ग्वार की खेती

आम जानकारी

ग्वार ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने में सहायक होने वाली एक महत्तवपूर्ण फलीदार फसल है। इसे पशुओं के चारे के अलावा मनुष्य की खुराक के तौर पर प्रयोग होने के लिए भी बोया जाता है। सब्जी के अलावा इसका प्रयोग हरी खाद में भी किया जाता है। ग्वार की बिजाई शुष्क और कम पानी वाली इलाकों में भी की जा सकती है। इस पर सूखे का बहुत प्रभाव नहीं पड़ता। ग्वाररे की फलियों में निकलने वाले चिपचिपे पदार्थ का प्रयोग उदयोगिक मंतवों के लिए किया जाता है। इससे तैयार होते गोंद का प्रयोग तेल निकालने वाले उदयोगों, खाना बनाने और भोजन पदार्थों के अलावा छपाई, कपड़ा और कागज़ उदयोगों में भी किया जाता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    28-32 degree
  • Season

    Rainfall

    100-110mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-30 degree
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35 degree
  • Season

    Temperature

    28-32 degree
  • Season

    Rainfall

    100-110mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-30 degree
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35 degree
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    Temperature

    28-32 degree
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    100-110mm
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    Sowing Temperature

    28-30 degree
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    Harvesting Temperature

    30-35 degree
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    Temperature

    28-32 degree
  • Season

    Rainfall

    100-110mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-30 degree
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35 degree

मिट्टी

इसे हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Guara 80:- इस किस्म की खेती पूरे राज्य में की जा सकती है। यह पत्तों के ऊपर धब्बे पड़ने और डंठल टूटने की बीमारी से रहित होती है। इसके बीज गोल चपटे आकार के और सलेटी रंग के होते हैं। यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसकी प्रति एकड़ पैदावार 8 क्विंटल तक हो जाती है।
 
HG 365:- यह जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। यह 105 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है।
 
Ageta Guara 112:- इसके पौधे की ऊंचाई 1 से 1.5 मीटर तक होती है। इसकी औसतन पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
HG 563:- यह जल्दी पकने वाली और भारत में हर उपजाऊ क्षेत्रों में लगाई जाती है। इसकी पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RGC 936:- यह जल्दी पकने वाली किस्म है और भारत में हर उपजाऊ क्षेत्रों में लगाई जाती है। इसका औसतन पैदावार  8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
FS-277:- यह किस्म CCSHAU, हिसार द्वारा तैयार की गई है। यह सारे ज्वार उगाने वाले क्षेत्रों में लगाई जाती है।
 

ज़मीन की तैयारी

ग्वार की खेती के लिए एक समान आकार के बैडों की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक दो से तीन बार जोताई करें। उसके बाद तवियों से जोताई करने के बाद सुहागा फेरकर ज़मीन को समतल करें।
 

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई मध्य जुलाई से मध्य अगस्त में पूरी कर लें।
 
फासला
कतार से कतार में 30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 2-3 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन, पोरा और केरा विधि का प्रयोग करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 8-10 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीज से पहले बीजों का उपचार करना जरूरी है। इस तरह बीजों को मिट्टी से  होने वाली बीमारियों और कीटों से बचाया जा सकता है। बीजों को 10 मिनट के लिए 56  डिगरी से. तापमान वाले गर्म पानी में भिगोने के बाद कमरे के तापमान पर सुखाएं। इसके बाद 3 ग्राम थीरम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इस तरह बीज फंगस के हमले से बचा रहता है। इसके उपरांत बीजों को छांव में सुखा दें।
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
1. Ceresan 3gm
2. Thiram 3gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP
MURIATE OF POTASH ZINC
20 120 - #

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
9 19 -

 

बिजाई से पहले नाइट्रोजन 9 किलो (यूरिया 20 किलो ) और फासफोरस 19 किलो (एस एस पी 120 किलो) प्रति एकड़ में डालें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

फसल की शुरूआती वृद्धि के दौरान निराई और गोडाई प्रक्रिया द्वारा खेत को साफ रखें। रासायनिक तरीके से नदीनों की रोकथाम के लिए पैंडीमैथालीन 750 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 24 घंटों के अंदर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

सिंचाई

बारानी क्षेत्रों में इसे सिंचाई जरूरत नहीं पड़ती परंतु जरूरत पड़ने पर बारिश की आवृत्ति अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।

पौधे की देखभाल

तेला
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तेला : इसका हमला दिखाई देने पर 250-450 मि.ली. मैलाथियोन 50 ई.सी. को 100 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के फासले पर 2 से 3 बार छिड़काव करना चाहिए।
 
झुलस रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
झुलस रोग : इससे तने, शाखाओं, पत्तों और फलियों पर गहरे भूरे रंग के दानेदार धब्बे विकसित हो जाते हैं। गंभीर हमले से तना और फलियां सूख जाती हैं।
 
इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। इस बीमारी की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम 45 या कप्तान 260 ग्राम को 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के फासले पर दुबारा स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

चारे के रूप में प्रयोग करने के लिए बोयी गई फसल की कटाई फूल पड़ने के समय कर देनी चाहिए। हरी खाद के रूप में काश्त की फसल को फलियां पड़ने के समय ही खेत में जोत दें। फलियां, ग्वार की किस्म के अनुसार बिजाई से 60-90 दिनों के बाद पड़नी शुरू हो जाती हैं। हरी फलियों की तुड़ाई 10 से 12 दिनों के फासले पर करनी चाहिए। बीज तैयार करने के लिए काश्त की गई फसल की कटाई फलियां पकने के बाद करनी चाहिए। पक कर तैयार हुई फसल को द्राती की सहायता से काटकर कुछ दिनों के लिए धूप में सुखाने के लिए छोड़ देना चाहिए। इसके बाद दानों को गुहाई या थ्रैशर की सहायता से अलग कर  लेना चाहिए।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare