सर्पगन्धा फसल की जानकारी

आम जानकारी

यह एक महत्तवपूर्ण औषधि है,  जो कि आधुनिक दवाइयों और आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। इसकी जड़ें सुगन्धित होती हैं लेकिन स्वाद में कड़वी होती हैं। इसकी जड़ें विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। सर्पगन्धा से तैयार दवाइयों को घाव, बुखार, पेट का दर्द, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, मिर्गी और पागल-पन के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक झाड़ी वाला पौधा है, जिसकी औसतन ऊंचाई 0.3-1.6 मीटर है| इसके पत्ते लम्भाकार होते है, जिसकी लम्बाई  8-15 सैं.मी. होती हैं। इसके फूल सफेद या गुलाबी, फल जामुनी काले रंग के और जड़ें 0.5-3.6 सैं.मी. व्यास के होते हैं। सर्पगन्धा के मुख्य उत्पादक देश बर्मा, बंगलादेश, मलेशिया, श्री लंका, इंडोनेशिया और अंडेमान द्वीप आदि हैं। भारत में उत्तर प्रदेश सर्पगन्धा का मुख्य उत्पादक राज्य है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10-35°C
  • Season

    Rainfall

    2500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-20°C
  • Season

    Temperature

    10-35°C
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    Rainfall

    2500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
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    Harvesting Temperature

    10-20°C
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    Temperature

    10-35°C
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    Sowing Temperature

    25-35°C
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    Harvesting Temperature

    10-20°C
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    10-35°C
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    Rainfall

    2500mm
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    Sowing Temperature

    25-35°C
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    Harvesting Temperature

    10-20°C

मिट्टी

इसके सख्तपन के कारण इसे मिट्टी की कई किस्मों जैसे लाल लैटेराइट दोमट से रेतली जलोढ़ मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह नमी और नाइट्रोजन युक्त मिट्टी, जिसमें जैविक तत्व मौजूद हो और अच्छे जल निकास वाली हो, में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। यह चिकनी  और चिकनी दोमट मिट्टी में भी उगाई जा सकती है। इसकी अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी का pH 4.6-6.5 होना चाहिए।

ज़मीन की तैयारी

सर्पगन्धा की बिजाई के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक बार-बार जोताई करें। हल से जोतने बाद मिट्टी में खाद, पोषक तत्व और विकास के लिए सहायक खड़े मिट्टी में मिलाये|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

R.S.1: यह किस्म ज्वाहर लाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय द्वारा विकसित की गई है। इस किस्म में बीजों की संख्या 50-60 % होती है और इसकी सूखी जड़ों की औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

सर्पगन्धा के बीजों को 1.5 चौड़ाई, 150-200 मि.मी. ऊंचाई और आवश्यक लंबाई के तैयार बैडों पर बोयें। नर्सरी बैड पर अप्रैल के महीने में बीज बोयें और बोने से पहले सिंचाई आवश्य करें। 30-35 दिनों में बीज अंकुरण होना शुरू हो जाते हैं।

जुलाई के पहले सप्ताह में रोपाई की जा सकती है, पौधे 40-50 दिन के होने और 4-6 पत्ते निकलने पर मुख्य खेत में 30x30 सैं.मी. के फासले पर रोपाई करें। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।

फसल को मिट्टी से होने वाले बीमारियों से बचाने के लिए पौधों को 30 मिनट के लिए बविस्टिन 0.1% में डालें

बिजाई

बिजाई का समय
बीजों के द्वारा प्रजनन करने पर अप्रैल-जून के महीने में खेती करें, अगर तने द्वारा  प्रजनन किये जाने पर जून के महीने में खेती करें, अगर जड़ों द्वारा प्रजनन करने पर मार्च-जून के महीने में खेती करें। प्रजनन जड़ के हिस्से द्वारा करने पर मई-जुलाई के महीने में खेती करें।

फासला
पौधे के विकास के अनुसार, 30x30 सैं.मी. का फासला रखें।

बिजाई का ढंग
मुख्य खेत में बीजों को सीधे बो कर या पनीरी लगाकर, तने या जड़ द्वारा बिजाई की जा सकती है।

बीज

बीज की मात्रा
पौधे के बढ़िया विकास के लिए, 32,000-40,000 प्रति एकड़ में नए पौधों का प्रयोग करें।

बीज का उपचार
फसल को फंगस की बीमारी से बचाने के लिए बिजाई से पहले, बीजों को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोये। फंगसनाशी जैसे थीरम 2-3 ग्राम से प्रति किलो से  नए पौधों का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
18 75 20

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
8 12 12

 

खेत की तैयारी के समय, रूड़ी की खाद  10 टन डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। शुरू में खाद के रूप में, नाइट्रोजन 8 किलो(यूरिया 18 किलो), फासफोरस 12 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो), पोटाश 12 किलो(म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ में डालें। सर्पगन्धा के विकास के समय 8 किलो नाइट्रोजन की मात्रा दो बार डालें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए हर गोडाई के बाद निराई करें। शुरूआती समय, जैसे पहले वर्ष में दो निराई और दूसरे वर्ष में पौधे के विकास के समय गोडाई के बाद एक निराई करें। अगर शुरूआती समय में फूल निकलने शुरू हो जायें तो जड़ों के विकास के लिए फूलों को शिखर से काट दें|

सिंचाई

गर्मियों में, हर महीने के अंतराल पर दो सिंचाइयां करें और सर्दियों के मौसम में, हर महीने के अंतराल पर चार सिंचाइयां करें। गर्म शुष्क मौसम में हर महीने के पखवाड़े में सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

छोटे पंखों वाली सुंडी
  • कीट और रोकथाम

छोटे पंखों वाली सुंडी : यह ग्लाइफोड्ज़ वर्टमनैलज़ के कारण होती है। इससे पत्ते मुड़ जाते हैं और झड़ जाते हैं। यह हरे पत्तों को अपना भोजन बनाती है जिससे पत्तों का बहुत नुकसान होता है।

इसकी रोकथाम के लिए रोगोर 0.2 % की स्प्रे करें।

सफेद सुंडी

सफेद सुंडी: यह एनोमला पोलीटा के कारण होती हैं। यह नए पौधों पर हमला करती हैं जिससे यह सूख जाते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के समय फोरेट ग्रैनुलस को मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें।

पत्तों पर धब्बा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों पर धब्बा रोग: इस बीमारी से पत्तों की ऊपरी और निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्ता पहले पीले रंग का हो जाता है फिर सूख कर गिर जाता है।

इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 @400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर महीने के अंतराल पर नवंबर तक डालें|

जड़ गलन

जड़ गलन: यह कीट मैलोएडोगाइन इनकोगनीटा और मैलोएडोगाइन हाप्ला के कारण होते हैं। इससे विकास कम और पत्ते के आकार में कमी आती है।

इसकी रोकथाम के लिए 3 जी कार्बोफिउरॉन 10 किलो या 10 जी फोरेट ग्रैनुलस 5 किलो प्रति एकड़ में डालें।

गहरे भूरे धब्बे

गहरे भूरे धब्बे: इससे पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए ब्लीटॉक्स 30 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

बिजाई के बाद, 2-3 वर्ष में पौधा पैदावार देना शुरू कर देता है। सर्दियों के मौसम के दौरान जब पौधा अंकुरण होना शुरू हो जाये, तब पुटाई करें। मुख्य रूप से जड़ों की पुटाई की जाती है| जड़ों की अच्छे से पुटाई के लिए, पुटाई से पहले सिंचाई करें। नए उत्पाद बनाने के लिए सूखी जड़ों का प्रयोग किया जाता है।

कटाई के बाद

पुटाई के बाद, जड़ों को साफ किया जाता है। जड़ों को पहले काटा जाता है और फिर हवा में सुखाया जाता है। बेहतर परिवहन और जीवन को बढ़ाने के लिए सूखी जड़ों को हवा-रहित बैगों में डालें। सूखी जड़ों से कई तरह के उत्पाद जैसे पाउडर, टैबलेट, घनवटी, योगा और महेश्वरी वटी तैयार किए जाते हैं।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare