बागबानी में आम की फसल

आम जानकारी

आम को सभी फलों का राजा कहा जाता है और इसकी खेती भारत में पुराने समय से की जाती है। आम से हमें विटामिन ए और सी काफी मात्रा में मिलते हैं और इसके पत्ते चारे की कमी होने पर चारे के तौर पर और इसकी लकड़ी फर्नीचर बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। कच्चे फल चटनी, आचार बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और पक्के फल जूस, जैम और जैली आदि बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। यह व्यापारिक रूप में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल, बिहार, केरला, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, महांराष्ट्र और गुजरात में उगाया जाता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    22°C - 27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28°C - 30°C
  • Season

    Temperature

    22°C - 27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28°C - 30°C
  • Season

    Temperature

    22°C - 27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28°C - 30°C
  • Season

    Temperature

    22°C - 27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28°C - 30°C

मिट्टी

आम की खेती कईं तरह की मिट्टी में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए घनी ज़मीन, जो 4 फुट की गहराई तक सख्त ना हो, की जरूरत होती है। मिट्टी की पी एच 8.5 प्रतिशत से कम होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Dusheri:  यह बहुत ज्यादा क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसके फल जुलाई के पहले सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के फलों का आकार छोटे से दरमियाना, रंग पीला, चिकना और गुठली छोटी होती है। यह फल ज्यादा देर तक स्टोर किए जा सकते हैं। ये फल सदाबहार लगते रहते हैं। इसकी औसतन पैदावार 150 क्विंटल प्रति वृक्ष होती है।
 
Langra: इस किस्म के फलों का आकार दरमियाने से बड़ा, रंग निंबू जैसा पीला और चिकना होता है। यह फल रेशे रहित और स्वाद में बढ़िया होते हैं। इसके फल का छिल्का दरमियाना मोटा होता है। इसके फल जुलाई के दूसरे सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Alphonso: इस किस्म को भारी मात्रा में निर्यात किया जाता है। इस किस्म के फल का आकार दरमियाना और अंडाकार होता है। फल का रंग हरा और हल्का पीला होता है और बीच बीच में हल्का गुलाबी रंग भी होता है। फल रेशा रहित और खाने में बहुत ही स्वाद होते हैं। फल का छिल्का पतला और चिकना होता है। इस किस्म के फल जुलाई के पहल सप्ताह में पककर तैयार हो जाते हैं।
 
Gangian Sandhuri (GN-19): यह किस्म जुलाई के चौथे सप्ताह में पक जाती है। इसमें शूगर की मात्रा 15.7 प्रतिशत और खट्टेपन की मात्रा  0.30 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन उपज 80 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
हाइब्रिड किस्में :  Mallika, Amrapali, Ratna, Arka Arjun, Arka Puneet, Arka Anmol, Sindhu, Manjeera
 
अन्य किस्में : Alphonso, Bombay Green, Dashahari, Himsagar, Kesar, Neelum, Chausa.
 

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन की अच्छी तरह जोताई करें और फिर समतल करें। ज़मीन को इस तरह तैयार करें ताकि खेत में पानी ना खड़ा हो। ज़मीन को समतल करने के बाद एक बार फिर गहरी जोताई करके ज़मीन को अलग अलग भागों में बांट दें। फासला जगह के हिसाब से अलग-अलग होना चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
पौधे अगस्त से सितंबर और फरवरी मार्च के महीने में बोये जाते हैं। पौधे हमेशा शाम को ठंडे समय में बोयें। फसल को तेज हवा से बचाएं।
 
फासला
वृक्ष वाली किस्मों में फासला 9x9 मीटर रखें और पौधों को वर्गाकार में लगाएं।
 
बीज की गहराई
बिजाई से एक महीना पहले 1x1x1 मीटर के आकार के गड्ढे 9x9 मीटर के फासले पर खोदें। गड्ढों को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ दें। फिर इन्हें मिट्टी में 30-40 किलो रूड़ी की खाद और 1 किलो सिंगल सुपर फासफेट मिलाकर भर दें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई वर्गाकार और 6 भुजाओं वाले तरीके से की जा सकती है। 6 भुजाओं वाले तरीके से बिजाई करने से 15 प्रतिशत वृक्ष ज्यादा लगाए जा सकते हैं।
 

बीज

बीज का उपचार
पौधे लगाने से पहले आम की गुठली को डाइमैथोएट के घोल में कुछ मिनट के लिए डुबोयें। यह आम की फसल को सुंडी से बचाता है। बीजों को फंगस के बुरे प्रभावों से बचाने के लिए कप्तान फंगसनाशी से उपचार करें।
 

अंतर-फसलें

पौधे लगाने के बाद फूले हुए फलों को 4-5 वर्ष तक हटाते रहें, ताकि पौधे के भाग अच्छा विकास कर सकें। फलों के बनने तक यह क्रिया जारी रखें। इस क्रिया के समय अंतर फसलों को अधिक आमदन और नदीनों की रोकथाम के लिए अपनाया जा सकता है। प्याज, टमाटर, फलियां, मूली , बंद गोभी, फूल गोभी और दालों में मूंग, मसूर, छोले आदि को अंतर फसलों के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। आड़ू, आलू बुखारा और पपीता भी मिश्रित खेती के लिए अपनाये जा सकते हैं।

खाद

खादें (किलो प्रति वृक्ष)

Age of crop

(Year)

Well decomposed cow dung

(in kg)

Urea

(in gm)

SSP

(in gm)

MOP

(in gm)

First to three year

5-20 100-200 250-500 175-350

Four to Six year

25 200-400 500-700 350-700
Seven to nine year 60-90 400-500 750-1000 700-1000
Ten and above 100 500 1000 1000

 

तत्व (किलो प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
27 7 30

 

आम की खेती के लिए यूरिया के रूप में नाइट्रोजन 27 किलो, सिंगल सुपर फासफेट के रूप में फासफोरस लगभग 7 किलो और म्यूरेट ऑफ पोटाश के रूप में पोटाश 30 किलो प्रति एकड़ की जरूरत होती है। 1-3 वर्ष के पौधे या वृक्ष को रूड़ी की खाद 5-20 किलो, यूरिया 100-200 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 250-500 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 175-350 ग्राम प्रति वृक्ष डालें। 4-6 वर्ष के पौधे या वृक्ष के लिए रूड़ी की खाद 25 किलो, यूरिया 200-400 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 500-700 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 350-700 ग्राम प्रति वृक्ष डालें।
 
7-9 वर्ष के पौधे या वृक्ष को रूड़ी की खाद 60-90 किलो, यूरिया 400-500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 750-1000 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 700-1000 ग्राम प्रति वृक्ष के लिए प्रयोग करें। 10 या 10 से अधिक वर्ष के पौधे या वृक्ष को रूड़ी की खाद 100 किलो, यूरिया 400-500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 1000 ग्राम, म्यूरेट ऑफ पोटाश 1000 ग्राम प्रति वृक्ष डालें। नाइट्रोजन और पोटाश फरवरी के महीने में डालें, जबकि रूड़ी की खाद और सिंगल सुपर फासफेट दिसंबर महीने में ही डाल दें।
 
कईं बार मौसम के बदलने के कारण फल फूल कर झड़ने शुरू हो जाते हैं यदि फल झड़ते दिखें तो 13:00:45 की 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। तापमान के प्रभावों से बचाने के लिए पौधों को पॉलीथीन शीट से ढक दें। अच्छे फूलों और पैदावार के लिए फूल निकलने के समय 00:52:34 की 150 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे दो बार 8 दिनों के फासले पर करें।
यह फूलों के झड़ने को रोकने में मदद करेगी।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नयी फसल के आस-पास गोडाई करें और जड़ों में मिट्टी लगाएं। जब पौधे का विकास होना शुरू हो जाये और यह अपने इर्द-गिर्द के मुताबिक ढल जाये, उस समय इसके साथ अन्य फसल भी उगाई जा सकती है। इस क्रिया का समय किस्म पर निर्भर करता है, जो कि 5-6 वर्ष हो सकता है। मिश्रित खेती फसल में से नदीनों को रोकने में मदद करती है। दालों वाली फसलें जैसे कि मूंगी, उड़द, मसूर और छोले आदि की खेती मिश्रित खेती के तौर पर की जा सकती है। प्याज, टमाटर, मूली, फलियां , फूल गोभी और बंद गोभी जैसी फसलें भी मिश्रित खेती के लिए प्रयोग की जा सकती हैं। बाजरा, मक्की और गन्ने की फसल को मिश्रित खेती के लिए प्रयोग ना करें।

सिंचाई

सिंचाई की मात्रा और फासला मिट्टी, जलवायु और सिंचाई के स्त्रोत पर निर्भर करते हैं। नए पौधों को हल्की और बार-बार सिंचाई करें। हल्की सिंचाई हमेशा दूसरी सिंचाई से अच्छी सिद्ध होती है। गर्मियों में 5-6 दिनों के फासले पर सिंचाई करें और सर्दियों में धीरे-धीरे फासला बढ़ा कर 25-30 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। वर्षा वाले मौसम में सिंचाई वर्षा मुताबिक करें। फल बनने के समय, पौधे के विकास के लिए 10-12 दिनों के फासले पर सिंचाई की जरूरत होती है। फरवरी के महीने में खादें डालने के बाद हल्की सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

मिली बग
  • हानिकारक कीट ओर रोकथाम
मिली बग : यह फल, पत्ते, शाखाओं और तने का रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसका हमला आमतौर पर जनवरी से अप्रैल के महीने में देखा जाता है। प्रभावित हिस्से सूखे और फफूंदी से भरे दिखते हैं।
 
इसे रोकने के लिए, 25 सैं.मी. चौड़ी पॉलीथीन (400 गेज) शीट तने के आस पास लपेट दें ताकि नवंबर और दिसंबर के महीने में मिली बग के नए बच्चों को अंडों में से बाहर निकलने से रोका जा सके। यदि इसका हमला दिखे तो एसीफेट 2 ग्राम प्रति लीटर और स्पाइरोटैटरामैट 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
आम का टिड्डा
आम का टिड्डा : इसका हमला ज्यादातर फरवरी-मार्च के महीने में, जब फूल निकलने शुरू हो जायें , तब होता है। यह फलों और पत्तों का रस चूसते हैं। प्रभावित फूल चिपचिपे हो जाते हैं और प्रभावित हिस्सों पर काले रंग की फफूंदी दिखाई देती है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो साइपरमैथरिन 25 ई सी 3 मि.ली. या डैलटामैथरिन 28 ई सी 9 मि.ली. या फैनवैलारेट 20 ई सी 5 मि.ली. या नींबीसाइडिन 1000 पी पी एम 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर पूरे वृक्ष पर स्प्रे करें।
 
फल की मक्खी
फल की मक्खी : यह आम की एक गंभीर मक्खी है। मादा मक्खियां फल के ऊपरले छिल्के पर अंडे देती हैं। बाद में यह कीड़े फलों के गुद्दे को खाते हैं जिससे फल सड़ना शुरू हो जाता है और झड़ जाता है।
 
प्रभावित फलों को खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। फल बनने के बाद, मिथाइल इंजेनोल 0.1 प्रतिशत के 100 मि.ली. के रासायनिक घोल के जाल लटका दें। मई महीने में क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे 20 दिनों के फासले पर तीन बार करें।
 
धब्बा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
धब्बा रोग : फलों और फूलों के भागों पर सफेद पाउडर जैसे धब्बों का हमला देखा जा सकता है। ज्यादा गंभीर हालातों में फल या फूल झड़ने शुरू हो जाते हैं। इसके साथ साथ फल, शाखाओं और फूल के भाग शिखर से सूखने के लक्षण भी नज़र आने लगते हैं।
 
फूल निकलने से पहले, फूल निकलने के समय और फलों के गुच्छे बनने के बाद, 1.25 किलो घुलनशील सल्फर को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 10-15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो 178 प्रतिशत इमीडाक्लोप्रिड 3 मि.ली. को हैक्साकोनाज़ोल 10 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर या ट्राइमॉर्फ 5 मि.ली. या कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

 

तना छेदक

तना छेदक : यह आम का एक गंभीर कीड़ा है। यह वृक्ष की छाल के नीचे सुरंग बनाकर इसके टिशू खाता है, जिस कारण वृक्ष नष्ट हो जाता है। लार्वे का मल सुरंग के बाहर की ओर देखा जा सकता है।

 
इसका हमला दिखे तो सुरंग को सख्त तार से साफ करें। फिर रूई को 50:50 के अनुपात में मिट्टी के तेल और क्लोरपाइरीफॉस में भिगोकर इसमें डालें। फिर इसे गारे से बंद कर दें।
 

 

एंथ्राकनोस
एंथ्राक्नोस :  शाखाओं पर गहरे-भूरे या काले धब्बे नज़र आते हैं। फलों पर भी छोटे, उभरे हुए, गहरे दाग दिखाई देते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए प्रभावित हिस्सों को काट दें और कटे हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगाएं। बोर्डिऑक्स मिश्रण 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम प्रति 10 लीटर की स्प्रे प्रभावित वृक्ष पर करें। यदि नए फूल पर एंथ्राक्नोस का हमला दिखे तो थायोफोनेट मिथाइल 10 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
ब्लैक टिप
ब्लैक टिप : फल पकने से पहले असाधारण तरीके से शिखरों पर से लंबे हो जाते हैं।
 
फूल निकलने से पहले और निकलने के समय, बोरैक्स 6 ग्राम प्रति लीटर पानी + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे तीन बार 10-15 दिनों के फासले पर करें।
 

 

फसल की कटाई

फल का रंग बदलना फल पकने की निशानी है। फल का गुच्छा पकने के लिए आमतौर पर 15-16 सप्ताह का समय लेता है। सीढ़ी या बांस (जिस पर तीखा चाकू लगा हो) की मदद से पके हुए फल तोड़े और पके फलों को इक्ट्ठा करने के लिए एक जाल भी लगाएं। पके फलों को आकार  और रंग के आधार पर छांटे और बक्सों में पैक करें। तुड़ाई के बाद पॉलीनैट पर फलों के ऊपरी  भाग को नीचे की तरफ करके रखें।

कटाई के बाद

कटाई के बाद फलों को पानी में डुबोयें। कच्चे फल, जो पानी के ऊपर तैरते दिखाई दें, को हटा  दें। इसके बाद 25 ग्राम नमक को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फलों को डुबोदें। जो फल पानी पर तैरते हैं, उन्हें निर्यात के लिए प्रयोग करें। फूड एडल्ट्रेशन एक्ट (1954) के अनुसार, यदि कोई फलों को कार्बाइड गैस का प्रयोग करके पकाता है, तो इसे जुर्म माना जाता है। फलों को सही ढंग से पकाने के लिए100 किलो फलों को 100 लीटर पानी,जिसमें (62.5मि.ली.-187.5मि.ली.) एथ्रेल 52+ 2 डिगरी सैल्सियस में 5 मिनट के लिए तुड़ाई के बाद 4-8 दिनों के बीच-बीच डुबोयें। फल की मक्खी की होंद को चैक करने के लिए भी एच टी (वेपर हीट ट्रीटमैंट) जरूरी है। इस क्रिया के लिए 3 दिन पहले तोड़े फलों का प्रयोग करें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare