शतावरी फसल के बीज

आम जानकारी

शतावरी सबसे कोमल जड़ी-बूटी है जिसमें मानव शरीर,खास कर महिलाओं के लिए व्यापक श्रृंख्ला में लाभ होते हैं। यह एक औषधीय जड़ी बूटी है और इसकी 500 टन जड़ों का प्रयोग भारत में हर साल दवाइयों के उत्पादन में किया जाता है। शतावरी से तैयार दवाइयों का प्रयोग गैस्ट्रिक अल्सर, अपच और तंत्रिका संबंधी विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। यह एक झाड़ी वाला पौधा है जिसकी औसतन ऊंचाई 1-3 मीटर और इसकी जड़ेंगुच्छे में होती है। इसके फूल शाखाओं में होते हैं और 3 सैं.मी. लंबे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के और अच्छी सुगंध वाले होते हैं और 3 मि.मी. लंबे होते हैं। इसका परागकोष जामुनी रंग का और फल जामुनी लाल रंग का होता है। यह अफ्रीका, श्री लंका, चीन, भारत और हिमालय में पाई जाती है। भारत में यह अरूणाचल प्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरला और पंजाब राज्यों में पाया जाता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-35°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    20-35°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    20-35°C
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    Rainfall

    600-1000mm
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    Sowing Temperature

    30-35°C
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    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    20-35°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

मिट्टी

यह मिट्टी की कई किस्मों जैसे अच्छे जल निकास वाली लाल दोमट से चिकनी मिट्टी, काली मिट्टी से लैटेराइट मिट्टी में उगाई जाती है। यह चट्टानी मिट्टी और हल्की मिट्टी में भी उगाई जा सकती है मिट्टी की गहराई 20-30 सैं.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यह रेतली दोमट से दरमियानी काली मिट्टी जो अच्छे जल निकास वाली हो, में अच्छे परिणाम देती है। पौधे की वृद्धि के लिए मिट्टी pH 6-8 होना चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Satavari (Asparagus racemosus): यह किस्म अफ्रीका, चीन, श्री लंका, भारत और हिमालय में पायी जाती है। पौधे की ऊंचाई 1-3 मीटर होती है। फूल 3 सैं.मी. लंबे होते और इसके फूल का बाहरी भाग 3 मि.मी. लंबा होता है।

Satavari (Asparagus sarmentosa Linn.) : यह किस्म सूदरलैंड, बुरशैल और दक्षिण अफ्रीका में पायी जाती है। इस पौधे की ऊंचाई 2-4 मीटर लंबी होती है और फूल का बाहरी भाग 1 इंच लंबा होता है।

ज़मीन की तैयारी

शतावरी की खेती के लिए, अच्छे जल निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए, ज़मीन की अच्छे से जोताई करें, और 15 सैं.मी. की गहराई में गड्ढा खोदें। रोपाई तैयार बैडों पर की जाती है।

बिजाई

बिजाई का समय
पौधों की रोपाई जून-जुलाई के महीने में की जाती है।

फासला

इसके विकास के अनुसार 4.5x 1.2 मीटर फासले का प्रयोग करें और 20 सैं.मी. गहराई में गड्ढा खोदें।

बीज की गहराई
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बिजाई का ढंग
जब पौधा 45 सैं.मी. का हो जाए, तब खेत में रोपाई की जाती है।

 

बीज

बीज की मात्रा
अधिक पैदावार के लिए, 400-600 ग्राम बीजों का प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए, बिजाई से पहले बीजों को गाय के मूत्र में 24 घंटे के लिए डाल कर उपचार करें। उपचार के बाद बीज नर्सरी बैड में बोये जाते हैं।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बिजाई से पहले मिट्टी का रासायनिक उपचार किया जाता है। अप्रैल के महीने में बीज बोये जाते हैं। शतावरी के बीजों को 30-40 सैं.मी. की चौड़ाई वाले और आवश्यक लंबाई वाले बैडों पर बोया जाता है। बिजाई के बाद बैडों को नमी के लिए पतले कपड़े से ढक दिया जाता है।  8-10 दिनों में पौधों का अंकुरण शुरू हो जाता है।45 सैं.मी. ऊंचाई के होने पर पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। पौधों की रोपाई 60 x 60 सैं.मी. की मेड़ों पर की जाती है।

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
52 200 66

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
24 32 40

खेत की तैयारी के समय, 80 क्विंटल प्रति एकड़ गली हुई रूड़ी की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 24 किलो (यूरिया 52 किलो), फासफोरस 32 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 52 किलो), और पोटाश 40 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 66 किलो) प्रति एकड़ में डालें।

मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से पौधे को बचाने के लिए जैविक कीट नाशी जैसे धतूरा, चित्रकमूल और गाय के मूत्र का प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण

फसल के विकास के समय लगातार गोडाई की आवश्यकता होती है। खेत को नदीन मुक्त बनाने के लिए 6-8 हाथ से गोडाई की आवश्यकता होती है।

सिंचाई

पौधों को खेत में रोपण करने के बाद पहली सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए। इस फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती। इसलिए शुरूआत में 4-6 दिनों के फासले पर सिंचाई कर दें और फिर कुछ समय के बाद सप्ताह के फासले पर सिंचाई करें। पुटाई से पहले सिंचाई जरूर करनी चाहिए ताकि गड्ढों मे से जड़ों को आसानी से निकाला जा सके।

पौधे की देखभाल

कुंगी
  • बीमारियां और रोकथाम

कुंगी: यह बीमारी प्यूचीनिया एस्पारगी के कारण होती है। इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पत्ते सूख जाते हैं।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए बॉर्डीऑक्स घोल को 1% डालें।

फसल की कटाई

रोपाई के बाद 20-30 महीनों में पौधे की जड़ें परिपक्व हो जाती हैं। मिट्टी और जलवायु के आधार पर जड़ें 12-14 महीनों में पक जाती हैं। मार्च-मई के महीने में जब बीज पक जाये, तब पुटाई की जाती है। पुटाई कसी की सहायता से की जाती है। प्रक्रिया और दवाइयां बनाने के लिए अच्छे से पके बीजों की आवश्यकता होती है।

कटाई के बाद

पुटाई के बाद जड़ों को उबाल के इनका छिलका उतारा जाता है। छिल्का उतारने के बाद जड़ों को हवा में सुखाया जाता है। सूखी जड़ों का भंडारण और ज्यादा दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हवा रहित बैग में रखें। पकी जड़ों का प्रयोग विभिन्न उत्पाद जैसे पाउडर, गुलाम और घृतम बनाने के लिए किया जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare