सफेदा की बिजाई

आम जानकारी

सफेदा मिरटेसी जाती के साथ सबंध रखती है और इसकी 300 जातियां है| इसका मूल स्थान ऑस्ट्रेलिया और ट्समेनिया है| यह विश्व में सबसे तेज़ बढ़ने वाला वृक्ष है  और इसकी ऊंचाई बहुत ज्यादा होती है (इसकी प्रजातियों में एक प्रजाति  480 फीट तक चली जाती है)| इसको गोंद  या नीलगिरी के नाम से भी जाना जाता है| इसको ईंधन, खम्भा, टिम्बर, बायोमास और तेल के लिए प्रयोग किया जाता है| सफेदे का तेल आयुर्वेदिक इलाज के लिए बहुत प्रयोग में लाया जाता है| इसमें मीठे तरल पदार्थ की भरपूर मात्रा होती है, जो कि मधु-मखियों के लिए इस्तेमाल होती है| सफेदा उगाने वाले मुख्य प्रान्त आंध्र प्रदेश, बिहार, गोआ, गुज़रात,पंजाब, हरियाणा,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु,केरल, पश्चमी बंगाल और कर्नाटक है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    0-40°C
  • Season

    Rainfall

    500-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-40°C
  • Season

    Temperature

    0-40°C
  • Season

    Rainfall

    500-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-40°C
  • Season

    Temperature

    0-40°C
  • Season

    Rainfall

    500-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-40°C
  • Season

    Temperature

    0-40°C
  • Season

    Rainfall

    500-3000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-40°C

मिट्टी

इसके बढ़िया विकास के लिए अच्छे जल निकास वाली मिट्टी की जरूरत होती है| यह बहुत किस्म की मिट्टी में उगाई जाती है, पर यह अच्छे विकास वाली,  जैविक तत्वों से भरपूर दोमट मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है|  पानी सोखने वाली,  खारी और नमकीन मिट्टी सफेदे की पैदावार के लिए उचित नहीं मानी जाती हैं|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

किस्में:  Eucalyptus camaldulensis, FRI 4 and FRI 6, Eucalyptus globules, Eucalyptus citriodora.

ज़मीन की तैयारी

सफेदे की खेती मुख्य रूप से उद्योगिक कामों के लिए की जाती है| व्यापारक खेती के लिए ज़मीन में से नदीन और खूंटिया निकाल दें| ज़मीन को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार जोताई करें| बिजाई के लिए 30x30x30  या 45 x45x45 के गड्डे खोदे|

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई का समय जून से अक्तूबर तक का  होता है|

फासला
ज्यादा घनत्व के साथ बिजाई के लिए 1.5x1.5 मीटर के फासले पर  (लगभग 1690 पौधे प्रति एकड़) या 2x2  मीटर फासले पर (लगभग 1200 पौधे प्रति एकड़) बिजाई करें| शुरुआत में अंतर-फसलें भी उगाई जा सकती है| अंतर-फसलों के समय फासला 4x2 मीटर (लगभग 600) या 6x1.5 या 8x1 मीटर का फासला रखें| हल्दी और अदरक जैसी फसलें या चिकित्सिक पौधे अंतर-फसलों के रूप में लगाएं जा सकते है|2x2 मीटर का फासला ज्यादातर प्रयोग किया जाता है|

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई मुख्य खेत में पनीरी लगा कर की जाती है|

बीज

बीज की मात्रा
1.5x1.5 मीटर फासले पर बिजाई करने के साथ लगभग 1690 पौधे प्रति एकड़ में प्राप्त किये जा सकते है, जबकि 2x2  मीटर के फासले के साथ लगभग 1200 पौधे प्रति एकड़ में प्राप्त किये जा सकते है|

बीज का उपचार
इस फसल के लिए बीज बोने की जरूरत नहीं होती है|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

इसका प्रजनन बीजों या पौधों के भागों के द्वारा होता है| नरसरी के लिए छाँव में बैड तैयार करें और उस पर बीज बोयें| 25-35° सैं. मी  तापमान पर नयें पौधों का तेज़ी से विकास होता है| 6 हफ्तों में पौधे, जब इनका दूसरा पत्ता निकलना शुरू हो जाता है, तब यह पॉलीथिन के लिफाफ़े में डालकर लगाने के लिए तैयार हो जाता है| बिजाई से 3-5 महीने के बाद यह पौधे मुख्य खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते है| मुख्य खेत में पनीरी ज्यादातर बारिश के मौसम में लगाई जाती है|

खाद

बिजाई से 3-5 महीने बाद नयें पौधे मुख्य खेत में लगाएं जाते है| नयें पौधे गड्ढों में मानसून के शुरू होने पर लगाएं जाते है| बिजाई के समय नीम के तत्वों के साथ-साथ फास्फेट 50 ग्राम और गन्डोयां खाद 250 ग्राम प्रति गड्ढे में डालें| नीम के तत्व पौधों को दीमक से बचाते है|
पहले साल NPK की 50 ग्राम मात्रा डालें| दूसरे साल  17:17:17@ 50 ग्राम प्रति पौधे को डालें| हाथों से गोड़ाई करते रहें और नदीनों के हमले की जाँच करते रहें|

खरपतवार नियंत्रण

शुरुआती समय में खेत को नदीन-मुक्त रखने के लिए दो से तीन हाथों से गोड़ाई की जरूरत होती है|

सिंचाई

मुख्य खेत में पनीरी लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करें| मानसून में सिंचाई की जरूरत नहीं होती, पर अगर मानसून में देरी हो जाएँ या बढ़िया तरीके के साथ ना हो तों सुरक्षित सिंचाई करें| सफेदा सोखे को सहन करने वाली फसल है, पर उचित  पैदावार के लिए पूरे विकास वाले समय में कुल 25 सिंचाइयों की जरूरत होती है| सिंचाई की ज्यादातर जरूरत गर्मियों में और काफी हद तक सर्दियों में होती है|

पौधे की देखभाल

दीमक
  • कीटों की रोकथाम

दीमक: नयें पौधे के लिए दीमक बहुत ही गंभीर कीट है, जो फसल को काफी हद तक नुकसान पहुँचाता है| फसल को दीमक से बचाने के लिए निंबीसाइड 2 मि. ली. को प्रति लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें|
 

गांठे बनना

गांठे बनना: इसके साथ पत्ते सूखने शुरू हो जाते है, विकास रुक जाता है और तने की बनतर भी खराब हो जाती है| इस बीमारी के साथ नुकसान हुए पत्तों का विकास रुक जाता है|अगर इसका हमला दिखाई दें तों पौधे को हटा दें| हमेशा इसकी प्रतिरोधक किस्में ही इस्तेमाल करें|

टहनियों का कोढ़ रोग

टहनियों का कोढ़ रोग: अगर इसका हमला दिखाई दे तों बोरडिओक्स का घोल जड़ों वाले हिस्सों में डालें|

फसल की कटाई

टिशू के द्वारा बिजाई से 5 साल में 50 से 76 मि.ली. टन पैदावार प्राप्त की जा सकती है, जबकि मूल बिजाई से 30 से 50 मि.ली. टन पैदावार प्राप्त की जा सकती है| फसल की पैदावार खेत प्रबंध, पौधे का घनत्व, जलवायु आदि के अनुसार कम-ज्यादा भी हो सकती है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare