पंजाब में लोकाट की खेती

आम जानकारी

भारत में इसे मुख्यत: लुकाट या लुगाठ के नाम से जाना जाता है। यह एक सदाबहार और उपउष्णकटिबंधीय फल का वृक्ष है। यह 5-6 मीटर कद प्राप्त करता है और इसकी प्रकृति फैलने वाली होती है। इस फल का मूल स्थान केंद्रीय पूर्वी चीन है और यह मुख्य तौर पर ताइवान, कोरिया, चीन, जापान देशों में उगाया जाता है। भारत में लोकाट की खेती दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, आसाम, और उत्तर प्रदेशों राज्यों में की जाती है। इसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं। जैसे त्वचा को स्वस्थ करता है और नज़र में सुधार करता है, भार कम करने में मदद करता है, ब्लड प्रैशर को बरकरार रखता है और रक्त को बढ़ाता है। यह दांतों और हड्डियों की शक्ति को मजबूत करने में भी मदद करता है।
पंजाब में इसे मुख्यत: रूपनगर, होशियारपुर, गुरदासपुर और पटियाला जिलों में उगाया जाता है। फल मुख्य तौर पर अंत मार्च से अप्रैल में पक जाते हैं और इनकी अच्छी कीमत होती है।
 

मिट्टी

लोकाट को अच्छे निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं, की आवश्यकता होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

California Advance: यह किस्म 1970 में जारी की गई है। इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं। क्रीम रंग का गुद्दा होता है। फल स्वाद में खट्टे और फल में 2-3 बीज होते हैं। यह किस्म मध्य अप्रैल में पक जाती है।
 
Golden Yellow: यह किस्म 1967 में जारी की गई है। इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं। गुद्दा पीले रंग का होता है और 4-5 बीज होते हैं। यह किस्म मध्य मार्च में पक जाती है। 
 
Pale Yellow: यह किस्म 1967 में जारी की गई है। इस किस्म के फल बड़े आकार के होते हैं। गुद्दा सफेद रंग का होता है फल स्वाद में खट्टे और फल में 3-4 बीज होते हैं। यह किस्म मार्च के अंत में पक जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
अगेती किस्में: Pale Yellow, Golden Yellow, Improved Golden Yellow, Thames Pride and Large Round.
 
मध्य मौसम की किस्में: Mammoth, Improved Pale Yellow, Safeda, Fire Ball, Matchless and Large Agra.
 
पिछेते मौसम की किस्में: California Advance and Tanaka. 
 

ज़मीन की तैयारी

लोकाट की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 गहरी जोताई करें और समतल करें।

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई के लिए जून से सितंबर का महीना उपयुक्त होता है।
 
फासला
पौधे से पौधे में 6-7 मीटर फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
रोपाई 1 मीटर गहराई पर करें।
 
बिजाई का ढंग
प्रजनन विधि का प्रयोग किया जाता हैं
 

बीज

बीज की मात्रा
95-96 पौधे प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
नर्म और पुरानी टहनियों का NAA 3 प्रतिशत और IBA 250 पी पी एम से उपचार किया जाता है।
 

प्रजनन

प्रजनन के लिए, एयर लेयरिंग विधि का प्रयोग किया जाता है।  बिजाई के लिए बडिंग किए हुए और कलम वाले पौधों का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे जल्दी फल देते हैं। 

खाद

तत्व (ग्राम प्रति एकड़)

Age (in years) FYM (kg/tree) UREA SSP MOP
1-2 years 10-20 150-500 200-500 150-400
3-6 years 25-40 600-750 600-1200 600-1000
7-10 years 40-50 800-1000 1500-2000 1100-1500
10 and above years 50 1000 2000 1500

 

अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद, फासफोरस और पोटाशियम को सितंबर महीने में डालें और यूरिया को दो भागों में बांटकर पहले भाग को अक्तूबर महीने में और बाकी की मात्रा को फल बनने के बाद जनवरी फरवरी महीने में डालें।

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को हाथ से गोडाई करके या रासायनों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ग्लाइफोसेट 1.6 लीटर को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। ग्लाइफोसेट की स्प्रे सिर्फ नदीनों पर ही करें, मुख्य फसल पर ना करें। 

सिंचाई

मिट्टी और मौसम के आधार पर सिंचाई दी जाती है। मुख्यत: तुड़ाई के समय 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

पौधे की देखभाल

पत्ता लपेट सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
पत्ता लपेट सुंडी : ये कीट पत्तों को लपेटकर पौधों को प्रभावित करते हैं।
 
रोकथाम  : इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 400 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में सिंचाई करें।
 
चेपा
चेपा : प्रौढ़ और छोटे कीट दोनों ही पौधे का रस चूसकर उसे कमज़ोर कर देते हैं। गंभीर हमले में, इनके कारण पत्ते मुड़ जाते हैं और नए पत्तों का आकार बेढंगा हो जाता है। ये कीट प्रभावित पत्तों पर शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं जो कि बाद में काले रंग की फंगस में विकसित हो जाते हैं।
 
रोकथाम : चेपे की रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
काले रंग के धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
काले रंग के धब्बे : यह बीमारी फंगस के कारण होने वाली बीमारी है। इसके  कारण पत्तों पर काले रंग के धंसे हुए धब्बे पड़ जाते हैं।
 
रोकथाम : यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 4 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मैनकोजेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

मुख्य तौर पर पौधा रोपाई के तीसरे वर्ष में फल देना शुरू करता है और 15 वें वर्ष में  पौधा अधिक उपज देना शुरू कर देता है। फलों के पूरी तरह पकने पर तीखे यंत्र से तुड़ाई करें। तुड़ाई के बाद छंटाई की जाती है। इसकी औसतन उपज 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।