्स