चमेली की जानकारी

आम जानकारी

यह एक महत्वपूर्ण फूल की फसल है जो व्यापारिक स्तर पर पूरे भारत में हर स्थान पर उगाया जाता है| यह 10-15 फीट की ऊंचाई तक पहुंच जाता है| इसके सदाबाहारपत्ते 2.5 इंच लम्बे, हरे, तना पतला और सफेद रंग के फूल पैदा करते है| इसके फूल मार्च से जून के महीने में खिलते हैं| इसे मुख्य तौर पर पुष्पमाला, सजावट और भगवान की पूजा के लिए प्रयोग किया जाता है| इसकी अत्याधिक सेन्ट जैसी सुंगंध के कारण इसको परफ्यूम और साबुन, क्रीम, तेल, शैम्पू और कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट में खुशबू के लिए प्रयोग किया जाता है| भारत में यह पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं|

मिट्टी

यह फसल कई तरह की मिट्टी जैसे बढ़िया निकास और चिकनी से रेतली मिट्टी जिसमें जैविक तत्व मौजूद हों, में बढ़िया उगाई जाती है| परन्तु यह रेतली और बढ़िया निकास वाली मिट्टी में बढ़िया परिणाम देती है| बढ़िया परिणाम के लिए काफी मात्रा में रूड़ी की खाद डालें| अच्छी खेती के लिए, मिट्टी का pH 6.5 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

CO 1 (Jui): यह किस्म के लम्बी कोरोला ट्यूब होती है और इसकी कटाई आसानी से की जा सकती है| इसकी औसतन पैदावार 35 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

CO 2 (Jui): इस किस्म के फूल की कलियां मोटी और कोरोला ट्यूब लम्बी होती है| इसकी औसतन पैदावार 46 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह फायलोडी बीमारी की रोधक होती है|

CO-1 (Chameli): यह किस्म टी एन ऐ यू(तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी) द्वारा विकसित की गई है| इसकी औसतन पैदावार 42 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह कमज़ोर फूलों और तेल निष्कर्य के लिए उपयुक्त होती है|

CO-2 (Chameli):
इस किस्म की कलियां मोटी, गुलाबी रंग की और लम्बी कोरोला ट्यूब होती है| इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Gundumalli: इसके फूल गोलाकार और सुगंधित होते है| इसकी औसतन पैदावार 29-33  क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Ramban and Madanban: इसके फूलों की कलियां बढ़े आकार की होती हैं|

Double Mogra: इसकी 8-10 पत्तियां होती है| इसके फूलों की खुशबू सफेद गुलाब के सामान होती है|

दूसरे राज्यों की किस्में

Arka Surabhi: यह किस्म को पिंक पिन के नाम से भी जाना जाता है| यह किस्म आई आई एच आर, बंगलोर द्वारा तैयार की गई है| इसकी औसतन पैदावार 41 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए, सबसे पहले खेत को नदीन मुक्त करें| खेत को नदीन मुक्त करने के लिए एक-दो बार आवश्यक गोड़ाई करें| जोताई के बाद, रोपण के एक महीने पहले 30 सैं.मी.3 के गड्डे तैयार करें, और धूप में खुला छोड़ दें| खेत की तैयारी के समय, 10 किलो रूड़ी की खाद मिट्टी में मिलाएं|

बिजाई

बिजाई का समय
जून से नवंबर तक बिजाई की जाती है|

फासला

विभिन्न किस्मों की खेती के लिए विभिन्न फासला:

  •  Mogra के लिए,  75 सैं.मी. x 1 मी. या 1.2 मी x 1.2 मी. या 2 मी. x 2 मी. का फासला रखें|
  •  Jai Jui के लिए, 1.8 x 1.8 मी. का फासला रखें|
  •  Kunda के लिए, 1.8 x 1.8 मी. का फासला रखें|


बीज की गहराई

इसकी बिजाई 15 सैं.मी. गहराई पर करें|

बिजाई का ढंग
इसका प्रजनन पौधे के भाग को काटकर, गाठों, ग्राफ्टिंग, बडिंग और टिशू कल्चर द्वारा किया जाता है|

बीज

बीज की मात्रा
प्रत्येक गड्ढे में एक तैयार पौधा लगाएं|

बीज का उपचार
चमेली के फूल के लिए बीज उपचार की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इसे प्रजनन विधि द्वारा उगाया जाता है।

प्रजनन

अच्छी तरह से तैयार ज़मीन अच्छे जल निकास वाली, उचित सिंचाई की सुविधा और धूप की आवश्यकता होती है।

रोपाई से एक महीना पहले उचित आकार के 45 सैं.मी. के गड्ढे खोदें और उन्हें कुछ दिनों के लिए धूप में खुला छोड़ दें।

रोपाई से पहले इन गड्ढों को, एक को रूड़ी की खाद से भर दें और दूसरे को बारीक रेत से भर दें। भरने के बाद मिश्रण को अच्छे से मिक्स करने के लिए पानी दें।

प्रत्येक खड्ढे में एक तैयार पौधा लगाएं|

कटाई और छंटाई

आमतौर पर कटाई छंटाई, उचित आकार और अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी होती है। छंटाई आम तौर पर पिछले सभी मौसमों की पुरानी टहनियों को निकालकर और बीमार, मरी हुई शाखाओं को निकालकर की जाती है। छंटाई मुख्य रूप से अच्छी उपज और फूलों की अच्छी गुणवत्ता और मात्रा के लिए नवंबर महीने के आखिरी सप्ताह में की जाती है।

खाद

तत्व किलो प्रति एकड़

NITROGEN K2O P2O5
60 18 72

 

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
130 120 120

 

खेत की तैयारी के समय खादों को नाइट्रोजन के रूप में 60 ग्राम प्रति पौधा, पोटाशियम 120 ग्राम और फासफोरस 120 ग्राम प्रति पौधे में डालें। व्यापारिक खेती के लिए इन खादों की खुराक की सिफारिश की गई है। खादों को इक्ट्ठा मिलायें और दो बराबर भागों में डालें। पहली खुराक जनवरी के महीने में दें और दूसरी खुराक जुलाई के महीने में दें। जैविक खादों जैसे मूंगफली केक, नीम केक आदि 100 ग्राम प्रति पौधे में दें।

फूलों की उपज बढ़ाने के लिए जिंक 0.25 % और मैगनीशियम 0.5 % की स्प्रे करें। आयरन की कमी को पूरा करने के लिए फैरस सल्फेट 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर महीने के अंतराल पर दें।

खरपतवार नियंत्रण

फसल की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए गोडाई की आवश्यकता होती है। पहली गोडाई रोपाई के 3-4 सप्ताह बाद और प्रत्येक 2-3 महीनों में एक बार लगातार गोडाई करें।

सिंचाई

उचित वृद्धि और फूलों के अच्छे विकास के लिए उचित समय के अंतराल पर सिंचाई करनी आवश्यक है। गर्मियों के महीनों में सप्ताह में एक बार ज्यादा सिंचाई दें। फूल निकलने के बाद अगली खाद डालने और छंटाई तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।

पौधे की देखभाल

नेमाटोड
  • बीमारियां और रोकथाम

नेमाटोड: इस बीमारी से पौधे की वृद्धि में कमी, पीलापन, सूखा और बाद में पत्ते गिरने लगते हैं।

उपचार: नेमाटोड बीमारी से बचाव के लिए साफ 10 ग्राम को प्रति पौधे में डालें।

जड़ गलन

जड़ गलन: इस बीमारी से पत्तों की निचली सतह  पर भूरे रंग के दाने देखे जा सकते हैं और कई बार इन्हें तने और फूलों पर भी देखा जा सकता है।

उपचार: जड़ गलन बीमारी से बचाव के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधे की जड़ों में डालें।

कली छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

कली छेदक: ये सुंडियां नए पत्तों, टहनियों और फूलों को अपना भोजन बनाकर पौधे को नष्ट करती हैं।

उपचार: कली छेदक से बचाव के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 WSC 2 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फूल का कीट

फूल का कीट: इससे फूल जल्दी खिल जाते है और प्रभावित पौधा तंदरुस्त पौधे से ज्यादा फूल पैदा करता है|

उपचार: इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 WSC 2 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

लाल मकौड़ा जूं

लाल मकौड़ा जूं: इस कीट से पत्तों की ऊपरी सतह पर रंग बिरंगे धब्बे पड़ जाते हैं इससे पत्ते अपना रंग खो देते हैं और अंत में गिर जाते हैं।

उपचार: लाल मकौड़ा जूं से बचाव के लिए सल्फर 50 % डब्लयु पी 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

स्टिक बग

स्टिक बग: यह पौधे के पत्तों, कोमल टहनियों और फूल की कलियों को खाकर पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं।

उपचार: इस कीट से बचाव के लिए मैलाथियोन 0.05 % की स्प्रे करें।

फसल की कटाई

यह फसल बिजाई से 6 महीने बाद तक पक जाती है और कटाई हाथों से बंद कलियों को खिलने से पहले  हाथों से तोड़ा जाता है। इसकी तुड़ाई मुख्य तौर पर सुबह जल्दी की जाती है। इसकी पैदावार प्रत्येक वर्ष बाद बढ़ती जाती है, पहले वर्ष में औसतन पैदावार 800 किलो प्रति एकड़, दूसरे वर्ष में औसतन पैदावार 1600 किलो प्रति एकड़, तीसरे वर्ष में औसतन पैदावार 2,600 किलो प्रति एकड़, चौथे वर्ष में औसतन पैदावार 3,600 किलो प्रति एकड होती है।