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आम जानकारी

सफेद मूसली का वानस्पतिक नाम क्लोरोफाइटम बोरिविलेनम है| इसकी जड़ें कई तरह की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग की जाती है| यह एक वार्षिक जड़ी-बूटी है, जिसकी औसतन ऊंचाई 1-1.5 फुट होती है| इसके पत्तें सितारे के आकार, 2  सैं.मी. तिरछे और पीले-हरे रंग के होते है| इसके फल हरे से रंग के और मुख्य रूप से जुलाई-दिसंबर में लगते है| इसकी जड़ें गुच्छे में और काले बीजों वाली होती है| भारत में उष्ण और उप-उष्ण अफ्रीका, असाम, महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश और कर्नाटक सफेद मूसली उगाने वाले क्षेत्र है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    50-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    50-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    50-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Rainfall

    50-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

मिट्टी

इसकी खेती कई तरह की मिट्टी जैसे कि दोमट से रेतली और बढ़िया निकास वाली में की जा सकती है| यह पहाड़ी ढलानों वाली या गीली मिट्टी को भी सहर सकती है| यह जैविक तत्वों से भरपूर लाल मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है| जल-जमाव वाली स्थिति में इसकी खेती ना करें| इस लिए मिट्टी का pH  6.5-8.5 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

RC-2, RC-16, RC-36, RC-20, RC-23, RC-37 and CT-1: यह किस्में आर.ऐ.यू उदयपुर द्वारा संभाली और इक्क्ठी की गई है| इनकी पैदावार बढ़िया और सैपोनिन की मात्रा ज्यादा होती है|

MDB-13 and MDB-14: यह किस्म माँ दांतेश्वरी हर्बल रिसर्च सैंटर चिकालपुती द्वारा तैयार की गई है| यह किस्म बढ़िया पैदावार वाली, बीमारियां/फंगस की रोधक, सैपोनिन और नाइट्रोजन के साथ भरपूर होती है|

Jawahar Safed Musli 405 and Rajvijay Safed Musli 414: यह किस्म राजमाता विज्याराजे स्किनदिया कृषि विश्व-विद्द्यालय मंडसौर, मध्य प्रदेश द्वारा तैयार की गई है|

ज़मीन की तैयारी

सफेद मूसली के लिए अच्छी तरह से तैयार बैडों की जरूरत होती है| बिजाई से पहले ज़मीन की तैयारी के लिए एक बार 2-3 गहरी जोताई करें | ज़मीन की तैयारी आम-तौर पर अप्रैल-मई के महीने में की जाती है|

बिजाई

बिजाई का समय
सफेद मूसली की बिजाई के लिए उचित समय जून से अगस्त तक का होता है|

फासला
पौधे के विकास के अनुसार पौधों के बीच 10x12 इंच का फासला रखें|

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई नए पौधे मुख्य खेत में रोपाई करके की जाती है|

बीज

बीज की मात्रा
इसके प्रजनन के लिए आम-तौर पर गांठों या बीजों का प्रयोग करें| इसके उचित विकास के लिए 450 किलो बीजों का प्रयोग करें|

बीज का उपचार
फसल को कीटों और बिमारियों से बचाने के लिए फंगसनाशी और विकास वाले सहायको के साथ बीजों का उपचार करें| फसल को मिट्टी के बीच वाली बीमारीयों से बचाने के लिए हिउमीसील 5 सैं.मी. या डीथेन ऐम-45 को 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिला कर उपचार करें| रासायनिक उपचार के बाद बीजों को बिजाई के लिए प्रयोग करें|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

सफेद मूसली की बिजाई 1.2 मीटर चौड़े और आवश्यकता अनुसार लम्बे बैडों पर करें| नए पौधे तैयार करने वाले बैड अच्छी तरह से तैयार करें| इसकी बिजाई छिड़काव के द्वारा की जाती है| बिजाई के बाद बैडों को हल्की मिट्टी से ढक दें| बढ़िया विकास के लिए मलचिंग भी की जा सकती है|
बीज 5-6 दिनों में अंकुरण होना शुरू होना कर देते है और पौधे बिजाई के लिए तैयार हो जाते है| रोपाई से 24 घंटे पहले बैडों को पानी दें, ताकि नए पौधों को आसानी के साथ उखाड़ा जा सके|

