मूंग फसल की जानकारी

आम जानकारी

इसे मूंग के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत की मुख्य दालों में से एक है। यह प्रोटीन के साथ-साथ रेशे और लोहे का मुख्य स्त्रोत है। यह पंजाब में खरीफ की ऋतु के समय और गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है। पंजाब में यह लगभग 5.2 हज़ार हैक्टेयर रकबे पर उगाई जाती है और इसकी कुल पैदावार 4.5 हज़ार टन है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°C - 35°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°C - 35°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°C - 35°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Rainfall

    60-90 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°C - 35°C

मिट्टी

इसकी खेती मिट्टी की व्यापक किस्मों में की जा सकती है। यह अच्छे निकास वाली दोमट से रेतली दोमट मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। नमक और जल जमाव वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

SSL 1827: यह किस्म हरी मूंग और उड़द के सुमेल से तैयार की गई है। इसकी औसतन पैदावार 5.0 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म पीला चितकबरा रोग के प्रतिरोधी है।
 
ML 2056 : यह खरीफ ऋतु के अनुकूल है। इसके पौधे मध्यम कद के होते हैं। यह किस्म 75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी हरी फली में 11-12 दाने होते हैं। यह चितकबरा रोग और पत्तों पर बनने वाले धब्बा रोगों को सहने योग्य है। इसके इलावा यह रस चूसने वाले कीड़े जैसे कि तेले और सफेद मक्खी को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
ML 818 : यह खरीफ की ऋतु में उगाई जाने वाली किस्म है। पौधे का कद दरमियाना होता है। यह किस्म 80 दिनों में पक जाती है। प्रत्येक फली में 10-11 दाने होते हैं। यह किस्म पीला चितकबरा रोग और पत्तों के धब्बा रोग की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
PAU 911: यह किस्म खरीफ ऋतु की किस्म है। यह 75 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी फली में 9-11 दाने होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसके दाने दरमियाने मोटे और हरे होते हैं।
 
SML 668: यह किस्म गर्मी की ऋतु में लगाई जाती है। इसके बूटे छोटे होते हैं और यह 60 दिनों में पक जाती है। इसकी फलियां लंबी और हर फली में 10-11 दाने होते हैं। यह जुएं और मूंग के चितकबरे रोग को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
SML 832: यह गर्मी ऋतु में बीजने वाली किस्म है। इसका बूटा दरमियाने कद का होता है। यह किस्म 60 दिनों में पक जाती है। इसकी प्रत्येक फली में 10 दाने होते हैं। इसके दाने दरमियाने और चमकीले हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 4.6 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Jawahar- 45: यह भारत के उत्तरी और प्रायद्वीप क्षेत्रों में उगाने वाली, दरमियाने समय में तैयार होने वाली किस्म है। यह 75 से 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-5.2 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
ML1: यह भारत के उत्तरी और प्रायद्वीप क्षेत्रों में उगाने वाली, दरमियाने समय में तैयार होने वाली किस्म है। यह 75 से 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-5.2 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
TMB 37: यह किस्म पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी द्वारा जारी की गयी है। यह किस्म गर्मी और वसंत की ऋतु में लगाई जाती है। यह 60 दिनों में पक जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Type 1: यह अगेती किस्म है। यह कटाई के लिए 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसे हरी खाद बनाने और दाने प्राप्त करने के लिए उगाया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 2.4-3.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Baisakhi: यह कटाई के लिए 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3.2-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Mohini: यह कटाई के लिए 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पीला चितकबरा रोग ओर पत्तों पर सफेद धब्बे रोग को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PS 16: यह सारी देश में उगानेयोग्य किस्म है। यह कटाई के लए 60-65 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक दो या तीन बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय
खरीफ की बिजाई के लिए जुलाई का पहला पखवाड़ा उपयुक्त होता है और गर्मियों में बिजाई के लिए मार्च से अप्रैल का महीना उपयुक्त होता है।
 
फासला
खरीफ की बिजाई के लिए कतारों में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। रबी की बिजाई के लिए कतारों में 22.5 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 7 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। 
 
बीज की गहराई
बीजों को 4-6 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन, पोरा या केरा ढंग का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
खरीफ के मौसम के लिए 8-9 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें, जबकि गर्मियों के मौसम के लिए 12-15 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई   मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Captan

3gm

Thiram 3gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
12 100 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
5 16 -

 

नाइट्रोजन 5 किलो (12 किलो यूरिया), फासफोरस 16 किलो (100 किलो सिंगल सुपर फासफेट) की मात्रा बिजाई के समय प्रति एकड़ में डालनी चाहिए।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त रखें, एक या दो गोडाई करें। पहली गोडाई बिजाई के चार सप्ताह बाद करें और दूसरी गोडाई पहली गोडाई के दो सप्ताह बाद करें। रासायनिक तरीके से नदीनों को ख्त्म करने के लिए फलूक्लोरालिन 600 मि.ली. प्रति एकड़ और ट्राइफलूरालिन 800 मि.ली बिजाई के समय या पहले प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के बाद दो दिनों में  पैंडीमैथालीन 1 लीटर को 100 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

 

सिंचाई

मूंग को मुख्यत: खरीफ की फसल के तौर पर उगाया जाता है। यदि जरूरत पड़े तो जलवायु के हालातों के आधार पर सिंचाई करें।
गर्मियों के मौसम की फसल के लिए मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार तीन से पांच सिंचाई करें। अच्छी उपज के लिए बिजाई के 55 दिनों के बाद सिंचाई बंद कर दें।

पौधे की देखभाल

रस चूसने वाले कीड़े (हरा तेला, चेपा और सफेद मक्खी)
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
रस चूसने वाले कीड़े (हरा तेला, चेपा और सफेद मक्खी) :  यदि इन कीड़ों का नुकसान दिखे तो मैलाथियॉन 375 मि.ली. या डाइमैथोएट 250 मि.ली. या ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 250 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफॉस 600 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
ब्लिस्टर बीटल
जूं: यदि इनका हमला दिखे दे तो डाइमैथोएट 30 ई सी 150 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
ब्लिस्टर बीटल : इसके कारण फूल निकलने की अवस्था में ज्यादा नुकसान होता है। ये फूलों, कलियों को खाती हैं, जिससे दाने नहीं बनते।
 
यदि इसका हमला दिखे तो इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस सी 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। स्प्रे शाम के समय करें और यदि जरूरत हो तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
 
फली छेदक सुंडी
फली छेदक : यह गंभीर कीट है जिसके कारण उपज में भारी नुकसान होता है। यदि इसका हमला दिखे तो इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम या स्पिनोसैड 45 एस सी 60 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। दो सप्ताह बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
तंबाकू सुंडी
तंबाकू सुंडी : इसकी रोकथाम के लिए एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 1.5 लीटर की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
बालों वाली सुंडी
बालों वाली सुंडी : इसकी रोकथाम के लिए यदि कम हमला हो तो सुंडी को हाथों से उठाएं और नष्ट करें या कैरोसीन डालकर नष्ट करें। यदि इसका हमला ज्यादा हो तो क्विनलफॉस 500 मि.ली. या डाइक्लोरवॉस 200 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 
पीला चितकबरा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
पीला चितकबरा रोग : यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। जिससे पत्तों और पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। प्रभावित पौधे पर फलियां नहीं बनती।
 
इस रोग की प्रतिरोधक किस्में बीजनी चाहिए। इसकी रोकथाम के लिए 40 ग्राम थाइमैथोक्सम  और ट्राइज़ोफॉस 600 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।  आवश्यकतानुसार पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
सरकोस्पोरा पत्तों के धब्बों का रोग
पत्तों के धब्बों का रोग : इसकी रोकथाम के लिए कप्तान और थीरम से बीजों का उपचार करें। इस रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दो से तीन स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

85 प्रतिशत फलियों के पक जाने पर कटाई की जाती है। फलियों को ज्यादा पकने नहीं देना चाहिए इससे वे झड़ जाती हैं जिससे पैदावार का नुकसान होता है। कटाई दरांती से करें। कटाई के बाद थ्रैशिंग करें। थ्रैशिंग के बाद बीजों का साफ करें और धूप में सूखाएं।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare