आम जानकारी
कुसुम को आम-तौर पर कुसुम्भ के नाम से भी जाना जाता हैं| यह सबसे पुरानी तेल वाली फसल है, जिस में 24-36% तेल होता है| इसका प्रयोग खाना पकाने के लिए ज्यादा किया जाता है| इससे तैयार खल को पशुओं के चारे के लिए प्रयोग किया जाता है|
कुसुम को आम-तौर पर कुसुम्भ के नाम से भी जाना जाता हैं| यह सबसे पुरानी तेल वाली फसल है, जिस में 24-36% तेल होता है| इसका प्रयोग खाना पकाने के लिए ज्यादा किया जाता है| इससे तैयार खल को पशुओं के चारे के लिए प्रयोग किया जाता है|
इसकी खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती हैं| यह बढ़िया निकास वाली रेतली-दोमट और जैविक तत्वों की भरपूर मात्रा वाली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है|
DSH-129, MKH-11, Parbhani Kusuma(PBNS-12), NARI-NH-1 (PH- 6)
और राज्यों की किस्में
Phulekusum, NARI-6.
NARI-H-15: यह हाइब्रिड किस्म फलटण (महाराष्ट्र) 2005 में पूरे देश के सिंचिंत क्षेत्रों के लिए बनायी गई है| इसमें तेल की मात्रा 28% होती है और यह किस्म चेपे को सहनयोग्य हैं|
मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए ज़मीन की कई बार जोताई करें, ताकि खेत में मौजूद नदीनों को निकला जा सके| निचली ज़मीनों को जल जमाव से बचाये, क्योंकि यह सूखे और जड़-गलन जैसे रोगों द्वारा फसल का नुकसान करता हैं|
बिजाई का समय
इसकी बिजाई का उचित समय अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले हफ्ते तक का होता है|
फासला
पौधों के बीच का फासला 15 सैं.मी. और पंक्तियों के बीच का फासला 45 सैं.मी. का रखें|
बीज की गहराई
इसके बीज 5-7 सैं.मी. की गहराई पर बोयें|
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई ड्रिल मशीन के द्वारा की जाती है|
बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 6 किलो बीजों का प्रयोग प्रति एकड़ में करें|
बीज का उपचार
बिजाई से पहले कप्तान या एग्रोसन जी एन 3 ग्राम प्रति किलो से बीजों का उपचार करें| बढ़िया अंकुरण के लिए सेहतमंद और निरोग बीजों को रात भर पानी में भिगोएं|
कुसुम की खेती के बाद खरीफ की फसलें जैसे कि उड़द, चारा, मूंग, मक्की आदि उगाई जा सकती है|
खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MOP |
35 | On soil test results | On soil test results |
तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
16 | - | - |
नाइट्रोजन 16 किलो(यूरिया 35 किलो), प्रति एकड़ में डालें| अगर ज़मीन में पौष्टिक तत्वों की कमी हो तो, फासफोरस और बाकी की सारी खादें बिजाई से पहले ड्रिल मशीन के साथ डालें|
कुसुम की फसल फूल बनने के समय नदीनों से ज्यादा प्रभावित होती है| फूल बनने के समय डैकनी क्षेत्रों में 25-30 दिन और ज्यादा सर्दी पड़ने वाले क्षेत्रों में 2 महीने या इससे ज्यादा होता है| इस नाज़ुक समय खेत को नदीं मुक्त रखने के लिए बिजाई से 45-50 दिन की बजाए 25-30 दिन बाद नियमित 1-2 बार गोड़ाई करें| नदीनों की प्रभावशाली रोकथाम के लिए अंकुरण से पहले ट्राईफ्लूरालिन 200 ग्राम या ई पी टी सी 200 ग्राम प्रति एकड़ और अंकुरण के बाद ऐट्राजिन 800 ग्राम या एलाक्लोर 600 ग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग करें|
जहां पर बरिसस्ससष की आवश्यकता नहीं होती, यह फसल उन क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती हैं और मौसम के अनुसार मिट्टी में नमी मौजूद होती है| फूल निकलने के समय पानी की बहुत जरूरत होती है और बढ़िया पैदावार के लिए 30 दिन के बाद एक बार सिंचाई करें| जहां पर मिटी में नमी कम हो तो, बिजाई से पहले एक भारी सिंचाई करें| यह फसल के विकास के लिए लाभदायक होती है|
आड़ू का हरा चेपा: इसका रूप सड़े हुए पौधे जैसा होता हैं|
कुसुम का चेपा: यह कोमल शाखाओं, पत्तों और तने पर देखा जा सकता हैं| यह पौधे को कमज़ोर करता है और कई जगह से सूखा देता है|
रोकथाम: क्लोरपाइरीफोस 20 ई सी 100 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें| अगर जरूरत पड़े तो 15 दिन बाद दोबारा स्प्रे करें|
मुरझाना और सड़ना: इस बीमारी के साथ पौधे पीले पड़ जाते है, फिर भूरे हो जाते है और अंत में मर जाते है| यह एक सफेद रंग की फंगस होती है, जो पौधे की जड़ों और तने पर देखी जा सकती हैं|
रोकथाम: बीमारी के लिए सेहतमंद और निरोग बीजों का प्रयोग करें| बारिश की ऋतु के समय तने पर मिट्टी ना चढ़ाये|
कुसुम की फसल 150-180 दिनों में पक जाती है| इसकी कटाई फूल पीले-भूरे रंग के होने पर मध्य-मई में करें|
1.Punjab Agricultural University Ludhiana
2.Department of Agriculture
3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi
4.Indian Institute of Wheat and Barley Research
5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare
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