मैस्टा उत्पादन

आम जानकारी

मैस्टा वार्षिक उगने वाली कपास और पटसन के बाद एक महत्वपूर्ण व्यापारिक फसल है| इस फसल का मूल स्थान एफ्रो-ऐशीआयी देश है| इसका तना और छिलका रेशा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| हिबिसकस कैनाबिनस और हिबिसकस सबदारिफा नाम की दो प्रजातियों को आमतौर पर मैस्टा कहा जाता है| हिबिसकस सबदारिफा सूखे को सेहनेयोग्य किस्म है और  हिबिसकस कैनाबिनस 50-90 मि.मी. बारिश वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती है,क्योंकि यह जल्दी पकने वाली फसल है| यह फसल उगाने वाले मुख्य राज्य महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा,मेघालय,कर्नाटक और त्रिपुरा आदि है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20°C - 25°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 28°C
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    Harvesting Temperature

    20°C - 25°C
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    Temperature

    25°C - 35°C
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    Rainfall

    60-90 cm
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    Sowing Temperature

    25°C - 28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20°C - 25°C
  • Season

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    25°C - 35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20°C - 25°C

मिट्टी

मैस्टा की फसल अलग-अलग तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है| बढ़िया चिकनी मिट्टी में यह बढ़िया पैदावार देती है| तेज़ाबी और जल जमाव वाली ज़मीन मैस्टा की खेती के लिए उचित नहीं है| इसके लिए मिट्टी का pH 4.5-7.8 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

ज़मीन की तैयारी

मानसून आने से पहले खेत की अच्छी तरह से जोताई करके मिट्टी को भुरभुरा कर लें| जोताई के बाद मिट्टी को नदीनों और अन्य बचे-खुचे पदार्थो से मुक्त करें| फिर ज़मीन को अच्छी तरह से समतल करें|खेत की तैयारी के समय मिट्टी में 2-4 टन गली-सड़ी रूड़ी की खाद डालें|

बिजाई

बीज

बीज का उपचार
बिजाई से पहले मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति किलो से बीज का उपचार करें|

बीज की मात्रा
हिबिसकस सबदारिफा के लिए 6 किलो प्रति एकड़ और हिबिसकस कैनाबिनस के लिए 5 किलो प्रति एकड़ बीज का प्रयोग करें|

खाद

खरपतवार नियंत्रण

खेत को साफ और नदीन-मुक्त करने के लिए गोड़ाई करें और पौधों को विरला करें| पहली गोड़ाई बिजाई से 21 दिन बाद और दूसरी गोड़ाई बिजाई से 35 दिन बाद करें और साथ-साथ कमज़ोर पौधों को बाहर निकाल दें| नदीनों को रायासनिक ढंग से रोकने के लिए बिजाई से 2-3 दिन पहले फ्लूक्लोरालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ डालें या बिउटाक्लोर 1200 मि.ली. प्रति एकड़  या पेंडीमैथालीन 1-1.25 लीटर प्रति एकड़ को बिजाई के तुरंत बाद डालें|

सिंचाई

सिंचित फसल होने के कारण इसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| अगर जरूरत हो तो मौसम और मिट्टी की किस्म के अनुसार सिंचाई करें|

पौधे की देखभाल

हरी सुंडी

हरी सुंडी: अगर इसका नुकसान दिखाई दे तो थाइओडीकार्ब 1 ग्राम या इंडोकसाकार्ब 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

मिली बग

मिली बग: जब नुकसान कम हो तो इसकी प्रभावशाली रोकथाम के लिए नीम का तेल 5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें| अगर नुकसान ज्यादा हो तो प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. या ट्राईज़ोफोस 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

तेला

तेला: इसकी रोकथाम के लिए ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. या थाइओमैथोकसम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

पत्तों का झुलस रोग

पत्तों का झुलस रोग: यदि इसका हमला दिखाई दे तो, 3 ग्राम मैंकोजेब या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें| जरूरत पड़ने पर 7 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें|

नाड़ियों का पीला चितकबरा रोग

नाड़ियों का पीला चितकबरा रोग: यह रोह सफेद मक्खी से फैलता है| सफेद मक्खी के हमले की जांच करें| बिजाई से 50 दिन बाद थाइओमैथोकसम 0.1 ग्राम या ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

फसल की कटाई

फसल की कटाई समय पर करें, क्योंकि कटाई जल्दी करने से रेशे की पैदावार कम हो जाती  है और देरी से कटाई करने पर रेशे की गुणवत्ता खराब हो जाती है| 50% फूलों के खिलने पर कटाई का उचित समय होता है| कटाई के समय फसल को ज़मीन के नज़दीक से काटें|

कटाई के बाद

कटाई के बाद फसल को तने के आकार के अनुसार छांट लें| फिर तने को बांध कर खेत में पत्ते झड़ने के लिए रख दें|

रेफरेन्स