ककड़ी की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

ककड़ी कुकरबिटेसी परिवार से संबंधित है और इसका बानस्पतिक नाम कुकमिस मेलो है। इसका मूल स्थान भारत है। यह हल्के हरे रंग की होती है जिसका छिल्का नर्म और गुद्दा सफेद होता है। इसे मुख्य रूप से सलाद के रूप में नमक और काली मिर्च के साथ खाया जाता है। इसके फल में ठंडा प्रभाव होता है इसलिए इसे मुख्य तौर पर गर्मियों के मौसम में खाया जाता है।

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है जैसे रेतली दोमट से भारी मिट्टी जो अच्छे निकास वाली हो। इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 5.8-7.5 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab longmelon-1:  यह किस्म 1995 में तैयार की गई है। यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसकी बेलें लंबी, हल्के हरे रंग का तना, पतला और लंबा फल होता है। इसकी औसतन पैदावार 86 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

Karnal selection: यह किसम ज्यादा मात्रा में फल पैदा करती है| इसके फल हल्के हरे रंग के, कद में लंबे और गुद्दा कुरकुरा और अच्छे स्वाद वाला होता है।

Arka Sheetal: यह किस्म आई आई एच आर, लखनऊ, द्वारा विकसित की गई है। इसके फल हरे रंग के होते हैं जो कि मध्यम आकार के होते हैं। इसका गुद्दा कुरकुरा और अच्छे स्वाद वाला होता है। यह किस्म 90-100 दिनों में पक जाती है।

ज़मीन की तैयारी

ककड़ी की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हैरो से 2-3 बार जोताई करना आवश्यक है।

बिजाई

बिजाई का समय
बीजों की बिजाई के लिए फरवरी-मार्च का महीना अनुकूल होता है।

फासला
खालियों के बीच 200-250 सैं.मी. और मेंड़ों के बीच 60-90 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। फसल के अच्छे विकास के लिए दो बीजों को एक जगह पर बोयें।

बीज की गहराई
बीजों को 2.5-4 सैं.मी गहराई में बोयें।

बिजाई का ढंग
बीजों को बैड या मेंड़ पर सीधे बोया जाता है।

बीज

बीज की मात्रा
प्रति एकड़ में 1 किलो बीजों का प्रयोग करें।

बीज का उपचार
मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।

खाद

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
90 125 35

 

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN P2O5 K2O
40 20 20

 

नर्सरी बैड से 15 सैं.मी. दूरी पर फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का 1/3 भाग बिजाई के समय डालें| बाकी की बची हुई नाइट्रोजन बिजाई से एक महीना बाद में डालें|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए बेलों के फैलने से पहले इनकी ऊपरी परत की कसी से हल्की गोडाई करें।

सिंचाई

बिजाई के बाद तुरंत सिंचाई करना आवश्यक है। गर्मियों में, 4-5 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई आवश्कयकता अनुसार करें|

पौधे की देखभाल

चेपा और थ्रिप
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

चेपा और थ्रिप्स: ये कीट पत्तों का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और गिर जाते हैं। थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, जिससे पत्ते कप के आकार के और ऊपर की तरफ मुड़े हुए होते हैं।
इसका हमला फसल में दिखाई दे तो, थायामैथोकस्म 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे फसल पर करें|

भुण्डी

भुण्डी: इनके कारण फूल, पत्ते और तने नष्ट हो जाते हैं।

यदि इसका हमला दिखाई दें तो, मैलाथियोन 2 मि.ली. या कार्बरिल 4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें यह भुंडी की रोकथाम में सहायक है|

फल की मक्खी

फल की मक्खी: यह ककड़ी की फसल का गंभीर कीट है। नर मक्खी फल की बाहरी परत के नीचे अंडे देती है उसके बाद ये छोटे कीट फल के गुद्दे को अपना भोजन बनाते हैं उसके बाद फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।
उपचार: फसल को फल की मक्खी से बचाने के लिए नीम के तेल 3.0 % फोलियर स्प्रे करें।

पत्तों पर सफेद धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम

सफेद फफूंदी: पत्तों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं ये धब्बे प्रभावित पौधे के मुख्य तने पर भी दिखाई देते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। इनका हमला होने पर पत्ते गिरते हैं और फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं।
यदि इसका हमला खेत में दिखे तो पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में डालकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।

एंथ्राकनोस

ऐंथ्राक्नोस: यह पत्तों पर हमला करता है, जिसके कारण पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। यदि इसका हमला खेत में दिखाई दे तो, मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पत्तों के निचले धब्बे

पत्तों के निचली और धब्बे: यह रोग स्यिूडोपरनोस्पोरा क्यूबेनसिस के कारण होता है। इससे पत्तों की निचली सतह पर छोटे और जामुनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

यदि इसका हमला दिखे तो डाइथेन एम-45 या डाइथेन Z-78 का प्रयोग इस बीमारी से बचने के लिए करें।

मुरझाना

मुरझाना: यह पौधे के वेस्कुलर टिशुओं पर प्रभाव डालता है जिससे पौधा तुरंत ही मुरझा जाता है।

फुज़ारियम सूखे से बचाव के लिए कप्तान या हैक्सोकैप 0.2-0.3%का छिड़काव करें।

कुकुरबिट फाइलोडी: इस बीमारी के कारण पोर छोटे और पौधे की वृद्धि रूक जाती है। जिसके कारण फसल फल पैदा नहीं करती।

इस बीमारी से बचाव के लिए बिजाई के समय फुराडन 5 किलोग्राम बिजाई के समय प्रति एकड़ में डालें। यदि इसका हमला दिखे तो डाईमेक्रोन 0.05 % 10 दिनों के अंतराल पर करें।

फसल की कटाई

इसके फल 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। कटाई मुख्य तौर पर फल के पूरी तरह विकसित होने और नर्म होने पर की जाती है। कटाई मुख्य रूप से फूल निकलने के मौसम में 3-4 दिनों के अंतराल पर की जाती है।

बीज उत्पादन

ककड़ी को अन्य किस्मों जैसे वाइल्ड मैलन, खरबूजा, स्नैप मैलन और ककड़ी आदि से 1000 मीटर के फासले पर रखें। खेत में से प्रभावित पौधों को हटा दें। जब फल पक जायें जैसे उनका रंग बदलकर हल्का हो जाये तब उन्हें ताजे पानी में रखकर हाथों से तोड़ें और गुद्दे से बीजों को अलग कर लें। बीज जो नीचे स्तर पर बैठ जाते हैं, उन्हें बीज उद्देश्य के लिए इक्ट्ठा किया जाता है।