खाद

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
- 100 50

 

खेत की तैयारी समय, रूड़ी की खाद 80-100 क्विंटल प्रति एकड़ गोबर डालें और मिट्टी में मिलाये| जैविक खादें जैसे कि रूड़ी की खाद 8-10 टन प्रति एकड़ डालर मिट्टी में मिलाये| सिंगल सुपर फासफेट 100 किलो, मिउरेट ऑफ़ पोटाश 50 किलो और हड्डियों का चूरा 100 किलो प्रति एकड़ डालें|

बिजाई से पहले हरी खाद 60 किलो प्रति एकड़ डालें| अगर मिट्टी चिकनी हो तो मयसमील 1.5 टन प्रति एकड़ डालें|

खरपतवार नियंत्रण

3 महीने तक कसी की सहायता के साथ गोड़ाई करें और मेंड़ के साथ मिट्टी लगाएं| अंकुरण के बाद 2-3 बार करें| अगर पौधे के विकास में कोई कमी दिखाई दें, तो तुरंत आवश्यक स्प्रे करें|

सिंचाई

बढ़िया विकास के लिए 20-22 दिनों के फासले पर सिंचाई करें| बारिश की ऋतु में, सिंचाई की जरूरत नहीं होती, पर बारिश ना होने पर सिंचाई सही फासले पर करें| सिंचाई जलवायु और मिट्टी पर भी निर्भर करती है|

पौधे की देखभाल

  • कीट और रोकथाम

सफेद सुंडी: यह सुंडीयांजड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाती है|
इसकी रोकथाम के लिए एल्ड्रिन 10 किलो प्रति एकड़ डालें|

पत्तों का मुरझाना: यह एक पैथोजैनिक बीमारी है, जिससे पत्ते पीले पड़ने लगते है, फिर सूखने शुरू हो जाते है और अंत में पूरी तरह से नष्ट हो जाती है|
इसकी रोकथाम के लिए बविस्टिन का घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिला कर 25 दिनों के फासले पर डालें|

  • बीमारीयां और रोकथाम

लाल धब्बे: इस बीमारी से पत्तों पर लाल, संतरी और पीले धब्बे पड़ जाते है|
इसकी रोकथाम के लिए बविस्टिन का घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिला कर 25 दिनों के फासले पर डालें|

पत्ते खाने वाली सुंडी: यह सुंडियां ताज़े और सेहतमंद पत्तों को खाती है|
इसकी रोकथाम के लिए मैटासिड 0.2% डालें|

फसल की कटाई

इस फसल के पौधे बिजाई से लगभग 90 दिन के बाद फल देना शुरू कर देती है| इसकी कटाई सितम्बर-अक्तूबर महीने में की जाती है| कटाई पत्ते पीले पड़ने और सूखने पर की जाती है|

पत्ते झड़ने के बाद:  इसके गांठों की तुड़ाई गहरे काले रंग के हो जाने पर की जाती है| पकने के बाद गांठें ज्यादा से ज्यादा पैदावार देती है  और गांठों की तुड़ाई मार्च-अप्रैल के महीने में की जाती है|

कटाई के बाद

कटाई के बाद , गांठों को सुखाया जाता है| सफेद गांठों को उठाकर इनको 4-7 दिनों के लिए हवा में सुखाया जाता है| फिर इसका छिलका उतार कर हवा-रहित पैकटों में, दूरी वाले स्थानों पर लेजाने और खराब होने के खतरा कम करने के लिए पैक कर लिया जाता है| फिर इनसे सफेद मूसली पाउडर और टॉनिक जैसे उत्पाद तैयार किये जाते हैं|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare