रागी फसल की खेती

आम जानकारी

इसको फिंगर बाजरा, अफ्रीकन रागी, लाल बाजरा आदि के नाम से भी जाना जाता है| यह सबसे पुरानी खाने वाली और पहली अनाज की फसल है, जो घरेलू स्तर पर प्रयोग की जाती है| इसका असली मूल स्थान इथिओपीआई उच्च ज़मीन है और यह भारत में लगभग 4000 साल पहले लायी गई थी| इसको शुष्क मौसम में उगाया जा सकता है| यह गंभीर सोखे को भी सहन कर सकती है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है| यह कम समय वाली फसल है और इसकी कटाई 65 दिनों में की जा सकती है| इसको बड़ी आसानी के साथ सारा साल उगाया जा सकता है| सारे बाजरे वाली फसलों में से यह सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है| बाकी अनाज और बाजरे वाली फसलों के मुकाबले इसमें प्रोटीन और खनिजों की मात्रा ज्यादा होती है| इसमें महत्वपूर्ण अमीनो तेज़ाब  भी पाया जाता है| इसमें कैल्शियम(344 मि.ग्रा.) और पोटाशियम(408 मि.ग्रा.) की भरपूर मात्रा होती है| कम हीमोग्लोबिन वाले व्यक्ति  के लिए यह बहुत लाभदायक है, क्योंकि इसमें लोह तत्वों की काफी मात्रा होती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-34°C
  • Season

    Rainfall

    100 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    20-34°C
  • Season

    Rainfall

    100 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    20-34°C
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    Rainfall

    100 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    20-34°C
  • Season

    Rainfall

    100 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C

मिट्टी

इसको बहुत किस्म की मिट्टी में उगाया जा सकता है, जैसे कि बढ़िया दोमट से जैविक तत्वों वाली कम उपजाऊ पहाड़ी मिट्टी आदि| इसको बढ़िया निकास वाली काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, क्योंकि यह सोखित पानी को काफी हद तक सहन कर सकती है| रागी के लिए pH 4.5-8 वाली मिट्टी सबसे बढ़िया मानी जाती है| पानी सोखने वाली मिट्टी को इसकी खेती के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

VL Mandua 101, VL Mandua 204, VL 124, VL 149 , VL 146, VL Mandua 315 (maturity in 105-115 days) और  VL Mandua 324 (maturity in 105-135 days). और पहाड़ी इलाकों के लिए KM-65, PES 176 आदि|

PES 400: यह 98-102 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह जल्दी पकने वाली किस्म है और भुरड़ रोग की प्रतिरोधक है|

PES 176: यह 102-105 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है| इसके बीज भूरे रंग के होते है और भुरड़ रोग की प्रतिरोधक है|

KM-65: यह 98-102 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ है|

VL 315: यह 105-115 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह गर्दन तोड़ और भुरड़ रोग को सहन कर सकती है|

VL 146: यह 95-100 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 9-10 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह भुरड़ रोग की प्रतिरोधक है|

VL 149: यह 98-102 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह बहुत अनुकूल, अगेती और भुरड़ रोग की प्रतिरोधक किस्म है|

VL 124: यह 95-100 दिनों में तैयार हो जाती है|  इसकी औसतन पैदावार 10  क्विंटल प्रति एकड़ है| यह बीजों और चारे के लिए बढ़िया किस्म है|

और राज्यों की किस्में

VL Mandua- 352: यह महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्यों को छोड़ कर बाकी राज्यों में उगाई जा सकती है| यह 95-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 8-10 कुइंटल प्रति एकड़ है|

VR 708: यह सूखे को सहनयोग किस्म है| यह सारे प्रांतो में उगाई जा सकती है|
Akshya
PES 110
PR 202
JNR 852
MR 374

ज़मीन की तैयारी

1) फसली- चक्र: रागी की फसल के लिए फसली- चक्र बहुत ही मह्त्वपूर्ण विधि है| इसके साथ ज्यादा पैदावार मिलती है और ज्यादा रासायनिक खादें डालने की भी जरूरत नहीं होती| इसके साथ मिट्टी में उपजाऊपन भी बना रहता है| उत्तरी भारत में रागी की फसल के साथ चने, सरसों, तम्बाकू, जों, अलसी आदि फसलों को फसली- चक्र के लिए अपनाया जाता है|

2) अंतर्-फसली: उत्तरांचल में, रागी और सोयाबीन को भर के आधार पर 90:100% पर मिलाया जाता है और फिर बिजाई के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है| उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में रागी+सोयाबीन खरीफ में और जवी रबी में उत्तम और लाहेवन्द फसल कड़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है|

सेजु फसलों में, 2-3  बार गहरी जोताई करें ताकि नमी को संभाला जा सकें| बिजाई से पहले खेत की दोबारा जोताई करें और समतल बैड तैयार करने के लिए ज्यादा डंडों वाली कसी का प्रयोग जरूरी है| बिजाई से पहले ज़मीन को हल्का नर्म करें, इसके साथ मिट्टी में नमी की मात्रा को संभाला जा सकता है| उत्तरांचल में जोताई करना बहुत मुश्किल है, जिसके कारण मिट्टी उखड़ना और उथल-पुथल करना, ज्यादा पुराने नदीनों को निकालना, ज़मीन नर्म करना, मिट्टी की ढलानें बनाना आदि में परेशानी आती है, जिनकी मदद के साथ जरूरत ना होने वाले पानी निकाला जा सकता है|

बिजाई

बिजाई का समय
ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में, बढ़िया निकास वाली मिटटी में इसको पनीरी लगा कर उगाया जा सकता है| इसको सेजु और सिंचित स्थितिओं में उगाया जा सकता है| इसको देश के अलग-अलग हिस्सों में सारी फसलों की ऋतु में उगाया जा सकता है| 90% से ज्यादा सेजु क्षेत्रों में यह खरीफ ऋतु में उगाई जाती है| उत्तरांचल में यह आमतौर पर जून में उगाई जाती है|

फासला
जरूरत से ज्यादा या कम घने पौधे लगाने से पैदावार कम हो जाती है| उचित घनत्व के लिए, 25x15 सैं.मी. का फासला (25 सैं.मी. पंक्ति के बीच और 15 सैं.मी. पौधों के बीच फासला) रखें|

बीज की गहराई
बीज को 3-4 सैं.मी. से कम गहराई पर ना बोयें|

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई हाथों से
छींटे द्वारा
पंक्तिओं में
मशीन से
पनीरी लगा कर आदि ढंगों के साथ की जा सकती है|

बीज

बीज की मात्रा
ज्यादा पैदावार लेने के लिए पौधों की उचित मात्रा 1.6-2 लाख है और मुख्य खेत के लिए बीज की मात्रा 4 किलो प्रति एकड़ है| पौधों की उचित मात्रा के लिए खाली जगह भर दें और पौधों में सामान्य फासला रखें| बिजाई से 20-27 दिनों बाद, जब पौधे खेत में लगा दिए जाते है, तब पौधों में सामान्य फासला रखने के लिए अधिक पनीरी निकालनी जरूरी होती हैं| ऐसे ही जहां भी पौधों की मात्रा बराबर नहीं है, तब 20-25 दिन पुराने पौधों को खाली जगह भरने के लिए प्रयोग किया जा सकता है|

बीज का उपचार
बीजों को 6 घंटे के लिए पानी में (एक लीटर पानी में प्रति लीटर बीज) भिगोएं| फिर पानी निकाल दें और बीजों को दो दिन के लिए एक कपडे में अच्छी तरह से बांध दें| दो दिन के बाद बीजों को कपड़े से निकल लें, इन पर अंकुरण के चिन्ह नज़र आयेंगे| इनको दो दिन के लिए छाव में सुखाएं| इन बीजों को बिजाई के लिए प्रयोग करें| एजोस्पाइरिलम ब्रेसीलेन्स(नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरियम) और एस्पर्जिलस एवामोरी (फास्फेट घुलनशील फंगस) 25 ग्राम के साथ प्रति किलो बीजों का उपचार लाभदायक होता है| अगर बीजों का रसायनों के साथ उपचार किया जाये तो, पहले रासायनिक उपचार को पूरा करें और फिर जैविक रासायनिक के साथ उपचार करें|

इनमें से किसी एक फंगसनाशी/कीटनाशी का प्रयोग करें|

फंगसनाशी/कीटनाशी का नाम मात्रा(प्रति किलोग्राम बीज)
Thiram 4 gm
Captan 4 gm
Carbendazim 2 gm

खेत में पौध रोपण

उचित नमी वाले क्षेत्रों में पनीरी वाला ढंग अपनाया जा सकता है| यह सीधे ढंग से की गई बिजाई के ज्यादा पैदावार देता है| भारी बारिश के समय पनीरी वाली फसल पानी को जमा नहीं होने देती है|

पनीरी लगाने का ढंग: बीजों को तैयार की गई नर्सरी में मई-जून के महीने में लगाएं| एक एकड़ में पनीरी लगाने के लिए 2 किलो बीजों की जरूरत होती है| पनीरी के लिए 3-4 हफ्ते पुराने पौधे प्रयोग करें| पौधों को उखाड़ने से पहले, नर्सरी को पानी लगाएं| 2 पैक्ट एजोस्पाइरिलम 300 ग्राम प्रति एकड़ को 40 लीटर पानी में मिला कर घोल तैयार करें और नये पौधों को जड़ वाले हिस्से से 15-30 मिन्ट के लिए भिगोएं और फिर मुख्य खेत में बीज दें| दो पौधे प्रति बैड पर 25x8 या 25x10 सैं.मी. के फासले पर और 2-3 सैं.मी. की गहराई पर बीजों| पनीरी लगाने के 3 दिन बाद खेत की सिंचाई करें| समय के अनुसार बारिश ना होने पर खेत को नियमित रूप से पानी लगाएं, जब तक पौधे पूरी तरह से जम नहीं जाते|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH ZINC
52 80 14 #

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
25 12 12

 

बिजाई से एक महीना पहले 5-10 टन रूड़ी की खाद डालें| रागी की फसल खादें डालने के साथ, खास रूप से नाइट्रोजन और फासफोरस के साथ उत्तेजित होती है| मिट्टी में आवश्यक खादों की कमी को जानने के लिए मिट्टी का टैस्ट करें| अगर मिट्टी का टैस्ट उपलब्ध ना हो तो,  25:12:8 किलो प्रति एकड़ में डालें| फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय डालें| बाकी की बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा दो से तीन हिस्सों में (बिजाई से 30 और 50 दिन बाद) मिट्टी की नमी के अनुसार डालें|

खरपतवार नियंत्रण

शुरुआती समय में बढ़िया पैदावार की प्राप्ति के लिए नदीनों की रोकथाम करना बहुत जरूरी है| पंक्तियों में बोयी फसल को 2-3 गोड़ाईयों और एक हाथों द्वारा गोड़ाई की आवश्यकता होती है|

नदीनों की प्रभावशाली रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण से पहले नदीन-नाशक जैसे कि ऑक्सीफ्लूरोफैन 1.25 किलो या आईसोप्रोटिउरोन 400 ग्राम प्रति एकड़ कि स्प्रे करें| नदीनों के अंकुरण के बाद  2-4 डी सोडियम नमक 250 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे बिजाई से लगभग 20-25 दिन बाद करें|

सिंचाई

जैसे कि रागी की फसल बारिश की ऋतु की फसल है, इसलिए इसको सिंचाई की जरूरत नहीं होती है| पर जोताई  और फूल निकलने के समय,  अगर बारिश लम्बे समय तक ना हो तो पौधे के बढ़िया विकास के लिए और पैदावार के लिए सिंचाई जरूरी है| सिंचाई और निकास के लिए मेंड़ और खालियां तैयार करें| यह फसल पानी के जमा होने को सहन कर सकती है,  इस लिए जरूरत ना होने वाले पानी को निकालने के लिए पूरी सुरक्षा रखें|

 

सिंचाई की संख्या सिंचाई का फासला
पहली सिंचाई बिजाई से तुरंत बाद
दूसरी सिंचाई    बिजाई से 3 दिन बाद
तीसरी सिंचाई    बिजाई से 7 दिन बाद
चौथी सिंचाई बिजाई से 12 दिन बाद
पांचवी सिंचाई बिजाई से 18 दिन बाद

पौधे की देखभाल

ਕੀੜੇ-ਮਕੌੜੇ ਤੇ ਰੋਕਥਾਮ
  • कीट और रोकथाम

सैनिक और कुतरा सुंडी: यह फसल के शुरू के समय पर हमला करती है| यह सुंडी शुरू के समय में पौधे के आधार को काट देती है| यह रात को हमला करती है और दिन के समय पत्थरों के निचली ओर या दरारों की निचली ओर छिप जाती है| यह सुंडी बार बार बनती रहती है|

रोकथाम:  कुतरा सुंडी के अंडों की रोकथाम के लिए 3 हफ्ते लगातार ट्राइकोग्रामा पैरासिटोइड हफ्ते में एक बार डालें| जब इसके लक्षण दिखाई दें तो मैलाथियान 5% 10 किलो प्रति एकड़ या कुंल्फॉस 1.5% 250 मि.ली. प्रति एकड़ का बुरकाव करें| कतई के बाद नदीनों और खूंटियो को हटा दें|

चेपा

चेपा:  यह फसल पर किसी भी समय हमला कर सकते है| यह पत्तों के बीच और बालियों पर पाये जाते है| चेपे के हमले के समय पत्ते पीले होने लग जाते है| इसके छोटे कीट गोलाकार और लाल-भूरे रंग के होते है| बढ़े कीट पीले होते है और इनकी टांगे हरे रंग की होती है|

रोकथाम:  अगर इसका हमला दिखाई दें तो, मिथाइल डेमेटन 25 ई सी 80 मि.ली. या डाइमेथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

तने का सफेद केंचुयां

तने का सफेद केंचुयां: इसका लारवा तने के निचले हिस्से में पाया जाता है और नुककसन करता है| यह जड़ों को खाते है और गंभीर हमले से बीच वाली शाखाएं सूख जाती है और पीली पड़ जाती है| इसका लारवा सफेद दूधिया रंग का होता है और इसका सिर पीला, जबकि बढ़े कीटों का रंग गहरा भूरा होता है और पंख सफेद रंग के होते है|

रोकथाम: अगर इसका हमला दिखाई दें तो, कार्बरील 50 डब्लयू पी 1 किलो प्रति एकड़ या डाईमैथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

बालियों का टिड्डा

बालियों का टिड्डा:  यह दूध के दानों के तैयार होने पर हमला करते है| यह गुच्छों को खाते है और दानों को अंदर से खाकर उस पर जला डाल देते है| इसके संतरी बालों वाले अंडे चमकीले सफेद रंग के होते है और गुच्छों में मिलते है| इसकी सुंडी भूरे रंग की होती है, जिसका सिर पीला रंग का और बालों वाली होती है| इसके कीट भूरे रंग के होते है, जिसके अगले पंख रेशेदार और पिछले पंख पीले होते है|

रोकथाम:  इनको आकर्षित करने के लिए दिन के समय रोशनी वाले यंत्रों का प्रयोग करें| फूल निकलने के समय फीरोमोन कार्ड 5 प्रति एकड़ में लगाएं| गंभीर हमले की स्थिति में मैलाथियान 400 मि.ली. या कार्बरील 600 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

घास के टिड्डे

घास के टिड्डे:  यह पत्ते खाते है| छोटे कीट सफेद रंग के होते है, जिसमें धारियां होती है और बढ़े कीट हरे-भूरे रंग के होते है, जिनमे धारियां होती है|

रोकथाम:
कटाई के बाद पौधों के बचे-खुचे को निकाल दें और अच्छी तरह से सफाई करें| गर्मियों में कटाई के बाद जोताई करें, ताकि मिट्टी के अंदरूनी अंडे धूप के साथ नष्ट हो सकें| शुष्क और नमी वाली स्थितियों में इसकी रोकथाम के लिए एंटोमॉफ़्थोरा गरिल्ली डालें| अगर हमला दिखाई दें तो कार्बरील 50 डब्लयू पी 600 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें|

पत्ता लपेट सुंडी

पत्ता लपेट सुंडी: इसके साथ पत्ते लम्बाई के आकर में मुड़ जाते है पर लारवा इनके अंदर रहता है| यह पत्तों को नुकसान करती है, जिस कारण इस पर सफेद धब्बे दिखाई देते है| मादा सुंडी पत्ते के दोनों तरफ 200 अंडे देती है| अंडो का रंफ सफेद-पीला होता है| लारवा हरे-पीले रंग का होता है, जिसका सिर भूरे या काले रंग का होता है| इसकी भुंडी गहरे भूरे रंग की होती है और मुड़े हुए पत्ते के अंदर पायी जाती है, जबकि बढ़े कीट सफेद-पीले या सुनहरी-पीले रंग के होते है|

रोकथाम: इस फसल के साथ अनाज वाली फसले ना उगाएं| खेत और आस-पास के इलाकों को साफ़ रखें| बिजाई के समय फासला कम ना रखे| नुकसान हुए पत्तों को इक्कठा करें और खेत को दूर ले जाकर नष्ट कर दें| इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपारिफोस 2.5 मि.ली. कुंल्फॉस 2.5 मि.ली. या ऐसेफेट 1 ग्राम या कार्बरील 1 ग्राम या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें|

भुरड़ रोग

भुरड़ रोग: गंभीर हमले के साथ पौधा सड़ा हुआ दिखाई देता है और फसल में गर्दन तोड़ भी देखा जा सकता है| यह ज्यादातर खरीफ़ की ऋतु में हमला करते है| अगर हमला नर्सरी में या बालियां बनने के समय हो तो पैदावार में बहुत कमी आती है|

रोकथाम: प्रतिरोधक किस्मे उगाएं| बिजाई से पहले फंगसनाशी जैसे कि कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करें| अगर इसके लक्षण दिखाई दें तो किसी एक फंगसनाशी कि स्प्रे करें, जैसे कि  कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम प्रति एकड़| दूसरी और तीसरी स्प्रे फूल निकलने के समय 15 दिनों के फासले पर गर्दन या पत्तों पर हमला दिखाई देने पर करें| 50% बालियां बनने पर पत्तों पर ऑरियोफंगिन घोल 100  ppm और बाद में दूसरी स्प्रे 10 दिन के बाद मैंकोजेब 400 ग्राम या सिओडोमोनस फ्लूरोसेंस 0.2% की स्प्रे करें|

चित्तकबरा रोग

चित्तकबरा रोग: इसके साथ शुरू में नाली वाले पत्तों पर छोटे काले धब्बे लगभग 45 DAS के पाये जाते है| गंभीर हमले के समय सारा पौधा पीला दिखाई देता है| नुकसान हुए पौधे की अजरुरतमन्द शाखाएं निकाल आती है और पौधे को अनुपजाऊ कर देती है|

रोकथाम: अगर इसके लक्षण दिखाई दें तो नुकसान हुए पौधों को जड़ों से उखाड़ दें और दूर ले जाकर नष्ट कर दें| मिथाइल डेमेटन 25 ई सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें| जरूरत पड़ने पर दूसरी स्प्रे 20 दिनों के फासले पर करें|

फसल की कटाई

आमतौर पर फसल 120-135 दिनों में पक जाती है, पर इसका समय प्रयोग की जाने वाली किस्म पर निर्भर करता है| कटाई दो बार की जानी चाहिए, बालियों को दराती के साथ काट लें और पौधे के बाकी हिस्से को ज़मीन के साथ में से काट लें| बालियों का ढेर बनाकर धुप में 3-4 दिनों के लिए सुखाएं| अच्छी तरह सुखाने के बाद थ्रेशिंग करें| कुछ जगह पर पूरा पौधा बालियों समेत काट लिया जाता है और फिर धूप में 2-3 दिन सुखाने के बाद थ्रेशिंग कर ली जाती है|

कटाई के बाद

रागी का प्रयोग शराब के कच्चे माल, बच्चो के भोजन, दूध गहरा बनाने के लिए और दूध वाली बिवरेज़ बनाने के रूप में प्रयोग किया जाता है| देश के कुछ हिस्सों में उबालु ड्रिंक या बियर भी इसी से तैयार की जाती है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare