पेठे  की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

पेठे को सफेद कद्दू, सर्दियो का खरबूज़ा या धुंधला ख़रबूज़ा भी कहा जाता है| इसका मूल स्थान दक्षिण-पूर्व एशिया है| यह चर्बी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और रेशे का उच्च स्त्रोत है| इससे बहुत सारी दवाइयां भी बनाई जाती है| इसमें केलेरी कम होने के कारण यह शुगर के मरीज़ो के लिए बहुत अच्छी है| इसका प्रयोग कब्ज़, एसिडिटी और आंतड़ी के कीट के उपचार के रूप में भी किया जाता है| प्रसिद्ध खाने वाली वस्तु पेठा भी इसी से बनाई जाती है|

  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm
  • Season

    Temperature

    15-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-35°C
  • Season

    Rainfall

    100-150cm

मिट्टी

इसकी खेती बहुत किस्म की मिट्टी में की जा सकती है, पर रेतली दोमट मिट्टी में यह बढ़िया पैदावार देती है| मिट्टी का उचित pH 6-6.5 होना चाहिये|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

PAG-3 (2003): इस किस्म की मध्यम लंबाई की बेलों के हरे पत्ते होते हैं। इसका फल आकर्षक, गोलाकार और औसत आकार के होते हैं। यह किस्म बुवाई से लेकर कटाई तक 145 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। फलों का वजन औसतन 10 किलो होता है और इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

आईसीएआर(ICAR), आईआईएचआर (IIHR) बैंगलोर द्वारा विकसित लोकप्रिय किस्में

Kashi Surbhi: इसका फल आयताकार, दीर्घवृत्ताभ, छिलका हरा सफेद, अंदर से सफेद होता है और फल का औसत वजन 10-12 किलोग्राम होने के साथ फल लंबी दूरी के परिवहन के लिए उपयुक्त है। इसकी उपज क्षमता 240 क्विंटल प्रति एकड़ (खरीफ मौसम) और 210-200 क्विंटल प्रति एकड़ (ग्रीष्म ऋतु) है।

Kashi Dhawal: यह किस्म एक स्थानीय संग्रह से ली गई है। इसकी बेल की लंबाई 7.5-8 मीटर होती है। इसका फल आयताकार, अंदर से सफेद, मोटाई 8.5-8.7 सेंटीमीटर, बीज व्यवस्था रैखिक, औसत वजन 11-12 किलोग्राम, फसल अवधि 120 दिन और उपज 230-240 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसके फल में उच्च मात्रा में गुद्दा होता है जिससे यह पेठा मिठाई बनाने के लिए उपयुक्त है।

दूसरे राज्यों की किस्में

CO 1, CO 2, Pusa Ujjwal, Kashi Ujawal, MAH 1, IVAG 502

 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा करने के लिए 3-4 बार जोताई करें| अंत में जोताई करने से पहले 20 किलो गली-सड़ी रूडी की खाद 40 किलो प्रति एकड़ के साथ मिला कर डालें|

बिजाई

बिजाई का समय
उत्तरी भारत में इसकी खेती दो बार की जाती है| इसकी बिजाई फरवरी-मार्च में भी की जाती हैं|

फासला
3 मीटर चौड़े बैडों पर, जिनमें 75-90 सैं.मी. का फासला हो, एक तरफ दो बीज बोयें|

बीज की गहराई
बीजों को 1-2 सै.मी. गहराई पर बोयें|

बिजाई का ढंग
बीजों को सीधा ही बैडों पर बोया जाता है|

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में 2 किलो बीज का प्रयोग करें|

बीज का उपचार

बीजों को मिट्टी में पैदा होने वाली फंगस से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करें| रसायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडर्मा विराइड 4 ग्राम या सिओडोमोनस फ्लूरोसेंस 10 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करें|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
90 125 35

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 20 20

 

संपूर्ण रूप से फसल को नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (सिंगल सुपर फास्फेट 125 किलो) और पोटाश 20 किलो (मिउरेट ऑफ़ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ में जरूरत होती है| नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बैड बनाने के समय डालें| बाकी की बची नाइट्रोजन फल निकलने के समय डालें|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की तीव्रता के अनुसार, हाथों या कसी के साथ गोडाई करें| मलचिंग के साथ भी नदीनों को रोका जा सकता है और पानी की बचत भी की जा सकती है|

सिंचाई

जलवायु और मिट्टी की किस्म के अनुसार गर्मियों की ऋतु में  7-10 दिनों के फासले पर सिंचाई करें| बारिश की ऋतु में बारिश के अनुसार सिंचाई करें|

पौधे की देखभाल

भुन्डी
  • कीटों की रोकथाम

भुन्डी: अगर इसका हमला दिखाई दें तो रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई सी 1 मि.ली  या डाइमेथोएट 30 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें|

चेपा

चेपा: अगर इसका हमला दिखाई दें तो इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें|

पत्तों का धब्बा रोग
  • बीमारियां और उनकी रोकथाम

पत्तों का धब्बा रोग: नुकसान हुए पौधों के ऊपर वाले हिस्से और मुख्य तने पर भी सफेद धब्बे दिखाई देते है| यह बीमारी पौधे को भोजन के रूप में प्रयोग करती है| गंभीर हमला होने पर इसके पत्ते झड़ जाते है और फल पकने से पहले ही गिर जाते है| अगर इसका हमला दिखाई  दें तो डाइनोकॉप 1 मि.ली. या कार्बेन्डाजिम 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें|

पत्तों के निचले हिस्सों पर धब्बा रोग

पत्तों के निचले हिस्सों पर धब्बा रोग: अगर इसका हमला दिखाई दे तो मैंकोजेब या क्लोरोथेलोनिक 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे दो बार 10 दिनों के फासले पर करें|

फसल की कटाई

किस्म के आधार पर फसल 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है|मांग के मुताबिक फलों की तुड़ाई पकने के समय या उससे पहले की जा सकती है| पके हुए फलों को ज्यादातर बीजों के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है| फलों को तेज़ चाकू के साथ बेल के पास से काटें|

बीज उत्पादन

बीज के उत्पादन के लिए, बीजों को फरवरी-मार्च के महीने में बोयें| बीमारी वाली और जरूरत ना होने वाली फसलें फूल निकलने, फल बनने और पकने के समय हटा दें| जब फल और तने के तल पर सफेद पन दिखाई दें, तो फल काटने का सही समय होता है| बीजों को अलग करके लगाएं और पानी के साथ धो लें| फिर बीजों को सुखाएं और स्टोर करने से पहले सूखा लें| बीजों को कम तापमान और कम नमी पर स्टोर किया जाता है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare