सदाबहार पौधे का नर्सरी प्रबंधन

आम जानकारी

सदाबहार का वानस्पतिक नाम Vinca rosea (कैथरैंथस रोज़िआ) है| यह एक सदाबहार जड़ी-बूटी है, जो मुख्य तौर पर दो रूप में पाई है: Vinca मेजर और  Vinca minor. यह टहनियों वाली और सीधी जड़ी-बूटी है| इसके पत्ते चमकीले, जिनका आकार अंडाकार से लम्भकार होता है| इनके बीच की नाड़ी पीली और पत्तों का आकार छोटा होता है| इसके फूलों की 5 पत्तियां होती है, जिसके बीच में पीले-गुलाबी या जामुनी रंग की आंख होती है| इस पौधे से तैयार दवाईयां कई तरह की कैंसर की बीमारीयों के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है| इसका मूल स्थान मैड़ागैसकर है और इसकी फसल पूरे भारत मै उगाई जाती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-25°C
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    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C

मिट्टी

धूप मै पूरी तरह से सूखी और बढ़िया निकास वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी मानी जाती है| इसके सख्त-पन के कारण, इसको लगभग हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है| इसकी खेती अनुपजाऊ मिट्टी में भी की जा सकती है| इसको ज्यादा उपजाऊ मिट्टी में ना उगाएं, क्योंकि इससे पौधे के फूलों को नुकसान पहुंचता है| इसके लिए मिट्टी का pH 6-6.5 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Catharanthus roseus Albus: इस किस्म के फूल सफेद रंग के होते है|

Catharanthus roseus Ocellatus:
  इसके फूल सफेद रंग के, जो बीच में से लाल होते है|

ज़मीन की तैयारी

इसकी खेती के लिए, ज्यादा उपजाऊ मिट्टी की जरूरत नहीं होती है| पर इसकी अच्छी पैदावार के लिए इसको जैविक मिट्टी में उगाया जा सकता है| 6 इंच गहरे बैड खोदे और बिजाई से पहले सुखी या कम्पोस्ट खाद की 1 इंच पतली परत बिछाएं|

बिजाई

बिजाई का समय
इस फसल की बिजाई का उचित समय सितम्बर से फरवरी तक का होता है|

फासला
पौधों के बीच का फासला 6-9 इंच होना चाहिए|

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई रोपाई द्वारा या हदों के भागों को काट कर की जाती है|

बीज

बीज की मात्रा
50 वर्ग फुट ज़मीन के लिए लगभग 2,000 बीजों की जरूरत होती है|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

गर्मियों या बसंत के अंत में, 5-8 सैं.मी. लम्बे पौधे का भाग प्रजनन के लिए प्रयोग किया जाता है| भाग को काटने के तुरंत बाद इसकी कांट-छांट कर दें और इसको हार्मोन रूटिंग पाउडर में भिगोएं, जिससे मिट्टीके बीच खतरनाक रोगाणुओं को मरने में सहायता मिलती है| बिजाई अच्छी तरह से नम ज़मीन में करें और पौधों के बीच का फासला 30 सैं.मी. रखें| इनकी जड़ें 3-4 हफ्तों में निकल आती है और फिर यह आम पौधे की तरह ही विकास करते है| सर्दी के अंत या बसंत के शुरू में, बीजों को बोयें|

कुछ बीजों को लेकर ट्रे में बोयें जिसमे जड़ों में नमी बनी रहें| ट्रे को पतले कपड़े से ढक दें, ताकि ट्रे में नमी बनी रहें| ट्रे को प्रकाश में रखें|

बीज 2-3 हफ्तों में अंकुरण शुरू कर देते है, फिर ट्रे से कपड़ा हटा दें और नए पौधों को थोड़ा-थोड़ा पानी दें| मिट्टी को गिला रखनेयोग्य ही पानी दें, अनावश्यक पानी ना दें|

जब नए पौधे 1 सैं.मी. कद के हो जाये तो, इनको 8 सैं.मी. गोल गमलों में लगा दें|

खाद

ज़मीन की तैयारी के समय 50-100 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें| पोटाशियम और फासफोरस को दो बराबर हिस्सों में डालें| पहली वार्षिक कांट-छांट के बाद और दूसरी जून-जुलाई के महीने में डालें|

खरपतवार नियंत्रण

पौधे के बढ़िया विकास के लिए नियमित गोड़ाई करें| गोड़ाई 2 महीने के फासले पर करें|

सिंचाई

गर्म और शुष्क मौसम या पौधे के विकास के समय पौधे के बढ़िया विकास के लिए नियमित पानी दें| हर 3 महीने बाद 15-15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें| अनावश्यक पानी ना दें, क्योंकि इसके साथ पौधे के विकास को नुकसान होता है|

पौधे की देखभाल

काले रंग का जड़ गलन
  • बीमारीयां और रोकथाम

काले रंग का जड़ गलन: यह बीमारी थिलाविओपसिस बैसिकोल फंगस के कारण होती है| इसके मुख्य लक्षण पत्तों का पीला पड़ना, विकास में रुकावट और पत्ते मुरझाना या मुड़ जाना है| इससे जड़ों पर भी गहरे धब्बे पड़ जाते है|
इसकी रोकथाम के लिए फंगसनाशी जैसे कि थायोफानेट मिथाइल, टराइफयूमिजोल और फ्लूडीओक्सोनिल डालें|

उखेड़ा रोग: इस बीमारी के साथ बीज गलने लग जाते है, जिस कारण नए पौधे नष्ट हो जाते है या क्षतिग्रस्त हो जाते है|

पाईथियम जड़ गलन: यह जड़ों के सिरों पर हमला करती है और फिर धीरे-धीरे ऊपर कि तरफ बढ़ती रहती है|

इसकी रोकथाम के लिए एटरिडाईआजोल, फोसेटिल- आल, मैफेनोजाम और परोपामोकारब जैसे फंगसनाशी डालें|

फाईटॉफथोरा जड़ गलन

फाईटॉफथोरा जड़ गलन: इस बीमारी के साथ पत्ते पीले या जामुनी रंग के हो जाते है, पौधे का विकास रुक जाता है और पौधे सूखने के बाद मर जाते है|

इसकी रोकथाम के लिए एटरिडाईआजोल, फोसेटिल- आल या मैफेनोजाम डालें|

राईज़ोकटोनियां जड़ गलन: इस बीमारी से साथ पौधा सूखने के बाद अचानक मर जाता है|

इसकी रोकथाम के लिए फ्लूडीओक्सोनिल, इपराडाईऑन, पी सी एम बी, थायोफानेट मिथाइल या टराइफयूमिजोल की भारी स्प्रे करें या मिट्टी में डालें|

उलोकलेडियम और अलटरनेरिया पत्तों के धब्बे
  • पत्तों की बीमारियां

उलोकलेडियम और अलटरनेरिया पत्तों के धब्बे: इससे तने, पत्तियां और पत्तों पर भूरे या काले रंग के धब्बे पड़ जाते है|
इसकी रोकथाम के लिए पत्तों पर शुरुआती धब्बे दिखाई देने के समय एजोकसीस्टरोबिन, क्लोरोथैलोनिल, फ्लूडीओक्सोनिल या इपराडाईऑन जैसे फंगसनाशी 7-14 दिनों के फासले पर डालें|


फाईटॉफथोरा हवाई झुलस रोग: इस बीमारी से शाखाएं सूख जाती है और इन पर स्लेटी-हरे रंग के घाव बन जाते है|
इसकी रोकथाम के लिए एजोकसीस्टरोबिन, फोसेटिल- आल 1 महीने के फासले पर 2-3 बार डालें|

टमाटरों के धब्बों वाला सूखा रोग (टी एस डब्लयू वी): इस बीमारी से पत्तों के बीच में काले गोल धब्बे या धारियां पड़ जाती है|

पत्तों पर स्लेटी धब्बे (स्लेटी फंगस): यह बीमारी पौधों को कमज़ोर कर देती है|
इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोथेनोनिल, इपराडाईऑन और मैंकोजेब जैसे फंगसनाशी डालें|

फसल की कटाई

इसके पौधे बिजाई से 12 महीने बाद तक तैयार हो जाते है| इसकी कटाई 3-3 महीने के फासले पर की जाती है| इसकी जड़ें, पत्तों और फूलों को अलग-अलग इक्क्ठा किया जाता है और इनको दवाइयां बनाने और नए पौधे तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता है|

कटाई के बाद

कटाई के बाद, जड़ें, बीजों, पत्त्तों और फूलों को धुप में सुखाया जाया है| फिर इनको हवा-रहित बक्सों में नमी से बचाने के लिए स्टोर कर लिया जाता है| पौधे के इन सूखे भागों को सदाबहार पाउडर जैसे उत्पाद तैयार किये जाते है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare