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आम जानकारी

यह गर्म मौसम की फसल है और जड़ी बूटी वाली वार्षिक बेल है। इसके फल कई किस्मों के आकार, बनतर और रंग में आते हैं। यह फसल कुकुरबिटेशियस परिवार से संबंधित है। यह विटामिन ए, कैलशियम और फासफोरस का उच्च स्त्रोत है। इसे पॉलीहाउस, ग्रीनहाउस और नेट हाउस में उगाया जा सकता है। इसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं जैसे यह शूगर को नियंत्रित करने में मदद करता है, यह अस्थमा के मरीज़ों, दिल के मरीज़ों, आंख और त्वचा की बीमारियों और हड्डियों की सेहत के लिए अच्छा है। इसमें एंटीमाइक्रोबियल, एंटीसेप्टिक और एंटीफंगस विशेषताएं होती हैं।

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है। रेतली दोमट से दोमट मिट्टी चप्पन कद्दू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी होती है। चप्पन कद्दू की खेती के लिए मिट्टी का पी एच 5.5-6.5 होना चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab Chappan Kadoo-1: यह किस्म 1982 में जारी की गई थी। यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो बिजाई के 60 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौधे के पत्ते घने और हरे रंग के होते हैं, फल हरे रंग के डिस्क के आकार के होते हैं। यह किस्म पत्तों के निचले धब्बों की प्रतिरोधक और विषाणु रोग, लाल भुंडी और पत्तों पर सफेद धब्बों को सहनेयोग्य है। इसके फलों की औसतन पैदावार 95 क्विंटल प्रति एकड होती है।

ज़मीन की तैयारी

चप्पन कद्दू की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 जोताई करें। उसके बाद हैरो से जोताई करें। 2 मीटर के फासले पर 15 सैं.मी. गहरी खालियां बनायें।

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई के लिए मध्य जनवरी से मार्च और अक्तूबर से नवंबर का महीना (संरक्षण में) उपयुक्त होता है।
 
फासला
प्रत्येक जगह में दो बीज बोयें और 45 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। 
 
बीज की गहराई 
बीज को 2.5-3.5 सें.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
गड्ढा खोदकर विधि का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
चप्पन कद्दू के लिए 2 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, बीज को 12-24 घंटे के लिए पानी में भिगोयें। इससे इनकी अंकुरण प्रतिशतता में वृद्धि होती है। मिट्टी से पैदा होने वाली फंगस से बचाने के लिए बिजाई से पहले, कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम या स्यिूडोमोनास फ्लूरोसेंस 10 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी या कीटनाशी का प्रयोग करें।
 
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई     मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज )

Carbendazim

2 gram

Thiram

2.5 gram

 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
90 125 25

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 20 15

 

बैड की तैयारी से पहले अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 15 टन प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 125 किलो), और पोटाश 15 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 25 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को बिजाई के एक महीने बाद टॉप ड्रेसिंग के तौर पर डालें।



 

सिंचाई

बीज को बोने के बाद तुरंत सिंचाई की आवश्यकता होती है और फिर मौसम के आधार पर 6-7 दिनों के अंतराल पर लगातार सिंचाई करें। इस फसल को कुल 9-10 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को रोकने के लिए हाथों से गोडाई और निराई करें। नदीनों की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए 2 सप्ताह के पौधों को गोडाई करते रहें।

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
बैक्टीरियल सूखा: यह एरविनिया टरैकीफिला के कारण होता है। यह पौधे की विशिष्ट कोशिकाओं को प्रभावित करता है जिसके कारण पौधा तुरंत सूख जाता है।
 
उपचार : बैक्टीरियल सूखे से बचाव के लिए कीटनाशक की फोलियर स्प्रे करें।
 
पत्तों पर सफेद धब्बे : इसके कारण पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिसके कारण पत्ते सूख जाते हैं।
 
उपचार : इससे बचाव के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। इसे फंगसनाशी जैसे क्लोरोथालोनिल, बेनोमाइल या डिनोकैप की स्प्रे से भी नियंत्रित किया जा सकता है।
 
खीरे का चितकबरा रोग: इसके कारण पौधे की वृद्धि कम हो जाती है। पत्ते नीचे की ओर हो जाते हैं और फल का सिरा हल्के पीले रंग का हो जाता है।
 
उपचार : चितकबरे रोग से बचाव के लिए डायाज़िनोन डालें। इमीडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल 7 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल की मक्खी : यह चप्पन कद्दू का गंभीर कीट है। मादा मक्खी प्रौढ़ फल की बाहरी त्वचा के नीचे अंडे देती है। उसके बाद छोटे कीट फल का गुद्दा खाते हैं जिससे फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।
 
उपचार : फल की मक्खी से फसल को बचाने के लिए नीम का तेल 3.0 प्रतिशत की फोलियर स्प्रे करें। 
 
चेपा और थ्रिप्स: ये कीट पत्तों से रस चूसते हैं जिसके कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं और गिर जाते हैं। थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं। पत्ते कप के आकार के या ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं।
 
उपचार: यदि इनका हमला खेत में दिखे तो थाइमैथोक्सम 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
काली भुंडी: ये काली चमकदार भुंडियां होती हैं जो कि पेड़ पौधों को खाती हैं।
 
उपचार : अगर इसका हमला दिखाई दें तो रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई सी 1 मि.ली  या डाइमेथोएट 30 ई सी 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें|
 

फसल की कटाई

बिजाई के 60-80 दिनों के बाद किस्म और मौसम के आधार पर पहली तुड़ाई करें। फल बनने के 7 दिनों के बाद तुड़ाई की जाती है। तुड़ाई 2-3 दिनों के अंतराल पर की जानी चाहिए।

बीज उत्पादन

चप्पन कद्दू की अन्य किस्मों से 800 मीटर का फासला रखें। इसकी तीन जांच - पहली फूल निकलने से पहले, दूसरी फूल निकलने के समय और फल बनने के समय और तीसरी फल की तुड़ाई के समय की जानी चाहिए। बीमारी से प्रभावित पौधों और अन्य किस्मों के पौधों को निकाल दें। फल के गहरे पीले से संतरी रंग का हो जाने पर बीज लेने के लिए फल की तुड़ाई की जाती है। तोड़े गए फल को दो भागों में काटें और हाथ के द्वारा बीज निकाल लें। उसके बाद बीजों को पानी से धोयें और फल के गुद्दे को निकाल दें। निकाले गए बीजों को सुखाएं। इसकी औसतन पैदावार 2-2.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।