गन्ना फसल की जानकारी

आम जानकारी

गन्ना एक सदाबहार फसल है और बांस की जाति की फसल है। यह भारत की प्रमुख फसल है जो कि शक्कर, गुड़ और मिश्री बनाने के काम आती है। गन्ने की फसल का दो तिहाई हिस्सा शक्कर और गुड बनाने और एक तिहाई हिस्सा मिश्री बनाने के काम आता है। गन्ना शराब का सिरका बनाने के लिए कच्चा माल प्रदान करता है। गन्ना सबसे ज्यादा ब्राजील और बाद में भारत, चीन, थाईलैंड, पाक्स्तिान और मैक्सीको में उगाया जाता है। शक्कर बनाने के लिए भारत में सबसे ज्यादा हिस्सा महाराष्ट्र का जो कि 34 प्रतिशत है और दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश आता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    75-150cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    75-150cm
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    Sowing Temperature

    20-25°C
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    Harvesting Temperature

    20-30°C
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    20-30°C
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    Rainfall

    75-150cm
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    Sowing Temperature

    20-25°C
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    Harvesting Temperature

    20-30°C
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    20-30°C
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    75-150cm
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    20-25°C
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    Harvesting Temperature

    20-30°C

मिट्टी

अच्छे जल निकास वाली गहरी जमीन जिसमें पानी का स्तर 1.5-2 सैंमी. हो और पानी को बांध के रखने  वाली ज़मीन गन्ने की फसल के लिए लाभदायक है। यह फसल लवण और खारेपन को सहन कर लेती है। यदि मिट्टी का पी एच 5 से कम हो तो जमीन में कली डालें और यदि पी एच 9.5 से ज्यादा हो तो जमीन में जिप्सम डालें ।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

CoJ 85 - यह अगेती पकने वाली किस्म है जो रतुआ रोग और कोहरे को सहन कर लेती है। इसके पौधे का आकार खुला होने के कारण इसके गन्ने जल्दी गिरते हैं। इस लिए लाइनों के साथ- साथ मिट्टी चढ़ाना और पौधे को बांधना पड़ता है। इसकी औसत पैदावार 306 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
 
Co 118 - यह अगेती पकने वाली किस्म है इसके गन्ने दरमियाने मोटे और हरे पीले रंग के होते हैं। यह किस्म रतुआ रोग और कोहरे को सहने के योग्य है। उपजाऊ भूमि जहां पानी की सुविधा हो वहां इस किस्म की पैदावार ज्यादा प्राप्त की जाती है। इस किस्म की औसत पैदावार 320 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CoJ 64 - यह अगेती पकने वाली किस्म है इसका अच्छा जमाव होता है। यह किस्म मोढ़ी की फसल के लिए अच्छी है इसका गुड़ अच्छा बनता है परंतु यह किस्म रतुआ रोग को सहन नहीं कर सकती। इसकी औसत पैदावार 300 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CoH 119 -यह मध्य मौसम की किस्म है। इसके लंबे, मोटे हरे रंग के गन्ने होते हैं और विशिष्ट मौसम में होते हैं। यह किस्म रतुआ रोग और चोटी बेधक को सहनेयोग्य है। यह औसतन मोढ़ी की फसल है। इसकी औसतन पैदावार 340 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Co 238: यह मध्य मौसम की किस्म है। इसके लंबे, मोटे हरे रंग के गन्ने होते हैं और विशिष्ट मौसम में होते हैं। यह किस्म रतुआ रोग और चोटी बेधक को सहनेयोग्य है। यह औसतन मोढ़ी की फसल है। इसकी औसतन पैदावार 365 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CoJ 88 - इसके गन्ने लम्बे, दरमियाने मोटे और हरे रंग के होते हैं। यह किस्म रतुआ रोग को सहने योग्य है। इसके रस में 17-18 प्रतिशत मिठास होती है। इसका तना अच्छा होता है। इसके तने नहीं गिरते।
 
CoS 8436 - यह दरमियाने कद वाली किस्म है जिसके गन्ने ठोस, मोटे और हरे रंग के होते हैं। यह किस्म रतुआ रोग को सहने योग्य और ना गिरने वाली किस्म है। उपजाऊ भूमि में इसकी पैदावार अधिक प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म की पैदावार 307 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CoJ 89  - यह किस्म रतुआ रोग को सहने योग्य है इसका गन्ना गिरता नहीं है। इसकी पैदावार 326 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Co 1148 - इसके गन्ने ठोस और अच्छे जमाव वाले होते हैं। यह फोट की फसल के लिए भी प्रयोग किए जा सकते हैं। यह मध्यम कवालिटी का गुड़ बनाने के काम आती है। यह किस्म रतुआ रोग के प्रति सहनशील नहीं है। इसकी पैदावार 375 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CoH 110 - यह देरी से पकने वाली किस्म है।
 
Co 7717 - यह जल्दी पकने वाली और ज्यादा मीठे वाली किस्म है। यह रतुआ रोग को सहने योग्य है। इससे प्राप्त रस अच्छी किस्म का होता है और इसे लंबे समय के लिए संभाला जा सकता है।
 
CoH 128 - यह जल्दी पकने वाली किस्म है।

CoPb 93: यह किस्म रतुआ रोग और ठण्ड को सहने योग्य है। यह किस्म में नवम्बर के महीने में 16-17% सुक्रोस मात्रा और दिसम्बर के महीने में 18% सुक्रोस मात्रा होती है। इसकी औसतन पैदावार 335 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह अच्छी गुणवत्ता का गुड़ बनाने के काम आती है।

CoPb 94:
यह किस्म में नवम्बर के महीने में 16% सुक्रोस मात्रा और दिसम्बर के महीने में 19% सुक्रोस मात्रा होती है। इसकी औसतन पैदावार 400 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Cos 91230 - इसकी औसतन पैदावार 280 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Co Pant 90223 - इसकी औसतन पैदावार 350 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CoH 92201 - यह जल्दी पकने वाली किस्म है और इसकी औसतन पैदावार 300 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Cos 95255 - यह जल्दी पकने वाली किस्म है और इसकी औसतन पैदावार 295 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CoS 94270 - इसकी औसतन पैदावार 345 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CoH 119 - यह जल्दी पकने वाली किस्म है और इसकी औसतन पैदावार 345 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Co 9814 - यह जल्दी पकने वाली किस्म है और इसकी औसतन पैदावार 320 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 

ज़मीन की तैयारी

खेत की दो बार जोताई करें। पहली जोताई 20-25 सैं.मी. होनी चाहिए। कंकड़ों को मशीनी ढंग से अच्छी तरह तोड़कर समतल कर दें। 

बिजाई

बिजाई का समय
पंजाब में गन्ने को बीजने का समय सितंबर से अक्तूबर और फरवरी से मार्च तक का होता है। गन्ना आमतौर पर पकने के लिए एक साल का समय लेता है।
 
फासला
उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों  पंक्तियों का फासला 60-120 सैं.मी. होना चाहिए।
 
बीज की गहराई
गन्ने को 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें और इसे मिट्टी से ढक दें।
 
बिजाई का ढंग
A. बिजाई के लिए सुधरे ढंग जैसे कि गहरी खालियां, मेंड़ बनाकर,पंक्तियों में जोड़े बनाकर और गड्ढा खोदकर बिजाई करें।
 
1. खालियां और मेंड़ बनाकर सूखी बिजाई:-  ट्रैक्टर वाली मेंड़ बनाने वाली मशीन की मदद से मेंड़ और खालियां बनाएं और इन मेड़ और खालियों में बिजाई करें। मेड़ में 90 सैं.मी. का फासला होना चाहिए। गन्ने की गुलियों को मिट्टी में दबाएं और हल्की सिंचाई करें।
 
2. पंक्तियों के जोड़े बनाकर बिजाई:- खेत में 150 सैं.मी. के फासले पर खालियां बनाएं और उनमें 30-60-90 सैं.मी. के फासले पर बिजाई करें। इस तरीके से मेड़ वाली बिजाई से अधिक पैदावार मिलती है।
 
3. गड्ढा खोदकर बिजाई: - गड्ढे खोदने वाली मशीन से 60 सैं.मी.  व्यास के 30 सैं.मी. गहरे गड्ढे खोदें जिनमें 60 सैं.मी. का फासला हो। इससे गन्ना 2-3 बार उगाया जा सकता है और आम बिजाई से 20-25 प्रतिशत अधिक पैदावार आती है।
 
B. एक आंख वाले गन्नों की बिजाई :– सेहतमंद गुलियां चुनें और 75-90 सैं.मी. के अंतर पर खालियों में बिजाई करें। गुलियां एक आंख वाली होनी चाहिए। यदि गन्ने के ऊपरले भाग में छोटी डलियां चुनी गई हों तो बिजाई 6-9 सैं.मी. के अंतर पर करें। फसल के अच्छे उगने के लिए आंखों को ऊपर की ओर रखें और हल्की सिंचाई करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
अलग-अलग तजुर्बों से यह सिद्ध हुआ है कि 3 आंख वाली गुलियों का जमाव अधिक होता है जब कि एक आंख वाली गुली अच्छी नहीं जमती क्योंकि दोनों ओर काटने के कारण गुली में पानी की कमी हो जाती है और ज्यादा आंखों वाली गुलियां बीजने से भी अधिक जमाव नहीं मिलता।
 
अनुकूल मौसम ना मिलने के कारण उत्तर पश्चिम इलाकों में बीज का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। तीन आंखों वाली 20,000 गुलियां प्रति एकड़ प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीज 6-7 महीनों की फसल पर लगाएं जो कि कीड़ों और बीमारियों से रहित हो। बिमारी और कीड़े वाले गन्ने और आंखों को ना चुनें। बीज वाली फसल से बिजाई से एक दिन पहले काटें इससे फसल अच्छा जमाव देती है। गुलियों को कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में भिगो दें। रसायनों के बाद गुलियों को एज़ोस्पिरिलम के साथ उपचार करें। इससे गुलियों को एज़ोस्पिरिलम 800 ग्राम प्रति एकड़ पानी में बिजाई से पहले 15 मिनट के लिए रखें। 
 
मिट्टी का उपचार
मिट्टी के उपचार के लिए जीवाणु खाद और रूड़ी का प्रयोग करना चाहिए। इसलिए 5 किलो जीवाणु खाद को 10 लीटर पानी में घोलकर मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रित घोल को 80-100 किलो रूड़ी में मिलाके घोल तैयार कर लें। इस घोल को मेंड़ पर बीजे गन्ने की गुलियों पर छिड़कें। इसके बाद मेंड़ को मिट्टी से ढक दें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH ZINC
200 As per soil test As per soil test #

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
90 As per soil test As per soil test

 

फसल बीजने से पहले मिट्टी के अंदरूनी तत्वों को जांच करवानी आवश्यक है ताकि खादों की सही आवश्यकता को समझा जा सके। बिजाई से पहले 8 टन प्रति एकड़ रूड़ी की खाद मिलाएं या वर्मीकंपोस्ट + रैलीगोल्ड 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ या जीवाणु खाद 5-10 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग करें। बिजाई के समय 66 किलो यूरिया का प्रयोग प्रति एकड़ के हिसाब से करें। यूरिया की दूसरी किश्त 66 किलो प्रति एकड़ दूसरे पानी के बाद डालो और यूरिया की तीसरी किश्त 66 किलो प्रति एकड़ चौथे पानी के बाद डालें।
 
सर्दियों के मौसम में तापमान कम होने के कारण फसल तत्व ज्यादा लेती है जिस कारण पौधा पीला पड़ जाता है इसकी रोकथाम के लिए N:P:K  19:19:19 की स्प्रे 250 ग्राम 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के लिए प्रयोग करें। जिन इलाकों में पानी की कमी है वहां यूरिया+पोटाश का प्रयोग 2.5 किलोग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर करें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

गन्ने में नदीनों के कारण 12-72 प्रतिशत पैदावार का नुकसान होता है। बिजाई के 60-120 दिनों तक नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। इसलिए 3-4 महीने की फसल में नदीनों की रोकथाम करें। नीचे लिखे तरीकों से नदीनों को रोका जा सकता है।
 
1. हाथों से गोडाई करके :- गन्ना एक मेढ़ पर लगने वाली फसल है इसलिए नदीनों को गोडाई करके रोका जा सकता है इसके इलावा पानी लगाने के बाद 3-4 गोडाई जरूरी है।
 
2.काश्तकारी ढंग :- हर वर्ष गन्ने की फसल लेने से नदीनों के कारण बहुत नुकसान होता है। इसकी रोकथाम के लिए चारे वाली फसलें और हरी खाद वाली फसलों के आधार वाला फसली चक्र गन्ने में नदीनों की रोकथाम करता है। इसके इलावा अंतरफसली जैसे कि मूंग, मांह और घास फूस की नमी से नदीनों का नुकसान कम होता हैं मूंग और मांह जैसी अंतर फसली अपनाने से किसान अपनी कमाई बढ़ा सकता है। घास फूस और धान की पराली की 10-15 सैं.मी. मोटी सतह जमीन का तापमान कम करके नदीनों को रोकती है और जमीन में नमी को संभालने में मदद करती है।
 
3.रासायनिक तरीके :- सिमाज़ीन/एट्राज़ीन 600-800 ग्राम प्रति एकड़ या मैट्रीब्यूज़िन 800 ग्राम प्रति एकड़ या डाईयूरोन 1-1.2 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग बिजाई से तुरंत करनी चाहिए। इसके इलावा चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के लिए 2, 4-डी का प्रयोग 250-300 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से करें ।
 

सिंचाई

गन्ने की सिंचाई भूमि (हल्की या भारी) और सिंचाई की सूविधा पर निर्भर करती है। गर्मी के महीने में गन्ने को पानी की जरूरत पड़ती है। गन्ने की पहली सिंचाई फसल के 20-25 प्रतिशत के उगने के बाद लगाई जाती है। बारिश के दिनों में गन्ने को पानी बारिश के आधार पर लगाएं। यदि बारिश कम हो तो 10 दिनों के अंतर पर पानी लगाएं। इसके बाद पानी लगाने का अंतराल बढ़ा कर 20-25 दिनों तक कर दें। जमीन में नमी संभालने के लिए गन्ने की पंक्तियों में घास फूस का प्रयोग करें। अप्रैल से जून के महीने का समय गन्ने के लिए नाजुक समय होता है। इस समय सिंचाई का सही ध्यान रखना जरूरी है इसके इलावा बारिश के दिनों में पानी को खड़ा होने से रोकें। बालियां निकलने और फसल के विकास के समय सिंचाई जरूरी है।
 
मिट्टी को मेंड़ पर चढ़ाना : कही का प्रयोग करके गन्ने की मेंड़ चढ़ानी जरूरी है क्योंकि यह कमाद को गिरने से बचाती है और खादों को भी मिट्टी में मिलाने में सहायता करती है।
 

पौधे की देखभाल

ਅਗੇਤੀ ਫੋਟ ਦਾ ਗੜੂੰਆਂ
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
अगेती फोट का छेदक यह सुंडी फसल के उगने के समय हमला करती है। यह सूण्डी जमीन के नजदीक तने में सुराख करती है और पौधे को सुखा देती है। जिससे गंदी बास मारती है। यह कीड़ा आम तौर पर हल्की जमीनें आर शुष्क वातावरण में मार्च से जून के महीनों में हमला करती है। इसकी रोकथाम के लिए फसल अगेती बीजनी चाहिए।
 
फसल बीजने के समय क्लोरोपाइरीफॉस 1 लीटर को 100-150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ गुलियों पर स्प्रे करें । यदि बिजाई के समय इस दवाई का प्रयोग ना किया जाये तो इसका प्रयोग खड़ी फसल में भी कर सकते हैं। सूखे हुए पौधों को नष्ट करें । हल्की सिंचाई करें और खेत को शुष्क होने से रोकें।
 

 

 सफेद सुण्डी
सफेद सुण्डी : यह सुण्डी जड़ों पर हमला करती है। जिस कारण गन्ना खोखला हो जाता है और गिर जाता है। शुरू में इसका नुकसान कम होता है परंतु बाद में सारे खेत में आ जाता है। ये सुण्डियां बारिश पड़ने के बाद मिट्टी में से निकल कर नजदीक के वृक्षों में इक्ट्ठी हो जाती हैं और रात को इसके पत्ते खाती हैं। यह मिट्टी में अंडे देती हैं जो कि छोटी जड़ों को खाती हैं।
 
गन्ने की जड़ों में इमीडाकलोपरिड 4-6 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिला कर प्रयोग करें। फसल अगेती बीजने से भी इसके नुकसान से बचा जा सकता है। बीजों का कलोरपाइरीफॉस से उपचार करना चाहिए । इसके इलावा 4 किलो फोरेट या कार्बोफिउरॉन 13 किलो प्रति एकड़ को मिट्टी में मिलाएं । खेत में पानी खड़ा करके भी इस कीड़े को रोका जा सकता है। क्लोथाइनीडिन 40 ग्राम एकड़ को 400 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
 
दीमक
दीमक : बिजाई से पहले बीजों का उपचार करें। गुलियों को इमीडाक्लोप्रिड के घोल 4 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर 2 मिनट के लिए डुबोयें या बिजाई के समय क्लोरपाइरीफॉस 2 लीटर प्रति एकड़ की स्प्रे बीजों पर करें। यदि खड़ी फसल पर इसका हमला दिखे तो जड़ों के नज़दीक इमीडाक्लोप्रिड 60 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी या क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
 
पायरिल्ला
पायरिल्ला : इसका ज्यादा हमला उत्तरी भारत में पाया जाता है। बड़े कीड़े पत्ते के निचली तरफ से रस चूसते हैं। इससे पत्तों पर पीले सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और पत्ते नष्ट हो जाते हैं। ये पत्तों पर शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं। जिससे फंगस पैदा हो जाती है और पत्ते काले रंग के हो जाते हैं। 
 
नियमित फासले पर सफेद फूले हुए अंडों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। गंभीर हमला होने पर डाइमैथोएट या एसीफेट 1-1.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
जड़ छेदक
जड़ छेदक : यह कीड़ा धरती में होता है। जो गन्ने के अंदर जाकर पत्ते पीले कर देता है। इसका नुकसान जुलाई महीने से शुरू होता है। इसके हमले से पत्ते पीले शिखर से नीचे तक पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं और धारियां भी पड़ जाती हैं।
 
फसल बीजने से पहले गुलियों का क्लोरपाइरीफॉस से उपचार करें। शुष्क खेतों में इसका नुकसान कम होता है। इसलिए खेत में पानी ना खड़ा होने दें। फसल बीजने से 90 दिनों के बाद मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं । ज्यादा नुकसान के समय क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 1 लीटर प्रति एकड़ को 100-150 लीटर पानी में मिलाकर गन्ने की जड़ों में डालें। क्विनलफॉस 300 मि.ली प्रति एकड़ भी इसकी रोकथाम करता है। प्रभावित पौधे को खेत में से उखाड़ देना चाहिए।
 
शाख का छेदक

शाख का छेदक : यह कीड़ा जुलाई में हमला करता है और मानसून के हिसाब से इसका नुकसान बढ़ता जाता है। यह कीड़ा गन्ने के कईं भागों पर हमला करता है परंतु यह पत्तों के अंदर की तरफ और जड़ में रहता है। इसका नुकसान गन्ने बांधने से लेकर कटाई तक होता है।

नाइट्रोजन का अत्याधिक प्रयोग ना करें। खेत को साफ सुथरा रखें। पानी के निकास का उचित प्रबंध करें। गर्दन तोड़ से फसल को बचाने के लिए मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं। रासायनिक नियंत्रण बहुत कम प्रभावशाली है। मित्र कीट कुटेशिया फ्लेवाइपस की 800 मादा प्रति एकड़ एक सप्ताह के फासले पर जुलाई से नवंबर तक प्रति एकड़ में छोड़ें।

चोटी बेधक
चोटी बेधक :  यह कीड़ा फसल पर गन्ना बनने से लेकर पकने तक हमला करता है। इसका लार्वा पत्तों की नाड़ी में सुरंग बना देता है। जिस कारण सफेद धारियां बन जाती हैं, जो बाद में भूरे रंग की हो जाती हैं। यदि गन्ना बनने के समय इसका हमला हो तो शाखाएं नष्ट हो जाती हैं और डैड हार्ट पैदा हो जाते हैं। यदि यह विकसित हुए गन्ने पर हमला करे तो शिखरों का विकास होने से बंची टॉप के लक्षण दिखाई देते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए राइनैक्सीपायर 20 एस सी 60 मि.ली. को 100-150 लीटर पानी में मिलाकर अंत अप्रैल से मई के पहले सप्ताह तक प्रति एकड़ में स्प्रे करें। खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करें, क्योंकि पानी के खड़ा होने से इसका हमला बढ़ जाता है।
 
लाल धारियां
  • बीमारियां और रोकथाम
रतुआ रोग : यह फंगस रोग है जिस कारण गन्ने का तीसरा और चौथा पत्ता पीला हो कर सूख जाता है। इस रोग से गन्ने का अंदरूनी गुद्दा लाल हो जाता है। काटे हुए गन्ने में खट्टी और शराब जैसी बदबू आती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए रोग रहित फसल से बीज लें और रोग को सहने योग्य किस्म बोयें। धान और हरी खाद वाली फसलों का फसली चक्र अपनाना चाहिए। खेत में पानी ना रूकने दें । प्रभावित बूटों को उखाड़ कर खेत से बाहर फेंके। कार्बेनडाज़िम घोल की 0.1 प्रतिशत मात्रा को मिट्टी के ऊपर प्रयोग करने से बीमारी रोकी जा सकती है।
 
मुरझाना
मुरझाना : जड़ बेधक, नेमाटोडस, शुष्क और ज्यादा पानी खड़ने के हालातों में यह बीमारी ज्यादा आती है। इससे पत्ते पीले पड़ कर सूख जाते हैं। पौधों में किश्ती के आकार के गड्ढे पड़ जाते हैं और फसल सिकुड़ जाती है। इससे फसल का उगना और पैदावार दोनों ही कम हो जाती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए गुलियों को कार्बेनडाज़िम 0.2 प्रतिशत+बोरिक एसिड 0.2 प्रतिशत के घोल में 10 मिनट तक उपचार करें। इसके इलावा प्याज लहसुन और धनिये की फसल भी इस बीमारी को कम करने में मदद करती है।

 
लाल धारियां
चोटी गलन : यह बीमारी हवा से पैदा होती है जो मॉनसून में होती है। बीमारी वाले गन्ने के पत्ते सिकुड़ जाते हैं। तने के नजदीक वाले पत्ते लाल हो जाते हैं। नए पत्ते छोटे और तिरछे हो जाते हैं।
 
इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 4 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैनकोज़ेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

ज्यादा पैदावार और चीनी प्राप्त करने के लिए गन्ने की सही समय पर कटाई जरूरी है। समय से पहले या बाद में कटाई करने से पैदावार पर प्रभाव पड़ता है। किसान शूगर रीफरैक्टोमीटर का प्रयोग करके कटाई का समय पता लगा सकते हैं। गन्ने की कटाई द्राती की सहायता से की जाती है।गन्ना धरती से ऊपर थोड़ा हिस्सा छोड़कर काटा जाता है क्योंकि गन्ने में चीनी की मात्रा ज्यादा होती है। कटाई के बाद गन्ना फैक्टरी में लेकर जाना जरूरी होता है।

कटाई के बाद

गन्ने को रस निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके इलावा गन्ने के रस से चीनी, गुड़ और शीरा प्राप्त किया जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare