भिंडी की खेती

आम जानकारी

भिंडी की फसल सारा साल उगाई जाती है और यह मैलवैसीआई प्रजाति से संबंधित है। इसका मूल स्थान इथीओपिया है। यह विशेष तौर पर उष्ण और उपउष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। भारत में भिंडी उगाने वाले मुख्य प्रांत उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा हैं। भिंडी की खेती विशेष तौर पर इसे लगने वाले हरे फल के कारण की जाती है। इसके सूखे फल और छिल्के को कागज़ उदयोग में और रेशा (फाइबर) निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। भिंडी विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम और अन्य खनिजों का मुख्य स्त्रोत है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    1000mm
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    20-29°C
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    20-30°C
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    25-35°C
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    25-35°C
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    20-29°C

मिट्टी

भिंडी काफी तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। भिंडी की फसल के लिए उचित मिट्टी रेतली से चिकनी होती है, जिसमें जैविक तत्व भरपूर मात्रा में हों और जिसकी निकास प्रणाली भी अच्छी ढंग की हो। यदि निकास अच्छे ढंग का हो तो यह भारी ज़मीनों में भी अच्छी उगती है। मिट्टी का पी एच 6.0 से 6.5 होना चाहिए। खारी, नमक वाली या घटिया निकास वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab no.13: यह पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाणा द्वारा बनाई गई किस्म है। यह गर्मी और बसंत दोनों ऋतुओं में उगाई जा सकती है। इसके फल हल्के हरे और दरमियाने आकार के होते हैं। यह चितकबरा रोग को सहनेयोग्य किस्म है।
 
Punjab Padmini:  यह पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाणा द्वारा बनाई गई किस्म है। इसके फल बालों वाले, गहरे हरे और जल्दी तैयार करने वाले होते हैं। इसकी तुड़ाई, बिजाई के 55-60 दिनों के बाद की जा सकती है। यह चितकबरा रोग को सहनेयोग्य किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 40-48 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab 7: यह चितकबरा रोग, तेला और सुंडी को सहनेयोग्य किस्म है। इसके फल गहरे हरे और दरमियाने आकार के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab 8:  यह पूसा स्वामी द्वारा बनाई गई किस्म है। इसके फल गहरे हरे रंग के और कटाई के समय आकार में 15-16 सैं.मी. लंबे होते हैं। यह चितकबरा रोग को सहने योग्य और फल के छेदक की रोधक किस्म है।
 
Punjab Suhavani: इसकी औसतन पैदावार 49 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं और यह किस्म पीले चितकबरे रोग को सहनेयोग्य है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pusa Mahakali:  यह किस्म आई ए आर आई, नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। इसके फल हलके हरे रंग के होते हैं।
 
Parbhani Kranti: इसके फल आकार में दरमियाने लंबे होते हैं और अच्छी क्वालिटी के कारण ज्यादा देर तक स्टोर किए जा सकते हैं। यह चितकबरा रोग को सहनेयोग्य किस्म है। यह 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 40-48 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Sawani: यह किस्म आई ए आर आई, नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। यह किस्म गर्मी और बरसात के मौसम में उगानेयोग्य किस्म है। यह 50 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके फल गहरे हरे रंग के और कटाई के समय 10-12 सैं.मी. लंबे होते हैं। यह चितकबरा रोग को सहनेयोग्य किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 48-60 क्विंटल होता है।
 
Arka Anamika: यह किस्म आई आई एच आर बैंगलोर द्वारा तैयार की गई है। यह चितकबरा रोग की रोधक किस्म है।
 

ज़मीन की तैयारी

खेत की तैयारी करने के लिए ज़मीन की 5-6 बार गहरी जोताई करें। फिर दो-तीन बार सुहागा मार कर ज़मीन को समतल करें। आखिरी बार जोताई करते समय  100 क्विंटल प्रति एकड़ अच्छी रूड़ी की खाद मिट्टी में डालें। खालियां और मेंड़ वाला ढंग बनाएं। कईं बार भिंडियों को खेत में लगाई हुई मुख्य फसल के आस-पास भी लगा दिया जाता है और इसके लिए बिजाई का ढंग भी मुख्य फसल के साथ का ही प्रयोग किया जाता है। इसे बिजाई वाली मशीन से, हाथों से गड्ढा खोदकर या हलों के पीछे बीज डालकर भी बोया जा सकता है।

बिजाई

बिजाई का समय
उत्तर में यह वर्षा और बसंत के मौसम में उगाई जाती है। वर्षा वाले मौसम में, इसकी बिजाई जून-जुलाई के महीने और बसंत ऋतु में फरवरी-मार्च के महीने में की जाती है।
 
फासला
पंक्तियों में फासला 45 सैं.मी. और पौधों में फासला 15-20 सैं.मी. रखना चाहिए।
 
बीज की गहराई
बीज 1-2 सैं.मी. गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई गड्ढा खोदकर की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
वर्षा ऋतु (जून-जुलाई) में टहनियों वाली किस्मों के लिए 4-6 किलो बीज प्रति एकड़, 60x30 सैं.मी. फासले पर बोयें। बिना टहनियों वाली किस्मों के लिए 45x30 सैं.मी. का फासला रखें। मध्य फरवरी तक 15-18 किलो बीज प्रति एकड़ डालें और मार्च में बिजाई के लिए 4-6 किलो बीज प्रति एकड़ बोयें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीज को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखने से बीज की अंकुरन शक्ति बढ़ जाती है। ज़मीन से पैदा होने वाली फफूंदी से बचाने के लिए बीजों को कार्बेनडाज़िम से उपचार करें। उपचार करने के लिए बीजों को 2 ग्राम कार्बेनडाज़िम घोल प्रति लीटर पानी में मिलाकर 6 घंटे के लिए डुबो दें और फिर छांव में सुखाएं। फिर तुरंत बिजाई कर दें। बीजों के अच्छे अंकुरन के लिए और मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीजों को इमीडाक्लोप्रिड 5 ग्राम प्रति किलो बीज से और बाद में ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें।
 
  
फंगसनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 2gm
Imidacloprid 5gm
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
80 As per soil test results As per soil test results

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
 
NITROGEN PHOSPHORUS MURIATE OF POTASH
36 As per soil test results

As per soil test results

 

शुरूआती खाद के तौर पर 120-150 कि्ंवटल अच्छी रूड़ी की खाद डालें। भिंडी की फसल के लिए नाइट्रोजन 36 किलो (80 किलो यूरिया) प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय और बाकी बची मात्रा पहली तुड़ाई के बाद डालें।
 
अच्छी पैदावार की प्राप्ती के लिए बिजाई से 10-15 दिनों के बाद 19:19:19 की 4-5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अच्छे फूलों और फलों की प्राप्ती के लिए 00:52:34 की 50 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने से पहले और फिर फल बनने के समय दोबारा करें। अच्छी पैदावार और अच्छी क्वालिटी के फलों के लिए , फूल बनने के समय 13:00:45 (पोटाश्यिम नाइट्रेट)  की 100 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
 
 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों के विकास को रोकने के लिए गोडाई करनी चाहिए। वर्षा ऋतु वाली फसल में पंक्तियों के साथ मिट्टी लगाएं। पहली गोडाई 20-25 दिन बाद और दूसरी गोडाई बिजाई के 40-45 दिन बाद करें। बीजों के अंकुरन से पहले नदीन नाशक डालने से नदीनों को आसानी से रोका जा सकता है। इसके लिए फलूक्लोरालिन (48 प्रतिशत) 1 लीटर प्रति एकड़ या पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ या ऐक्लोर 1.6 लीटर प्रति एकड़ डालें।

सिंचाई

यदि ज़मीन में आवश्यक नमी ना हो तो, बीजों के अच्छे अंकुरन के लिए गर्मियों में बिजाई से पहले सिंचाई करें। दूसरी सिंचाई बीज अंकुरन के बाद करें। फिर खेत की सिंचाई गर्मियों में 4-5 दिन बाद और वर्षा ऋतु में 10-12 दिन बाद करें।

पौधे की देखभाल

शाख और फल का कीट
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
शाख और फल का कीट : यह कीट पौधे के विकास के समय शाख में पैदा होता है। इसके हमले से प्रभावित शाखा सूखकर झड़ जाती है। बाद में यह फलों में जा कर इन्हें अपने मल से भर देता है।
 
प्रभावित भागों को नष्ट कर दें। यदि इनकी संख्या ज्यादा हो तो स्पाइनोसैड 1 मि.ली. प्रति क्लोरॅट्रीनिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस सी 7 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी या फलूबैंडीअमाइड 50 मि.ली. प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
ब्लिस्टर बीटल

ब्लिस्टर बीटल: यह पौधे के बूर, पत्तों और फूलों की गोभ को खाता है।
यदि इसका हमला दिखे तो, बड़े कीड़े इकट्ठे होकर नष्ट कर दें। कार्बरिल 1 ग्राम या मैलाथियॉन 400 मि.ली. प्रति 200 लीटर पानी या साइपरमैथरिन 80 मि.ली. प्रति 150 लीटर पानी की स्प्रे करें।

चेपा

चेपा: चेपे का हमला नए पत्तों और फलों पर देखा जा सकता है। यह पौधे का रस चूसकर उसे कमज़ोर कर देता है। गंभीर हमले की स्थिति में पत्ते मुड़ जाते हैं या बेढंगे रूप के हो जाते हैं। यह शहद की बूंद जैसा पदार्थ जो धुंएं जैसा होता है, को छोड़ते हैं। प्रभावित भागों पर काले रंग की फफूंद पैदा हो जाती है।
जैसे ही हमला देखा जाये, तुरंत प्रभावित हिस्से नष्ट कर दें। डाइमैथोएट 300 मि.ली. प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई से 20-35 दिन बाद डालें। यदि जरूरत हो तो दोबारा डालें। हमला दिखने पर थाइमैथोक्सम 25 डब्लयु जी 5 ग्राम को प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।

चितकबरा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
चितकबरा रोग : इस बीमारी के लक्षणों के तौर पर सारे पत्तों पर एक जैसी पीली धारियां होती हैं। इससे पौधे की वृद्धि पर भी असर पड़ता है। और विकास रूक जाता है। इससे फल भी पीले दिखाई देते हैं और आकार में छोटे और सख्त होते हैं। इस से 80-90 प्रतिशत पैदावार कम हो जाती है। यह बीमारी सफेद मक्खी और पत्ते के टिड्डे के कारण फैलती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बीमारी वाले पौधों को खेत में से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 300 मि.ली. प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

 

पत्तों पर सफेद धब्बे
पत्तों पर सफेद धब्बे : इससे नए पत्तों और फलों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। गंभीर हमले की स्थिति में फल पकने से पहले ही झड़ जाते हैं। इससे फल की क्वालिटी भी कम हो जाती है और फल आकार में छोटे रह जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो घुलनशील सलफर 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी या डाइनोकैप 5 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे 4 बार 10 दिनों के फासले पर करें। या ट्राइडमॉर्फ 5 मि.ली. या पैनकोनाज़ोल 10 मि.ली. प्रति 10 लीटर की स्प्रे 4 बार 10 दिनों के फासले पर करें।
पत्तों पर धब्बा रोग
पत्तों पर धब्बा रोग : पत्तों के मध्य में सलेटी और किनारों पर लाल धब्बे पड़ जाते हैं। गंभीर हमले की स्थिति में पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं।
 
भविष्य में हमले से बचने के लिए बीजों को थीरम से उपचार करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 4 ग्राम प्रति लीटर या कप्तान 2 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। डाइफैनोकोनाज़ोल/ हैक्साकोनाज़ोल 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
जड़ गलन
जड़ गलन : प्रभावित जड़ें गहरे भूरे रंग की हो जाती हैं  और ज्यादा हमले की स्थिति में पौधा मर जाता है।इसकी रोकथाम के लिए  एक ही फसल खेत में बार बार ना लगाएं, बल्कि फसली चक्र अपनाएं। बिजाई से पहले बीजों को कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। मिट्टी में कार्बेनडाज़िम घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी डालें।
 
सूखा
सूखा : इससे शुरूआत में पुराने पत्ते पीले पड़ जाते हैं और बाद में सारी फसल ही सूख जाती है। यह बीमारी फसल पर किसी भी समय हमला कर सकती है। यदि इसका हमला दिखे तो पौधे की नज़दीक की जड़ों में कार्बेनडाज़िम 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी डालें।
 

फसल की कटाई

फसल बिजाई के 60-70 दिनों के बाद पककर तैयार हो जाती है। छोटे और कच्चे फलों की तुड़ाई करें। फलों की तुड़ाई सुबह और शाम के समय करनी चाहिए। तुड़ाई में देरीसे भिंडियों में रेशा भर जाता है और इनका कच्चापन और स्वाद भी चला जाता है।

कटाई के बाद

भिंडियों को ज्यादा देर तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता। भिंडियों को 7-10 डिगरी सैल्सियस और 90 प्रतिशत नमी पर ज्यादा देर तक स्टोर करके रखा जा सकता है। नज़दीक के बाज़ारों में भिंडियों को जूट की बोरियों में भरकर ले जाया जा सकता है, जबकि लंबी दूरी वाले स्थानों पर इन्हें गत्ते के बक्से में पैक करके ले जाया जा सकता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare